आहार और मानसिक स्वास्थ्य

आहार और मानसिक स्वास्थ्य

आहार ही औषधि होनी चाहिये और औषधि ही आहार- हिप्पोक्रेट्स

मानव अस्तित्व के लिये आहार महत्वपूर्ण है। इसमें वह पोषण होता है जिसकी आवश्यकता शरीर को होती है जिससे ऊर्जा की मदद से दैनिक गतिविधियों को किया जा सके। भारत में आहार का सांस्कृति महत्व भी है। अनेक उत्सव व त्योहार होते हैं जब स्वादिष्ट और विशिष्ट आहार बनाए जाते हैं और कुछ त्योहार होते हैं जब उपवास को महत्व दिया जाता है। किसी भी व्यक्ति में आहार को लेकर उसकी आदतें, उसके पारिवारिक और पर्यावरण के कारकों पर निर्भर होती हैं जहां वह पला बढ़ा होता है। यही कारण है कि किसी को शाक भाजी का आहार सही लगता है और किसी को मांस आधारित आहार।

शरीर को मिश्रित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, विटामिन्स और खनिज, और ये सभी हमें अपने दैनिक आहार से प्राप्त होते हैं। प्रोटीन की मदद से पेशियां बनाने, त्वचा और रक्त संबंधी सहायता प्राप्त होती है; कार्बोहाइड्रेट्स और वसा शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते हैं। विटामिन और खनिज थोड़ी ही मात्रा में आवश्यक होते हैं लेकिन ये शरीर में विशिष्ट अंगों के सही काम करने और हड्डी के ऊतक व रक्त निर्माण में सहायक होते हैं। कुछ खनिज जैसे लौह, कैल्शियम, आयोडीन और जस्ता और विटामिन जैसे ए, बी से हमें शरीर में संक्रमण से बचने और ऊतकों की मरम्मत में मदद मिलती है। विटामिन सी की मदद से हमें लौह को अवशोषित करने में और विटामिन डी हमें कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है जो कि हमारी हड्डियों और पेशियों के निर्माण में मदद करता है।

आहार मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है

शास्त्रों के अनुसार पोषण की कमी का शक्तिशाली संबंध शरीर से और मस्तिष्क से है। हमारा बीस प्रतिशत मस्तिष्क आवश्यक फैटी एसिड्स और अमीनो एसिड्स से बना होता है जैसे ओमेगा 3 और 6। चूंकि शरीर इन्हे स्वयं नही बना सकता है, इसे आहार में से प्राप्त किया जाता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड के असमान सेवन से अनेक मानसिक समस्याएं आती है, इसमें एकाग्रता की कमी से लेकर स्मृति संबंधी समस्याएं और अवसाद शामिल है। उसी प्रकार न्यूरोट्रान्समीटर वे संदेशवाहक होते हैं जो मस्तिष्क को सन्देश भेजते हैं और वहां से सन्देश ग्रहण करने का काम करते हैं। वे न्यूरॉन्स को उनके साथ जानकारी के आदान प्रदान के लिये साथ रखते हैं। ये न्यूरोट्रान्समीटर्स अमीनो एसिड्स से बने होते हैं जिन्हे सीधे आहार से लिया जाता है।

परंतु कुछ आहार जैसे कॉफी, अल्कोहल और प्रसंस्करित शक्कर से बने आहार मस्तिष्क को अधिक न्यूरोट्रान्समीटर स्रावित करने के लिये उत्तेजित करते हैं और इससे मस्तिष्क को क्षति पहुंचती है क्योंकि विषैले पदार्थ या ऑक्सीडेन्ट्स से स्वस्थ मस्तिष्क कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है।

किशोरों पर किये गए एक अध्ययन में यह जानकारी मिली है कि अत्यधिक शक्कर, कैलोरी और पोषक तत्वों की कमी वाले आहार के कारण उनमें थकान, नींद नही आना, नाखुशी, दुख, अवसाद, निराशा, तनाव और परेशानी का कारण बनता है। यह इसलिये होता है क्योंकि प्रसंस्करित आहार और उसके घटक जैसे शक्कर, इसमें कोई पोषक पदार्थ नही होते है जिसकी आवश्यकता शारीरिक पोषण के लिये होती है और ये फ्री रेडिकल्स बनाते हैं जिनके कारण शरीर को क्षति पहुंच सकती है। ये फ्री रेडिकल्स मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित कर सकते हैं और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का कारण भी बनते हैं।

आहार से मानसिक स्वास्थ्य कैसे प्रभावित होता है

आहार और मानसिक बीमारी के बीच सीधा संबंध बता पाना मुश्किल है क्योंकि यहां कुछ अन्य तत्व भी शामिल होते हैं। परंतु चूंकि आहार का सीधा असर शारीरिक स्वास्थ्य पर होता है और इससे मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, यह माना जा सकता है कि आहार से मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। उदाहरण के लिये, यह अध्ययन बताता है कि प्रसंस्करित शक्कर के कारण अल्जायमर नामक बीमारी हो सकती है, एक मधुमेह के रोगी को अल्जायमर होने की आशंका अधिक होती है। उसी प्रकार, अनुसंधान से यह सिद्ध हुआ है कि प्रसंस्करित आहार खाने से ह्र्दय रोगों की आशंका भी अधिक होती है और यही तथ्य आगे चलकर अवसाद की आशंका को जन्म देता है। विटामिन B12 की कमी से अवसाद, डिमेन्शिया और मानसिक स्थिति में समस्या आती है और इसे दूर करने के लिये अन्डे, मांस और डेयरी उत्पादों की मदद ली जा सकती है।

आहार और पोषण को हमेशा से ही आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में जीवन का सही मार्ग माना है और यह स्वास्थ्यकर चिकित्सा में विश्वास रखते हैं।

आयुर्वेद में सामान्य आहार को तीन प्रकारों में बांटा गया है – सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक आहार में ताजा, जैविक रुप से बनाया हुआ और उत्तम आहार लिया जाता है जैसे ताजा सब्जियां और फल. राजसिक आहार में वह आहार होता है जो व्यक्ति को उत्तेजित करता है। इसमें तेल और मसाले अधिक होते हैं और सामिष आहार होता है जैसे अन्डे, मछली और किसी प्रकार का मांस। दूसरी ओर, तामसिक भोजन के कारण मनुष्य आलस्य और भारीपन महसूस करता है। यह बासी, प्रसंस्करित होता है और इससे कोई ऊर्जा नही मिलती। आयुर्वेद में आहार को मनुष्य के मस्तिष्क और व्यवहार से संबंधित माना जाता है। 

डॉ अच्युतन ईश्वर, जो प्राकृतिक चिकित्सक है, का कहना है, “एन्टीऑक्सीडेन्ट्स (जो आहार में प्राप्त होते हैं) का जटिल कार्य ऑक्सीजन मुक्त रेडिकल्स को तैयार करना है जो कि माईटोकॉन्ड्रिया में ग्लूकोज को जलाकर शरीर के प्रत्येक कोशिका के साथ काम करता है। जब ये शांत नही हो पाते हैं, तब कोशिका में क्षति होती है, डीएनए में क्षति होती है और स्वास्थ्य नकारात्मक होता है। पर्किम्सन्स से लेकर अल्जायमर तक की बीमारियां, इस माईटोकॉन्ड्रियल क्षति के कारण होती है, साथ ही इसमें कोशिका की क्षति, कोशिका में आन्तरिक रुप से असंतुलन और फ्री रेडिकल में क्षति इसका कारण है।“

तब, क्या मानसिक रोग से जूझ रहे व्यक्ति को अपने आहार पर एकाग्र होना चाहिये? जब आप बीमार न होने पर अपने आप को स्वस्थ रखने के लिये सब कुछ कर रहे हैं, तब बीमारी की स्थिति में आपको दुगुना ध्यान रखना चाहिये” डॉ अच्युतन कहते हैं।

प्रमुख ध्यान में रखने योग्य तथ्य

  • आप जो भी खाते हैं, वह आपके शरीर और मस्तिष्क के कार्य को प्रभावित करता है।

  • अधिक मात्रा में प्रसंस्करित आहार लेना जैसे मिठाईयां और प्रसंस्करित घटक जैसे मैदा, सफेद चावल आदि के कारण मस्तिष्क का कार्य धीमा पड़ जाता है और इससे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे भी सामने आते हैं।

  • ओमेगा 3 और 6 से भरपूर आहार आपके मस्तिष्क को तेज बनाकर रखता है।

  • विटामिन B12 की कमी के कारण अवसाद, डिमेन्शिया की स्थिति बनती है और इसे आहार में सहायक तत्व व पोषक तत्व बढ़ाकर पूरा किया जा सकता है।

सन्दर्भ:

डॉ अच्युतन ईश्वर, बैंगलोर स्थित प्राकृतिक चिकित्सक

फीडिंग माईन्ड्स, न्यूजीलैन्ड मानसिक स्वास्थ्य फाउन्डेशन द्वारा प्रकाशित

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