मातृत्व

महामारी के बीच में प्रसव

दीपा रंगनाथन

प्रत्येक मां के लिए गर्भावस्था और उसके बाद का समय, अपने आप में इसका अनुभव करने वाले के लिए अतिरिक्त चिंता, पहले से अनुमान और तनाव के साथ आता है। मैंने स्वयं मातृत्व की तैयारी करते समय काफी चिंता और भावनात्मक तनाव का सामना किया है। मेरी ‘चौथी तिमाही ’ में मुझे एक अतिरिक्त चिंता का सामना करना पड़ा और वो था कोविड-19 महामारी के बीच एक माँ बनना।

यह कहानी है उस यात्रा कि जिसके अलग-अलग हिस्सों को मैंने किन हालात में तय किया। साल की शुरुआत से जब मैं अपनी गर्भावस्था के मध्य में थी और उसके बादतब तक की, जब तक कि मेरा बच्चा पैदा नहीं हो गया।

शुरुआत

मैंने अपनी गर्भावस्था के समय का एक बड़ा हिस्सा अपने शरीर के बदलावों को समझने में लगाया; मैंने यह सुनिश्चित किया कि मुझे इसकी जानकारी नियमित रूप से मिलती रहे।

गर्भधारण के बाद से दिन-प्रतिदिन होने वाले बदलावों को जानना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था, कैसे शरीर खुलता है और आने वाले महीनों में होने वाले बदलावों के लिए कैसे स्वयं को ढालता है। मैंने लेख पढ़े, साप्ताहिक रिमाइंडर पाने के लिए ऐप डाउनलोड किए, वीडियो देखे, मातृत्व के दौरान पहनावा और फैशन के बारे में सीखा, और अपनी बदलती इच्छाओं और मूड के बारे में गौर से सुना। मैंने अपनी तीसरी तिमाही में बच्चे से जुडी सभी खरीदारी करने की योजना बनाई थी, जो आधिकारिक तौर पर मार्च के बीच में शुरू हुई थी। उसी समय में, कोविड-19 ने हम सभी को आ घेरा। जैसा कि किसी भी महामारी के बारे में सही है कि वह जल्द ही खत्म या धीमी नहीं होती है, उस समय अंतिम तिमाही में मुझे मेरी और अपने बच्चे की बहुत चिंता हो रही थी। जैसे-जैसे मेरी गर्भावस्था का समय बढ रहा था, ये भावनाएँ दोगुनी होती जा रही थीं और हर दिन बीतने के साथ हताशा और निराशा की भावना आने लगी।

ऑनलाइन एकजुटता की तलाश

अपनी गर्भावस्था के डर और चिंता को कम करने के लिए मैंने ट्विटर पर चर्चा में अपने सवालों के जवाब पाने का फैसला किया: किसी ने कहा था "पहली बार माँ बनने से पहले तुम्हारी कोई एक इच्छा क्या है?"

उत्तर में कुछ आश्वासन थे। अब जबकि मैं माँ बन गई हूँ, तो मैं इस सूची में दो और चीज़ें जोड़ूँगी। पहली, जैसा कि किसी ने मुझे बताया था कि जैसे ही आपका बच्चा पैदा होता है, आप तुरंत उसके स्वास्थ्य और देखभाल के बारे में चिंता करना शुरू कर देंगी - एक प्रकार का मानसिक तनाव जो आपने पहले कभी अनुभव नहीं किया है। और दूसरी, किसी ने यह भविष्यवाणी की थी और मुझे बताया था - वर्ष 2020 हम सभी के लिए विशेष रूप से कठिन और दर्दनाक होने वाला है।

लॉकडाउन के दौरान पहुंच का अभाव

वर्ष 2020 की शुरुआत से ही मैं वायरस के बारे में पढ रही थी और उसके बढने और फैलाव की जानकारी ले रही थी। मैं लगातार उस दुख और घबराहट के बारे में सोच रही थी जो साल की शुरुआत से ही हम सब को घेरे थी। उस समय की नकारात्मकता और घबराहट से अप्रभावित रहना कठिन था। फिर भी, मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि, वायरस हमारे बीच अपनी जगह बना लेगा।

अपनी तीसरी तिमाही में, मैंने बच्चे के आगमन की तैयारी में बच्चे और माँ दोनों की जरूरी वस्तुओं को खरीदारी की सूची बनाई थी। मेरी मन की स्थिति के बारे में साचिए. जब मैंने इस कड़वे सच को महसूस किया कि यह ब्रह्मांड मुझे उन वस्तुओं में से एक को भी खरीदने का अवसर नहीं देगा।

हम पर कोविड-19 लॉकडाउन के प्रभाव का असर था और उसके कारण हम बेबी आइटम भी नहीं खरीद सके। हमारे पास कार नहीं होने के कारण, हमारे अस्पताल के सभी दौरे कैब पर निर्भर थे जो कि 24 मार्च से बंद हो गई थीं। इसका मतलब अस्पताल जो हमारी जगह से मात्र चार किलोमीटर दूर था वहां तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं था। गर्भावस्था के दौरान रक्त परीक्षण और अल्ट्रासाउंड कराने जैसी आधरभूत चीजें हैं, जिन्हें आप नियमित रूप से कराने की उम्मीद करते हैं। चूंकि अस्पताल की एम्बुलेंस सेवा आपात स्थिति के लिए आरक्षित थी। ऐसे में गर्भ के विकास की स्कैनिंग की आवश्यकता, एक आपातकालीन स्थिति नहीं मानी जा सकती थी।

प्रियजनों की अनुपस्थिति में प्रसव होना

जब मुझे आपातकालीन सी-सेक्शन के लिए सर्जरी कक्ष में ले जाया जा रहा था, तो आसपास कोविड-19 के प्रसार की आशंकाओं के कारण, उन्होंने मेरे साथी को कमरे में मौजूद नहीं रहने दिया। आमतौर पर ऐसा नहीं होता है - हमें पहले कहा गया था कि पिता को अस्पताल की उचित पोशाक पहन लेने के बाद ऑपरेशन थियेटर में आने की अनुमति दे दी जाएगी।

मैंने चुपचाप अपने साथी के आने की राह देखते हुए अपने बच्चे को जन्म दिया। जैसे ही मैंने अपने बेटे के रोने की पहली आवाज सुनी, मैं राहत और अफसोस दोनों भावनाओं से भर गई। राहत की भावना इसलिए क्योंकि बच्चे का जन्म स्वस्थ और सुरक्षित था, अफसोस इसलिए कि उसका जन्म इस वैश्विक संकटकाल के बीच हुआ।

हम बुरी स्थिति में फंसे थे। पहले हमें ऐसा लग रहा था मेरे नौवें महीने की शुरुआत में मेरे माता-पिता मेरे साथ होंगे, लेकिन उड़ानों के रद्द होने के कारण ऐसा नहीं हो सका; घर के कामकाज में सहयोग करने के लिए कोई रसोइया, कोई घरेलू मदद नहीं थी। ऐसे समय में जब घर की सफाई का महत्वपूर्ण है, ऐसे समय भी किसी का न मिल पाना कष्टकारी था।

हालांकि मुझे मेरे ससुराल का पूरा सहयोग था, मेरे चाचा ने जो सहारा दिया उसके लिए धन्यवाद, मुझे अभी भी बुरा लगता है कि ऐसे समय में मेरे माता-पिता मेरे आसपास नहीं थे; जब मैं माँ बनी, मुझे अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी।

मैं अपने पिता के करीब हूं, और यह मुझे बहुत टीसता है कि मेरी गर्भावस्था के दौरान उन्होंने मुझे कभी नहीं देखा। आखिरकार मेरे माता-पिता ने अपने पोते को पैदा होने के दो महीने बाद देखा। इस बीच में, मेरी माँ मेरे द्वारा भेजे गए बच्चे के फोटो और वीडियो को आशा और पीड़ा के साथ देखा करती थीं।

मुझे याद है कि,मेरी डिलीवरी के अगले दिन मेरी माँ ने मुझसे, मेरे साथ मौजूद न रहने के लिए माफी माँगी। मैंने समय से पहले जन्म देने के लिए माफी मांग कर अपना बदला पूरा किया। हालांकि हम जानते थे कि ये सब हमारे बस में नहीं था, फिर भी हम दोनों में असमर्थता की भावना थी। मेरे अपनों की अनुपस्थिति के बीच मां बनना इस प्रक्रिया का सबसे चुनौतीपूर्ण और भावनात्मक पहलू रहा है।

उबरने की कोशिश

मेरी गर्भावस्था के विभिन्न पहलुओं में भावनाओं की एक बडी श्रृंखला जैसे—कमी, खुशी, चिंता, आशा, घबराहट, डर, गर्व और राहत जैसी भावनाओं का जन्म हुआ। महामारी और साथ में लॉकडाउन की घोषणा ने मिलकर इन भावनाओं को इस हद तक बढ़ाया, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

उस समय सहायता लेने के लिए बने नए संपर्क या पुराने संपर्कों को फिर से ताजा करने जैसी व्यवस्थाओं से मुझे सहारा मिला, उनके बिना मैं आगे बढने में सक्षम नहीं थी। इस अनुभव ने मुझे जरूरत पड़ने पर मदद मांगना सिखाया और पूरी तरह से नई जगह से मिले सहयोग ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया।

मैं अब भी बच्चे के पालन पोषण लिए नई हूं, और अगर कोई एक चीज जो मुझे निश्चित रूप से पता है, तो वह यह है कि मुझे सभी के सहयोग की जरूरत है क्योकि मैं इस प्रक्रिया को खोना नहीं चाहती। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए आशा को खोना, निराशा की भावना को महसूस करना बहुत आसान है, जैसे कि मैं सबसे कठिन दौर में सबसे कठिन नौकरियों में से एक को संभाल रही हूं।

दीपा रंगनाथन अपनी पहचान एक लेखक, पाठक, कहानीकार, नारीवादी और एक मां के रूप में करती हैं। वह बेंगलूरु से हैं और पढ़ने, लिखने और दुनिया भर से युवा नारीवादी कार्यकर्ताओं की अनकही कहानियाँ बताना उन्हें बेहद पसंद है। उन्होंने हाल ही में बच्चों के साहित्य की जादुई दुनिया की खोज की है और अपना अधिकतम समय उसमें ही व्यतीत कर रही हैं।