दिमागी लकवा या पक्षाघात

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दिमागी लकवा क्या होता है?

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दिमागी लकवा एक न्यूरोलॉजिकल यानि तंत्रिका संबंधी विकार है जो दिमाग (मस्तिष्क-ब्रेन) में चोट लगने या बच्चे के मस्तिष्क के विकास के दौरान हुई किसी गड़बड़ की वजह से होता है. दिमागी लकवा शरीर की हरकत या जुंबिश, मांसपेशियों के नियंत्रण और समन्वय, चालढाल, रिफ़्लेक्स, अंग-विन्यास या हावभाव और संतुलन पर असर करता है. बच्चों की क्रोनिक यानि पुरानी विकलांगता की ये सबसे आम वजहों में एक है.

दिमागी लकवे की निम्न विशेषताएँ होती हैं:

  • लाइलाज और स्थायी: दिमाग में लगी चोट और दिमाग को हुआ नुकसान स्थायी होता है और इसका उपचार नहीं हो सकता है. दिमाग का घाव शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह नहीं भरता है. हालांकि अन्य संबंद्ध स्थितियाँ समय के साथ हालत में सुधार कर सकती हैं या उन्हें बिगाड़ सकती हैं.
  • फैलता नहीं है: मस्तिष्क में और अधिक विकृति नहीं आती है.
  • दीर्घकालीनः दिमागी लकवे से पीड़ित व्यक्ति को जीवन भर इसी स्थिति के साथ रहना पड़ता है.

इस विकार से कुछ और समस्याएँ भी जुड़ी हुई हैं, जैसेः

• संचालन विकार

• संवेदी नुकसान

• बहरापन

• ध्यान में कमी

• भाषा और समझने की गड़बड़ी

• मानसिक मंदता

• व्यवहारजनित समस्याएँ

• स्वास्थ्य समस्याएँ

• बार बार दौरे या ऐंठन

मुख्य तथ्य

• दिमागी लकवा बचपन में होने वाली सबसे सामान्य दीर्घजीवी शारीरिक/संचालन विकलांगता है

• विश्व में, क़रीब एक करोड़ सात लाख लोग दिमागी लकवे से प्रभावित हैं.

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दिमागी लकवे के चिन्ह क्या हैं?

A

दिमागी चोट या उसमें किसी विकार की चिकित्सीय पहचान से ही दिमागी लकवे के चिन्ह मिलते हैं. दिमागी लकवे की आशंका का पता करने के लिए ये चिन्ह ही एक प्राथमिक विधि हैं. क्योंकि बच्चा अपनी समस्याओं को ठीक से बता नहीं पाता है. वैसे माता पिता बच्चे की संचालन संबंधी समस्याओं को देख सकते हैं, लेकिन डॉक्टर विकार संबंधी अन्य स्थितियों के न होने की सूरत में चिकित्सा जाँच से नुकसान की पहचान कर सकता है.

फ़िज़ीशियन इस नुकसान के विस्तार, इसकी जगह और गंभीरता का भी अंदाज़ा लगा सकता है. इसके साथ अन्य क्या स्थितियाँ बनी हुई हैं इसका पता भी वो कर सकता है. ये चिन्ह हर बच्चे में दूसरे से अलग हो सकते हैं. ये निर्भर करता है कि दिमागी चोट कितनी गहरी और गंभीर है.

• मांसपेशियों की स्थितिः पेशियो में हरकत बढ़ी हुई है या कम है. झूले हुए अंग, एकदम ढीले या एकदम कसे हुए अंग, अनैच्छिक पेशी संकुचन या आपस में गुंथे हुए जोड़ जिससे गति बाधित होती है. इसकी वजह से चलनेफिरने और बैठने में दिक्कत आ सकती है और बिना सपोर्ट के खड़ा नहीं रहा जा सकता है.

• गति में समन्वय और नियंत्रणः पेशी में हुए नुकसान से बच्चे के अंगों पर असर पड़ता है, उसकी शरीर की हरकत और उस पर नियंत्रण बाधित हो जाता है. अंग फैल जाते हैं या सिकुड़ जाते हैं, या मुड़ने लगते हैं. उदाहरण के लिए, एक शिशु छह माह की अवस्था में भी बैठ नहीं पाता या अपने दम पर लुढ़क नहीं पाता, 12-18 महीनों में चलने में समर्थ नहीं हो पाता या आगे चलकर लिखना, दाँतों को ब्रश करना या जूते पहनने जैसे काम भी नहीं कर पाता है.

• भावभंगिमाः दिमागी लकवा शरीर की चालढाल और भावभंगिमा और संतुलन पर भी असर डालता है. शिशुओं को जब विभिन्न तरीकों से बैठाया जाता है तो उनकी भंगिमा स्वाभाविक रूप से देखी जाती है. आमतौर पर उसके बैठने की अवस्था एक संगति में रहती है यानि बच्चा दोनों पाँव आगे रखकर बैठता है. लेकिन दिमागी लकवे के शिकार बच्चों की ये अवस्था संगति में नहीं होती. वे ठीक से बैठ नहीं पाते. दिमागी लकवे के पीड़ितों में इस तरह बैठने उठने चलने फिरने में एक स्वाभाविक शारीरिक संगति का अभाव पैदा हो जाता है.

 

• संतुलनः दिमाग के संचालन तंत्र में नुकसान से बच्चे की संतुलन की क्षमता पर असर पड़ सकता है. अभिभावक इन चिन्हों को उस समय देख सकते हैं जब बैठना, या खड़ा उठना, घुटनों के बल चलना और पाँवों पर चलना सीखता है. सामान्य विकास की अवस्थाओं में बच्चे बैठने या चलने के लिए अपने हाथों की मदद लेते हैं. और आगे चलकर सामर्थ्य और समन्वय की मदद से वे बिना किसी मदद के अपने काम करने में सक्षम हो पाते हैं. अगर बच्चा बिना मदद के बैठने या खड़े होने में असमर्थ हो तो ये दिमागी लकवे का एक चिन्ह हो सकता है.

• वृहद संवेगी कार्य (ग्रॉस मोटर फ़ंक्शन): कई सारे अंगों और पेशी समूहों के इस्तेमाल से बड़ी और समन्वित हरकतें कर पाने की शरीर की क्षमता ग्रॉस मोटर फ़ंक्शन यानि वृहद संवेगी कार्य कहलाती है. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मोटर तंत्रिकाएँ दिमाग के संवेगों (संदेशो) को विभिन्न मांसपेशियों तक पहुँचाती हैं और उनकी मदद से ही पेशियाँ हरकत करती हैं यानि हाथ पाँव को घुमाना, उठाना, चलना फिरना, लेटना, मुड़ना तमाम हरकतें इन्हीं मोटर न्यूरोन्स से संभव हो पाती हैं. बच्चे का दिमाग और शरीर जैसे जैसे विकसित होता वे विकास के नए पैमाने बनाते रहते हैं. किसी ख़ास पैमाने पर निर्धारित समय से देरी से पहुँचना या उस अवस्था में अपेक्षित समय से देरी से पहुँच पाना या मंद स्तर की गति के साथ उस अवस्था में पहुँचना- (उदाहरण के लिए- घिसटते हुए एक ओर को झुकना, बिना किसी सपोर्ट के चल न पाना, आदि)- ये सब चीज़ें दिमागी लकवा के संभावित चिन्ह हो सकते हैं.

• सूक्ष्म संवेगी कार्य (फ़ाइन मोटर फ़ंक्शन): सटीक और समन्वित पेशी संचालन की क्षमता को सूक्ष्म संवेगी कार्य कहा जाता है. इनमें नियंत्रण की कई गतिविधियाँ शामिल हैं जो सीखी जाती हैं और मानसिक (योजना और तर्क) और शारीरिक (समन्वय और संवेदना) कौशल का संयोजन शामिल होता है. बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है वो शरीर में नियंत्रण और कई किस्म के मानसिक और शारीरिक संवेगी संयोजनों को हासिल करता जाता है. इस स्थिति में पहुँचने में अगर देर हो रही हो या इसमें किसी तरह की बाधा आ रही हो तो इसे दिमागी लकवे का एक संभावित संकेत समझना चाहिए.

• मौखिक संवेगी कार्य (ओरल मोटर फ़ंक्शन): मुँह से जुड़ी पेशियों की सही हरकत की वजह से होंठ, जीभ और जबड़ों का इस्तेमाल बोलने, खाने-पीने के लिए हो पाता है. दिमागी लकवे के शिकार बच्चे की ये पेशियाँ काम नहीं करती हैं. इससे बोलने में, गटकने में, खाने और चबाने में मुश्किलें आती हैं. इससे सांस लेने में, उच्चारण और आवाज़ में भी तक़लीफ़ हो सकती है. अप्रैक्सीया(उद्देश्यपूर्ण संचालन करने में कठिनाई) और डिसार्थीया(कठिन और दोषयुक्त उच्चारण) दिमागी लकवे से होने वाली तंत्रिका तंत्र संबंधी वाक् दुर्बलताएँ (स्पीच इम्पेर्मन्ट) या क्षतियाँ हैं.

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दिमागी लकवे के लक्षण क्या हैं?

A

बच्चे के जीवन के पहले तीन साल के दौरान दिमागी लकवे के लक्षण देखे जा सकते हैं. दिमागी लकवा शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर सकता है और सब बच्चों में एक जैसा नहीं होता है. कुछ बच्चों को हल्की समस्याएँ आती हैं तो कई ऐसे होते हैं जिनकी समस्या गंभीर बन जाती है. बड़ा होने की विभिन्न अवस्थाओं से गुज़रते हुए बच्चे का विकास धीमा रह जाता है जैसे घुटनों के बल घिसटना, बैठना, चलना या बोलना.

अभिभावकों को अपने बच्चे में कुछ लक्षणों को सावधानीपूर्वक देखना चाहिए जैसे कि गला फँसना, चीज़ों को समझने में कठिनाई आना, खाने की कोई चीज़ को निगलने में परेशानी, थकान, बैठने या बिना सहायता के खड़ा रह पाने में मुश्किल, सुनने में मुश्किल, और शरीर के कुछ हिस्सों में दर्द.

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दिमागी लकवा किस वजह से होता है?

A

दिमागी लकवे की सही वजह अभी पता नहीं चल पाई है. माना जाता है कि गर्भावस्था में, या बच्चे के जन्म के समय या जन्म के पहले तीन साल के भीतर दिमाग को पहुँचे किसी नुकसान से दिमागी लकवा हो सकता है.

डॉक्टर बताते हैं कि दिमागी लकवे के शिकार 70 प्रतिशत बच्चों में इस बीमारी की वजह होती है गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क को पहुँची चोट. इस चोट की प्रकृति और गंभीरता से ही तय होता है कि बच्चे की संचालन या संवेगी क्रियाशीलताएँ और बौद्धिक क्षमताएँ कितनी प्रभावित हुई हैं.

मस्तिष्क को चोट के कुछ संभावित कारण निम्न रूप से हैं-

• गर्भावस्था के दौरान संक्रमण- माँओं को गर्भावस्था के दौरान अगर किसी तरह का संक्रमण होता है तो ये भ्रूण के विकसित होते तंत्रिका तंत्र यानि नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुँचा सकता है. आनुवंशिक समस्याएँ, संक्रमण या बच्चे को जन्म देते समय आने वाली समस्याओं से भी दिमागी लकवा हो सकता है.

• समय से पहले जन्मः इससे भी नवजात शिशु का मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो सकता है अगर आंतरिक रक्तस्राव होता है. दूसरा संभावित कारण पीलिया है. ख़ून में अत्यधिक बिलिरुबिन की वजह से पीलिया होता है. आमतौर पर, बिलिरुबिन यकृत यानि लीवर के ज़रिए बाहर निकल जाता है. लेकिन नवजात बच्चे के यकृत को बिलिरूबिन को सही ढंग से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए क्रियाशील होने में कुछ दिन का समय लगता है, इसीलिए जन्म के बाद बच्चों को अक्सर पीलिया हो जाना स्वाभाविक है. फ़ोटो थेरेपी (प्रकाश थेरेपी) की मदद से पीलिया का इलाज किया जाता है. लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में, अगर पीलिया का इलाज न किया जाए और वो गंभीर हो जाए तो वो मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षति पहुँचा सकता है.

• शुरुआती नवजात वर्षः गंभीर बीमारी, चोट या मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी से भी उसकी कोषिकाओं को नुकसान पहुँच सकता है.

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दिमागी लकवे की पहचान कैसे की जाती है?

A

दिमागी लकवे के लिए कोई निश्चित परीक्षण नहीं है. बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री और शारीरिक परीक्षण से ही बीमारी की पहचान की जाती है. यूँ तो शुरुआत में ही पहचान करा लेनी चाहिए क्योंकि इससे अभिभावकों को अपने बच्चों को थेरेपी या दूसरे किसी और तरीके से अपने बच्चे के इलाज को शुरू करने में सहूलियत होती है. फिर भी कई बार पहचान में देरी हो जाती है

 

क्योंकि विकार की पहचान इतनी आसानी से नहीं हो पाती है. अगर नवजात शिशु किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हैं तो भी पहचान में समय लग सकता है क्योंकि शुरुआती कुछ वर्षों में लक्षणों में बदलाव देखा जा सकता है. दिमागी लकवे से गंभीर रूप से प्रभावित बच्चों का डायग्नोज़ आसान होता है. बच्चे के जन्म के पहले महीने में ही अक़्सर पहचान कर ली जाती है. कुछ बच्चों में पहले साल के दौरान ही पहचान की जाती है. और हल्के ढंग से प्रभावित बच्चों में पहचान का काम तीन या चार साल के होने पर ही कराया जा सकता है.

डॉक्टर बच्चे की ऐच्छिक और अनैच्छिक मुद्राओं, पेशी संचालन, हावभाव, पेशी समन्वय और दूसरे कारकों की जाँच करेंगे. इन लक्षणों के विकसित होने में महीनों या साल भी लग सकते हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य से जुड़े डॉक्टर चिकित्सा विशेषज्ञों से भी सलाह ले सकते हैं या एमआरआई (मैग्नटिक रिज़ोनेंस इमेजिंग), या सिर के अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन (कम्प्यूटड टोमोग्राफ़ी स्कैन) जैसे टेस्ट भी कराने की सलाह दे सकते हैं. इनसे मस्तिष्क की तस्वीरें उन्हें उपलब्ध हो पाएँगी.

अगर शिशु समय से पहले पैदा हुआ है, तो एक शुरुआती एमआरआई स्कैन बता सकता है कि उसके मस्तिष्क में कोई चोट तो नहीं है लेकिन उसका असर होगा या नहीं या कितना होगा, इतनी जल्दी ये अनुमान लगाना मुश्किल होगा. अगर डॉक्टर ये पाते हैं कि शिशु को दिमागी लकवा होने का ख़तरा है, तो इलाज की प्रक्रिया के तहत हस्तक्षेप का काम जन्म के बाद पहले महीने से ही शुरू किया जा सकता है.

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दिमागी लकवे का इलाज

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माता पिता या अभिभावक ही सबसे पहले ये भाँप सकते हैं कि उनके बच्चे के विकास की गति धीमी है. अगर बड़े होने की कोई अवस्था बाधित होती है या बच्चे की विकास गति मंद पड़ती है तो अभिभावक सोच सकते हैं कि उनका बच्चा धीमी गति से सीखने वाला बच्चा है और बाद में सीख जाएगा. लेकिन उन्हें बच्चों के डॉक्टर को इस देरी के बारे में सूचित करना चाहिए.

दिमागी लकवे का कोई इलाज नहीं है लेकिन लक्षणों के कई सारे इलाज उपलब्ध हैं. दिमागी लकवा के प्रकार, उसकी जगहें और गंभीरता के स्तर अलग अलग होते हैं लिहाज़ा विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम एक साथ काम करते हुए दिमागी लकवे से पीड़ित बच्चे का एक समग्र ट्रीटमेंट प्लैन तैयार करती है.

बालरोग विशेषज्ञ, फ़िज़ियोथेरेपिस्ट, ऑर्थोटिस्ट (जोड़ों की विकृतियों और कमज़ोरियों को ठीक करने वाले विशेषज्ञ) वाक् और भाषा थेरेपिस्ट, पेशागत थेरेपिस्ट, विशेष शिक्षा से जुड़े अध्यापक, और मनोवैज्ञानिक- अपने अपने क्षेत्रों के ये सब जानकार समन्वय के साथ काम करते हैं और

इस तरह बच्चे को अपने लक्षणों से निपटने और जितना संभव हो सके उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने में सक्षम बनाए रखने में मदद करते हैं.

  • फ़िज़ियोथेरेपी: आमतौर पर फ़िज़ियोथेरेपी तब शुरू की जाती है जब बच्चे को दिमागी लकवा है- ये पता चल जाता है. इसका उद्देश्य होता है मांसपेशियों में कमज़ोरी को रोकना, पेशियों को सिकुड़ने और उनकी गति के सामान्य दायरे को सिकुड़ने से बचाना. फिज़ियोथेरेपिस्ट आपके बच्चे को कई व्यायाम सिखाएगा जिससे वो अपनी पेशियों को मज़बूत कर सके और उन्हें खींच सके. स्पेशल आर्म और लेग ब्रेस (ऑर्थोसेस) का इस्तेमाल भी पेशियों को खींचने और चालढाल को सुधारने के लिए किया जा सकता है.
  • स्पीच थेरेपीः इसकी मदद से बच्चों को संचार और बोलचाल के तरीके सिखाए जाते हैं. बच्चों को श्रृंखलाओं के तहत अभ्यास सिखाए जाते हैं जिनसे उन्हें साफ़ बोलने में मदद मिलती है. गंभीर वाक़ कठिनाइयों के मामलो में, बच्चों को संचार के वैकल्पिक तरीक़े सिखाए जाते हैं जैसे साइन लैंग्वेज यानि संकेत भाषा. बच्चे संवाद कर सकें इसके लिए विशेष उपकरण उपलब्ध हैं जैसे वॉयस सिंथेसाइज़र से जुड़ा कम्प्यूटर.
  • गतिविधि केंद्रित थेरेपी यानि रोज़मर्रा की गतिविधियों से जुड़ी थेरेपीः थेरेपिस्ट उन समस्याओं को चिंहित करता है जो बच्चे को रोज़ाना के काम करते हुए हो सकती हैं और उन संभावित तरीकों को अपनाने के लिए यथासंभव सही सलाह दे सकता है जो उन कार्यों के लिए काम आ सकते हैं जिनमें हाथ पाँव हिलाने की ज़रूरत पड़ती है. जैसे टॉयलेट जाना, कपड़े बदलना, पहनना, खाना-पीना आदि. पेशागत थेरेपी आपके बच्चे का आत्मसम्मान और स्वतंत्रता बनाए रखने में अत्यधिक लाभकारी हो सकती है, ख़ासकर जब वे बड़े होते हैं.
  • खेल थेरेपीः बच्चों को खेल के ज़रिए उपचार दिया जाता है, जिसका सही असर उनके भावनात्मक व्यवहार पर पड़ता है. थेरेपी और मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप से बच्चे दूसरों के साथ घुलनामिलना और संवाद करना सीखते हैं और संबंध विकसित करते हैं. खेल थेरेपी में बच्चों की शारीरिक क्षमताओं, संज्ञानात्मक क्रियाशीलता के स्तरों और भावनात्मक ज़रूरतों का सुरक्षित, सहयोगी माहौल का ख्याल रखा जाता है. खेले थेरेपी का इस्तेमाल अक़्सर शैशवास्था यानि दो साल तक किया जाता है. लेकिन शुरुआती किशोरावास्था में भी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं जब स्वीकार्यता निर्णायक होती है और अपने आसपास दोस्तों और परिचितों का भी दबाव रहता है. जितना जल्दी खेल थेरेपी शुरू की जाए, उतना जल्दी बच्चे को इससे फ़ायदा होने लगता है. शुरुआती हस्तक्षेप से ये संभावना भी बढ़ जाती है कि बच्चा दूसरे बच्चों के साथ अपने इंटरैक्शन में सिखाया हुआ व्यवहार लागू कर पाते हैं.
  • काउंसलिंगः काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट, बच्चे और उसके परिवार को इस स्थिति से निपटने और अन्य ज़रूरी सेवाएँ हासिल करने में मदद कर सकता है.
  • विशेष रूप से निर्मित शैक्षिक कार्यक्रमः इनका इस्तेमाल उन बच्चों को सिखाने और प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है जिन्हें सीखने की समस्याएँ हैं या जो मानसिक रूप से दुर्बल हैं.

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दिमागी लकवे से पीड़ित बच्चे की देखभाल

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बच्चे का जन्म परिवार में उम्मीद, उत्साह, ख़ुशी और आनंद भी लाता है. जब माता पिता को पता चलता है कि उनके बच्चे को दिमागी लकवा है तो ये उन पर बहुत बुरी बीतती है. और उनका अपने बच्चे के भविष्य को लेकर नज़रिया बिल्कुल ही बदल जाता है और उम्मीदें ढहनें लगती हैं. इसमें भले की कुछ समय लग सकता है लेकिन उन्हें इस तरह की अप्रत्याशित परिस्थितियों से जूझने का तरीका सीखना ही चाहिए और उसके बाद ही आगे कोई क़दम उठाना चाहिए. इनमें पहला तो यही है कि उन्हें अपने बच्चे की स्थिति के बारे में स्पष्ट और सही समझ और जानकारी होनी चाहिए. क्योंकि इसी समझ के दम पर समय पर मदद शुरू की जा सकती है और जो भी उपयुक्त इलाज और थेरेपी है वो दी जा सकती है.

दिमागी लकवे से पीड़ित बच्चे का पालनपोषण करना और उसकी देखरेख करना एक कठिन और थका देने वाला काम भी हो सकता है. लेकिन एक उम्मीद भी है. दिमागी लकवे के बारे में सही ज्ञान हो तो आप अपने बच्चे की हरसंभव मदद करने के लिए पहले से तैयार रह सकते हैं.

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दिमागी लकवे के पीड़ितों के सामर्थ्य को अधिक से अधिक बढ़ाइये

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दिमागी लकवा एक नॉन-प्रोग्रेसिव बीमारी है और फिलहाल इसका कोई इलाज भी उपलब्ध नहीं है. दिमागी लकवे के शिकार लोगों के सामने अत्यधिक और भारीभरकम चुनौतियाँ आती हैं लेकिन वे अपनी क्षमताओं और योग्यताओं का भरपूर इस्तेमाल करना सीख जाते हैं और इस तरह अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर पाते हैं. इन दिनों, दिमागी लकवे से पीड़ित व्यक्तियों के लिए कई वैकल्पिक और सहायक उपकरण और सामग्रियाँ आ गई हैं जिनकी मदद से वे अपनी पढ़ाईलिखाई, अध्यापन पूरा कर सकते हैं, अपनी पसंद का क्षेत्र चुन सकते हैं और उसमे योगदान दे सकते हैं और खेल और मनोरंजक गतिविधियों में भी भाग ले सकते हैं.

इस बात का प्रमाण मौजूद है कि दिमागी लकवे वाले बच्चे शुरुआती आकलनों से कहीं आगे निकल जाते हैं. ऐसा बच्चा जो चलनेफिरने में असमर्थ पाया गया था वो भी पहाड़ चढ़ गया. कई ऐसे भी हैं जिनके बारे में सोचा जाता था कि कभी बोल ही नहीं पाएँगे वे न सिर्फ़ बोलते बतियाते हैं बल्कि उन्होंने किताबें भी लिख दी हैं और अपने बुद्धिमतापूर्ण शब्दों से औरों को भी प्रेरित करते है.

माँ-बाप या अभिभावक बच्चे को मनपंसद विषय या क्षेत्र चुनने में मदद कर सकते हैं. इस नाते उनका रोल अहम है. वे बच्चे को उसकी दिलचस्पी वाले क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और उन्हें जीवन जीने के लिए बुनियादी कौशलों में पारंगत कर सकते हैं ताकि बच्चा एक सुंदर ज़िंदगी जी सके.

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दिमागी लकवे के प्रकार

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दिमागी लकवा चार तरह का होता हैः

  • पक्षाघात, स्पैस्टिकः बड़ी संख्या में बच्चों पर असर डालने वाला ये सबसे सामान्य किस्म का दिमागी लकवा है. इसमें स्थिति हल्की या गंभीर दोनों तरह की हो सकती है.
  • इसके चार उपवर्ग हैं:
    • हेमीप्लीजिया, Hemiplegia, अर्धांगवात, एक ओर के अंगों का लकवाः इसमें एक तरफ़ के हाथ और पाँव को लकवा हो जाता है या उन्हें पक्षाघात होता है. आमतौर पर हाथ पर ज़्यादा असर पड़ता है.
    • पैराप्लीजिया, paraplegia, निम्न अंगों का पक्षाघातः इसमें दोनों पाँवों पर असर पड़ता है, हाथों पर बहुत कम या बिल्कुल असर नहीं पड़ता है
    • क्वाड्रप्लीजिया या टेट्राप्लीजिया, Quadriplegia/Tetraplegia , चतुरांगघातः इसमें दोनों हाथ और दोनों पाँव प्रभावित होते हैं.
    • डिप्लीजिया, Diplegia – ये पैराप्लीजिया और क्वाड्रप्लीजिया के बीच का एक विकार है, इसमें दोनों पाँव प्रभावित होते हैं.
  • ऐथिटोसिस या डिस्कीनिशिया, Athetosis/dyskinesia, वलन: इसमें ऐच्छिक पेशी संचालन में विकार पैदा हो जाता है. सिर, हाथ या पैर खुदबखुद हिलते रहते हैं. शरीर काँपता रहता है. भावनात्मक तनाव बढ़ने पर हिलनेडुलने की गति बढ़ जाती है और जब मरीज़ आराम कर रहा हो तो ये गति धीमी पड़ जाती है.
  • अटाक्सिया, ataxia- गतिविभ्रम: ये एक दुर्लभ विकार है और इसकी पहचान है कमज़ोरी, अनियंत्रित मूवमेंट, और अस्थिरता. चलने का ढंग अटपटा हो जाता है और कोई काम करते हुए मांसपेशियों पर ऐच्छिक नियंत्रण नहीं रह पाता है.
  • दिमागी लकवे के मिश्रित रूपः दिमागी लकवे के विभिन्न रूपों का मिलाजुला विकार, इसमें विकलांगता (स्पैस्टिसिटी) और ऐथिटोसिस का मिलाजुला विकार सबसे आमफ़हम है.

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