दो बच्चों की मां कल्पना, अपने बच्चों के बीच झगड़े सुलझाते-सुलझाते थक गई थी। कल्पना की 9 वर्षीय बेटी नेहा अपने 3 साल के छोटे भाई से लगातार लड़ती रहती थी और कभी-कभी जब माता-पिता आसपास नहीं होते उसे तब भी मारती थी। उसने घर छोड़ने की धमकी दी थी और दो बार ऐसा किया भी था, क्योंकि उसे लगता था कि उसके भाई के जन्म के बाद से ही उसके माता-पिता उससे अन्यायपूर्ण तरीके से व्यवहार कर रहे थे। नेहा को अपने छोटे भाई से बहुत नाराजगी और ईर्ष्या की भावनाएं थीं; ये अक्सर नेहा के आचरण और अनुशासन की समस्याओं के रूप में दिखाई देने लगा था। वह स्कूल में टीचर्स की बात मानने से मना कर देती थी और अपने सहपाठियों के साथ झगड़ा करती थी।
कल्पना बहुत निराश थी, वह सोचती थी कि अब अपने बच्चों पर गुस्सा करना बंद कर देगी। वह हर रात उस दिन के लिए प्रार्थना करती, जिस दिन उसके बच्चे एक-दूसरे के साथ दोस्ताना तरीके से रहेंगे और वह शांति से दिन बिता सकेगी।
सहोदरों की प्रतिद्वंद्विता में अक्सर ईर्ष्या, जलन या नाराजगी जैसी नकारात्मक भावनाएं होती हैं, जो उनके बीच झगड़े, विवाद और ध्यान पाने के लिए प्रतिस्पर्धा का कारण बनती हैं। यद्यपि यह विभिन्न परिवारों में किसी में कम, किसी में ज्यादा हो सकता है। सहोदरों की प्रतिद्वंद्विता एक आम घटना है और यह न तो सुखद होती है और न ही निपटने में आसान होती है। माता-पिता घर पर इन परिस्थितियों का प्रबंधन करने के लिए क्या कर सकते हैं। इस बारे में बाल मनोवैज्ञानिक डॉ मनजीत सिद्धू ने हमसे बात की।
बड़े बच्चे को तैयार करें: छोटे बच्चे के जन्म से पहले, बड़े बच्चे को नए मेहमान के आगमन के लिए तैयार करें। उन्हें बताएं कि क्योंकि छोटे बच्चे को अधिक देखभाल और ध्यान देने की आवश्यकता होगी, इसलिए चीजें अभी जैसी समान नहीं हो सकती हैं और आप बड़े बच्चे के साथ बिताने वाले समय की भरपाई करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे। नए बच्चे के जन्म से पहले बड़े बच्चे को महत्वपूर्ण महसूस कराएं और उसे नए बच्चे की देखभाल कार्यों में जन्म से पहले ही शामिल करें। नवजात शिशु के बारे में जानने और बच्चे के लिए कपड़े और खिलौने खरीदने के दौरान उसके सुझाव लें। यह उसे नए बच्चे के आगमन से पहले भी जिम्मेदार और बच्चे के साथ परिचित महसूस कराएगा।
संवेदनशील सहोदर बनाएं: बच्चे के जन्म के बाद, जितना संभव हो सके उसकी देखभाल करने में बड़े भाई को शामिल करें। हालांकि, उस पर जिम्मेदारियों बहुत ज्यादा भार न डालें, क्योंकि इससे गड़बड़ी हो सकती है। उससे यदि कुछ गलत हो जाता है तो वह अपराधबोध से ग्रस्त हो सकता है या वह ये भी सोच सकता है कि वह आपका सहायक बनकर रह गया है। ऐसी कुछ सामान्य स्थितियां जो सहोदरों के बीच आपसी बंधन को मजबूत करने वाली हैं:
प्रत्येक सहोदर को अपना अलग स्थान दें: जितना संभव हो सके, सहोदरों को अपना अलग-अलग स्थान देने की कोशिश करें। यदि व्यावहारिक रूप से दो अलग-अलग कमरे नहीं हैं, तो उनके कमरे को इस तरह व्यवस्थित करें कि प्रत्येक भाई-बहिन के पास अपनी चीजों का स्वामित्व है। कुछ नियमों को निर्धारित करें जो उन्हें सिखाएंगे कि दूसरों की संपत्ति को सम्मान कैसे दिया जाता है। उदाहरण के लिए ये सरल नियम हो सकते हैं, जैसे 'कोई चीज लेने से पहले पूछें' या 'खेलने के बाद अपने सामान को साफ कर जगह पर रखें'। यह उन्हें सिखाएगा कि दूसरों की निजी जगह का सम्मान कैसे करें, चाहे वे कितने ही करीब हों।
प्रत्येक बच्चे के साथ कुछ अकेले समय बिताएं: प्रत्येक बच्चे के साथ अकेले कुछ समय बिताने का प्रयास करें। इसमें आपके दैनिक कार्यक्रम से अतिरिक्त समय लग सकता है, लेकिन उन्हें विशेष महसूस कराने और उन पर अलग से ध्यान दिए जाने का अहसास कराने में यह महत्वपूर्ण है।
देखरेख की क्षतिपूर्ति: छोटे बच्चे के जन्म के तुरंत बाद, बड़े बच्चे को पिता और दादा-दादी के साथ अधिक व्यस्त करें ताकि वे उपेक्षित महसूस न करें। हालांकि उन्हें लगता है कि मां उन्हें ज्यादा समय नहीं दे रही है और उन पर ध्यान नहीं दे रही है, फिर भी इसकी भरपाई पिता और दादा-दादी द्वारा कर दी जाती है।
तुलना करने से बचें: प्रत्येक बच्चा अद्वितीय होता है और अपनी गति से विकास करता है। प्रत्येक बच्चे को उसका अपना लक्ष्य दिया जाना चाहिए और अपेक्षाओं का स्तर उनके हिसाब से होना चाहिए। बहाने मत बनाओ, "जब रोहित तुम्हारी उम्र का था, तो वह अपने जूते बांध सकता था।" इससे बच्चे को नामुनासिब महसूस होता है और बच्चे के आत्मविश्वास पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। विवाद के दौरान हर समय किसी एक का पक्ष लेने से बचें।
बच्चे की नाराजगी और गुस्से को न दबाएं: बच्चे के क्रोध और नाराजगी को स्वीकार करें और उससे बात करें। यह आपको उन कारणों का पता चलेगा कि बच्चे को नकारात्मक क्यों लगता है। इस पर बात करना उसकी भावनाओं को दबी हुई आक्रामकता और हेरफेर में बदलने से रोक देगा।
अपराधबोध को बढ़ावा देने वाली स्थितियों से बचें: बच्चों को सिखाएं कि भावना व्यक्त करना और लड़ाई करना समानार्थी नहीं हैं। उन्हें बताएं कि गुस्सा आना ठीक है लेकिन इस पर कार्रवाई करना ठीक नहीं है। ऐसे परिस्थितियों में त्वरित अभिभावकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, जहां बच्चों का गुस्से में आकर लड़ने का खतरा होता है। इससे न केवल छोटे भाई को नुकसान पहुंचेगा बल्कि बड़े भाई में बहुत ज्यादा अपराधबोध की भावना पैदा होगी। तुच्छ महसूस करने के अपराधबोध से ज्यादा खराब बात है तुच्छ काम किए जाने का अपराधबोध।
उन्हें अपने मामले खुद सुलझाने दें: जब भी संभव हो, उन्हें अपने स्वयं के मामलों को स्वयं ही सुलझाने दें। लेकिन असमान शक्ति प्रतिस्पर्धा के दौरान मध्यस्थता करें। यदि एक, दूसरे की तुलना में मजबूत है, तो हमेशा वही बहस को जीत सकता है।
निजी में अनुशासन: बच्चे को अनुशासन निजी में सिखाएं, दूसरे भाई के सामने नहीं, क्योंकि इससे उसे अपमानित और शर्मिंदा महसूस हो सकता है। दूसरा बच्चा उसका मजाक बना सकता है, जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है।
उपयुक्त व्यवहार को नजरअंदाज न करें: उपयुक्त व्यवहार को जानकर उसकी सराहना करें क्योंकि यह सुदृढ़ीकरण की तरह कार्य करता है और इससे बच्चों में उस तरह के व्यवहार दोहराने की अधिक संभावना होती है।
पारिवारिक योजना को प्रस्तुत करें: नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की स्थितियों में मदद के लिए पारिवारिक योजना प्रस्तुत करें। अगर वे लड़ रहे हैं, तो सप्ताहांत में टीवी देखने जैसे विशेषाधिकारों में कटौती कर लें। जब वे लड़ते नहीं हैं तो विशेष सुविधाएं दें।
विशेषाधिकार बांटने के लिए एक प्रणाली का विकास: पारिवारिक परिस्थितियों के अनुसार, बुद्धिमानी और निष्पक्षता से विशेषाधिकार बांटने की एक प्रणाली पेश करें। ये विशेषाधिकार शाम के लिए टीवी शो चुनने और यहां तक कि लिफ्ट का बटन दबाने और कार की अगली सीट पर बैठने के लिए हो सकता है।