पश्चाताप से बाहर निकलना

क्या आपको जीवन में कोई पश्चाताप है? लगभग सभी को होते हैं – और यह इसी तरह से लंबे समय से चलता आ रहा है। प्राचीन काल में इजराइली जनता को इस बात का पश्चाताप था कि इजिप्शियन दास हैं और अपने रेगिस्तानों के लिये वे मूसा को दोषी ठहराया करते थे। अमेरिकी क्रान्तिकारी जासून नाथन हेल द्वारा सार्वजनिक रुप से इस बात पर पश्चाताप किया गया था कि इंग्लैन्ड के खिलाफ युद्ध में उनके पास देने के लिये केवल एक ही जीवन है। और हमारे समय के सबसे जाने पहचाने व्यावसायिक आदर्श स्टीव जॉब्स का पश्चाताप जो उनके अंतिम साक्षात्कार में सामने आया, कि वे अपने चार बच्चों के साथ ज्यादा नज़दीकी से नही रह पाए।

बावजूद इसके, इस विषय ने शास्त्रकारों का ध्यान हाल ही में खींचा है और यह आश्चर्य की बात है। वैसे एक शताब्दी पहले, सिग्मन्ड फ्रायड ने भी अपने मध्यमवर्गीय विनीज रोगियों में पश्चाताप के बारे में बात की थी और इसका संबंध यौन संबंधी विचारों से जॊड़ा था – आज मानसशास्त्री पश्चाताप को एक अलग, वृहद विषय के रुप में लेते हैं। हमारे मन में भी कुछ पश्चाताप हो सकता है और हमें भी अपने कर्मों या विचारों के संबंध में अपराधी भावना हो सकती है। मानसशास्त्रीय अनुसंधानों द्वारा अब इस बात पर मुख्य शोध किया जा रहा है कि हम किस बात का पश्चाताप करते हैं, हम कितनी बार करते हैं और किस सीमा तक करते हैं, य सभी मिलकर स्थिति को अलग बना देते हैम। इन विचारों के चलते, एक तथ्य सामने आता है कि यदि पश्चाताप को लेकर एक संपूर्ण सोच रखी जाए, तब यह प्रत्येक के लिये पिछली गलतियों, जीवन में छोडे गए अवसरों से संबंधित होता है और कई बार लोग उसे भूल नही पाते हैं। 

सकारात्मक विचारधारा द्वारा क्या शोध किया गया है? चलिये देखते हैं।

सबसे पहले तो हमारे उन पश्चातापों में फर्क होता है जो हमारी क्रियाओं से संबंधित है और जो हमारे निष्क्रिय रहने से संबंधित है। यह दिखाई देता है कि हमारा पश्चाताप कुछ उग्र संवेदनाओं से संबंधित होता है जैसे गुस्सा (मैं इतना मूर्ख कैसे हो सकता हूं कि यह कार खरीदूं!)। स्वयं को उपेक्षित महसूस करने संबंधी विचार भी इसमें शामिल होते हैं (क्या ही अच्छा होता यदि मैं कैथी के साथ उस गर्मी में लंदन चला जाता, न कि न्यूजर्सी में ही पड़ा रहता?) या फिर किसी काम का न होना (जब मेरे पास अवसर था, तब मैं लॉ स्कूल क्यों नही गया, मैने अपना सारा जीवन बीमा बेचते हुए खत्म कर लिया)। अनुसंधान बताते हैं कि लोगों द्वारा थोड़े समय के लिये अपने कामों पर पश्चाताप की प्रवृत्ति देखी जाती है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ, यह विचार विरुद्ध दिशा में चले जाते हैं।

दूसरे शब्दों में, आपको अनेक लोग मिलेंगे जो उनके उम्रे के बीस या तीस में होंगे और उनकी मुख्य चिंताएं होंगी कि उन्होंने क्या मूर्खतापूर्ण काम किये हैं। और वे जो मध्य जीवन में होंगे, उन्हे यह तकलीफ ज्यादा होगी कि कौन से काम उन्होंने नही किये, यह समस्या ज्यादा तकलीफ देती है।

चूंकि यह तय है कि प्रत्येक को अपने जीवन में कुछ न कुछ पश्चाताप होता है, हम इसे एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी विषय मानकर इसपर चर्चा कर सकते हैं। डॉ जेमी फर्क्वेहर द्वाराकॉन्कॉर्डिया युनिवर्सिटी, मॉन्ट्रियल, कैनेडा में किये गए एक रोचक शोध में, सेवानिवृत्त लोगों में मुख्य रुप से उनके जीवन के पश्चातापों को लेकर दो तथ्य बताए। सबसे पहले तो किसी के भी सेवानिवृत्ति के वर्ष एक ’समाधान लायक’ पश्चाताप हैं – जैसे अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताना, ज्यादा समय घूमने में बिताना, या किसी अर्थपूर्ण स्वैच्छिक सेवा कार्य में शामिल होना। दूसरा विचार होता है काम से दूर होने का जिसे गैर समाधानकारक श्रेणी में रखा जा सकता है – जैसे अधिक शिक्षा लेना और इस विचार को बनाकर रखना। शोधकर्ता यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ’पश्चाताप का प्रबन्धन किसी गतिविधी में शामिल होने और सेवानिवृत्ति पर संतुष्टि संबंधी स्थिति से संबद्ध होता है।“

कोई आश्चर्य नही है कि पश्चाताप जैसे विषय द्वारा व्यवसाय का ध्यान अपनी ओर खींचा गया है जैसे कुछ उत्पाद और सेवाएं जो आपके इस दर्दभरी संवेदनाओं को समझते हुए बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिये, ब्रिटिश एयरवेज द्वारा हाल ही में  2000 अमेरिकी बेबी बूमर्स के साथ सर्वेक्षण किया (उनकी आयु 55 या अधिक थी) और इसके परिणाम उत्साहवर्धक थे। जब उनसे जीवन में सबसे बड़े पश्चाताप के बारे में पूछा गया, तब उनमें से 25% का कहना थ कि वे अपने मित्रों के साथ संपर्क खो चुके हैं, इसके आगे 20% का कहना था कि वे अपने आनंद के लिये अधिक पर्यटन नही कर पा रहे हैं। अनुमानित रुप से यह सही था कि पुरुषों को अधिक काम के कारण अपने बच्चों के साथ अधिक समय न बिताने का पश्चाताप था (पुरुष 17% और महिलाएं 8% से 12% के मध्य। इसके विपरीत, महिलाओं को कम से कम घूम पाने का मलाल रहा (17% पुरुष और 22% महिलाएं)। यह सही है कि ब्रिटिश एयरवेज द्वारा सभी आयुवर्ग के लोगों को घूमने संबंधी प्रोत्साहन दिया गया। अब अन्य उपभोक्ता उत्पादों के बारे में देखें?

जैसा कि एमआईटी न्यूज द्वारा इस वर्ष बताया गया है, शोध बताते हैं कि हमेशा खरीददारी करने वाले लोगों को किसी खास अवसर पर किसी वस्तु को न खरीद पाने का मलाल होता है अथवा किसी सेल में उसके सस्ते बिक जाने के कारण तकलीफ होती है क्योंकि वे उसके लिये बहुत ज्यादा रकम दे चुके होते हैं। एमआईटी के प्रोफेसर करेन झेंग कहते हैं, “ब्रान्डेड फैशन वस्तुएं स्टॉक खत्म हो जाने पर पश्चाताप जगती है परंतु बाद में ज्यादा कीमत के कारण भी इनसे पश्चाताप होता है।“ दूसरे शब्दों में, यदि आप वह फैन्सी जैकेट खरीदते हैं, तब शायद आप इस बात को लेकर नही सोचेंगे कि आपने इसके लिये कितना अधिक धन दिया है परंतु आपने इसे खरीद लिया, इसके लिये आप खुश रहेंगे। लेकिन यदि आपने उसे खरीदने का अवसर खो दिया, तब आपको यह समस्या हमेशा रहेगी। यही विचार सामान्य वस्तुओं जैसे टी शर्ट पर नही होता क्योंकि इन्हे हम समय समय पर बदलते रहते हैं।

जो बात सबसे ज्यादा स्पष्ट यह है कि गंभीर पश्चाताप हमारी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से घातक है। डॉ इजाबेल ब्युएल जो कि टोरंटो सनीब्रुक हैल्थ सेन्टर से हैं, का कहना है, कि जो लोग स्वयं की तुलना अपने सफल मित्र या पडोसी से करते हैं, उन्हे सर्दी जल्दी हो जाने की आशंका होती है जबकि स्वयं से निचले स्तर के लोगों से अपनी तुलना करने वालों में यह प्रवृत्ति कम पाई जाती है। डॉ. कार्स्टेन व्रोश, मॉन्ट्रियल की कॉन्कॉर्डिया युनिवर्सिटी से हैं और उनके द्वारा किये गए अध्ययन में वे बढ़ती उम्र के साथ ही लोगों में नींद संबंधी समस्याओं, कोर्टिसोल असंतुलन और आनंद की अनुभूति का कम होना जैसी स्थितियों को देख रहे हैं।

क्या हम अपने पश्चाताप को कम कर अपनी मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को सुधार सकते हैं? यह वाकई संभव है। प्रयोगात्मक अनुसंधान द्वारा यह सलाह दी जाती है कि हम एक रेकॉर्ड रखें – उसमें हम अपने दुखद व्यक्तिगत अनुभवों को लिखें – इससे हमें अपनी मानसिक स्थिति में सुधार महसूस होता है और उसे भूल जाने में भी मदद मिलती है। वैसे बीसवी शताब्दी के प्रारंभ में ब्रितानी लेखक कैतराइन मेन्सफील्ड का कहना था “जब हम पश्चाताप करते हैं तब यह हमारी ऊर्जा का ह्रास होता है। आप इसपर कुछ भी बना नही सकते।यह शून्य ही होता है।“

मार्गदर्शित गतिविधि

अपने किसी पश्चाताप के बारे में सोचिये, उससे संबंधित अपने विचारों को अच्छे से लिख लीजिये। अब आपकी संवेदनात्मक लगाव की स्थिति को दूर कर दीजिये। जब भी यह स्थिति बने, तब वास्तविकता जानना आवश्यक हो जाता है। इसमें यह पूछना होता है, कि क्या आपकी इस स्थिति के कारण जीवन इतना अधिक बदल गया है, या आप केवल एक मानक प्रकार के जीवन की कल्पना इस अव्यवस्थित विश्व में कर रहे थे, इसका बहुत थोड़ा, या कोई भी लाभ नही मिलता है।

डॉ. एडवर्ड हॉफमैन याशिवा युनिवर्सिटी न्यूयॉर्क सिटी में मानसशास्त्र के सहायक प्राध्यापक है। वे निजी सेवा के लिये क्लिनिकल सायकोलॉजिट के रुप में लायसेन्सधारक हैं। आपने मानसशास्त्र और संबंधित विषयों पर 25 से भी अधिक पुस्तकों क असंपादन किया है। डॉ हॉफमेन डॉ विलियम कॉमटन के साथ सकारात्मक मानसशास्त्र पुस्तक के सह लेखक हैं। आनंद का व उत्साह का शास्त्र नामक इस पुस्तक के लेखक और भारत में जर्नल ऑफ ह्युमेनेस्टिक सायकोलॉजी जर्नल के संपाद्क हैं। आप उनसे इस पते पर संपर्क कर सकते हैं columns@whiteswanfoundation.org 

Related Stories

No stories found.
logo
वाइट स्वान फाउंडेशन
hindi.whiteswanfoundation.org