सन्निपात यानि मनोक्षेप क्या है?
सन्निपात (delirium) जिसे मूर्छा या बेसुधी भी कह सकते हैं, एक तात्कालिक लेकिन जीवन पर गंभीर संकट लाने वाली स्थिति है जिससे मानसिक स्थिरता और चेतना पर बहुत तीखा उतारचढ़ाव आ जाता है. इससे पीड़ित मरीज़ को अपने आसपास का कोई ख्याल नहीं रह जाता, वह सुधबुध खो बैठता है और उसकी सोच भ्रमित हो जाती है. सन्निपात अचानक ही होता है और कुछ घंटों में या दिनों में व्यक्ति के सोच और व्यवहार में उल्लेखनीय बदलाव आ जाते हैं.
मनोभ्रंश (dementia) और सन्निपात (delirium) में क्या अंतर है?
दोनों बीमारियों के लक्षण समान होते हैं और दोनों स्थितियाँ एक साथ बनी रह सकती हैं, लिहाज़ा दोनों के बीच के अंतर को जानना ज़रूरी है.
सन्निपात एक अस्थायी विकार है जो अचानक शुरू होता है और इससे मतिभ्रम होने लगता है. लक्षण सुधर भी सकते हैं और बिगड़ भी सकते हैं और ये कुछ घंटों या कुछ सप्ताहों तक बने रह सकते हैं.
मनोभ्रंश यानि डिमेन्शिया एक तंत्रिका-विकृति है जो धीरे धीरे विकसित होती है. इसमें दिमाग की कोषिकाएँ समय के साथ नष्ट होती जाती है जिसका अंत आख़िरकार व्यक्ति की मृत्यु के रूप में होता है. डिमेन्शिया में मतिभ्रम नहीं होता.
सन्निपात के लक्षण क्या हैं?
इस बीमारी के चिन्ह और लक्षण कुछ घंटों या दिनों में प्रकट हो सकते हैं. इस दौरान, व्यक्ति की मानसिक स्थिरता में उतारचढ़ाव रहता है. व्यक्ति में कुछ समय के लिए लक्षण नज़र आ सकते हैं और बाकी समय वह सामान्य नज़र आ सकता है.
मुख्य लक्षण इस तरह से हैं:
सोचने की दुर्बल क्षमताएँ (संज्ञानात्मक अक्षमता)
व्यवहार में बदलाव
कुछ शारीरिक लक्षण भी देखे जा सकते हैं जैसे दिल की धड़कन में बदलाव, कँपकँपी, गुस्सा और नींद के चक्र का उलट जाना.
सन्निपात के कारण क्या हैं?
सामान्य कारणों में शामिल हैं- गंभीर और क्रोनिक बीमारी, अत्यधिक दवाओं का सेवन, संक्रमण ( जैसे यूरिनरी ट्रेक्ट इन्फ़ेक्शन-यूटीआई, त्वचा या पेट के संक्रमण), न्यूमोनिया, ड्रग या शराब की लत
सन्निपात का जोखिम बढ़ाने वाली अन्य स्थितियाँ इस तरह से हैं-
घबराहट, अवसाद, पार्किन्सन्स डिज़ीज, अस्थमा या नींद के लिए दी जाने वाली दवाओं से भी सन्निपात हो सकता है.
सन्निपात से होने वाली जटिलताएँ
सन्निपात कुछ घंटो के लिए रह सकता है या कई सप्ताहों या महीनों तक बना रह सकता है. अन्य गंभीर या लंबी बीमारियों से जूझ रहे लोगों में सोचने और तर्क की वही क्षमता नहीं रह जाती है जो सन्निपात के आने से पहले रहती है. अगर सन्निपात का इलाज न किया जाए या उन कारकों पर ध्यान न दिया जाए जिनकी वजह से सन्निपात होता है, तो व्यक्ति को गंभीर नुकसान हो सकते हैं. जैसेः
सन्निपात की पहचान कैसे की जाती है?
सन्निपात या मनोक्षेप की पहचान के लिए व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है, व्यक्ति की मानसिक दशा का आकलन किया जाता है, शारीरिक और तंत्रिका संबंधी टेस्ट और दूसरे संबद्ध परीक्षण किए जाते हैं.
सन्निपात का इलाज
अगर आपके परिवार के किसी सदस्य या दोस्त में सन्निपात के लक्षण पाए जाते हैं तो तत्काल डॉक्टर के पास जाइए. अगर व्यक्ति को डिमेन्शिया या मनोभ्रंश है, तो उसकी समस्त जागरूकता और सोचने की क्षमताओं में अपेक्षाकृत रूप से आने वाले अचानक बदलावों के बारे में सजग रहिए, क्योंकि उनसे सन्निपात हो सकता है. व्यक्ति के लक्षणों के बारे में आपका निरीक्षण, उसकी अपनी ख़ास सोच और गतिविधियाँ भी बीमारी की पहचान में महत्त्वपूर्ण रहती हैं.
अस्पताल में भर्ती या लंबे समय की देखरेख में रह रहे बूढ़े लोगों में सन्निपात का जोखिम ज़्यादा रहता है. लक्षणों में बदलाव आता रहता है और कुछ लक्षण “खामोश” ही रहते हैं- जैसे समाज से अलगाव या किसी बात का कोई जवाब नहीं देना- ऐसी स्थिति में सन्निपात नज़र नहीं आ सकता.
अगर आपको अस्पताल या नर्सिग होम में भर्ती किसी व्यक्ति में सन्निपात के चिन्ह या लक्षण नज़र आते हैं तो इस बारे में डॉक्टर को अवगत कराएँ.
सन्निपात के मामले में जो बुनियादी वजह है यानि जो जड़ है उसका इलाज ज़रूरी है. उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को शारीरिक बीमारी जैसे संक्रमण होने पर उसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दी जा सकती है, इसके साथ ही साथ व्यक्ति सन्निपात से भी उबर सकता है.
बीमारी में सहायता और उसका सामना करना
जब कोई परिजन या दोस्त सन्निपात से उबर रहा हो तो आप उसे भावनात्मक सहायता देकर उसकी मदद कर सकते हैं. रोगी की मदद किन तरीक़ों से की जा सकती है, इस बारे में नीचे कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं-
देखरेख करने वाले भी रखें अपना ध्यान
सन्निपात के रोगी की देखभाल करना काफ़ी थकाने वाला और तनाव भरा काम हो सकता है. देखरेख करने वालों को भी अपनी शारीरिक और ज़ेहनी सेहत का ख़्याल रखना होता है. पर्याप्त नींद ले पाना, पोषणयुक्त भोजन खाना और अपनी बेहतरी के लिए भी कुछ समय बिताना,
बीमारी का सामना करने में मददगार हो सकते हैं. इसके अलावा, बीमारी के बारे में जानना ज़रूरी है. बीमारी के बारे में जानकारी रहे तो देखरेख करने वाले मरीज़ की सही मदद के लिए सही समय पर सही और समुचित फ़ैसले कर सकते हैं.