इलाज से सावधानी बेहतर है। माता पिता, शिक्षक और देखभाल करने वाले व्यक्तियों के रुप में हमें बच्चों को उनकी सुरक्षा के बारे में सिखाना चाहिये जो कि किसी भी प्रकार के शोषण के विरुद्ध होना चाहिये। लेकिन सबसे बुरी हकीकत यह है कि यह सब कुछ होने के बाद भी बच्चों का शोषण जारी रहता है।
अनेक अनुसंधान पत्रक हमें यह बताते हैं कि बच्चों का यौन शोषण बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर अल्पावधि और दीर्घावधि तक अपना असर ड़ालता अहि। इस प्रकार के शोषण के बाद के उपचार में बच्चे के लिये व्यक्तिगत चिकित्सा के साथ ही कोमोर्बिडिटी (अवसाद, व्यग्रता संबंधी समस्याएं या सदमे के बाद की तनाव संबंधी समस्याएं) जिसके कारण व्यक्ति को शोषण के बाद की परिस्थितियों से दो चार होना बड़ता है (Browne & Finkelhor, 1986; Conte & Scheurman, 1987; Kendall-Tackett, Williams, & Finkelhor, 1993).
बहरहाल, परिवार पर अधिक ध्यान नही दिया जाता है, खासकर यौन शोषण में जो माता पिता आरोपी नही है।1 अनुसंधानों के अनुसार इस प्रकार के माता पिता की ओर से जब बच्चे को अपनी प्रतिक्रिया के दौरान मदद और सहारा मिलता है, तब इस खुलासे के बाद बच्चे की स्थिति में तेजी से सुधार होता है। (Adams-Tucker, 1981; Conte & Schuerman, 1987; Everson et al 1989). खासकर जब शोषणकर्ता परिवार में से ही होता है, तब माता पिता अत्यंत विचित्र परिस्थिति और तनाव से गुज़रते हैं। अधिकांशत: माता पिता पर ही यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने बच्चे की सही सुरक्षा नही की और उसे शोषण से नही बचाया। यहां पर एक अपात्र अभिभावक होने के विचार मन में आते हैं, संसार पर से विश्वास समाप्त हो जाता है, अपने जीवन साथी पर विश्वास समाप्त हो जाता है, वित्तीय अस्थिरता की स्थिति बनती है और एक प्रकार का असहाय होने का भाव मन में आ जाता है।
यदि कौटुंबिक व्यभिचार की स्थिति होती है, तब यदि पिता आरोपी हो, ऎसे में माताओं द्वारा एक साथ विविध और विचित्र संवेदनाओं का अनुभव किया जाता है जिसमें अविश्वास से लेकर गुस्सा, सदमा, दुख और कई बार आरोपी के लिये देखभाल और चिंता भी देखी जाती है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में, माताएं इस प्रकार के अनुभव के दौरान कलंक की बात करती हैं और इसके उनके परिवार पर और खासकर समाज में उनकी स्थिति पर पड़ने वाले असर को लेकर उनकी चिंता होती है।
माताओं के मन में वित्तीय स्थिति और उसके प्रभाव को लेकर भी तथ्य मन में आते हैं और कुछ के द्वारा यह विचार किया जाता है कि विवाह जारी रहे, यही सुरक्षित स्थिति है। यह एक मुद्दा होता है जिसके कारण बच्चों और किशोरों के मन में गैर आरोपी अभिभावक को लेकर गुस्सा पनपता है। वे एक प्रकार के अविश्वास और उपेक्षा के साथ ही अभिभावक की ओर से मिलने वाले दर्द के रुप में लेते है। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप माताएं अक्सर अति व्यग्र, अत्यधिक चिंता करने वाली, बहुत अधिक सुरक्षात्मक और हस्तक्षेप करने वाली हो जाती है; या फिर वे अचानक इन सबसे दूर और कोई चर्चा न करने वाली बन जाती है जिसके कारण बच्चे की ठीक होने की प्रक्रिया कठिन हो जाती है। यही कारण है कि मानसिक स्वास्थ्य जानकार की मदद लेना महत्वपूर्ण है जिससे बच्चे और माता पिता को आपसी समझ में आसानी हो सके।
मानसिक स्वास्थ्य के जानकार को चाहिये कि वे माता पिता को पहले अपने दुख में से बाहर निकालें जिससे वे बच्चे की प्रभावी तरीके से देखभाल कर सके। बच्चे की चिकित्सा के साथ ही, यह महत्वपूर्ण है कि माता या अभिभावकों को भी मानसिक स्वास्थ्य जानकार की मदद मिले जिससे वे शोषण के अनुभव को समझ सके और उसका बच्चे पर क्या प्रभाव हो सकता है, यह जान सके। माता पिता को यह समझने की आवश्यकता है कि वे बच्चे के लिये एक आदर्श के समान है और उनके द्वारा शोषण को समझा जाना और उसके प्रभाव के बारे में जान लेना खास तौर पर बच्चे को भी इसे समझ पाने और प्रक्रिया के दौरान सहयोग करने में मदद करेगा।
किसी भी प्रकार से समस्या से बचने के लिये, माता पिता को या माता को अलग जानकार की मदद लेनी चाहिये और बच्चे के लिये अलग जानकार होना चाहिये। वह उपचारकर्ता जो बच्चे की मदद कर रहा है, वह माता पिता या माता को उनकी स्थिति को लेकर मदद कर सकता है। माता पिता को कानूनी परिस्थितियों से संबंधित मदद करने के लिये भी उपचारकर्ता की आवश्यकता होती है जिसमें उन्हे पूछताछ की प्रक्रिया के साथ ही उन्हे सुरक्षा का एहसास दिलाया जाता है जिससे वे भी अकेला महसूस नही करें।
1. इस प्रकार के माता पिता वे होते हैं जो बच्चे के यौन शोषण में शामिल नही होते हैं।
डॉ. प्रीती जेकब सहायक प्राध्यापक बाल एवं किशोर मानसशास्त्र के रुप में एनआईएमएचएएनएस में कार्यरत हैं।