अपने पिछले लेख में, देखरेख करने वालों पर पड़ने वाले बोझ को पहचानने की अहमियत और इसके परिणामस्वरूप उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बात की थी. देखरेख करने वालों के काम की मान्यता और उन्हें समय पर मिलने वाली सहायता से न सिर्फ़ उनकी सेहत और देखरेख की योग्यता में सुधार होगा बल्कि भावनात्मक तनावों और मानसिक दबावों के एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में परिवर्तित होने का जोखिम भी टल जाएगा.
सबसे अच्छी सहायता घर के नजदीक, दोस्तो, सहकर्मियों और परिवार के सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराई जा सकती है. देखरेख के काम से जुड़े अपने किसी परिचित की मदद कर आप उन्हें स्वस्थ रहने में मदद कर सकते हैं जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति भी सही बनी रहेगी. ये सुनिश्चित कीजिए कि वे सही और स्वस्थ ढंग से भोजन ले रहे हैं और ठीक से सो पा रहे हैं. ये भी हो सकता है कि आप उनके लिए लंच या डिनर लेकर जाएं, साथ खाना खाएं या ताज़ा सब्ज़ी या फल उनके साथ बांटें जो आपने उगाई हो या खरीदी हो. नींद की किल्लत अवसाद और तनाव बढ़ाने वाली एक प्रमुख वजह है. अगर उनकी नींद नियमित रूप से टूट रही है तो वे पर्याप्त नींद ले सकें इसके लिए जो भी तरतीब करनी हों उसमें उनकी मदद करें- त्या उनकी जगह कोई सप्ताह में एक रात देखरेख का काम कर सकता है या वे दिन में झपकी ले सकें इसकी व्यवस्था की जा सके? नियमित व्यायाम एक प्रभावशाली तनावनिरोधी तरीका है. उनके प्रियजन के पास बैठें जब वे अपनी योग की कल्स ले रहे हों या वॉक पर गए हों. अगर उन्हें बाहर अकेले निकलने में कठिनाई होती है तो आप उनके साथ जाएं. इससे आपको उनसे बात करने का अवसर भी मिल जाएगा और उन्हें अपनी चिंताएं और सरोकार आपसे साझा करने का अवसर मिलेगा. और सबसे जरूरी ये है कि ऐसे किसी अवसर के दौरान आप ऐसे विषयों पर बात करें जिनका देखरेख के काम से कोई संबंध न हो.
इस किस्म के सहयोग के अलावा, देखरेख करने वालों के मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य बनाए रखने में देखरेख करने वाले अन्य लोगों से मुलाकात भी मदद कर सकती है. वे लोग आपस में अपने समान अनुभवों को शेयर कर सकते हैं और परस्पर मदद कर सकते हैं. पिछले दो साल से, केयरर्स वर्ल्डवाइड भारत भर में साझेदार संगठनों के साथ काम कर रहा है जिसके तहत देखरेख करने वाले लोगों को उससे जुड़े सहायता समूहों मे जोड़ा जा रहा है. स्थानीय जरूरतों, भूगोल और संख्याओं के आधार पर ये समूह बनते हैं. कुछ ग्रामीण स्तर पर संगठित होते हैं और हर दो सप्ताह में मिलते हैं, जबकि अन्य समूह महीने में एक बार मिलते हैं. हमारे साझेदार संगठनों से अनुभवी सामुदायिक कार्यकर्ता इन समूहों की मदद करते हैं- ये स्थानीय एनजीओ होते हैं जो पहले से स्थापित होते हैं और जिनका मानसिक बीमारियों के पीड़ितों और विकलांगों के साथ काम करने का लंबा अनुभव होता है. केयरर्स वर्ल्डवाइड के साथ क्षमता निर्माण प्रशिक्षण में भागीदारी कर, ये एनजीओ देखरेखे करने वालों की अहम भूमिका को पहचानते हैं और उनकी जरूरतों के बारे में जानते हैं कि उन्हें भी प्रभावित लोगों के अलावा किस तरह की मदद की दरकार है.
देखरेख करने वाले कई लोगों को इस तरह के समूहों में शामिल होने से एक तरह का नया जीवन मिला है और देखरेख का काम शुरू करने के बाद अपने घरों से पहली बार बाहर निकलने का अवसर भी मिला है. समूह की शुरुआती कुछ मुलाकतें भावनात्मक रूप से काफी उद्वेलित होती हैं क्योंकि देखरेख करने वाले लोग खुलकर अपनी भावनाओं को जाहिर कर देते हैं जो उनके मन में दबी हुई रहती थीं. उन्हें अपने काम में इतना ध्यान केंद्रित किए रहना पड़ता था कि जब उनसे उनका हाल पूछा जाता है तो वो बड़ी राहत महूसस करते हैं और उनकी जरूरतें के बारे में पूछना उन्हें भावुक कर देता है. जितने भी देखरेख कर्ता समूहों में शामिल हैं वे सौ प्रतिशत प्रतिबद्धता के साथ आए हैं. भावनात्मक सहयोग और दोस्ती से उन्हें बहुत लाभ होता है और वे महसूस करते हैं कि वे अकेले नहीं है. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उनमें सशक्तीकरण की भावना आती है.
देखरेखकर्ताओं के समूहों की गतिविधियां और उनका असर अब उन तमाम उम्मीदों और योजनाओं से आगे बढ़ गया है जिनकी हमें कल्पना की थी. उत्तरी कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों के एक समूह में, सदस्यों ने अपना एक मोबाइल फोन आधारित नेटवर्क तैयार किया है जिसके जरिए वो समूह के सत्रों के बाद भी उत्पन्न हनो वाली संभावित घटना के लिए तत्काल सहायता दे सकते हैं या ले सकते हैं. अगर कोई सदस्य बैठक में नहीं आ पाता तो, अन्य सदस्य फौरन उसे फोन कर उसका हाल पूछेंगे और ये जानेंगे कि वो बैठक में क्यों नहीं आ पाया या पायी. अगर उसे किसी तरह की मदद की जरूरत है तो किसी भी स्थिति में वो उस तक पहुंचेंगे और ये सुनिश्चित करेंगे कि उसे यथासंभव मदद मिल जाए. अगर किसी सदस्य को सलाह की जरूरत है तो सदस्य बैठक के दौरान नियमित रूप से एक दूसरे से बात करते हैं. अगर देखरेख करने वाले किसी व्यक्ति की कोई खास जरूरत या आग्रह है तो सदस्य साथ मिलकर उसकी मदद की कोशिश करेंगे या पार्टनर संगठन से मदद लेने की उसे सलाह देंगे. उनकी आपसी सहायता इस स्तर पर है कि वे देखरेख के काम में एक दूसरे को कुछ राहत देने की पेशकश करते हैं. झारखंड में हमारे परियोजना क्षेत्र में सक्रिय एक समूह सदस्य तिलोत्तमा देखरेख करने वाले अन्य लोगों के रिश्तेदारों का ध्यान रखती है जिस दौरान वे कुछ घंटों के लिए बाजार से हो आते हैं. ये एक ऐसी गतिविधि है जो वैसे बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकती थी. हाल में जब हमने सहायता समूहों का दौरा किया तो देखरेख के काम से जुड़े सौ फीसदी लोगों ने बताया कि उनकी मानसिक सेहत में समूह से जुड़ने के बाद सुधार आया है.
हमारा अनुभव बताता है कि अत्यधिक तनाव के साथ जी रहे और अवसाद और चिंता के शिकार देखरेख करने वाले लोगों के लिए पेशेवेर काउंसिलिंग सेवाओं तक पहुंच जरूरी है. इस तरह की व्यवस्था बिना लांछन के डर के उपलब्ध होनी चाहिए और देखरेख करने वालों को सही परामर्शदाता तक पहुंचने के लिए मदद देनी चाहिए जो उनके साथ काम करें और उनके अनुभवों से निपटने के तरीके ढूंढे.
देखरेख करने वालों की समाज में जीवंत भूमिका है. देखरेख के काम से जुड़े बोझ को समझना जरूरी है और उन्हें हर किस्म के मानसिक और भावनात्मक सहयोग की भी जरूरत है. गंभीर मस्क्युलर डिस्ट्रॉफ़ी से पीड़िच अपने तीन बच्चों की देखरेख कर रहीं और हमारे एक समूह की सदस्य राशिदा बेगम के शब्दों में, “ज़िंदगी अब भी मुश्किल है, मेरी समस्याएं अब भी बनी हुई हैं, लेकिन अब मुझे एक जीवनरेखा मिल गई है और मैं भविष्य का मुकाबला कर सकती हूं.”
अगले लेख में, मैं देखरेख करने वालों के लिए कुछ विश्राम या थोड़ा ब्रेक लेने की जरूरत के बारे में बात करूंगा. इसके अलावा उन तरीकों की चर्चा करूंगा जिनसे समुदाय के भीतर वैकल्पिक देखरेख की जा सकती है.