हमारे साथ बहुत सारे अदृश्य लोग रहते हैं: वे आपकी गली में, आपके कार्यस्थल में, कॉलेज में या यहां तक कि आपके परिवार में भी होते हैं। ये लोग लंबे समय तक किसी मौद्रिक इनाम के लिए नहीं, बल्कि अक्सर अपने स्वास्थ्य को हानि से बचाने के लिए, भलाई के लिए और आजीविका के लिए काम करते हैं। ये अनजाने नायक और नायिका कौन हैं? वे हैं देखभाल करने वाले।
देखभालकर्ता किसी भी उम्र का वह व्यक्ति है जो किसी रिश्तेदार, मित्र या साथी की देखभाल या सेवा करता है जिसको शारीरिक या मानसिक बीमारी, विकलांगता, बुढ़ापे, नशे की लत या किसी अन्य कारण से सहायता की ज़रूरत होती है। आम तौर पर, देखभालकर्ता को देखभाल करने वाला नहीं बुलाया जाता है। यह बहुत अचानक आ सकता है या वे स्वयं धीरे-धीरे देखभाल करने की भूमिका निभाने लगते हैं। यह ऐसी भूमिका नहीं है जिसके लिए वे प्रशिक्षित हैं या भुगतान किया जाता है, लेकिन यह उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कामों में से एक है: वे किसी ऐसे इंसान की देखभाल कर रहे हैं, जो कई मामलों में, अपनी शारीरिक, चिकित्सकीय, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उन पर निर्भर हैं। इस स्तर का सर्वांगीण सहारा सरकारी या एनजीओ क्षेत्र में उपलब्ध नहीं होता है, और देखभालकर्ताओं के लिए निश्चित रूप से कोई विशेष समर्थन नहीं है। अफसोस की बात है कि चिकित्सा या सामाजिक क्षेत्र के अधिकतर पेशेवर देखभाल करने वालों के इस अत्यधिक योगदान का पूरी तरह से एहसास करने में विफल होते हैं- और इसके जवाब में उन पर बहुत भारी बोझ पड़ जाता है।
देखभाल करने का अनुभव बहुत लाभ देने वाला हो सकता है और ऐसा करने वाले ज़्यादातर लोगों को अपनी भूमिका पर गर्व है। हालांकि, निस्संदेह देखभाल करने वाले पर काम का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है: उन्हें अपने पूरे जीवन को उस व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने के अनुकूल ढालना पड़ता है, जिसकी वह देखभाल कर रहे हैं, स्वयं के लिए बहुत थोड़ा समय बचता है। नतीजतन, कई देखभालकर्ता बीमारी, सामाजिक अलगाव, तनाव और व्यग्रता का अनुभव करते हैं। कई लोग इसके कारण अपनी ज़िंदगी के मौकों और आजीविका से दूर हो जाते हैं जैसे वे देखभाल के लिए अध्ययन या काम छोड़ देते हैं। जो लोग शिक्षा या कार्यस्थल में रह सकते हैं, उन्हें काम और देखभाल करने की ज़िम्मेदारियों को मिलाने के परिणामस्वरूप अक्सर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन प्रभावों को भारत में और अधिक देखा जा रहा है, क्योंकि तेजी से पारम्परिक संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार का जीवन बदल गया है।
वर्तमान में भारत, हमारे पड़ोसी देशों या एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों में अवैतनिक परिवार के देखभालकर्ताओं की संख्या के बारे में कोई डेटा आसानी से उपलब्ध नहीं है। यूके के अनुमान के मुताबिक आठ वयस्कों (लगभग 6 मिलियन लोगों) में देखभाल करने वालों की संख्या एक थी। यह आंकड़ा एक नियामक के रूप में लेने पर भारत में 150 मिलियन से अधिक देखभालकर्ता होंने चाहिए। यह 150 मिलियन से अधिक वयस्कों और बच्चों का एक ऐसा समूह है जो अज्ञात और अपुरस्कृत है, और जिनका स्वास्थ्य, भलाई और भविष्य एक अन्य व्यक्ति की देखभाल करने से बहुत अधिक प्रभावित होता हैं।
कर्नाटक के होस्पेट में काम करने वाले मनोचिकित्सक डॉ. अजय कुमार के शब्दों में, "देखभाल करने वाला एक अदृश्य समुदाय हैं, कभी-कभी उन्हें ख़ुद भी यह अहसास नहीं होता हैं। इस अदर्शन को बताना महत्वपूर्ण है, यह पहली चीज है जिसे बदलना है।"
इसलिए जिन लोगों को आप जानते हैं, उनके बारे में सोचें: आपके रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त और सहकर्मी। क्या उनमें से कोई देखभालकर्ता हो सकता है? संभावना यह है कि आप कम से कम एक देखभालकर्ता को जानते हैं – हो सकता है वे खुद को देखभालकर्ता के रूप में न बताते हों और आपने उनकी इन जिम्मेदारियों का एहसास नहीं किया हो, लेकिन वे हमारे चारों तरफ, समाज के सभी स्तरों पर हैं। उन्हें अदृश्य और अपरिचित रहने की जरूरत नहीं है। अब जैसे अपने पति गुनेश्वराना जिन्हें सित्ज़ोफ्रेनिया हैं की देखभाल करने वाली आशा देवी कहती हैं, "बस मात्र एक 'हैलो आज आप कैसी हैं? यह मुझे बेहतर महसूस कराता है।" इस तरह के शब्द, देखभालकर्ता और साथ ही उस व्यक्ति की पहचान कराते हैं जिसकी देखभाल कर रहे हैं, इन लोगों को मान्यता और सहारा देने की ओर पहला कदम है। यह साधारण सा कार्य देखभाल करने वाले की दुनिया में अंतर ला सकता है। अगर हम सब इस पहले कदम को उठाने के लिए समय निकाल लेते हैं, तो कौन जाने कि यह यात्रा कहां तक ले जाएगी?
इस श्रृंखला में भविष्य के लेख देखभाल के विभिन्न प्रभावों, देखभाल करने वालों के विशिष्ट समूहों, नीति परिवर्तन की दिशा में बढ़े कदम और हमारे समाज में महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण देखभाल करने में आसन्न संकट पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
नोट: 'देखभाल करने वाला' शब्द "देखभालकर्ताओं" शब्द के लिए एक वैकल्पिक शब्द है और यह मुख्यत: यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में प्रयोग किया जाता है।
डॉ अनिल पाटिल, केयरर्स वर्ल्डवाइड के संस्थापक और कार्यकारी निदेशक हैं। केयरर्स वर्ल्डवाइड अवैतनिक परिवार के देखभालकर्ताओं के मुद्दों को उठाता और हल करवाता है। 2012 में स्थापित और ब्रिटेन में पंजीकृत, यह विशेष रूप से विकासशील देशों में देखभाल करने वालों के साथ काम करता है। डॉ पाटील के साथ इस स्तंभ के सह-लेखक रूथ पाटिल, जो केयरर्स वर्ल्डवाइड के साथ स्वयंसेवा करते हैं। अधिक जानकारी के लिए आप केयरर्स वर्ल्डवाइड पर लॉग ऑन कर सकते हैं। आप लेखकों को columns@whiteswanfoundation.org पर लिख सकते हैं।
इस श्रृंखला में व्यक्त विचार लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वह व्हाइट स्वान फाउंडेशन के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हों।