इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) क्या है?

इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) एक सुरक्षित, प्रभावी और कभीकभी जीवनरक्षक उपचार है, जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी विशिष्ट स्थितियों के उपचार में प्रयुक्त की जाती है.

बंगलौर स्थित नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेस (निम्हान्स) में सलाहकार मनोचिकित्सक डॉ प्रीति सिन्हा से हमने इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) को समझने में मदद मांगी, इसके लाभ और इससे जुड़े विवादों के बारे में भी उनसे बात की.

इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) गंभीर किस्म के मनोरोगों में इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. आमफ़हम भाषा में इसे शॉक ट्रीटमेंट (बिजली के झटके देना) भी कहते हैं. लोगों को इलाज की इस विधि के बारे में कुछ चिंताएं रहती हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक सूचनाओं से परिचित नहीं है जो आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है. इस कारण, ईसीटी के बारे में लोगों की धारणा गैर प्रामाणिक स्रोतों से बन जाती है जैसे फ़िल्में, टीवी सीरियल और इंटरनेट.

ये आलेख ईसीटी के बारे में ऐसी गलत धारणाओं को दूर कर रहा है और उससे जुड़े तथ्यों को समझा रहा है.

इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) क्या है?

बिजली के झटके देने वाली इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) एक सुरक्षित, प्रभावी और कभीकभी जीवनरक्षक उपचार है जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी विशिष्ट स्थितियों के उपचार में प्रयुक्त की जाती है. पिछले 75 वर्षों से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. ईसीटी के दौरान, छोटी मात्रा में बिजली का एक नियंत्रित करन्ट व्यक्ति की मस्तिष्क कोशिकाओं को उद्दीप्त करने या सक्रिय करने के लिए उसके माथे के पास दिया जाता है. इससे चंद सेकंड के लिए झटके या दौरे आते हैं. ये विधि व्यक्ति को ऐनेस्थीशिया देकर ही लागू की जाती है इसलिए व्यक्ति को विद्युत करन्ट का पता नहीं चलता और झटके भी मंद पड़ जाते हैं. पूरी प्रक्रिया चंद मिनटों की होती है और व्यक्ति 15-20 मिनटे के बाद होश में आ जाते हैं.

ईसीटी से किन्हें लाभ होता है?

डॉक्टर ईसीटी को उन व्यक्तियों के लिए एक विकल्प मानते हैं जो गंभीर मनोरोगों से पीड़ित होते हैं, जैसे अवसाद, शिज़ोफ़्रेनिया या उन्माद. डॉक्टर इस उपचार की सिफारिश तभी करते हैं जब वे इन बातों को संज्ञान में रख लेते हैं कि ये फलां व्यक्ति के लिए कितनी सुरक्षित है, व्यक्ति और उसके परिवार की प्राथमिकता क्या है, मनोरोग से तुरन्त आराम की कितनी ज़रूरत है और जब दवायें असरदार नहीं रही हैं. आमतौर पर ईसीटी निम्न स्थितियों में इस्तेमाल की जाती हैं:

  • जब मनोरोग (ख़ासकर अवसाद) बहुत गंभीर है और इस बात की प्रबल आशंका है कि व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है.

  • गंभीर मनोरोग के चलते जब व्यक्ति खाना और जूस आदि लेने से मना कर देता है, जिससे उसके सेहत को नुकसान हो सकता है.

  • जब व्यक्ति इतना बीमार हो जाता है कि वो स्थिर और निःशब्द हो जाता है- ऐसी दशा जिसे “कैटाटोनिया” कहते हैं.

  • जब व्यक्ति बहुत ज़्यादा उत्साहित हो जाते हैं या बहुत ज़्यादा बिफर जाते हैं जिससे उन्हें या अन्य लोगों को ख़तरा हो सकता है.

  • जब दवाएं भी मनोरोग के लक्षणों में कोई राहत नहीं दे पाती हैं.

  • जो दवाएं दी जा रही हों उनसे गंभीर साइड अफ़ेक्ट हो जाए और इस वजह से उन्हें जारी न रखा जा सकता हो.

ईसीटी देने से पहले क्या व्यक्ति या उसके परिजनों की सहमति ली जाती है?

जब मनोचिकित्सक ये तय करते हैं कि किसी व्यक्ति को ईसीटी देने की ज़रूरत है, तो वे उसे और उसके परिवार को उसकी पूरी प्रक्रिया, उसके लाभ और हानि और वैकल्पिक तरीकों के बारे में विस्तार से बताते हैं. ईसीटी तभी दी जाती है जब व्यक्ति और उसके परिजन लिखित में अपनी सहमति दे देते हैं. जब व्यक्ति इतना बीमार हो कि विस्तार से हर बात न समझ पाए और वैध सहमति देने की स्थिति में न हो तब उसके परिवार के सदस्यों की सहमति ली जाती है. व्यक्ति और उसके परिजन सहमति देने से इंकार भी कर सकते हैं. उपचार शुरू होने से पहले या उपचार के दौरान किसी भी मोड़ में भी वो अपनी सहमति को वापस ले सकते हैं. ऐसे मामले में, उन्हें अगला सर्वश्रेष्ट उपचार मुहैया कराया जाता है.

अगर कोई ईसीटी के लिए तैयार नहीं होता है तब क्या किया जाता है?

मनोचिकित्सक व्यक्ति और उसके रिश्तेदारों के फ़ैसले का सम्मान करते हैं. वे दूसरे उपलब्ध तरीक़ों से मनोरोग के इलाज का प्रयत्न करते हैं. हो सकता है कि उन तरीकों से उपचार में ज़्यादा समय लग जाए, और ज़्यादा समय तक अस्पताल में रहना पड़े. डॉक्टर को व्यक्ति की बेचैनी, गुस्से और अन्य लक्षणों को काबू में रखने के लिए दवाओं की अधिक खुराक देनी पड़ सकती है.

क्या बूढ़े लोगों और बच्चों के लिए ईसीटी सुरक्षित है?

ज़रूरी एहतियात बरत जाएं तो ईसीटी बुज़ुर्गों के लिए भी सुरक्षित है. वास्तव में, कुछ देशों में, ईसीटी कराने वाले ज़्यादातर व्यक्तियों में बुज़ुर्ग लोग हैं. बच्चों में ये एक आखिरी विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जाती है और डॉक्टरों के पैनल की बातचीत के बाद ही इसका प्रयोग किया जाता है. बंगलौर स्थित निमहान्स में सौ से ज़्यादा बच्चों को ईसीटी दी गई है और उन पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा है.

क्या हाइपरटेंशन या हृदय रोग से पीढ़ित व्यक्ति को ईसीटी दी जा सकती है?

ऐसे व्यक्तियों के लिए मनोचिकित्सक उनकी चिकित्सा दशा का एक विस्तृत ब्यौरा बना लेते हैं और विभिन्न विशेषज्ञों से राय लेते हैं, जिनमें अनेस्थिसियोलॉजिस्ट भी शामिल होते हैं. ईसीटी के दौरान वे भी मरीज़ की दशा की बारीकी से निगरानी करते हैं. हृदय, स्नायु या श्वास संबंधी तक़लीफ़ों के अधिकतर मरीज़ों को बिना किन्हीं दुष्प्रभावों के ईसीटी दी गई है.  

क्या गर्भवती महिलाओं या दूध पिलाने वाली मांओं को ईसीटी दी जा सकती है?

उचित एहतियात यानी सावधानियां बरती जाएं तो ईसीटी गर्भवती महिलाओं या स्तनपान करने वाली महिलाओं के लिए भी सुरक्षित विधि है. वास्तव में, मनोरोग की कई सारी दवाएं ऐसी है जो इन स्थितियों वाली महिलाओं को नहीं दी जा सकती हैं. ऐसे में अगर मनोरोग का तत्काल इलाज ज़रूरी हो जाता है, तो उक्त महिलाओं को ईसीटी की ही प्राथमिकता दी जाती है.

अगर ईसीटी एक बार दे दी जाती है, तो क्या हर बार बीमार पड़ने पर मरीज़ को ईसीटी करानी होगी?

कई लोगों को ये ग़लतफ़हमी है कि एक बार व्यक्ति को ईसीटी मिलने के बाद, उसे हर दफ़ा बीमार पड़ने पर ईसीटी करानी होगी. ये सच नही है. कई मामलों में, ईसीटी होने के बाद, मनोचिकित्सक व्यक्ति का इलाज दवाओं से करते हैं ताकि उसकी दशा फिर न लौट आए. अगर बीमारी लौट भी आती है और वो हल्की है, तो उसे दवाओँ से ही ठीक किया जाता है और ईसीटी नहीं दी जाती है. बहुत दुर्लभ मामले होते हैं जहां मनोरोग ऐसे होते हैं वे सिर्फ़ ईसीटी से ही बेहतर हो सकते हैं और कोई दूसरा उपचार काम नहीं करता है. ऐसे ही मामलों में ईसीटी को बार बार दिया जाता है.

क्या ईसीटी बीमारी को ठीक कर देगी? क्या ईसीटी के दौरान या बाद में दवाएं लेने की ज़रूरत है?

ईसीटी का कोई स्थायी प्रभाव नहीं रहता है. व्यक्ति को ईसीटी से हासिल हुए सुधार को बनाए रखने के लिए दवाओं की भी ज़रूरत पड़ेगी. दुर्लभ मामलों में ही देखा गया है कि दवाएं लेने के बावजूद, ईसीटी से हासिल हुआ सुधार कायम नहीं रह पाता. ऐसे मामलों में ईसीटी को जारी रखना पड़ सकता है, हालांकि उसका इस्तेमाल काफ़ी कम करना होगा- पखवाड़े मे एक बार या महीने में एक बार.

जब व्यक्ति को ईसीटी कराने की सलाह दी जाती है, तो उसे क्या करना चाहिए?

व्यक्ति की पुरानी या मौजूदा बीमारी के बारे में डॉक्टर को बताना ज़रूरी है. खासकर वे बीमारियां जो हृदय, फेफड़ों, ब्लडप्रेशर और हड्डियों की हों. ऐनिस्थीशिया के तहत अगर पहले कोई सर्जरी हुई हो या दांत टूटे हों या नकली दांत लगे हों, ये सारी जानकारी भी डॉक्टर को देने की ज़रूरत है. डॉक्टरों के लिए ये जानना महत्त्वपूर्ण है कि व्यक्ति को कौनसी दवाएं दी जा रही हैं. आमतौर पर डॉक्टर विस्तार से मरीज़ की हालत का मुआयना करते हैं और कुछ ब्लड टेस्ट और इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) कराते हैं. डॉक्टर दिमाग का स्कैन कराने को भी कह सकते हैं.

प्रत्येक ईसीटी सत्र से पहले किस तैयारी की ज़रूरत पड़ती है?

सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि ईसीटी से 6 घंटे पहले कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए. डॉक्टर व्यक्ति से बालों को शैम्पू से धुलने के लिए और बालों पर तेल न लगाने के लिए कह सकते हैं. मरीज़ को ढीलेढाले कपड़े पहनने को कहा जाता है. आभूषण, कॉन्टेक्ट लेंस, नकली दांत और सुनने की मशीन अगर हैं, तो उन्हें पहले निकाल लेना होता है. ईसीटी कक्ष में जाने से ठीक पहले पेशाब कर लेना भी ज़रूरी है. अगर मरीज़ की दवा चल रही है, तो डॉक्टर उसे सलाह दे सकता है कि ईसीटी सेशन से पहले और बाद में कौनसी दवाएं लेनी होंगी.

ईसीटी के दौरान क्या होता है? ईसीटी कैसे दी जाती है? क्या इसमें दर्द होता है?

अनुभवी मनोचिकित्सकों, अनेस्थिटिस्टों और नर्सों की टीम मिलकर व्यक्ति का ईसीटी करती है. व्यक्ति को पहले नींद का इजेंक्शन दे दिया जाता है. इस दौरान, मास्क की मदद से ऑक्सीजन दी जाती है. व्यक्ति को बेहोश करने के बाद एक इंजेक्शन मांसपेशियों को आराम करने के लिए दिया जाता है ताकि झटके हल्के रहें. इसके बाद करीब दो या चार सेकंड के लिए बिजली का एक हल्का सा करन्ट माथे के नज़दीक दिया जाता है. इससे झटके या दौरे आने लगते हैं जिनकी मियाद 20 सेकंड से करीब एक मिनट तक रहती है. जब तक व्यक्ति अपने दम पर सांस नहीं लेने लगता, तब तक डॉक्टर उसकी सांस बनाए रखते है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर व्यक्ति की धड़कन, ब्लडप्रेशर और ऑक्सीजन की मात्रा का बारीकी से मुआयना करते रहते हैं. ईसीटी में दर्द नहीं होता है क्योंकि बिजली का हल्का झटका देते वक्त व्यक्ति गहरी नींद में होता है.

ईसीटी के बाद क्या देखरेख बरतनी चाहिए?

ईसीटी के कुछ ही घंटों बाद व्यक्ति आमतौर पर पूरी तरह सचेत हो जाते हैं. ईसीटी कराने के बाद व्यक्ति को ब्रेकफ़ास्ट कब देना है या सुबह की दवाएं कब देनी है, इस बारे में नर्सिंग स्टाफ से पूछना चाहिए. ईसीटी कराने के कुछ घंटों बाद तक वाहन न चलाने की सलाह दी जाती है. इसके अलावा, व्यक्ति अपने रोज़मर्रा के काम पहले की तरह करते रह सकते हैं. ईसीटी का पूरा कोर्स खत्म हो जाने तक ये अच्छा रहता है कि किसी कॉन्ट्रेक्ट या व्यापार समझौते पर दस्तख़त न किए जाएं.

ईसीटी कितनी बार दी जाती है? आमतौर पर कितने ईसीटी सत्रों की ज़रूरत होती है?

ईसीटी को सप्ताह में दो या तीन बार दिया जाता है. ज़्यादातर व्यक्तियों को 6-12 उपचार सत्र देने पड़ते हैं. ईसीटी से होने वाले लाभ पर ही ये निर्भर करता है कि डॉक्टर ईसीटी के सत्रों में कमी या इज़ाफ़ा करने का फ़ैसला कर सकते हैं.

ईसीटी कहां दी जाती है?

ईसीटी आमतौर पर एक ऐसे कक्ष में दी जाती है जो उन तमाम उपकरणों से लैस होता है जिनके ज़रिए व्यक्ति की ऐनीस्थीशिया और ईसीटी उपचार के दौरान हालत की निगरानी की जा सके. व्यक्तियों के लिए प्रतीक्षा, उपचार और सुधार के लिए अलग अलग कक्ष होते हैं.

ईसीटी से जुड़े लाभकारी प्रभावों की उम्मीद कब तक की जा सकती है?

अधिकांश लोगों में ईसीटी के दो या चार सत्रों के बाद ही सुधार दिखना शुरू हो जाता है. लेकिन कुछ लोगों में मुकम्मल लाभ मिलने तक उपचार का कोर्स लंबा चल सकता है. ऐसे मामले दुर्लभ ही पाए गए हैं जहां व्यक्ति में किसी किस्म का सुधार नहीं हो पाया हो.

ईसीटी कैसे काम करती है?

माना जाता है कि ईसीटी मस्तिष्क में कुछ रासायनिक बदलाव करती है जिससे विभिन्न स्नायु कोशिकाओं के बीच नये संबंध और संपर्क बनने लगते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि ईसीटी के बाद, मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटिरों के स्तरों में भी बदलाव आ जाता है. ईसीटी से जुड़े सुधार में उनका भी योगदान माना जाता है. लेकिन ईसीटी के काम करने की एकदम सटीक प्रक्रिया अभी भी स्पष्ट नहीं है और निरंतर शोध का विषय बनी हुई है.

क्या ईसीटी सुरक्षित है? इसके साइड अफ़ेक्ट क्या हैं? क्या ईसीटी के बाद याददाश्त चली जाती है?

ईसीटी एक सर्वथा सुरक्षित विधि है, डॉक्टर सभी ज़रूरी सावधानियां बरतते हैं. ईसीटी से आमतौर पर अस्थायी किस्म के साइड अफेक्ट होते हैं. किसी को सरदर्द या शरीर में दर्द हो सकता है, जिसके लिए पेनकिलर दिए जा सकते हैं. कुछ मिनटों के लिए व्यक्ति को संभ्रम का अनुभव हो सकता है. ऐसी कुछ घटनाओं से जुड़ी याददाश्त में आंशिक गिरावट आ सकती है जो उपचार के ठीक पहले या बाद में हुई हों. लंबे समय की याददाश्त और सामान्य बुद्धिमता पर आमतौर पे ईसीटी का कोई असर नहीं पड़ता है. अन्य किसी चिकित्सकीय उपचार की तरह, साइड अफेक्ट की रेंज और हदें हर व्यक्ति में अलग अलग होती हैं. उचित चिकित्सा देखरेख के साथ, हृदय या स्नायु तंत्र को प्रभावित करने वाले गंभीर साइड अफेक्ट बहुत दुर्लभ हैं और अगर हो भी जाएं तो ईसीटी की टीम उनके प्रबंधन के लिए रहती हैं. आधुनिक तकनीकों की मदद से, ईसीटी के बाद दांत, हड्डी और जोड़ की संभावित तक़लीफ़ें बहुत अधिक दुर्लभ हो गई हैं.

साइड अफ़ेक्ट को कम करने का कोई तरीका है?

ईसीटी की प्रक्रिया को इस तरह से बनाया गया है कि प्रभाविकता से बिना कोई समझौता किए साइड अफेक्ट न्यून रहें, जैसे स्मृति में कमी. इस तरह के रिफाइनमेंट का चयन सुधार की इच्छित दर, मौजूदा शारीरिक बीमारी, उम्र और ईसीटी के पूर्व अनुभव के आधार पर किया जाता है.

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