आपसी बातचीत: गर्भावस्था के दौरान और मातृत्व काल में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल मां और बच्चे दोनो के लिये महत्वपूर्ण है

गर्भावस्था यह माता के जीवन का महत्वपूर्ण समय होता है, साथ ही प्रसूति के बाद का समय भी, केवल महिला ही नही, यह उसके भ्रूण के लिये और एक बच्चे के रुप में भी, जो कि वयस्क के रुप में वृद्धि करता है। यह एक जटिल समय होता है जब मां और बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिये काफी कुछ किया जा सकता है। यहां पर डॉ प्रभा चन्द्रा (प्रसूति पूर्व मानसशास्त्री एनआईएमएचएएनएस) के साथ बातचीत कर रही हैं डॉ लता वेंकटरमण (प्रसूति शास्त्र की जानकार)। इस बातचीत में महिला की प्रसूति से पूर्व और पश्चात के समय में उसके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के संबंध में चर्चा की जा रही है।

प्रभा चन्द्रा: एक प्रसूति शास्त्री होने के नाते, आपके अनुसार किसी गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचना कितना महत्वपूर्ण है?

लता वेंकटरमण: यह बहुत महत्वपूर्ण है, न केवल महिला के लिये, वरन उसके भ्रूण के लिये और यहां तक कि बच्चे के जन्म के बाद भी जब वह बड़ा हो जाता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि माता की मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की जाए जिससे आपके गर्भ में पल रहा शिशु भी मानसिक रुप से स्वस्थ हो, साथ ही, वह एक बेहतर वयस्क के रुप में अपना जीवन जिये। अनेक स्थितियों में, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों को सही समय पर पहचाना और इलाज कर पाने की स्थिति नही बन पाती है। मैं तो कहूंगी कि महिलाएं प्रसूति शास्त्री के पास उनकी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति के बारे में बताती ही नही है और डॉक्टर भी इसे आसानी से पहचान नही पाती क्योंकि वे अपने क्लिनिक में व्यस्त रहती है या फिर इस संबंध में जागरुकता की कमी होती है। इसलिये इसका प्रभाव न केवल महिला पर, उसके शिशु पर भी पडता है।

जन्म के समय कम वजन, समय से पूर्व प्रसव आदि गर्भावस्था के दौरान होते हैं यदि माता बहुत दबाव में हो या उसे कोई मानसिक या मानसशास्त्रीय समस्या होती है। जन्म के समय कम वजन का अर्थ है बच्चे का गर्भ में बेहतर विकास नही हुआ है, परंतु इसके परिणाम दीर्घगामी होते हैं। जैसे कि आपने सही कहा, उसे मधुमेह हो सकता है, हायपरटेन्सिव होना या कम समय में ह्र्दय संबंधी रोग होना। साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियां भी बन सकती हैं जैसे एकाग्र नही होना, अवसाद, व्यवहार संबंधी समस्याएं, सीजोफ्रेनिया (आशंका हो सकती हैं) इनकी आशंकाएं बढ़ जाती है।

प्रभा चन्द्रा: हां, मेरी सोच है कि यह एक ऎसा स्थान है जहां पर हमें ध्यान देने की जरुरत है। यहां हमारा ध्यान और हमारा प्रयास लागू होना चाहिये, यह है प्रसूति के पूर्व और पश्चात माता की मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल

लता वेंकटरमण: काफी कुछ।

प्रभा चन्द्रा: एक प्रसूति शास्त्री होने के नाते, किस प्रकार की समस्याएं किसी मां के सामने आती हैं जिन्हे हम मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में ले सकते हैं?

लता वेंकटरमण: कई बार यह होता है कि उन्हे यह समझ में ही नही आता कि उन्हे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। यह सबसे बड़ी समस्या है। इसलिये एक प्रसूति शास्त्री का स्वयं को इस हेतु से प्रशिक्षित कर लेना आवश्यक है जिससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की पहचान की जा सके। मैं यहां पर रोगियों संबंधी जागरुकता की बातें भी कर रही हूं। स्वास्थ्य शिक्षा के एक भाग के रुप में, हमें इस बात की जानकारी देनी चाहिये कि उन्हे कब इस बारे में बताना चाहिये और गर्भावस्था में कौन सी स्थिति सामान्य नही होती है।

गर्भावस्था किसी भी महिला के लिये काफी सामान्य स्थिति होती है। मेरा मानना है कि प्रत्येक महिला की रचना ही इस प्रकार से की जाती है कि उसे गर्भ धारण करना है और उसे सामान्य रुप से प्रसूत होना है। परंतु समय के साथ ही यह काफी तनावपूर्ण होता जा रहा है, और इसका प्रचार भी इसी तरीके से किया जा रहा है। इसलिये गर्भावस्था को लेकर हमारा सोचने का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है (और यह होना भी चाहिये) एक स्वस्थ नजरिया जो कि गर्भावस्था को लेकर हो और इसे लेकर अनावश्यक चिन्ता करने की जरुरत नही है।

महिलाओं को लेकर बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध है, लेकिन यह सारी ही जानकारी सही है, यह आवश्यक नही है। इसलिये मेरा सोचना यह है कि हमें सही जानकारी को केन्द्र में रखना चाहिये और इस संबंध में उन्हे अपने डॉक्टर से बात करना चाहिये जिससे वे तनाव से दूर हो सके।

दूसरी बात है, बहुत से काम एक साथ करना, उन्हे उपलब्धियां चाहिये होती हैं। कम से कम गर्भावस्था के दौरान, मुझे लगता है कि उन्हे अपने आप को तनाव से मुक्त और अपने जीवन शैली में परिवर्तन के भी कुछ प्रकारों को अपनाना चाहिये। एकल परिवार होने के कारण तनाव में वृद्धि हुई है। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले योग्य सेवा प्रदाता (और प्रसूति शास्त्री भी) उपलब्ध नही होते हैं जो कि काफी बड़ी चुनौती है। मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है कि हम इस विषय को लेकर बात कर रहे हैं क्योंकि मुझे लगता है कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सेवा प्रदाता और प्रसूति शास्त्री दोनो को एक साथ मिलकर संयुक्त क्लिनिक शुरु करना चाहिये। यह किसी भी महिला के लिये एक बड़ी मदद होगी।

परिवार के सदस्य और पति की भूमिका

प्रभा चन्द्रा: क्या आप हमें यह बता सकती हैं कि गर्भवती महिलाओं के लिये, खासकर उनके परिवार द्वारा उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिये क्या किया जा सकता है? मेरा कहना यह है कि हम सभी बहुत ज्यादा चिन्ता करते हैं, हम यह जानते हैं कि बहुत सारी जानकारी उपलब्ध है, लेकिन कई बार हम किसी भी तथ्य को लेकर सकारात्मक होने के स्थान पर नकारात्मक हो जाते हैं। आप अपने पास प्रसूति देखभाल के लिये आनेवाली महिलाओं क्या बताती हैं, उन्होंने बेहतर महसूस करने के लिये क्या करना चाहिये?

लता वेंकटरमण: जहां तक मेरी सोच है, डॉक्टर की ओर से बहुत सारी आश्वस्ति (जो कि बहुत जरुरी है) परिवार के सदस्यों को दी जानी आवश्यक है, मां, सास आदि को यह बताना जरुरी होता है कि गर्भावस्था किसी भी महिला के लिये बहुत प्राकृतिक स्थिति है और अधिकांश स्थितियों में कोई जटिलता नही  होती है। यह तथ्य स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले व्यावसायिकों की ओर से भी आना चाहिये और इस बात को परिवार के सदस्यों द्वारा भी बताया जाना चाहिये। तनाव को दूर करना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। जैसा कि मैने कहा, जीवन शैली में बदलाव की आवश्यकता है। जैसे कुछ अतिरिक्त गतिविधियों को कम करने और अपने आप को बहुत ज्यादा व्यस्त नही रखने की आवश्यकता है। साथ ही, बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होकर काम नही करना है। तनाव मुक्ति के लिये किसी भी रुचि के काम को करना बेहतर है, साथ ही गर्भावस्था के दौरान सृजनात्मक होना अच्छा है। मुझे लगता है कि उन्होंने अपने मातृत्व का आनंद लेना चाहिये। साथ ही, योगाभ्यास करना चाहिये जिसका बेहतर असर होता है (माता पर)। अनेक महत्वपूर्ण अध्ययन यह सिद्ध कर चुके हैं कि योगाभ्यास का गर्भावस्था में सही असर होता है। यह न केवल आपको तनाव से मुक्त करता है, आपको हो सकने वाली जटिलताओं से बचाता है। सामान्य प्रसूति होने और प्रसूति के दौरान होने वाले दर्द से बचाव होता है यदि आप तनाव से मुक्त होते हैं।

प्रभा चन्द्रा:  तो आपके अनुसार पति क्या कर सकते हैं? क्योंकि वे ही अक्सर अधिक साथ होते हैं, उन्हे पता नही होता है कि क्या चल रहा है, जैसे हारमोन आदि में बदलाव। तब वे कैसे उपयोगी हो सकते हैं, यदि माता के मानसिक स्वास्थ्य की उस दौरान देखभाल का मुद्दा हो?

लता वेंकटरमण: उन्हे सहयोगी होना चाहिये, और यह जान लेना चाहिये कि गर्भावस्था के दौरान मूड में अचानक बदलाव आना स्वाभाविक है। साथ ही उन्हे गंभीर स्थितियों को लेकर जानकारी देनी चाहिये जो उन्हे मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर दिखाई देती है, मुझे लगता है यह सबसे ज्यादा जरुरी है। पूरी गर्भावस्था के दौरान मदद करना और सहयोगी रहना, इसके बाद प्रसूति तक का समय काफी लंबा होता है। यह सही है कि प्रसूति के बाद भी सहयोग की अज्रुरत होती है। प्रसूति के बाद की समस्याएं एकदम विशेष हो सकती है, और ये चुनौती भी पेश करती है क्योंकि आपको उनका सामना छोटे बच्चे के साथ करना होता है जो कि एक और जिम्मेदारी होती है (और इसकी अलग थकान होती है)। अनेक सामाजिक स्थितियां भी हो सकती हैं (जो प्रसूति के बाद की स्थिति में समस्या का कारण बन सकती हैं) और खाने पीने में परहेज, नींद नही होना आदि के कारण समस्याएं बढ़ जाती हैं।

प्रभा चन्द्रा: तो पति या परिवार के सदस्यों को इस दौरान सहयोगी होना चाहिये। हम अक्सर पति को विशेष ध्यान देने के लिये कहते हैं कि वे केवल कामकाजी पिता बनकर नही रह जाएं, या फिर यदि वे रात के समय कुछ देर बच्चे की देखभाल कर सके, जिससे माता का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बन सके।

लता वेंकटरमण: यह सही है।

गर्भावस्था और पहले से मौजूद मानसिक बीमारी

प्रभा चन्द्रा: कुछ महिलाओं में पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं, ये गंभीर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हो सकती हैं अथवा ये प्रसूति के पश्चात का अवसाद हो सकता है और इसमें व्यग्रता, अवसाद या व्यक्तित्व संबंधी मुद्दे आने की आशंका होती है। एक र्पसूति शास्त्री महिला को इस बारे में बात करने के लिये प्रेरित कर सकता है क्योंकि उन्हे यह लगता है कि वे तो यहां पर गर्भावस्था से संबंधित स्थिति के लिये आई हैं और यहां पर आपके पूर्व के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे पर बात करने की क्या आवश्यकता है। इसलिये आपकी इस बारे में महिलाओं को क्या सलाह है?

लता वेंकटरमण: यह जरुरी है कि पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को लेकर बात की जाए जिससे मानसिक स्वास्थ्य के लिये सलाह ली जा सके। साथ ही यदि वे बहुत ज्यादा तनाव में है, तब उन्हे किसी सलाहकार की मदद लेने की जरुरत होती है। मानसिक स्वास्थ्य सलाहकारों को लेकर काफी हौव्वा मचाया जाता है, मुझे लगता है कि हम अपने विचारों को लेकर कोई जोखिम नही लेना चाहते हैं। मेरा मत है कि हम अपना बेहतर इस स्थिति में दे सकें तो बेहतर होगा।

प्रभा चन्द्रा: जी हां, यह सही है। वैसे अनेक माताएं, जैसा कि आपने बताया है, गर्भावस्था में दवाईयां अचानक से लेना बन्द कर देती हैं क्योंकि उन्हे लगता है कि इसका असर गर्भावस्था पर होगा लेकिन मेरा विचार है कि, माताओं को यह जानने की जरुरत है कि यदि उनके अवसाद जैसी स्थिति को सही समय पर इलाज नही मिलता है, या फिर व्यग्रता की स्थिति सामने आती है, तब और भी जोखिम से भरी दवाईयां लेनी होती हैं। और इसके स्थान पर अनेक सुरक्षित दवाईयां उपलब्ध होती हैं।

लता वेंकटरमण: इसके साथ ही यह तथ्य भी होता है कि आप उन्हे सबसे कम मात्रा पर रख सकते हैं। गर्भावस्था में जो भी सबसे सुरक्षित होता है, वे दवाईयां दी जाती है। इसलिये इस विषय को लेकर ड़रने की तो कोई बात नही है।

प्रभा चन्द्रा: वे इस बात को लेकर काफी खुले तरीके से चर्चा करती हैं और प्रसूति शास्त्री को बताती हैं कि क्या चल रहा है, खासकर उनकी सोच और ड़र के बारे में। क्योंकि यदि स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर नही है, तब हम बिना दवाई के भी काम कर सकते हैं और मानसिक उपचार में एक प्रकार सलाह और बातचीत का भी होता है। लेकिन कई बार, वे दवाईयों के कारण डरती हैं और अपनी समस्याएं नही बताती।

प्रसूति पश्चात की स्थिति और मातृ कल्याण

प्रभा चन्द्रा: अब हम प्रसूति पश्चात की स्थिति पर कुछ बात करें, यह काफी संवेदनशील समय होता है। देखा जाए, तो यह माना जाता है कि यह समय मानसिक बीमारियों की शुरुआत के लिये सही होता है और यह स्त्री के जीवन में सबसे ज्यादा जोखिम का समय होता है। चूंकि इस संबंध में भारत में भी सांस्कृतिक मुद्दे काफी ज्यादा महत्व रखते हैं, जैसे विविध प्रकार के आयोजन, बच्चे के लिंग को लेकर बातें आदि...

लता वेंकटरमण: ये सही है। यदि बेटि होती है, और उनकी अपेक्षा बेटे की थी, तब मुझे लगता है कि यह महिला को होने वाले अवसाद का सबसे बड़ा कारण होता है।

प्रभा चन्द्रा: यह सही है, वैसे देखा जाए, तो कोई छोटी सी बात जैसे तुम्हारा बच्चा बहुत गोरा नही है, या तुम्हारा बच्चा बड़ा दुबला है, इन बातों का भी महिला पर असर होता है, इसके कारण बहुत बड़ी प्रतिक्रिया आने की संभावना होती है। हमारे सामने यह उदाहरण आते हैं कि इन स्थितियों में महिला काफी दुखी, अवसाद से भरी हो जाती है, उसे लगता है जैसे उसने परिवार को दुखी कर दिया है, या फिर उनकी अपेक्षाओं को पूरा नही किया है। आपके अनुसार प्रसूति के बाद के समय में, परिवार की भूमिका क्या होती है, क्योंकि महिलाएं उनकी मां के घर या ससुराल में होती हैं।

लता वेंकटरमण: सही पोषण देना सबसे ज्यादा जरुरी है। प्रसूति के बाद के भोजन, पानी नही देना, पोषक भोजन नही देना, बाहर नही जाने देना जैसी बहुत सारी प्रतिबंधात्मक स्थितियां होती है। इनके कारण भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं होती हैं। दूसरी बात यह है कि महिला को सहयोग कैसे किया जाए, जिससे वह बच्चे को बेहतर सहयोग कर सके; स्तनपान भी प्रभावित हो सकता है। वैसे देखा जाए तो एक दूसरे से जुड़ाव, स्तनपान, ये सभी तब प्रभावित होते हैं यदि महिला बहुत ज्यादा तनाव या अवसाद में होती है या उसे अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। इसलिये, परिवार द्वारा महिला को मदद करनी चाहिये। साथ ही छोटी बातें जैसे कोई रीति रिवाज़ आदि संक्षिप्त ही रखे जाने चाहिये। जो भी अर्थपूर्ण है, वे ठीक है, लेकिन इसके कारण महिला पर अनावश्यक दबाव नही आना चाहिये, यह उसके लिये आनंद से भरा आयोजन होना चाहिये। जो भी महिला को स्वीकार्य है, उसे अच्छा लग रहा है, उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। साथ ही, यहां पर पति की भूमिका बेहतर होती है और सबसे बड़ी होती है। यह सही है कि वह ससुराल और उसकी पत्नी के बीच फंसा हुआ होता है, लेकिन मेरी सोच है कि इस दौरान उसे पूरा साथ देना चाहिये।

प्रभा चन्द्रा: देखा जाए, तो बहुत से पारिवारिक सदस्य, यदि महिला को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, तब वे सोचते हैं कि बच्चे के होने से वह ठीक हो जाएगी या उसमें बदलाव होना शुरु हो जाएगा, लेकिन मुझे लगता है कि मां बनने की तैयारी किसी भी महिला के लिये महत्वपूर्ण है। यह अचानक नही हो जाता है कि आप मां बन जाते हैं। वैसे मां को अक्सर विचित्र महसूस होता है क्योंकि वे ये कहती है कि मुझे बच्चे के साथ जैसा प्रेम महसूस होना चाहिये, वह नही हो रहा है, मुझे जैसा महसूस होना चाहिये वैसा नही हो रहा है। और कई बार इसे आमान्य माना जाता है, यह जरूरी नही है कि आपको बच्चे के लिये बहुत प्रेम उमडकर सामने आए, क्योंकि आप थकी हुई हैं और बच्चा छोटा है। उसके साथ काम करना मुश्किल है, यह कई बार परेशान करता है और आपको सुपरमॉम जैसी अनुभूति नही होती है, तब अपने आप को थोड़ा समय देना जरुरी है।

लता वेंकटरमण: महिला और परिवार की अपेक्षाएं काफी अधिक हो सकती हैं और मुझे लगता है कि ये सब कुछ वास्तविकता में हो सकता है साथ ही डॉक्टरों द्वारा भी इस संबंध में स्वास्थ्य को महत्व दिया जाना चाहिये।

प्रभा चन्द्रा: अनेक पारिवारिक सदस्य नवीन माताओं को, जिन्हे अवसाद या व्यग्रता या थोडी भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या होती है, यह कहते हैं कि तुम्हे तो खुश होना चाहिये, तुम्हे इतना प्यारा बच्चा मिला है। तुम इतनी दुखी क्यों हो? तुम रो क्यों रही हो? और मुझे लगता है कि घर के सदस्यों को ही इस समय को लेकर सचेत रहने की आवश्यकता होती है, उन्हे यह सोचना चाहिये कि उसे पहले से कोई समस्या रही है, तब वह वापस तो नही आ रही है, उसके लक्षणों की जांच करें। क्या वह अधिक रो रही है, या वह बच्चे से दूर रह रही है या अच्छे से सो नही पा रही है।

लता वेंकटरमण: क्या वह स्वयं क आच्छे से ख्याल रख पा रही है, यह बात प्रसूति शास्त्री या शिशुओं के डॉक्टर को बताई जानी चाहिये क्योंकि वे उसका इलाज बेहतर तरीके से कर पाएंगे। और हमें इन लक्षणों को लेकर जागरुक रहना होगा और उन्हे एक प्रसूति शास्त्री को बताना होगा।

साथ ही, आपके व्यस्त प्रसूति संबंधी क्लिनिक के बाद भी हो सकता है कि उसकी सभी शिकायतों का बेहतर समाधान नही हो सके, इसलिये यह आवश्यक है कि अब प्रसव पूर्व क्लिनिक की स्थापना की जाए जो इस संबंध में विशेष ध्यान दें, मुझे लगता है कि इसका समय आ चुका है।

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