आत्महत्या का सदमा झेल चुके उत्तरजीवियों में से एक होने के नाते मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मेरे लिए यह जरूरी था कि मैं अपनी कहानी को स्वीकार करूँ और उसे लोगों को सुनाऊ। यह अहसास मेरे लिए हितकारी था कि मुझे शर्म का सामना करना होगा, जो अपने आप में अशक्त महसूस करवाने वाली एक भावना है। लेकिन इस चुनौती के लिए मैं तैयार थी और बिना ज्यादा परवाह किए आगे बढ़ने लगी थी। दूसरे मुझसे को अपेक्षा रखते थे उसके बजाय मैं वैसी नजर आना चाहती थी जैसी मैं हूं और अपनी वास्तविकता को अपनाने के कारण मैं सुरक्षा के वहम को दरकिनार कर सुरक्षा घेरे के अपने भ्रम से मुक्त हो पाई।
द गिफ्ट्स ऑफ इंपरफेक्शन में ब्रेने ब्राउन लिखती हैं, "अगर हम खुलकर अपने पूरे दिल से जीना और प्यार करना चाहते हैं, और अगर काबिलियत से हम दुनिया को जोड़ना चाहते हैं, तो हमें रास्ते में मिलने वाली हर चीज के बारे में बात करनी होगी - विशेष रूप से शर्मिंदगी, डर और आलोचना के बारे में। ”
शर्म एक जग जाहिर भावना है, और हम सभी ने इसे महसूस किया है या महसूस करेंगे। लेकिन आत्महत्या के साथ जुडी शर्म की भावना अस्पष्ट आयाम और अर्थ के साथ आती है। जब कार्ल जुंग ने शर्म को "सोल-ईटिंग इमोशन" के रूप में वर्णित किया, तो वह इसकी क्षमताहीन महसूस करवाने वाली प्रकृति का उल्लेख कर रहे थे। इसी कारण शर्म महसूस करने वाले व्यक्ति अपने अनुभव की वास्तविकता को कम करने, घटाने और पूरी तरह से नकारने की कोशिश करते हैं। हो सकता है कि वे अपनी कहानियों को छिपाने या अस्वीकार करने के लिए ऐसा करते हों। यह उन्हें छोटा, दोषी और नाकाबिल महसूस कराता है। जुंग के विचारों के विश्लेषकों ने शर्म का वर्णन "आत्मा के दलदल" के रूप में किया है। ब्राउन इस रूपक को और आगे बढ़ाती हैं और लिखती हैं, "हमें यह जानने की ज़रूरत है कि इस दलदल से कैसे बाहर निकलें। यह समझने की जरूरत है कि एक विश्वसनीय साथी का सहारा लेकर इस दलदल को पार करने की तुलना में किनारे पर खड़े होकर विनाशकारी वार्तालाप के बारे में आकलन लगाना अधिक दर्दनाक है। सबसे महत्वपूर्ण यह सीखना है कि क्यों लगातार बहते हुए किनारे पर अपने पैरों को जमाए रखते हुए दूसरी तरफ सिर्फ टकटकी लगाकर देखते रहने की कोशिश अधिक कठिन हैं दलदल के उस पार जाने की तुलना में - जहां योग्य होने की भावना हमारा इंतजार कर रही होती है।"
उत्तरजीवी के रूप में शर्म और ग्लानि का अनुभव करना
उत्तरजीवियों पर आत्महत्या का गहरा प्रभाव पड़ता है। शोक का यह एकमात्र ऐसा रूप होता है जब हम अपने प्रियजन की मृत्यु के कारणों को छिपाने या अस्वीकार करने की कोशिश करते हैं या सामाजिक रूप से स्वीकार्य किसी कहानी को गढ़ने करने के लिए मजबूर महसूस करते हैं। हम सच्चाई बताने से क्यों डरते हैं? यह इसलिए क्योंकि हमें डर है कि लोग हमें अस्वीकार करेंगे, जांच-पड़ताल करेंगे और दोषी ठहराएंगे। हम किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में सामने नहीं आना चाहते हैं जिसे प्रेम और अपनेपन के अयोग्य ठहराया गया हो। इससे भी बदतर स्थिति यह है कि हम इस बात से डर जाते हैं कि यह घटना हमारी वास्तविकता और हमारे भविष्य को परिभाषित करेगी। शर्म के अलावा आत्महत्या के चलते उत्तरजीवियों को अक्सर ग्लानिभाव और अपराध बोध के साथ जूझना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति सोचता है, "मैं बुरा हूँ।" अपराधबोध शर्म का जोड़ीदार है और व्यवहार का मानक है। यह भावना व्यक्ति को यह सोचने के लिए मजबूर करती है कि, "मैंने कुछ गलत किया है।"
शर्म एक मवाद की तरह होती है और गोपनीयता, मौन और धारणा के मिश्रण की सड़ांध लिए होती है। उस त्रासदी के तुरंत बाद शर्म की भावनाओं ने मुझे भी घेर लिया था। यह उन सामाजिक मूल्यों और नजरिए को अपने अंदर समाहित करने जैसा है जो आत्महत्या का वर्णन कलंक के रूप में करते हैं और किसी ऐसी कहानी को गढ़ने के लिए मजबूर करते हैं जो प्रचलित चित्रपट से मिलता-जुलता हो। मैंने अपने शर्म को स्वीकार किया और इसे समझते हुए और इसका सम्मान करते हुए प्रतिक्रिया दी। सच्चाई को बताना मेरा एक निडर और साहसिक कार्य था जिसने शर्म को बेअसर कर दिया - यह जागरूकता की रोशनी के नीचे दब नहीं सकता।
“शेम रिज़िलीअन्स” से मेरा परिचय कुछ दिनों पहले ही हुआ। इससे मेरे नजरिए को मान्यता प्राप्त हुई। ब्रेने ब्राउन ने शेम रिज़िलीअन्स थ्योरी को विकसित किया है। यह शर्म, उसके परिणाम और लोगों की प्रतिक्रिया को परिभाषित करता है। यह लोगों को "फंसा हुआ, विच्छिन्न और नकारा" महसूस करवाता है।
ब्राउन कहती हैं, " शेम रिज़िलीअन्स (शर्म के प्रति प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया) शर्म को पहचानने की, योग्यता और प्रामाणिकता बनाए रखते हुए रचनात्मक रूप से आगे बढ़ने की, और अंततः हमारे अनुभव के परिणामस्वरूप अधिक साहस, करुणा और जुड़ाव को विकसित करने की क्षमता है। इस विषय पर पहली बात जो हमें समझने की ज़रूरत है वह यह है कि हम जितना शर्म की बात करने से कतराएंगे उतना ही ज्यादा शर्मिंदा महसूस करेंगे।”
यह आत्महत्या के उत्तरजीवियों के जीवन को फिर से संगठित करने में बेहद प्रभावशाली है।
• सबसे पहले हमें अपनी व्यक्तिगत आलोचनीयता को पहचानने और स्वीकार करने की आवश्यकता है जिसने शर्म की भावनाओं को जन्म दिया।
• दूसरा, हमें उन बाहरी कारकों को पहचानने की जरूरत है जिनके कारण हमें ऐसा महसूस हुआ। इसमें आत्महत्या से जुड़े कलंक, शर्म, रहस्य और चुप्पी को पहचानना शामिल है जो उत्तरजीवियों की भावनाओं और दृष्टिकोण को आंतरिक रूप से नुकसान पहुंचाता है और मृत्यु के तरीके का अनुमान लगाने या उसे रोकने में विफल रहने के लिए स्वयं को दोषी ठहराता है।
• तीसरा, हमें अपनी कहानियां बताने और खुद को ’सुने जाने’ को लेकर सहानुभूति प्राप्त करने के लिए दूसरों से जुड़ने की जरूरत है। शर्म के बारे में बोलना हमें नुकसान पहुंचाने और अंदर से तोड़ने की उसकी शक्ति को बेअसर करता है। यह आत्म-दोष और आत्मग्लानि के खिलाफ भी प्रभावी सुरक्षा है।
• चौथा, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से शर्म की भावनाओं पर चर्चा करने की और इनको समझने की आवश्यकता है। ऐसा करने से लोगों को पता चलता है कि हम उनसे किस तरह से समर्थन लेना चाहते हैं। अक्सर लोग मदद मांगने से झिझकते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि ऐसा कैसे करें। हमें न केवल अपनी कहानियों को सच्चाई से बताने की जरूरत है बल्कि सहायक बातचीत के लिए भी जगह बनानी होगी। ऐसा करने से आत्महत्या के उत्तरजीवियों में भी बोलने का साहस पैदा होगा। साथ ही अन्य लोग भी निर्णय या दोषारोपण किए बिना उन्हें सुनेंगे।
हमें एक संघ चाहिए – एक दूसरे का समर्थन कर रहे लोग जो एक पावन स्थली में भागीदार हैं; एक मंच जहां हम अपने शर्म को व्यक्त करते हैं, शर्म त्यागने के लिए नृत्य करते हैं, गाते हैं और इसके बारे में बात करते हैं। ऐसा करने से हम गरिमा, साहस, करुणा और जुड़ाव को अपनाने के साथ शर्म की भावना को त्याग सकते हैं। हम दोबारा आगे बढ़ सकते हैं।
डॉ. नंदिनी मुरली संचार, लैंगिक और विविधता से जुड़ी एक पेशेवर है। आत्महत्या हानि की हालिया उत्तरजीवी, उन्होंने आत्महत्या पर चर्चाओं को बदलने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए एमएस चेलामुथू ट्रस्ट एंड रिसर्च फाउंडेशन, मदुरै की पहल पर स्पीक की स्थापना की है।