मातृत्व

साक्षात्कार: किसी महिला की पालन-पोषण की क्षमता पर हिंसा का प्रभाव

वाइट स्वान फाउंडेशन

यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशिगन के पेरिनेटल साइकेट्रिक क्लिनिक की मेडिकल डायरेक्टर डॉ मारिया मुज़िक ने व्हाइट स्वान फाउंडेशन को इस साक्षात्कार में बताया है कि प्रसव के दौरान अनुभव की गई कठिनाइयां और बचपन में दुर्व्यवहार एवं वयस्कता में घरेलू हिंसा एक मां के पोषण की क्षमता और उसके बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं। आप पूरा साक्षात्कार यहां देख सकते हैं। 

जन्म का नकारात्मक अनुभव क्या है और कैसे यह शिशु के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित है?

शिशु का जन्म एक प्राकृतिक और अद्भुत प्रक्रिया है  एवं कई महिलाओं के लिए यह अनुभव दर्दनाक और तनावपूर्ण होने के साथ-साथ सशक्तिकरण का भी होता है। चिकित्सकीय हस्तक्षेप की अधिकता प्रसव प्रक्रिया को पेचीदा बना सकती है। ऐसा करने को गर्भवती महिला के लिए परिस्थिति की  कठिनाई को बढ़ाने के समान माना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि कई अध्ययनों का सम्मेलित निष्कर्ष यह है कि दर्द, आतंरिक रक्तपात या अप्रत्याशित सिजेरियन ऑपरेशन जैसी चिकित्सकीय जटिलताओं का अनुभव यातनास्पद हो सकता है।  मगर मां और नवजात इसके प्रभाव से बच सकते हैं अगर ऐसा एक सुरक्षित और देख-रेख के माहौल में हो जो मां के प्रति समानुभूति और सहयोग की भावना रखता हो और जहां डॉक्टरों और नर्सों से उसे महत्वपूर्ण बातों की जानकारी और जरूरत पड़ने पर मदद मिलने का आश्वासन प्राप्त हो।  

ऐसे कारकों के बीच मां इस अनुभव से अच्छी तरह से उबर पाती है। नकारात्मक जन्म अनुभव की अवधारणा अलग-अलग महिलाओं के जन्म देने के उन अलग-अलग अनुभवों पर केंद्रित होती है जो मां पर प्रभाव डाल सकती है। इससे निर्धारित होता है कि क्या उसमें डिप्रेशन या पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) विकसित होगा या इस अनुभव से वह सकुशल उबर पायेगी। दूसरी ओर यदि उससे अमानवीय या  बुरा व्यवहार किया गया है, या अगर उससे ठीक से बात नहीं की गई हो या प्रसव के दौरान हिंसक दृष्टिकोण अपनाया गया है, तो महिला अकेलापन और परित्यक्त महसूस करेगी। ऐसे मामले में मन पर पड़ने वाले नकारात्मकता का प्रभाव इस अनुभव को चिकित्सकीय पक्षाघात (मेडिकल ट्रॉमा) से जोड़ देता है। इस संयोजन का अपना भार होता है जो सबसे मजबूत महिला में भी तनाव के चलते अवसाद और पोस्ट ट्रॉमैटिक का जोखिम पैदा कर देता है।

नकारात्मक जन्म अनुभव बच्चे पर क्या भावनात्मक प्रभाव डालता है? क्या इसका प्रभाव बचपन के साथ ही वयस्कता में भी रह सकता है?

छोटे बच्चों को ऐसे माता-पिता की आवश्यकता है जो उनके सकारात्मक पालन-पोषण में सक्षम हो। इसका मतलब है कि उन्हें बच्चे की जरूरतों के प्रति संवेदनशील एवं प्रतिक्रियाशील होना चाहिए। चाहे शारीरिक ज़रूरतें हों – खिलाना-पिलाना, डायपर बदलना, सुरक्षित वातावरण प्रदान करना या प्यार और पालन-पोषण जैसी भावनात्मक आवश्यकताएं, ये दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। बिल्कुल छोटे बच्चों को बहुत ज्यादा सकारात्मक उत्तेजना की आवश्यकता होती है, इसमें सिर्फ तटस्थ रहना पर्याप्त नहीं है। माता-पिता का गाना गाना, बात करना और मुस्कुराना उनके लिए आवश्यक है। यदि माता-पिता अवसाद या चिंता विकार के कारण ऐसा नहीं कर पाते हैं तो बच्चा इन नकारात्मक अनुभवों को आत्मसात कर सकता है। बच्चे में बहुत सी चीजें बहुत पहले ही समाहित हो जाती हैं। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह और अधिक जटिल होता जाता है, लेकिन उसमें विश्वास पैदा होना, आत्म-सम्मान, मजबूती, अच्छा व  सक्षम महसूस करना और लचीलेपन जैसे व्यवहार बचपन में ही समाहित हो जाते हैं। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि उस दौरान उनके लिए ऐसी कोई कमी न छोड़ी जाए।

माताओं के साथ हुआ दुर्व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?

मैं एसीईएस (एडवर्स चाइल्डहुड एक्सपीरियंस स्टडी) अध्ययन के बारे में बात करना चाहती हूं। यह एक बड़ा अध्ययन था जहां पारिवारिक चिकित्सा में रोगियों से परवरिश के दौरान हुए  उनके अनुभवों के बारे पूछा गया था। उनसे पूछा गया था कि बचपन में और साथ ही वर्तमान समय में उन्होंने किस प्रकार के जोखिम झेले थे। इस बातचीत से डॉक्टर यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि क्यों ऐसे मरीज ठीक नहीं हो पा रहे थे और शारीरिक रूप से अस्वस्थ क्यों थे। उन्हें पता चला कि यह अभी का मामला नहीं था, बल्कि 40 या 50 साल पहले उनके साथ जो कुछ हुआ था वयस्कों के रूप में वही उनके स्वास्थ्य पर अत्यधिक प्रभाव डाल रहा था। इससे पहली बार हमने महसूस किया कि परवरिश के दौरान आप किन परिस्थितियों में बड़े हुए यह कितना महत्वपूर्ण होता है। दस ऐसे कारकों की पहचान की गई जो परवरिश के दौरान महत्वपूर्ण थे और इन बुनियादी चीजों में शामिल हैं:

  • क्या आपको पर्याप्त रूप से खाना-पीना मिला?

  • क्या आपकी ठीक तरह से देखभाल की गई थी? या आप शारीरिक व भावनात्मक रूप से उपेक्षित थे?

  • क्या आपको प्यार करने वाले माता-पिता, दादा-दादी, परिवार और देखभालकर्ता मिले?

  • क्या आपके साथ शारीरिक, यौन या भावनात्मक रूप से दुर्व्यवहार हुआ था?

  • क्या आपके माता-पिता को शराब की लत या घर पर झगड़े और हिंसा की समस्या थी?

परवरिश में ये सभी महत्वपूर्ण कारक हैं। अध्ययन के दौरान पाया गया कि वास्तव में यूएस में 20-25% लोगों के साथ बचपन में यौन शोषण  की घटना घटी है। औसतन, पांच या चार में से एक महिला या पुरुष (पुरुषों से ज्यादा महिलाओं) ने अपने बचपन और परवरिश के दौरान दुर्व्यवहार झेला था और इसका प्रभाव बड़े होने पर उनके शारीरिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक कल्याण पर पड़ा। कई अध्ययनों - जिसमें मेरा अपना अध्ययन भी शामिल है - ने दिखाया है कि बचपन में हुआ शोषण न सिर्फ इस बात को प्रभावित करता है कि आप कैसे माता-पिता साबित होते हैं बल्कि इससे आप में अवसाद, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस एवं अन्य लक्षण विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। यह माता-पिता के रूप में आपकी सक्षमता को भी प्रभावित करता है।

ऐसे माता पिता की मदद के लिए क्या किया जा सकता है इस पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। दो चीजें होती हैं। एक तो यह कि  हम अवसाद और उत्कंठा विकार का इलाज कर माता-पिता को बेहतर महसूस करने में मदद कर सकते हैं, और दूसरी, उनके साथ हुए शोषण और सभी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को अलग रखते हुए उनकी क्षमता को बढ़ाना ताकि वे व्यावहारिक या चिंतनशील बने रहें। इसका मतलब है कि आपको अपने बच्चे के नजरिए से ही चीजों को देखना होगा और लगातार उन्हीं के दृष्टिकोण से दुनिया और अपने कार्यों को करना होगा। अवसाद या पक्षाघात के बावजूद यदि आप ऐसा कर पाने में सक्षम रहते हैं तो आपका बच्चा सभी तरह के तनावों से सुरक्षित है और हम चिकित्सीय हस्तक्षेप के जरिए माता-पिता को अधिक व्यावहारिक होने के लिए प्रशिक्षित कर सकते हैं।

वयस्क जीवन में घरेलू हिंसा का सामना करने जैसे जीवन के किसी अन्य तनाव पर भी क्या यह लागू हो सकता है?

बिल्कुल। किसी भी प्रकार के पक्षाघात और विशेष रूप से पारस्परिक पक्षाघात पर यह लागू होता है। घरेलू हिंसा का प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। लेकिन यह समझना जरूरी है कि जितनी छोटी उम्र में मस्तिष्क पक्षाघात का सामना करता है आपके शरीर और आपके भावनात्मक कामकाज पर उतना ही ज्यादा प्रभाव पड़ता है। वास्तव में, अब हम जानते हैं कि बच्चे के जीवन के शुरुआती 1000 दिनों में मस्तिष्क का सबसे अधिक विकास होता है, सबसे अधिक संख्या में सिनैप्सेस बनते हैं और इस दौरान आपके मस्तिष्क में बहुत ज्यादा की संख्या में इन अनुभवों की छाप पड़ जाती है। जीवन के शुरुआती तीन वर्षों में आप सबसे अधिक सीखते हैं तो इस समय जो कुछ भी होता है वह आपके जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप बदल नहीं सकते हैं लेकिन आपको ऐसी घटनाओं के बारे में विशेष रूप से जागरूक रहना होगा कि कितनी छोटी अवस्था में बच्चे को शोषण या पक्षाघात का सामना करना पड़ा। इस मामले में बच्चा इसके प्रभाव से अपने आप को बचा पाने में कम सक्षम होगा क्योंकि मस्तिष्क अभी तक परिपक्व नहीं है और बहुत कुछ विकसित हो रहा है। यदि बाद के वर्षों में आघात लगता है, तो आप पहले से ही इसका सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत रहते हैं। लेकिन आप जितने छोटे होते हैं, उतना अधिक प्रभाव पड़ता है। इसका अनुभव हमेशा नकारात्मक होता है और हमें वो सब कुछ करने की जरूरत होती है जो आघात को रोकने के लिए किया जा सकता है।