हाल ही में, मुझसे सलाह लेने वाली मेरी एक परिचिता थी, जो विवाह विच्छेद की स्थिति में थी। मेरी यह अपेक्षा थी कि वह अपने इस निर्णय को लेकर परेशान होगी, इस तरीके से आगे बढ़ने पर उसपर क्या असर हो सकता है, यह उसकी सोच में शामिल होगा। लेकिन इसके स्थान पर मुझे जो तथ्य मिले, उनके अनुसार इस परेशानी और समस्या के पीछे उसके माता पिता शामिल थे। उनकी उससे कुछ अपेक्षाएं थी, जिनके अनुसार भूतकाल में वह प्रदर्शन नही कर पाई थी। और अब यह सब कुछ! उसे मुख्य समस्या यह थी कि उसके माता पिता, समाज का सामना कैसे करेंगे। चाहे कुछ भी हो, उसके कारण उन्हे नीचा देखना पड़ेगा। क्या वे कभी भी इस तथ्य से ऊपर उठ पाएंगे? और क्या वह कभी अपने आप को इस अपराध के लिये क्षमा कर पाएगी जो उसने उन्हे इस स्थिति मे लाकर किया है? उस महिला की सोच के दायरे में मुख्य तत्व यही थे।
मैं अब तक ऎसे अनेक अभिभावकों से मिल चुकी हूं जिन्होंने अपने बच्चों के भविष्य के पथ को लेकर पूरी सोच तैयार रखी है, प्रत्येक चरण का या तो उन्होंने दस्तावेजीकरण कर रखा है या फिर उस संबंध मे पूरे तथ्य बच्चों के मस्तिष्क में भर रखे हैं। उनकी बच्चों से यही अपेक्षा है कि उनके द्वारा इस पथ का अनुसरण किया जाना चाहिये और इससे उन्हे एक सफल भविष्य जीवन में मिल सकेगा। उन्हे सिर्फ यही करना है। उन्हे सिर्फ इसी तरीके से करना है।
बहरहाल, बच्चे इस विश्व में अपने जीवन का प्रयोजन खोजने के लिये और अपना पथ स्वयं बनाकर अपनी क्षमता, उत्साह और प्रतिभा के आधार पर काम करते हैं। एक अभिभावक के रुप में हमारी भूमिका मात्र इतनी होती है कि उन्हे स्वयं की पहचान और उनका पथ चुनने में अपनी यथासंभव मदद करें। और इसे सबसे बेहतर तरीके से करने के लिये हम उन्हे बढ़ने के लिये जड़ों से पोषण प्रदान करते हैं और उन्हे देते हैं कल्पनाशीलता के पंख, जिससे वे जीवन की ऊंची उड़ान भर सके। ब्रायन ट्रेसी, एक अमेरिकी टेलिविजन होस्ट के अनुसार. “यदि आप अपने बच्चे को इस तरह से बड़ा करते हैं जिससे वे यह सोच सेके कि वे किसी भी लक्ष्य को तय कर उस आ सकते हैं, तब एक अभिभावक के रुप में आप सफल है और आपने अपने बच्चे को एक अभिभावक के रुप में सबसे बड़ा आशीर्वाद दिया है।
एक जागरुक अभिभावक होने के नाते, हमें यह जान लेना आवश्यक है कि हमारे बच्चे हमारे जीवन में, उनके अपने प्रयोजनों को पूरा करने के लिये आते हैं। वे हमारी इच्छाओं को पूरा करने के लिये नही आए हैं। वे यहां पर हमें सत्यापित करने नही आए हैं। न ही वे हमारे परिवार का नाम या व्यवसाय आगे बढ़ाने के लिये आए हैं या फिर हमारे सपनों को पूरा करने, हमारी वृद्धावस्था में हमारी देखभाल करने की गारंटी लेकर आए हैं और न ही हमारा नाम रौशन करने के लिये यहां पर हैं। वे यहां पर हमारे सपनों को पूरा करने के लिये नही है, न ही हमारे विचारों के अनुसार चलने के लिये, न ही वैसा बनने के लिये जैसा कि हम चाहते या सोचते हैं। वे हमारे परिवार के नाम को आगे बढ़ाने वाली ’ट्रॉफियां’ नही हैं। वे यहां पर अपने स्वयं के पथ पर चलने के लिये आए हैं जिससे वे स्वयं अपने जीवन को आकार दे सके। और इस प्रक्रिया में वे अनेक पड़ाव पार करते हैं जिसके दौरान हमें उनपर गर्व करने का पूरा पूरा अधिकार होता है।
इसलिये, यदि हमारे पास पहले से परिभाषित अपेक्षाएं हैं कि हमारे बच्चे ने क्या करना चाहिये और उसे कैसे करना चाहिये, तब यह सही होगा कि हम हमारे मस्तिष्क को थोड़ा खोलें और इन अपेक्षाओं को बाहर निकल जाने दें – सिर्फ इसलिये नही क्योंकि वे किसी वास्तविकता पर आधारित नही है परंतु इसलिये भी क्योंकि इनके कारण हमारे बच्चों के लिये हम वातावरण में ही विष घोल रहे होते हैं, जैसे कि मेरी परिचित स्त्री अब भी इसी बात को लेकर चिन्ता में है कि उसके कारण उसके माता पिता को नीचा देखना पड़ा।
पिछले कुछ समय से प्रेस में चाईनीज प्रकार के अभिभावकत्व और अमेरिकन शैली के मध्य काफी विवाद जारी है। चाईनीज शैली अत्यधिक अनुशासनात्मक और संगठनात्मक प्रकार की है। इसमें बच्चों से माता पिता की अपेक्षाएं अत्यंत उच्च होती हैं, उन्हे अपने माता पिता द्वारा तय किये गए मार्ग पर चलना ही होता है। उदाहरण के लिये चाईनीज बच्चों को अपने मित्रों के साथ रात बिताने, आपस में मिलने, स्कूल के नाटकों में भाग लेने, स्कूल के नाटकों में भाग नही ले पाने को लेकर शिकायत करने, टीवी देखने या कंप्यूटर गेम्स खेलने, अपनी अध्ययनेत्तर गतिविधियों को चुनने, अपने परीक्षा परिणामों को ए ग्रेड से नीचे लाने, जिम और नाटक को छोड़कर प्रत्येक विषय में प्रथम न होने, पियानो या वायलिन के अलावा अन्य कोई भी वाद्य बजाने, या पियानो अथवा वायलिन न बजाने की अनुमति नही होती है। अमेरिकन शैली में, बच्चे की व्यक्तिगत ज़रुरतों पर ज्यादा ध्यान और स्थान दिया जाता है, उनकी रुचि, सोच, अनुभूति और आत्म सम्मान का ध्यान रखा जाता है। यह कहना सही होगा कि सामान्य स्वरुप में चाईनीज बच्चों का अकादमिक प्रदर्शन बेहतर होता है, इसलिये हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि दीर्घकाल में चाईनीज पद्धति बेहतर है, मेरा विश्वास है कि चाईनीज तंत्र द्वारा प्रदर्शनक करने वाले तैयार किये जाते हैं न कि सर्जक। और यही स्थिति काफी हद तक हमारे भारतीय तंत्र पर भी लागू होती है।
यदि हम सर्जकों के शास्त्रीय खोज के लिये गूगल सर्च करते हैं तब हमें ज्यादा से ज्यादा 20 चाईनीज सर्जक या संगीतकार मिलते हैं परंतु अमेरिकी संगीतकारों के लिये पृष्ठ पर पृष्ठ भरे हुए हैं। यहां पर हमारे सोचने के लिये एक प्रश्न है कि क्या हम हमारे बच्चों को बेहतर प्रदर्शनकर्ता बनाना चाहते हैं (उदाहरण के लिये नकल करने वाले, अनुसरण करने वाले, कर्ता, अनुपालनकर्ता) जो कि पहले से तैयार की गई भूमिका को निभाएं, अथवा हमें अपने बच्चों को स्र्जक या संगीतकार बनाना है (नायक, डिजाईनर, अविष्कारकर्ता, सृजनकर्ता) जो कि स्वयं अपनी भूमिका लिखते हैं? औद्योगिक युग के कारण अनुपालन करना, उत्तम अनुसरण करना, किसी तय नियम के अनुसार चलना और इस तरक की गुणवत्ता के लिये बेहतर संभावनाएं अवश्य लिखी है परंतु आज हम जानकारी के युग में है (और कम से कम हमारे बच्चे तो इसी युग में हैं) जिसमें मुख्य स्वरुप से सृजनात्मकता, लीक से हटकर सोचना, काम के दौरान सीखना, समाधान खोजना, दल का नायक होना और टीम का बेहतर सदस्य होना (औपचारिक, अनौपचारिक, टीम ढ़ांचो में) ज्यादा जरुरी है जिससे हम अपने विचार और मतों को बता सके, ’हम कर सकते हैं’ की सोच को आगे बढ़ा सके, हम स्वयं को प्रेरणा दे सकें और अपनी असफलताओं से सीखने की क्षमता को पा सके, ये कुछ गुण हममें होने चाहिये। वर्तमान में हमारी परीक्षा व्यवस्था में इनमें से किसी को लेकर भी कोई परीक्षण नही किया जाता, न ही हमारी शिक्षा व्यवस्था में इसमें से किसी गुण को विकसित किया जाता है।
इसलिये, यदि हम यह अपेक्षा करते हैं कि हमारे बच्चे सौ प्रतिशत प्रदर्शन करें और वे हमारी अपेक्षाओं के अनुरुप काम करें, वे हमारी सोच को पूरा अवश्य कर सकते हैं परंतु यह आवश्यक नही है कि वे जीवन में और अपने कार्यस्थल पर सफल हो सके। क्या हम यह चाहते हैं कि वे परीक्षाओं में सफल हो, या हम यह चाहते हैं कि वे जीवन में सफल हो? यही निर्णय हमें एक उत्तम अभिभावक के रुप में लेना होगा क्योंकि इन दोनो अपेक्षाओं के पथ एकदम अलग अलग हैं। दुर्भाग्य से, अधिकांश माता पिता यही सोचते हैं कि परीक्षाओं में सफलता से जीवन में सफलता अपने आप आ ही जाएगी। परीक्षा में सफलता केवल कुछ नवीन अवसरों के दरवाज़े खोलती है। जीवन में सफलता, वास्तविक रुप से एकदम अलग बात है और अक्सर इसका परीक्षा में सफलता से कोई भी संबंध नही होता है।
क्या इसका यह अर्थ है कि माता पिता को कोई अपेक्षाएं ही नही रखनी चाहिये? नही इससे एकदम अलग सोच मौजूद है। बच्चों को इसके लिये प्रयत्न करते हुए देखा जाता है कि वे माता पिता की अपेक्षाओं के अनुसार जीने का प्रयत्न करते हैं और इनमें से कुछ अपेक्षाएं उन्हे अपनी क्षमताओं को उच्च स्तर पर ले जाने, अपने जान पहचान के वातावरण से दूर जाकर काम करने और नवीन चुनौतियों का सामना करने के लिये प्रेरित भी करती हैं।
इन सभी बातों का अर्थ यही है कि अपेक्षाएं अंकों को लेकर, प्रदर्शन को लेकर और सामाजिक रुढ़ियों के नाम पर कडी नही होनी चाहिये।
हमारी अपेक्षाएं हमारे बच्चों को उनके बेहतर प्रयत्नों पर आधारित होनी चाहिये, फिर चाहे वे किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन को लेकर अपनी राह चुनें, उन्हे उनकी क्षमता के अनुसार बेहतर सीखने की स्थिति के संबध में होनी चाहिये और उन्हे नैतिकता और बेहतर जीवन मूल्यों के आग्रह पर आधारित होनी चाहिये जिनके अनुरुप हम उन्हे देखना चाहते हैं, बच्चों को अपनी तय सीमाओं और क्षमताओं से भी आगे जाकर काम करने संबंधी होनी चाहिये जिससे वे स्वयं को बेहतर तरीके से परख सके, उन्हे सामाजिक रुप से बेहतर नागरिक बनाने संबंधी होनी चाहिये, स्वयं पर विश्वास करने संबंधी होनी चाहिये और उनके अपने सपने और अपेक्षाओं से संबंधित होनी चाहिये जो कि हमारी अपेक्षाओं और सपनों से अलग भी हो सकते हैं।
ऎसी स्थिति में, हम हमारे बच्चों को क्या दे सकते हैं? हमारा अनुभव और विश्वास कि वे जैसे भी हैं, अत्यंत महत्वपूर्ण और अनमोल हैं! और एक ईमानदार, सही, सुरक्षित और उर्वर वातावरण जिसमें वे आगे बढ़ सके, किसी भी प्रकार के ड़र, उपेक्षा और अस्वीकार्यता के भय से परे।
और हमें माता पिता के रुप में क्या अपेक्षा करनी चाहिये? शारोन गुडमैन के शब्दो में, “एक अर्थपूर्ण साहसी पथ जिसपर हम अपने बच्चों को उन मूल्यों के लिये मार्गदर्शन दे सकें, जो कि वे वास्तव में हैं।“
मौल्लिका शर्मा बैंगलुरु की सलाहकार हैं जिन्होंने अपने कॉर्पोरेट करियर को छोड़कर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना शुरु किया है। मौलिका वर्कप्लेस ऑप्शन्स के साथ काम करती है जो कि वैश्विक कर्मचारी कल्याणकारी कंपनी है और अपने क्लिनिक रीच क्लिनिक बैंगलुरु में भी कार्यरत है। यदि आपके पास अभिभावकत्व संबंधी कोई प्रश्न इस कॉलम से है, तक कृपया हमें लिखें columns@whiteswanfoundation.org पर।