देखभाल करना

अवसाद – देखभाल करने वाले की अस्वस्थता

अरुणा रमण

मैं वह प्रत्येक महिला हूं – एक व्यवसायी जो सिखाती है, अपनी सीमाओं से बाहर निकलती है और युवा मस्तिष्क को पोषण देती है, एक व्यक्ति जो अनेक सामाजिक भूमिकाओं को निभाती है, एक आर्मचेयर पर्यटक के समान जो वास्तव में अब ज्यादा यात्राएं करने वाली है और अपनी मर्जी के अनुसार घूमने वाली है। इसके अलावा, मेरे जीवन में अवसाद और व्यग्रता जैसे मुद्दे हैं जो कई बार मुझे दुर्बल कर देते हैं।

मुझे कभी भी कोई संकल्प करने का अवसर नही मिला – प्रत्येक बार की टूटन अनिवार्य प्रकार की थी, ’उसी समय निर्णय लेने वाले मोड’ न कि पहले से किसी प्रकार की तैयारी, मदद मांगने का वक्त आदि। मैं अपने त्वरित सपोर्ट सिस्टम को कोई दोष नही देने वाली – मैं अस्सी और नब्बे के दशक में भारत में बड़ी हुई हूं (मेरे किशोरावस्था और बीसादि साल के दिन), जब अवसाद और व्यग्रता को पागलपन के समान माना जाता था और इसमें मदद की गुंजाइश शून्य के बराबर ही थी। बहरहाल, लगभग दो वर्ष पहले, मैने एक जीवन को बदल देने वाली स्थिति का सामना किया – मेरे नज़दीक के ही कुछ व्यक्तियों को एक छोटी सी अवधि में असाध्य परिस्थितियों का निदान निकला और मुझे उनकी प्राथमिक व द्वितियक देखभालकर्ता के रुप में जबर्दस्ती काम करना पड़ा। इन दिनों, ये सारे काम मुझे करने ही होते थे जैसे बिल भरना, निर्देश लेना और देना, डॉक्टरों के साथ भेंट का समय तय करना। एक रात, मेरे मन में ड़र का गहरा साम्राज्य सा छा गया और लाख कोशिशों के बावजूद मैं उससे बाहर नही निकल पा रही थी। मेरे अपने व्यग्रता से संबंधित मुद्दे, अब मेरी वर्तमान में शक्तिशाली रहने की जरुरत, ये सब मिलकर मुझे मन ही मन अन्दर से खत्म कर रहे थे। मेरे पास एक साथ दो दो युद्ध थे लड़ने को।

हममें से कई लोगों को विपरीत स्थितियों में, और अचानक से देखभाल करने वाले की भूमिका में प्रवेश करना पड़ता है। प्राथमिक रुप से बीमारी का पीड़ित या दुर्घटना का पीड़ित ही परिवार और दोस्तों के आकर्षण का केन्द्र होता है, देखभाल करने वाला व्यक्ति हमेशा अंधेरे में, अपना युद्ध स्वयं ही लड़ता हुआ और एक साथ जटिल संवेदनाओं का सामना करता रहता है।

देखभाल करने वाला व्यक्ति चिकित्सकीय क्षेत्र, पारिवारिक क्षेत्र, शुभचिन्तक मित्र और वित्तीय क्षेत्र (इसमें बीमा कंपनियां भी शामिल है) का केन्द्र बिन्दु होता है। बावजूद इसके, देखभाल करने वाले की ओर से अपेक्षाएं होती है कि उसके द्वारा पूरे शांत मन से इन सारी स्थितियों में अपनी भूमिकाओं का निर्वहन किया जाना चाहिये और स्वयं की चिन्ताओं और समस्याओं को लेकर कभी नही सोचा जाना चाहिये जिसमें उनका स्वास्थ्य और असमान स्थितियों का जिक्र भी नही होना चाहिये। मेरी स्थिति में, जब मैं सारी परिस्थितियों का सामना पूरी शिद्दत से नही कर पाई, मेरे अपने भी संवेदनात्मक मुद्दे मेरे साथ रहे और इसके कारण मैं उतनी सक्षम नही बन पाई, कई बार यह विचार मेरे ही मस्तिष्क में आते रहे।

बहरहाल, मैने धीरे धीरे वापसी की और इसके लिये मेरे आस पास के व्यक्तियों को धन्यवाद है, जिन्होंने एक ईमानदार आकलन किया कि मैं किस प्रकार की व्यक्ति हूं और दैनिक स्वरुप में आनंद और शालीनता व सम्मान की मांग की। इस प्रकार से यहां पर मदद के लिये कुछ बिन्दु दिये जा रहे हैं:

  • आराम और चिकित्सकीय देखभाल प्रदान करने वाले – मुझे यह बात समझ लेने में लंबा समय लगा कि डॉक्टर सेवा प्रदाता होते हैं और इनसे सेवा प्राप्त करने का अधिकार हमें होता है। डॉक्टर्स सभी प्रकार के हो सकते हैं। मेरे मन में उनके प्रति बहुत सम्मान था जो बहुत ज्यादा नही बोलते थे, शांत रहते थे और यह दिखाते थे कि मैं अपनी और अपने प्रियजनों की ज़िंदगी को पूरे विश्वास के साथ उनके हाथों में सौंप सकती थी। कई बार मुझे इस प्रकार के चिकित्सक भी मिले हैं जो अत्यंत कुशल हैं परंतु उतने ही रुखे भी। एक देखभाल करने वाले व्यक्ति की भूमिका में मैने एक बार थोड़े रुखे वार्तालाप के बाद डॉक्टर को बदलने की सलाह दी थी। बहरहाल, रोगी स्वयं डॉक्टर के साथ सहज था, इसलिये इसके आगे उस डॉक्टर के पास मरीज को ले जाने की स्थिति से मैने स्वयं को अलग कर लिया।
  • सन्नाटों के साथ काम करना – किसी भी बीमार व्यक्ति को स्वाभाविक रुप से लोग देखने आते हैं और उसकी देखभाल करने वाले व्यक्ति से भी मिलते हैं। इनमें से कुछ होते हैं जिन्हे वास्तव में दुख होता है, और कुछ होते हैं जो किसी भी प्रकार से आपको यह जताना चाहते हैं कि यही स्थिति किसी और के साथ हुई है और वह अधिक खराब है। एक बेहतर मित्र इस समय कोई अच्छी युक्ति से इस स्थिति को बदल देती है – वह आपका प्रिय संगीत चलाकर इस सन्नाटे को तुरंत तोड़ सकती है।
  • निवारण – देखभाल करने वाले शारीरिक और मानसिक रुप से खत्म हो रहे होते हैं। उनमें स्वयं पर ध्यान देने संबंधी भी अपराध भाव आने लगता है। मुझे याद है जब खरीददारी करते वक्त भी मुझे अपने हाथों में कंपन महसूस होता था, ’क्या मैं इस लायक हूं?” बहरहाल, मुझे जल्द ही यह लगा कि मैं स्वयं को बेहतर तरीके से रख रही हूं, मैं स्वयं को तैयार ही कर रही हूं। मुझे यह भी लगा कि मुझे प्रत्येक उस अवसर को अलग कर देना चाहिये या उसे असरहीन कर देना चाहिये जब मुझे आंखों में आंसू या दुख महसूस होने लगे। एक बार मैं पूरी तरह से टूट गई और मुझे लगा कि जीवन मेरे साथ बहुत ज्यादा कठोर रहा है, मैं पागलों की तरह रो रही थी। लेकिन यह जरूरी था, क्योंकि इसके पीछे महीनों से संवेदनाओं का ईंधन जमा हो रहा था।
  • स्वयं से प्रेम – देखभाल करने वाले स्वयं की आवश्यकताओं पर ध्यान नही देते (उनसे यह अपेक्षा भी की जाती हैं)। बहरहाल, इस त्याग का कोई मोल नही है। इसपर कुछ विचार:
  • चूंकि जब मुझे प्राणघातक बीमारी का सामना करना पड़ा, मुझे मेरे जीवन को लेकर वास्तविक भान हुआ। चूंकि मुझे अवसाद की स्थिति घेर लेती थी, मेरे ड़र आगे और बढ़ते गए। मेरे ड़र के कारण मैं अनचाहे दोस्तों में फंस गई और मेरी वास्तविक मित्रता खत्म हो गई। बहरहाल मुझे इस बात को समझने में काफी समय लगा कि वास्तव में मेरे डर शून्य थे। मैने धीरे धीरे स्वयं को इस स्थिति में से बाहर निकाला जहां पर मैं अपने ड़र का सामना कर सकती थी और यह प्रश्न पूछ सकती थी कि ’यदि ऎसा हुआ तो क्या फर्क पड़ता है?” और जल्दी ही इस प्रश्न ने मुझे अंधेरे से बाहर निकाल लिया।
  • देखभाल करना वास्तव में बैरागी होने जैसा ही है। मुझे यही ड़र लगा रहता था कि यदि मैं रोगी की शैय्या के पास नही रहूंगी, तब उसे कुछ हो जाएगा। इन विचारों को तब विराम मिला जब एक शालीन और गहरी समझ वाले संबंधी ने मुझे बताया कि जो होना है वह मेरी उपस्थिति या अनुपस्थिति में तो होकर ही रहेगा। तब मैने मदद लेना और स्वयं के लिये बाहर जाने का समय निकालना शुरु किया। मैने स्वयं को और कभी कभार मित्रों के साथ भी फिल्म देखने जाने की शुरुआत की, जब भी समय मिला तब अपने करीबी दोस्तों से मुलाकात की, मैने स्पा में समय लिया और अपने आप पर ध्यान दिया – यही बात धीरे धीरे मुझे स्वयं को फिट रखने की प्रेरणा देने के लिये नियमितता की स्थिति में बदल गई।
  • मदद लेना -  एक बार एक अच्छे मित्र ने टिप्पनी की, “किसी की देखभाल करने वाला व्यक्ति बनना बहुत कठिन है क्योंकि इसमें आपको रोगी की स्थिति के बारे में ज्यादा जानकारी नही होती है। उपचाररत व्यक्ति के पास एक तय तरीके से ठीक होने का मार्ग होता है।“ मेरी व्यग्रता से ग्रसित व्यक्ति और देखभाल करने वाले की भूमिका के दौरान होने वाली खराब परिस्थिति से बाहर निकलने का मार्ग यहां से शुरु हुआ और मैने लोगों को मेरी देखभाल करने के लिये अपनी सूची में जोड़ना शुरु किया – वे जो मेरी बातों को, बिना मुझे तौले सुनेंगे और हमेशा ही मुझे प्रेरित करते रहेंगे; मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले, जो मुझे स्वयं से बेहतर संवाद करना सिखाएंगे, वे कठिन स्थितियों का सामना करने वाले पीडित, जो इन स्थितियों से पूरी हिम्मत से बाहर निकल पाए हैं, बावजूद इसके उनपर समस्याएं प्रसन्न होती रहती हैं (हां, मैं उनका भी धन्यवाद देती हूं!)
  • अभिव्यक्ति ­ - मुझे इस बारे में बोलने में लंबा समय लग गया, क्योंकि मेरे मन में विचार थे, कि मैं रोगी से अधिक महत्वपूर्ण कैसे हो सकती हूं?’ कई बार मैने अपने आस पास के लोगों के बीच अपने गहरे तक बैठे हुए डर को साझा करना चाहा। इससे मुझे शक्ति मिली। मेरी ठीक होने की प्रक्रिया बेहतर होने लगी, तब मैने खुले मन से अपनी व्यग्रता और किसी स्थिति को लेकर मेरी प्रतिक्रिया के बारे में बोलना शुरु किया और मेरी सोच होती थी कि ये सभी मेरा ही एक भाग है, कभी कभार मिलने वाले व्यक्ति नही है।  पहले मुझे प्रत्येक बार की बातचीत के बाद व्यग्रता का दौरा पड़ता था, ’लोग क्या सोचेंगे?’ मैने धीरे धीरे यह जानना शुरु किया कि मैं स्वयं ही अपनी समीक्षा को लेकर चिंतित थी, लोगों द्वारा मेरे मुद्दों को खारिज नही किया गया, वरन उनके अपने अनुभव भी मेरे साथ साझा हुए और मुझे मिली बेहतरीन दोस्ती की ताकद।

मेरी यात्रा समाप्त नही हुई है – मैने जिनकी देखभाल की है, वे बेहतर जीवन जी रहे हैं और मैं जानती हूं कि मेरा संघर्ष और अवसाद व व्यग्रता जीवन भर के साथी है। बावजूद इसके मैं अपनी शक्ति और अपनी आवाज को खोजने का समय ले ही लेती हूं।

अरुणा रमण एक सामाजिक नावीन्यता व्यावसायिक हैं जो अमेरिकन युनिवर्सिटी के साथ काम करती हैं। वे संपूर्ण मस्तिष्क के साथ जीवन का अभ्यास दैनिक रुप से करती हैं जिससे अपनी व्यग्रता और अवसाद से बाहर रह सके।