खानपान की गड़बड़ी (ईटिंग डिसऑर्डर)

Q

खानपान की गड़बड़ी या ईटिंग डिसऑर्डर किसे कहते हैं?

A

आप शाम को अपने दफ़्तर से निपटकर घर लौट रहे हैं और आपके दिमाग में कई बातें चल रही होती हैं, जल्द ही आप अपने रात के भोजन के बारे में सोचने लगते हैं. मैं क्या खाना चाहता हूँ? क्या मैं ख़ुद ही पकाऊँ या बाहर से मँगा लूँ? क्या चाइनीज़ खाना मेरी डाइट के लिए उपयुक्त होगा? भोजन हमारे जीवन का केंद्रबिंदु है.
 
हम सबके पास भोजन को लेकर अलग अलग आस्वाद हैं और हम सबकी खाने की आदतें अलग अलग हैं. समय समय पर हम अपनी प्राथमिकताएँ भी बदलते रहते हैं, डाइटिंग करते हैं कोई चीज़ खाने की बहुत इच्छा करती है तो उसे खा कर ही मानते हैं. भोजने के बारे में सोचने को लेकर ये सब सामान्य प्रवृत्तियाँ हैं. 
 
कुछ लोगों में खाने का ख़्याल सामान्य प्रवृत्ति से आगे बढ़ जाता है. वे खाने के प्रति आसक्त हो जाते हैं, वजन और शरीर को लेकर भी ऑब्सेस्ड हो जाते हैं. इस वजह से वे अपनी खानपान की आदतों में बहुत बड़ा बदलाव करने लगते हैं, या तो वे बहुत थोड़ी सी मात्रा में खाने लगेंगे या नियमित रूप से अत्यधिक मात्रा में खाने लगेंगे.
 
एक निश्चित समयावधि के लिए वे भोजन छोड़ भी सकते हैं. (यहाँ उन लोगों की बात नहीं की जा रही है जो धार्मिक या सांस्कृतिक वजहों से व्रत रखते हैं.) ईटिंग डिसऑर्डर एक ऐसी गंभीर मानसिक बीमारी है जो आपके स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुँचा सकती है. लेकिन ये भी सच है कि खाने के इस विकार का इलाज संभव है और पीड़ित व्यक्ति जितनी जल्दी मदद हासिल कर लेता है उतनी ही ज़्यादा संभावना उसकी हालत में सुधार की बन जाती है. 

Q

ईटिंग डिसऑर्डर के लक्षण क्या हैं?

A

ईटिंग डिसऑर्डर के कुछ सामान्य लक्षण इस तरह से हैं:
 
व्यवहारजन्य लक्षणः
  • व्यक्ति नियमित रूप से निराहार रहने वाला नज़र आता है और हमेशा अपनी कैलोरी गिनता हुआ प्रतीत होता है.
  • दूसरों के साथ भोजन नहीं करता, ये कहता है कि उसने खाना खा लिया जबकि वास्तव में उसने खाना नहीं खाया होता. कभी कभी वह निजी तौर पर भोजन करने के लिए खाने को छिपा देता है.
  • वह अक्सर बाथरूम जाता है, आमतौर पर खाने के दौरान या खाने के फ़ौरन बाद. टॉयलेट जाने की प्रवृत्ति शौच के लिए या कुछ देर पहले लिए गए भोजन को शरीर से निकालने की कोशिश भी हो सकती है. 
  • दिन में बहुत बार ऐसे व्यक्ति अपना वजन नापते रहते हैं, वे लगातार ख़ुद को आईने में देखते भी रहते हैं. 
  • व्यक्ति व्यायाम के प्रति अत्यधिक आसक्त होता जाता है. तबीयत या मौसम ख़राब हो तब भी वो दौड़ लगाने के लिए घर से निकल पड़ता है.
 
शारीरिक चिन्हः
  • वजन में लगातार गिरावट या वजन में अक्सर उतार चढ़ाव.
  • व्यक्ति हमेशा थकान महसूस करता है और ठीक से नहीं सोता है. सुस्ती महसूस होती है और रोज़ाना के काम करने में कठिनाई होती है.
  • सर्दी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं. गरम पर्यावरण में भी वे अक्सर ठंड महसूस करते हैं.
  • व्यक्ति को अक्सर चक्कर आने का अहसास होता रहता है, सिर घूमता प्रतीत होता है.
  • महिलाओं में माहवारी में गड़बड़ी आ जाती है. अक्सर माहवारी पूरी तरह रुक जाती है.
  • भोजन को लेकर वे बहुत व्यग्र रहते हैं.
  • आत्मछवि विरूप होती है, अपने बारे में वे सोचते हैं कि वे कुरूप दिखते हैं और ये मानने में असमर्थ होते हैं कि उनका वजन सही और उचित है.
  • ईटिंग डिसऑर्डर से प्रभावित लोगों में अवसाद और घबराहट सामान्य रूप से पाई जाती है. 
ये याद रखना ज़रूरी है कि डाइटिंग और आप क्या खा रहे हैं ये देखना, आपके बिल्कुल सामान्य व्यवहार हैं. कड़ी डाइटिंग करना या निराहार रहने का कदापि ये अर्थ नहीं है कि व्यक्ति ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित है. जब व्यक्ति इस विकार से पीड़ित होता है तो वह भोजन से और अपने शरीर की छवि से उनका संबंध अतार्किक और असंगत हो जाता है.
मिसाल के लिए, डाइटिंग अपने आप में एक ऑब्सेशन बन जाता है जबकि डाइटिंग की वजह गौण हो जाती है. या पूरी तरह मिट जाती है. दूसरा उदाहरण ऐसे व्यक्ति का हो सकता है जिसका वजन यूँ तो कम ही होता है लेकिन उसे फिर भी लगता है कि उसे अपना वजन कम करना चाहिए.

Q

ईटिंग डिसऑर्डर का कारण क्या है?

A

व्यक्ति में खानपान को लेकर समस्या किसी एक वजह से नहीं पैदा होती है. इसके कारण आमतौर पर जटिल ही होते हैं. विभिन्न मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और व्यवहारजन्य प्रभावों की वजह से ईटिंग डिसऑर्डर पनप सकता है. इनमें से कुछ कारण इस तरह से हैं:
 
  • मनोवैज्ञानिक कारणः अगर आप चिंता, अवसाद या तनाव से जूझ रहे हैं, चीज़ें आपके नियंत्रण से बाहर महसूस होती हैं और इनसे निपटने के लिए आप भावनात्मक रूप से ओवरईटिंग यानि ज़्यादा खाने लगते हैं या अत्यधिक व्यायाम करने लगते हैं क्योंकि आपको लगता है कि इन चीज़ों पर आपका नियंत्रण है. 
  • सामाजिक कारणः मीडिया और समाज अक्सर व्यक्ति के शारीरिक गुणों और हावभाव की अहमियत को बढ़ाचढ़ाकर देखते हैः उदाहरण के लिए पतले लोग सुंदर दिखते हैं. इस तरह के दबावों के बीच लगातार रहने से अपने बारे में व्यक्ति कमतर सोचने लगता है. आत्मसम्मान में कमी आती है. इस भावना से निपटने की कोशिश में व्यक्ति या तो खुद को भूखा रखना शुरू कर देगा या बहुत ज़्यादा व्यायाम करने लगेगा.
  • व्यवहारजन्य कारणः जिन लोगों में व्यक्तित्व से जुड़े कुछ ख़ास लक्षण होते हैं उनमें ईटिंग डिसऑर्डर पनपने की ज़्यादा आशंका रहती है. ऐसे लोग जो ऑब्सेसिव व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं या जो बहुत ज़्यदा परफ़ेक्शनवादी होते हैं और अपने बारे में अत्यधिक आलोचनापरक होते हैं, उनके भी इस विकार की चपेट में आने की आशंका रहती है.
  • जीवन से जुडी घटनाएँ: ऐसे लोग जिन्हें अपने वजन के बारे में तंग किया जाता रहा हो, उनकी खिल्ली उड़ाई जाती हो या ऐसे लोग जिनके साथ जीवन में कभी शारीरिक या यौन दुर्व्यवहार हुआ हो, वे भी अपने तनाव से पीछा छुडाने के लिए ईटिंग डिसऑर्डर की चपेट में आ सकते हैं. और भी कई तनावपूर्ण अवसर जीवन में आ जाते हैं जैसे अपने किसी प्रियजन की अनुपस्थिति या मृत्यु, स्कूल में नाकामी या दफ्तर में, तो ये भी ईटिंग डिसऑर्डर की वजहें बन सकते हैं.

Q

ईटिंग डिसऑर्डर कितनी तरह के होते हैं?

A

सबसे सामान्य ईटिंग डिसऑर्डर ये हैं:

एनोरेक्सिया नरवोसाः एनोरेक्सिया से पीड़ित लोग खुद को लगातार भूखा रखते हैं और उन्हें वजन बढ़ने का बहुत डर सताता रहता है. वे मानने लगते हैं कि उनका वजन ज़्यादा है, यानि वे ओवरवेट हैं जबकि हो सकता है वे अंडरवेट हों यानि उनका वजन बहुत कम हो. उनका आत्मसम्मान अपने शरीर की छवि से जुड़ा होता है और शरीर को लेकर उनके ज़ेहन में ग़लत और बिगड़ी हुई तस्वीर होती है और इससे उनमें हीन भावना आ जाती है और आत्म सम्मान भी कम होता है. 

बुलिमिया नरवोसाः बुलिमिया से पीड़ित लोगों में समय समय पर अत्यधिक खाने की प्रवृत्ति होती है. इसके बाद वे उस खाने को वमन से निकाल भी देते हैं, बहुत ज्यादा व्यायाम करते हैं या रेचक औषिधियाँ (लैक्सटिव) और मूत्रवर्धक पदार्थ (डाइयुरेटिक) लेते रहते हैं. वे वजन कम करने के लिए लंबे समय तक निराहार भी रहने लगते हैं. वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनका सेल्फएस्टीम यानि आत्मसम्मान, भोजन पर नियंत्रण करने की उनकी भावनाओं से पक्की तरह जुड़ा होता है. 

बिंज ईटिंग डिसऑर्डर यानि अत्यधिक खानाः इस विकार से पीड़ित लोग बहुत ज्यादा मात्रा में खाते रहते हैं और उन्हें किसी तरह का नियंत्रण नहीं महसूस होता है. वे खाए हुए को न तो निकालने की कोशिश करते हैं या वजन कम करना चाहते हैं लेकिन अपने खाने की आदत से उनमें शर्म की गहरी भावना होती है. इस आदत को छिपाने के लिए वे अकेले खाने लगते हैं, कभी कभी भूख न लगी हो तो भी खाना चाहते हैं. 

ऐसे ईटिंग डिसऑर्डर जो अन्यथा बताए न गए हों (ईटिंग डिसऑर्डर नॉट अदरवाइज़ स्पेसीफ़ाइड-ईडीएनओएस): खानपान से जुड़ी ऐसे विकारों से पीड़ित लोगों में उपरोक्त विकारों से जुड़े कुछ लक्षण नज़र आते हैं लेकिन वे उन सारे पैमानों को पूरा नहीं करते जिनके तहत उन्हें एनोरेक्सिया, बुलिमाया या अत्यधिक खाने की लत से पीड़ित माना जाए. मिसाल के लिए, एनोरेक्सिया से पीड़ित व्यक्ति लंबे समय के लिए भोजन से परहेज कर रहा हो सकता है लेकिन कोई ज़रूरी नहीं कि वो बहुत ज़्यादा अंडरवेट हो. दूसरा उदाहरण ऐसे व्यक्ति का हो सकता है जो कम मात्रा में खाना लेने के बावजूद उसे निकालता रहता है लेकिन उसका वजन बिल्कुल सही होता है.

Q

ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति का इलाज

A

ईटिंग डिसऑर्डर एक जटिल समस्या है जो मन पर असर डालती है और शारीरिक स्वास्थ्य को भी काफ़ी नुकसान पहुँचाती है. लेकिन सही उपचार से पूरी तरह सुधार संभव है. जितनी जल्दी आप इस बारे में मदद लेंगे उतने ही आपके पास सुधार के बेहतर अवसर होंगे. 
 
पेशेवरों की एक टीम आमतौर पर इलाज करती हैः आपके शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य का इलाज किया जाता है और आपके पोषण में मदद की जाती है और खानेपीने की यानि डाइट के बेहतर उपाय आपको बताए जाते हैं. समस्या की गंभीरता के आधार पर ही तय किया जाता है कि आपको अस्पताल में भर्ती करना है या नहीं. इलाज की प्रक्रिया के पहले चरण के तहत आपकी स्थिति को स्थिर किया जाता है और ये सुनिश्चित किया जाता है कि आपकी सेहत को कोई गंभीर ख़तरा नहीं है.
 
दूसरा कदम ये सुनिश्चित करने का होता है कि आपका वजन सही और स्वस्थ हो. आपको आपके पोषण में मदद की जाएगी और अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए खानेपीने की अच्छी आदतें आपमें बनाने की कोशिश भी की जाएगी, इसके लिए आपको प्रोत्साहित किया जाएगा.
 
काउंसलिंग यानि परामर्थ और थेरेपी आपकी सेहत में सुधार के लिए अनिवार्य हैं. इससे आपको वजन बढ़ने की आशंका से निजात मिलेगी और खानेपीने, वजन और देह की छवि को लेकर आपमें स्वस्थ आदतें विकसित होंगी.

Q

ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति की देखरेख

A

ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित अपने किसी दोस्त या परिजन की देखरेख काफी चुनौतीपूर्ण और कष्टप्रद हो सकती है लेकिन ये जानना ज़रूरी है कि उम्मीद बनी रहती है और सही सहयोग से आपका प्रियजन पूरी तरह से ठीक हो सकता है. ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों में अपनी समस्या को लेकर गहरी शर्म होती है.

कभी कभी हो सकता है कि उन्हें इस बात का अंदाज़ा ही न हो कि उन्हें ये समस्या है या वे इसे नकारते भी रह सकते हैं. जो भी हो, महत्त्वपूर्ण बात ये है कि उन्हें इलाज की ज़रूरत है और वो उन्हें मिलना चाहिए. उनसे उनकी समस्या के बारे में बात कीजिए, बहुत ज़्यादा दबाव मत डालिए, अपनी बात मत थोपिए और कोई निर्णय मत सुनाइये. उन्हें खुलने, समझने और बात करने के लिए समय और अवसर दीजिए, उन्हें अपने डरों के बारे में बताने दीजिए.

हमेशा याद रखिए कि ईटिंग डिसऑर्डर खाने या वजन का मामला नहीं है, ये पैदा होता है गहरी जड़ जमाए हुए भावनात्मक मुद्दों की वजह से जो आपके प्रियजन को अंदर ही अंदर परेशान किए रहते हैं और वो उनसे निपटने में असमर्थ रहता है. ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्तियों को इलाज और सुधार के दौरान बहुत सहयोग और सहायता की ज़रूरत होती है.

ये अनिवार्य है कि पीड़ितों के आसपास जो लोग रहते हैं वे खानपान की अच्छी आदतों का प्रदर्शन करते रहें और खानेपीने के बारे में, वजन के बारे में या शरीर की छवि के बारे में बातें करने से परहेज़ करें. आखिरी बात ये है कि आपको ये समझने की ज़रूरत है कि इस विकार के उपचार में समय लगता है और कोई फ़ौरी हल इसका नहीं है.

Q

ईटिंग डिसऑर्डर से निबाह

A

इस विकार का इलाज लंबा और तनावपूर्ण हो सकता है लेकिन इलाज की प्रक्रिया से जुड़े रहना आपके लिए ज़रूरी है और आपका ध्यान बेहतर होने पर रहना चाहिए. लोग अपने भावनात्मक मुद्दों से निपटने के लिए बहुत ज़्यादा खाते रहने या खाना बहुत कम कर देने के तरीके बना लेते हैं इसलिए आपके पास ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए सही तरीके होना ज़रूरी है.

आप खाने का इस्तेमाल नियंत्रण रखने की भावना के लिए कर सकते हैं, या तो कम खाकर या ज़्यादा खाकर. ये ज़रूरी है कि ये भावना आप अपने भीतर न आने दें और अपने मामलों से निपटने केलिए बेहतर तरीके इस्तेमाल करें. खुद को बहुत ज़्यादा अलगथलग न रखें. अकेले रहने से आप अपने भावनात्मक मामलों से निपटने में कठिनाई महसूस करेंगें. जब आपका मन अशांत हो तो किसी से बात करने की कोशिश करें. इससे आपका मन हल्का होगा और तनाव भी कम होगा. 

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