परीक्षाओं के दौरान अभिभावक और शिक्षक भी उतने ही चिंतित और उत्सुक नज़र आते हैं जितने कि छात्र. उनकी चिंता का भी एक ही मुद्दा है कि एक व्यक्ति की योग्यता उसके अंकों से ही आंकी जाती है. फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि उनके मामले में मार्क्स उनके पालन-पोषण और उनके शिक्षण कौशल का मूल्यांकन भी है. बच्चा अच्छे अंक लाता है तो इसका मतलब है कि माता-पिता और शिक्षक ने अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह से निभाई हैं.
हाँ, ये सही है कि बच्चा परीक्षा में कैसे करता है, इसमें अभिभावकों और शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका है. बच्चे अक्सर अपने माता-पिता एवं शिक्षकों की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहते हैं. परंतु शिक्षकों और अभिभावकों को ये ध्यान में रखना चाहिए कि उनकी उम्मीदों की वजह से बच्चे पर अनावश्यक दबाव न पड़े और उनका मानसिक तनाव न बढ़ जाए. परीक्षाओं के दौरान कुछ चीजों का ध्यान रखा जाए तो छात्रों के लिए परीक्षा की तैयारी में बहुत सहायक हो सकता है.
सबसे पहले, परीक्षाएँ आप के पोषण/ पेरेंटिंग या शिक्षक के शिक्षण कौशल को नहीं आंकती हैं. अगर आप ऐसा सोचें भी तो बच्चे के अच्छा करने का कारण यह नहीं है. बच्चा अच्छा इसलिए करता है क्योंकि वह अच्छा करना चाहता है, इसलिए नहीं कि आपको या शिक्षक को ये महसूस कराए कि आप अच्छे हैं. तो अगर आप वाकई में ये सोचते हैं कि बच्चे का प्रदर्शन आपकी ज़िम्मेदारियों को आंकता है, आप इसके बारे में बच्चे से चर्चा न कर दोस्तों या काउंसेलेर से बात करें. बच्चे को अपनी खुद की काफ़ी परेशानियाँ होती हैं जिसका उन्हें ख्याल करना पड़ता है.
दूसरे, यह बच्चे का अंतिम जजमेंट नहीं है. जिस तरह मैराथॉन में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है और आगे बढ़ते रहना पड़ता है, वैसे ही बच्चे के लिए परीक्षा एक पड़ाव है जिसे उसे पार करना है. सौ मीटर स्प्रिंट में बच्चे का अंतिम लक्ष्य होता है जीतना. उसे दाएँ-बाएँ देखने का, वहाँ के दृश्य का आनंद उठाने का, गिरने-उठने या लड़खड़ाने का समय नहीं मिलता. लेकिन जीवन ऐसा नहीं है. जीवन मैराथॉन की तरह है जिसका लक्ष्य है सफलतापूर्वक पार करना, जीतना आवश्यक नहीं. हर पड़ाव पर दृश्य का आनंद उठाना, बाधाओं को दूर करना, उत्साहित रहना और आत्मबल से दौड़ को पूरा करना. हम, माता-पिता और शिक्षकों का कर्तव्य यह है कि हम खुद ये विश्वास करें फिर यही संदेश अपने बच्चों तक पहुँचाएँ. अगर राह चलते बच्चे लड़खड़ाएँ और उन्हें मौका दिया जाए तो वे फिर संभलकर मैराथॉन दौड़ पूरा करेंगे, बशर्ते हम उनके उत्साह और आत्मविश्वास को न तोड़ें तो. जीवन की मैराथन दौड़ में कुछ छोटे कूबड़ क्या हैं?
तीसरा, बच्चे के प्रयास को स्वीकारें न कि प्रदर्शन को. परीक्षा के लिए पढ़ने के दौरान बच्चे का नियंत्रण सिर्फ़ अपने प्रयास पर रहता है. प्रश्न-पत्र में कैसे सवाल पूछे जाएँगे, अंकन कैसे किया जाएगा, या जो व्यक्ति उत्तर-पत्रिका की जाँच कर रहा होगा उसका दिन अच्छा है या बुरा, इन सब पर बच्चे का नियंत्रण नहीं होता; न ही इस पर नियंत्रण होता है कि अन्य बच्चों का प्रदर्शन कैसे होगा, या पेपर लीक होगा या परीक्षा के समय में परिवर्तन होगा. केवल एक ही चीज़ पर उनका नियंत्रण है, वो है उनका प्रयास और आप ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दें.
इन चीज़ों को ध्यान में रखते हुए, परीक्षा के दौरान हमें अपने बच्चों से क्या कहना चाहिए और क्या नहीं?
इन सब विचारों से आपको सहायक बनाम असहायक प्रतिक्रिया के बारे में कुछ तो जानकारी मिली होगी. ये जानना ज़रूरी है कि अभिभावकों एवं शिक्षकों को बच्चे के प्रयास की सराहना करना चाहिए, प्रदर्शन जैसा भी हो. हमारी चिंताओं से हमारी सोच को भ्रष्ट नहीं होने देना चाहिए. और हमें ये विश्वास करने की ज़रूरत है कि जीवन में एक से अधिक मौका मिलता है और सफलता की एक से अधिक परिभाषा है, क्योंकि यही सच्चाई है.