मन की सेहत

किसी थेरेपिस्ट और क्लाइंट के बीच वचनबद्धता के नियम क्या हैं?

शबरी भट्टाचार्य

यदि आप एक ऐसे व्यक्ति  हैं जो काउंसलिंग लेना शुरू करने पर विचार कर रहे हैं, तो आपके लिए काउंसलर की पृष्ठभूमि की जांच करना एक अच्छी शुरुआत होगी। बदले में यह आपके काउंसलर के नैतिक दिशा निर्देशों का आंकलन करने में आपकी सहायता करेगा। नीतिगत और अच्छा परामर्श क्लाइंट्स को लगभग हर मुद्दे से निपटने में मदद कर सकता है, लेकिन अनैतिक परामर्श में अच्छा होने से ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है। 

परामर्श का नीति-शास्त्र क्या है?

नीति-शास्त्र, काउंसलिंग प्रैक्टिस को नियंत्रित करने वाले सामान्य दिशा-निर्देश हैं, जो क्लाइंट और काउंसलर दोनों की सुरक्षा के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करते हैं। ये नियम ग्राहक को परामर्श प्रक्रिया से आने वाले संभावित नुकसान से बचाने की कोशिश करते हैं। अक्सर संभावित नुकसान का मूल कारण ग्राहक को स्पष्ट नहीं होता है। उदाहरण के लिए:

  • परामर्शदाता के लिए ग्राहक को घर पर आमंत्रित करने में समस्या क्यों होनी चाहिए?
  • परामर्शदाता और ग्राहक मित्र क्यों नहीं बनने चाहिए?
  • क्लाइंट के पारिवारिक कार्यक्रमों में काउंसलर को हिस्सा क्यों नहीं लेना चाहिए?
  • एक अच्छे रिश्ते की कद्र करने के लिए क्लाइंट अपने काउंसलर को उपहार क्यों नहीं दे सकता?
  • परामर्श सत्र किसी कैफेटेरिया में क्यों नहीं हो सकता है?

इन सवालों के जवाब हमेशा स्पष्ट नहीं होते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस रिश्ते में शक्ति परामर्शदाताओं के पास होती है, हालांकि वे इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश कर सकते हैं। ग्राहकों के रूप में, हम कमजोर हैं क्योंकि हम परामर्शदाता के साथ अपनी सबसे परेशानी भरी भावनाओं, यादों और कमजोरियों को साझा करते हैं। इसके बिना, परामर्श प्रक्रिया प्रभावी नहीं हो सकती है, लेकिन फिर भी परामर्शदाता आखिरकार मनुष्य ही हैं, उनकी भी अन्य किसी की तरह मानवीय आवश्यकताएं हैं। मनुष्य होने के नाते हम सराहना और प्यार पाने की जरूरत महसूस करते हैं और यह इच्छा रखते हैं कि हमारे योगदान की सराहना की जाए। जब परामर्शदाता के जीवन के अन्य पहलुओं में इन जरूरतों को पूरा नहीं किया जाता है, तो ये जरूरतें परामर्श प्रक्रिया में पाई जा सकती हैं, जिसमें ग्राहकों की आवश्यकताओं से ध्यान हटाने की क्षमता है जो क्लाइंट को समझ नहीं आती है।

उदाहरण के तौर पर, क्लाइंट अक्सर परामर्श में संबंधों से जुड़ा डर साझा करते हैं। परामर्श संबंध अद्वितीय है, जिसमें परामर्शदाता अपने बारे में अपेक्षाकृत कम बातें साझा करता है, लेकिन ग्राहक की चिंताओं और डर के बारे में ध्यान से सुनता है। ध्यान से सुनने की यह प्रक्रिया टॉक थेरेपी का आधार बनती है। यह सामान्य और स्वाभाविक है कि ग्राहक पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने वाले उस व्यक्ति के साथ संबंध महसूस करेगा, जो उसके जीवन में आदर्श के रूप में नहीं है। यह अक्सर अन्य संदर्भों में परामर्शदाता के बारे में अधिक जानना चाहता है। नैतिक रूप से एक काउंसलर को ऐसी परिस्थितियों में उचित सीमाएं बनाकर रखना चाहिए, और परामर्श के दायरे में ही संबंध रखना चाहिए। इसमें क्लाइंट जो खुलासा करता है उसके बारे में सावधान रहना और परामर्श सत्र से हटकर उसे नहीं जानना शामिल है।

दुर्भाग्यवश, अगर काउंसलर की खुद की दोस्ती या जुड़ाव की जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं तो यह संभव है कि काउंसलर अपनी व्यक्तिगत जानकारी उससे साझा करेगा, या सामाजिक परिस्थितियों में क्लाइंट से मिलने का प्रयास करेगा। काउंसलिंग के बाहर क्लाइंट्स से मिलना काउंसलर-क्लाइंट के रिश्ते को बदलता है, जो क्लाइंट के लिए ठीक नहीं होता। परामर्शदाता-ग्राहक के बीच संबंध बन जाना स्वाभाविक रूप से काउंसलिंग के मामले में बाधा पैदा करता है। क्लाइंट परामर्शदाता के बारे में ज्यादा नहीं जान सकता क्योंकि इससे सलाहकार, क्लाइंट के लिए जो प्रक्रिया अपनाना चाहता है उसमें हेरफेर और नुकसान की संभावनाएं बन जाती हैं।

नीतिगत दिशा-निर्देश परामर्श संबंधों की सीमाएं परिभाषित करने के साथ ही काउंसलिंग के दौरान परामर्शदाता के हितों की भी रक्षा करते हैं। वे काउंसलर को यह तय करने में मदद करते हैं कि ग्राहक के लिए जोखिम कब होता है, और आगे कब सहायता की आवश्यकता हो सकती है। आम तौर पर ग्राहक के सुरक्षा जोखिमों में ग्राहक की खुदकुशी की आशंका, संभावित बाल शोषण  या दूसरों को नुकसान पहुंचाने की इच्छा शामिल हो सकती है। ग्राहक की भलाई के लिए निर्णय लेने पर काउंसलर्स को सामाजिक, कानूनी और पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखना होगा। परामर्शदाता के लिए अन्य कम जोखिमों में बुनियादी परामर्श मानदंड शामिल हैं। क्या किसी परामर्शदाता को अपने घर में ही किसी क्लाइंट से मिलना चाहिए? यदि कोई ग्राहक फीस नहीं दे पाता है तो क्या उस पर चार्ज किया जाना चाहिए? यदि आप किसी क्लाइंट को सामाजिक रूप से जानते हैं तो क्या चिकित्सक के रूप में आपको उनका उपचार करना चाहिए? ये संदेहास्पद विषय क्षेत्रों के कुछ उदाहरण हैं जिनके लिए अधिकांश परामर्श संगठनों के पास काउंसलर और क्लाइंट दोनों की रक्षा के लिए नैतिक दिशा-निर्देश होते हैं।

ये दिशा-निर्देश काउंसलर को बिना किसी सहायता के स्वयं के निर्णय लेने से बचाते हैं। आदर्श रूप से, यदि पहले से चले आ रहे नीतिगत दिशा-निर्देशों के आधार पर पेशेवर निर्णय लिए जाते हैं, तो काउंसलिंग रूम में किए गए फैसले पर प्रश्न उठाए जाने पर काउंसलर को साथी पेशेवरों से समर्थन मिल सकता है।

अनुभवसिद्ध नियम के रूप में, अगर काउंसलिंग के दौरान कुछ असहज महसूस होता है, तो क्लाइंट को अपनी भावनाओं पर भरोसा करते हुए काउंसलर से स्पष्टीकरण लेना चाहिए। यदि मामला नहीं सुलझ पाता है, तो काउंसलर या काउंसलिंग ऑर्गेनाइजेशन से परामर्श करने से प्रक्रिया के स्पष्टीकरण में मदद मिल सकती है। हालांकि यह मुश्किल हो सकता है, सामान्य परामर्श नैतिक दिशा-निर्देश इस बारे में भी बताते हैं कि यदि क्लाइंट को काउंसलर से कोई समस्या है तो सहायता कैसे तलाशी जा सकती है।

दुर्भाग्यवश भारत में किसी क्लाइंट के लिए, काउंसलर्स को प्रमाणित करने का कोई मूल निकाय या लाइसेंसिंग प्राधिकरण नहीं है और जो यह सुनिश्चित करे कि वे सभी व्यक्ति जो खुद को परामर्शदाता बताते हैं,  वे एक आम नैतिक अभ्यास का पालन करें। प्रशिक्षण संगठन पर यह निर्भर करता है कि नैतिक दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अपने प्रशिक्षुओं को भी इन दिशा-निर्देशों से जुड़ा रखें। ऐसे कुछ कानून हैं जो पेशे के रूप में काउंसलिंग पर लागू होते हैं, और परिणामस्वरूप, ग्राहक की जिम्मेदारी बनती है कि चिकित्सा तलाशते समय काउंसलिंग सेवा देने की पेशकश करने वाले व्यक्ति के प्रशिक्षण की जांच कर लें। यह ग्राहक की जिम्मेदारी है कि परामर्श सेवा की पेशकश करने वाले व्यक्ति की पृष्ठभूमि भी जांच लें। इसके साथ ही काउंसलिंग या काउंसलर शब्दों को सामान्य रूप में उपयोग किया जाता है और अक्सर काउंसलर प्रमाणन का दावा कर देते हैं बिना यह बताए कि प्रमाणीकरण कहां से प्राप्त किया जा सकता है।

किसी क्लाइंट के दृष्टिकोण से, यह पता लगाना उपयोगी होगा कि काउंसलर को कहां से प्रशिक्षित किया गया है। उसे किस प्रकार का प्रशिक्षण मिला है और नैतिक दिशा-निर्देश, जिनका काउंसलर पालन कर रहा है। इससे ग्राहक को यह समझने में मदद मिलेगी कि पेशे की योग्यता के मुताबिक उनके हितों की देखभाल की जा रही है।

शबरी भट्टाचार्य एक काउंसलर होने के साथ ही परिवर्तन काउंसलिंग ट्रेनिंग एंड रिसर्च सेंटर में ट्रेनर हैं।