ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर (ओ.सी.डी)

ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर (ओ.सी.डी)

Q

ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर (ओसीडी) क्या है?

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आप दिन भर बहुत व्यस्त रहने के बाद थक गए और रात भर के लिए आराम करना चाहते हैं. आप जैसे ही बिस्तर पर जाते हैं तो अचानक आपको महसूस होता है कि आपने मुख्य दरवाजा खुला ही छोड़ दिया है. आप एकदम से व्यग्र हो जाते हैं और जाकर चेक करते हैं कि वो बंद है या खुला. एक बार आप पाते हैं कि दरवाजा बंद ही है तो आप चैन की सांस लेते हैं और बिस्तर पर लौट आते हैं. ये नियमित चिंता आपके लिए अच्छी ही है क्योंकि इससे ये बात पता चलती है कि आप अपने आसपास और अपनी चीज़ों को लेकर सजग हैं.

लेकिन कई बार, ये विचार बार बार आते रहते हैं और आपकी दिनचर्या में दख़ल देने लगते हैं. आप दरवाजे को चेक करने के लिए जाते हैं और ये सुनिश्चित कर लेते हैं कि वो बंद है. लेकिन बिस्तर पर लौटते ही आपकी चिंता फिर शुरू हो जाती है. आप फिर उठते हैं और दरवाजा फिर से चेक करते हैं लेकिन बिस्तर पर लौटकर आपकी चिंता बनी रहती है.

बार बार आने वाला ये विचार या ख़्याल, जो आपको हर समय चिंताग्रस्त या व्यग्र बनाए रखता है और आपकी दिनचर्या या अन्य कामों को प्रभावित भी करता है, ये ख़्याल ऑब्सेशन कहलाते हैं. आप इनके प्रति कुछ ज़्यादा ही आसक्त हो जाते हैं. ये आसक्तियाँ या ऑब्सेशन अलग अलग तरह के होते हैं. कुछ लोग सफाई को लेकर परेशान रहते हैं और उन्हें ये चिंता लगी रहती है कि उनके हाथों में कीटाणु लगे हैं जबकि कुछ देर पहले ही उन्होंने हाथ धोया होगा.

ओसीडी से पीड़ित लोग कई तरह की चिंताओं और कष्टों का अनुभव करते हैं. इस चिंता से निजात पाने के लिए वे कुछ गतिविधियाँ या हरकतें बार बार करते हैं इन्हें कम्पलशन यानि बाध्यता कहा जाता है. यानि ऐसा करने के लिए वे बाध्य हो जाते हैं. ओसीडी से पीड़ित लोगों को ये कम्पलशन अस्थायी राहत ज़रूर देते हैं.

गंभीर मामलों में, एक ही हरकत को बार बार दोहराते रहने से व्यक्ति की रोज़मर्रा की गतिविधियों पर बुरा असर पड़ सकता है. ऑब्सेशन्स के चक्र के बाद बाध्यकारी व्यवहार यानि कम्पलसिव बिहेवियर, व्यक्ति की दिनचर्या को संभाले रखने की क्षमता को कम करता जाता है तो इसे ओसीडी का केस कह सकते हैं.

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ओसीडी के लक्षण क्या हैं?

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ओसीडी की पहचान व्यक्ति के कम्पलसिव व्यवहार को देखकर की जा सकती है. सबसे आमफ़हम लक्षण इस तरह से हैं:

  • साफ़ सफ़ाई: कुछ लोगों को संक्रमण का लगातार भय बना रहता है. वे लगातार अपने हाथ धोते रहते हैं और घर की सफ़ाई करते रहते हैं.

  • व्यवस्था और सुरुचि: कुछ लोग चीज़ों को सही जगह पर रखने या हर चीज़ को व्यवस्थित करने के प्रति ऑब्सेस्ड रहते हैं. अपनी चिंता को कम करने के लिए वे किताबों को फिर से लगाएँगें, बर्तनों को सही ढंग से रखते रहेंगें, कालीन को ठीक करते रहेंगे, तकिया और मसनदों को भी बार बार सही ढंग से बिछाते रहेंगें.

  • पुरानी चीज़ों को जमा करना: कुछ लोगों के लिए पुरानी चीज़ों को हटाना बहुत मुश्किल होता है. वे बिना किसी वजह के पुरानी चीज़ों को जमा करते रहते हैं. जैसे पुराने अख़बार, कपड़े, डाक और अन्य चीज़ें.

  • गिनती करते रहना: कुछ लोग अपने समान और दूसरी चीज़ों की लगातार गिनती करते रहते हैं. वे सीढ़ियों की भी गिनती करते हैं या हॉल में लगी लाइटों को गिनते रहते हैं. अगर उनसे गिनती छूट जाती है तो वे फिर से शुरू करते हैं.

  • सुरक्षा: कुछ लोगों में सुरक्षा को लेकर निराधार भय आ जाता है, वे लगातार चेक करते रहते हैं कि दरवाजे खिड़कियाँ ठीक से लगी हों. स्टोव या गैस का चूल्हा बंद है या नहीं. आदि.

अगर आप अपने परिचित किसी व्यक्ति में ऐसा व्यवहार देखते हैं तो आपको उनसे बात करने की कोशिश करनी चाहिए और उन्हें किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

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ओसीडी की वजह क्या है?

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हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि ओसीडी किस वजह से होता है फिर भी कुछ ज्ञात कारक इस तरह से हैं:  

  • आनुवंशिक कारकः ओसीडी कभी कभी माता पिता से भी बच्चों में आ जाता है.

  • जैविक/ न्यूरोलॉजिकल कारकः कुछ शोधों में पाया गया है कि दिमाग में सिरोटोनिन नाम के रसायन में असंतुलन की वजह से ओसीडी हो जाता है.

  • जीवन मे बदलावः कभी कभी जीवन में होने वाले प्रमुख बदलावों जैसे नई नौकरी या बच्चे का जन्म आदि से व्यक्ति को नई ज़िम्मेदारियों का बोझ महसूस होने लगता है. इससे भी ओसीडी उभर सकता है.

  • व्यवहारजन्य कारकः ऐसे लोग जो अत्यधिक रूप से व्यवस्थित, साफ़, सतर्क रहते हैं या छोटी उम्र से ही प्रभार रखना चाहते हैं उन्हें भी कभी कभी ओसीडी हो सकता है.

  • निजी अनुभवः गहरे सदमे का अनुभव करने वाला व्यक्ति भी ओसीडी से प्रभावित हो सकता है. मिसाल के लिए, घर में रखे चूहा मारने के जहर को छू लेने से हाथ में उभरने वाले चकत्ते की वजह से बार बार हाथ धोने की बाध्यता आ जाती है.

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ओसीडी का इलाज

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ओसीडी का इलाज बहुत असरदार पाया गया है. और कई लोग पूरी तरह से ठीक हुए हैं. ओसीडी की गंभीरता को देखते हुए ही दवाओं से लेकर थेरेपी तक का उपचार चलाया जाता है. हल्केफुल्के मामलों में ये पाया गया है कि थेरेपी जैसे संज्ञानात्मक व्यवहारजन्य थेरेपी (सीबीटी) ही अकेले पर्याप्त होती है. ज़्यादा गंभीर मामलों में, दवाएँ दी जाती हैं, अवसाद निरोधी दवाएँ ही आमतौर पर चिंता के स्तर को कम करने के लिए दी जाती है.

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ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति का इलाज

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ओसीडी से पीड़ित व्यक्ति के साथ रहना बाज़ दफ़ा खिन्न कर देने वाला हो सकता है. ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि व्यक्ति बोझ बनने की कोशिश नहीं करता है बल्कि अपनी चिंता से हर संभव जूझने की कोशिश करता है. अच्छा हो अगर उनसे मदद लेने के बारे में बात की जाए, उन्हें इसके लिए समझाया जाए. ये चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इसमें धीरज की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि कई लोग मानते हैं कि उन्हें मदद की जरूरत नहीं है और कुछ मामलों में ओसीडी के मरीज़ अपने ऑब्सेशन को लेकर शर्मिंदगी भी महसूस करने लगते हैं. आप इस समस्या से निजात पाने में व्यक्ति के मददगार के रूप में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं. उसे अपने डर का सामना करने के लिए प्रोत्साहित कीजिए. लेकिन पहला कदम तो यही होना चाहिए कि वह पेशेवर मदद ले.

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अपना भी ध्यान रखना ज़रूरी है

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ओसीडी से छुटकारा पाने की दिशा में, मदद के लिए किसी विश्वस्त से बात करते रहना फ़ायदेमंद ही रहता है. इससे ऑब्सेशन से जुड़ा आपका डर काफ़ी कम हो सकता है. मिसाल के लिए शारीरिक गतिविधि जैसे कोई खेल आपकी मानसिक दशा में भी सुधार कर सकता है और घुसपैठी ख़्यालों को भी आपके ज़ेहन में आने से रोक सकता है. अपनी मदद के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण काम आप ये कर सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मुलाक़ात करें. आपके नियमित उपचार के अलावा, वो ओसीडी से निपटने में भी आपकी मदद के लिए एक कार्ययोजना तैयार कर सकता है जिस पर अमल करते हुए आपको लाभ पहुँचेगा.

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