ऐनरेक्सिया नर्वोसा एक भोजन विकार है जिसमें असाधारण रूप से शरीर का वजन कम हो जाता है, वजन बढ़ने और शरीर की छवि बिगड़ने का गहरा भय बना रहता है. इस विकार की शुरुआत अक्सर व्यक्ति के कई भावनात्मक मुद्दों को झेल न पाने की अयोग्यता से होती है. उन्हें लगता है कि वजन घटाने और बहुत पतला हो जाने से वे इससे निपट सकते हैं और अपने बारे में अच्छा महसूस कर सकते हैं. इसे हासिल करने के लिए, वे अपने भोजन की मात्रा बहुत ही कम कर देते हैं, नियमित रूप से आहार छोड़ देते हैं और बाद की अवस्था में कई कई दिनों तक खाना ही बंद कर देते हैं. जब वे खाते भी हैं तो तो बहुत थोड़ी मात्रा में और उतना सा खाने में भी उनके मन में ग्लानि का भाव रहता है. समय के साथ, नियंत्रण का ये व्यवहार और पतलापन एक ऑब्सेशन बन जाता है. उनका वजन गिरने लगता है जो उनकी आयु या लंबाई के व्यक्ति का औसत वजन नहीं होता. अपने शरीर की छवि और रूप को भी लेकर वे असंतुष्ट रहते हैं, इसलिए अगर वे साफतौर पर अंडरवेट यानी कम वजन वाले दिखते भी हैं तो भी उन्हें यहीं लगता रहता है कि उनका वजन अब भी ज्यादा है, वे ओवरवेट हैं.
एनेरेक्सिया जीवनशैली का विकल्प नहीं है जैसा कि कई लोग गलती से मान लेते हैं. व्यक्ति के गहरे
भावनात्मक तनावों और बिगड़ी हुई नकारात्मक आत्म छवि से निबाह न कर पाने की अक्षमता से ये विकार पनपता है. उनमें वजन बढ़ जाने का बहुत गहरा भय बना रहता है. ये गंभीर शारीरिक लक्षणों वाली एक गंभीर बीमारी है लेकिन उचित उपचार के साथ इस पर काबू पाया जा सकता है और स्वस्थ जीवन बहाल किया जा सकता है.
ऐनरेक्सिया से पीड़ित लोग, अपने परिवार और दोस्तों से अपनी आदतों और व्यवहार को छिपाने की कोशिश करते हैं. लेकिन ऐसे कई शारीरिक और व्यवहारजन्य लक्षण होते हैं जिनसे पता चल जाता है कि व्यक्ति ऐनरेक्सिया से पीड़ित हो सकता है.
शारीरिक लक्षण इस तरह से हैं:
व्यवहारजन्य लक्षण इस तरह से हैं:
ऐनरेक्सिया की सही सही वजह ज्ञात नहीं है, शोध बताते हैं कि मनोवैज्ञानिक, जैविक और पर्यावरणीय कारणों के मिलेजुले असर से ये विकार आता है. ऐसे लोग जो अवसाद और घबराहट की चपेट में आ सकते हैं उन्हें ये विकार पैदा हो सकता है क्योंकि वे अपनी चिंताओं का समाधान इस तरह की भोजन प्रवृत्तियों में तलाश करते हैं. ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति भी खाने के प्रति अतिशय व्यवहार दिखा सकता है जिसके चलते वे खाने के हर हिस्से का बाकायदा वजन करते हैं और उन्हें एक जैसे टुकड़ों में बांटकर तब खाते हैं. कुछ मामलों में परिपूर्णतावाद और अतिशय संवेदनशीलता भी इस विकार को जन्म दे सकती है. जीन्स की सटीक भूमिका इस मामले में नहीं बताई जा सकती है लेकिन शोध बताते हैं कि मस्तिष्क में सेरोटोनिन रसायन का स्तर की भी इसमें एक भूमिका है.
युवाओं और बच्चों में पतला होने की भावना या ऑब्सेशन घर कर सकता है अगर कोई वजन को लेकर उन्हें स्कूल में तंग करे या चिढ़ाए. लड़कियों में भी सहेलियों का दबाव इस तरह का विकार पैदा कर सकता है. आज के दौर में मीडिया और समाज भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं. ये गलत धारणा है कि पतला होने का मतलब सुंदर दिखना है या ये दोनों बातें एक दूसरे की पर्याय हैं, ये भ्रम युवा दिमागों में चलता रहता है और वे खुद को भूखा रखने लगते हैं.
ऐनरेक्सिया शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, इसलिए इसके लिए विभिन्न किस्म के इलाज की ज़रूरत पड़ती है. अगर ऐनरेक्सिया से पीड़ित व्यक्ति बहुत गंभीर रूप से कुपोषण का शिकार है तो उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है.अगर वो अंडरवेट नहीं है या उनकी जान को कोई ख़तरा नहीं है तो उन्हें बाह्य रोगी के रूप में उपचार दिया जा सकता है. ऐनरेक्सिया के उपचार के तीन घटक हैं:
भोजन विकार के चलते अगर मरीज़ किसी गंभीर स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे हैं तो पहले उस बीमारी का इलाज किया जाता है जो विकार से पैदा हुई है.
उन्हें पोषक उपचार दिया जाता है ताकि उनके शरीर का वजन सामान्य हो जाए और उन्हें इस स्वस्थ वजन को बनाए रखने के लिए पोषक आहार की सूचनाएं और हिदायतें भी दी जाती हैं.
उन्हें काउंसलिंग और थेरेपी की ज़रूरत भी पड़ सकती है ताकि वजन बढ़ने का डर वे अपने दिमाग से निकाल सकें.
विशेषज्ञों की टीम एक साथ उपचार करती है. कई मामलों में परिवार को भी उपचार प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है.
अगर आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हैं जिसमें ऐनरेक्सिया के लक्षण दिखाई दे रहे हों तो सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि उन्हें उपचार कराने के लिए तैयार करें. आपको इसके लिए अत्यधिक कोमलता और धीरज रखना होगा क्योंकि इस विकार से पीड़ित व्यक्ति अपने मामले को लेकर बहुत रक्षात्मक हों और अव्वल तो विकार की बात से इंकार ही कर दें. अपनी बात को थोपने की कोशिश न करें, दबाव न डालें, अपनी चिंताओं को कोमलता से अभिव्यक्त करें, आपको ये सुनिश्चित करना होगा कि परिवार के अन्य सदस्य स्वस्थ आहार लेते रहें, उपचार के दौरान भी ये आदत मदद करती है क्योंकि इसे मरीज़ एक उदाहरण के रूप में देखता है.
ऐनरेक्सया का उपचार लंबा चल सकता है और इलाज के साथ साथ उचित आहार, डाइट और पोषण लेते रहना भी ज़रूरी है. खुद को दोस्तों और परिजनों से अलग मत करिए, मददगार लोगों के साथ समय बिताने से आपको अपने बारे में अच्छा ही महसूस होगा. ऐनरेक्सिया के बारे में पढ़ने और सीखने से आपको ये समझ आ जाएगा कि वजन बढ़ने के आपके डर का ताल्लुक इस विकार का महज़ एक लक्षण है. ऐनरेक्सिया से पीड़ित अन्य लोगों के साथ किसी सहायता समूह में शामिल हो सकते हैं इससे भी आपका डर निकल जाएगा. आपको बीच बीच में अपना वजन लेने की तीव्र इच्छा महसूस होगी लेकिन आप उस इच्छा को भरसक दबाए रखें. अपनी देखरेख करने वाले लोगों पर भरोसा रखें और उनसे खुलापन रखें. उपचार के दौरान इससे आपको बहुत मदद मिलेगी.
अध्ययन बताते हैं कि भोजन विकार पश्चिमी संस्कृतियों में ज़्यादा देखे जाते हैं. लेकिन वे गैर पश्चिमी समाजों में भी होते हैं हालांकि उनके एकदम वही लक्षण नहीं होते हैं. उदाहरण के लिए, भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में, ऐनरेक्सिया के मरीज़ को ये नहीं लगता रहता है कि उसका शरीर बेडौल या कुरूप है, या उसे वजन बढ़ने का डर नहीं सताता रहता है ( गैर फैटफोबिक ऐनरेक्सिया). वे अन्य लक्षण दिखाते हैं जैसे खाने को मना करते रहना लेकिन इस व्यवहार की वजहें ज़रूरी नहीं कि शरीर की छवि से जुड़ी हों. विकार को पैदा करने में सांस्कृतिक कारक भी काम कर सकते हैं. उदाहरण के लिए भारत में, अभिभावकों की उम्मीदें और उन उम्मीदों पर खरा न उतर पाने की अक्षमता जैसे दबाव या तनाव, व्यक्ति में खाना छोड़ देने की स्थिति पैदा कर सकते हैं. वो ऐसा खुद को सजा देने के लिए कर सकता है. समय के साथ ये एक आजमाया हुआ व्यवहार बन जाता है. इसे ही असामान्य या एटिपिकल ऐनरेक्सिया कहा जाता है.