स्किज़ोफ़्रेनिया के साथ जीना

स्किज़ोफ़्रेनिया के साथ जीना

आपको स्किज़ोफ़्रेनिया हो गया है, ये बात आपकी ज़िंदगी पर हावी नहीं होनी चाहिए
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स्किज़ोफ़्रेनिया एक असामान्य बीमारी है. स्किज़ोफ़्रेनिया होने से मरीज़ पर और उसके परिवार पर भारी गुज़रती है. ज़्यादातर लोगों में दवाएँ शुरू करने के बाद बीमारी पर काबू पा लिया जाता है. लेकिन कई मामलों में उपचार के बावजूद बीमारी पूरी तरह से जाती नहीं है. इसका असर व्यक्ति की रोज़ाना कामकाज की क्षमता पर पड़ता है. कई बार परिवार सोचने लग जाता है कि उनका संबंधी वैसा नहीं रह गया है जैसा कि हुआ करता था.

व्यक्तियों और परिवारों के लिए स्किज़ोफ़्रेनिया से निपटना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. और वो स्थिति तो और भी बुरी हो जाती है जब समाज ख़राब ढंग से रिएक्ट करता है. “शिज़ोफ्रेनिक” का ठप्पा लग जाने भर से व्यक्ति को लगने लगता है कि उसकी पहचान नष्ट हो चुकी है.

स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति का ज़ेहन उतनी तेज़ी से काम नहीं करता है जितना कि बीमारी से पहले कर पाता था. शरीर में भी वे रिफ़्लेक्स काम नहीं करते जो बीमारी से पहले करते थे, ख़ासकर दवाओं की शुरुआत से. ये सारे बदलाव व्यक्ति में इच्छाशक्ति और प्रेरणा को प्रभावित कर सकते हैं.

अच्छी बात ये है कि इलाज उपलब्ध हैं, पिछले दशकों से बेहतर इलाज हैं और अधिकांश लोगों की हालत में इस इलाज से सुधार भी देखा गया है. हर रोज़ दवाएँ लेने से हो सकता है कि आपके ज़ेहन में ये ख़्याल बन जाए कि अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा. लेकिन ये महत्त्वपूर्ण है, अनिवार्य न भी हो कि खुद को शिज़ोफ़्रेनिक के रूप में न देखें या ये न मान बैठें कि आपको कोई मनोरोग है. स्किज़ोफ़्रेनिया तो जो आप हैं उसका एक हिस्सा भर है और उसे आप ख़ुद पर हावी न होने दें.

बीमारी के साथ गुज़र कर लेने का अर्थ ये है कि वो सब यथासंभव उतना ही और वैसे ही करते रहना जो बीमारी की पहचान से पहले किया जाता रहा था. अगर बीमारी आपकी सोचने की क्षमता को प्रभावित कर रही है, तो इंतज़ार कीजिए. दवाएँ सोच सकने में आपकी मदद करेंगी. बीमारी से जुड़ी किसी तरह की दुविधा को दवा या उपचार कुछ हद तक दूर कर सकता है. आपका लक्ष्य होना चाहिए ज़िंदगी की पटरी पर पहले की तरह लौट आना.

बीमारी में मददगार कुछ दवाओं से वजन बढ़ सकता है और दूसरी समस्याएँ भी आ सकती हैं- इसलिए स्वस्थ रहना बहुत ज़रूरी है. अगर आपने पहले कभी व्यायाम नहीं भी किया हो तो अब आप हर हाल में व्यायाम और स्वस्थ भोजन को अपने रूटीन का हिस्सा बना लीजिए. स्वस्थ दिखना और फ़िट महसूस करना आपका अपने प्रति अच्छे ख्याल बनाए रखने के लिए ज़रूरी है. हर रोज़ जागकर आप ख़ुद को ये याद दिलाएँ कि आप ही अपनी मदद कर सकते हैं और इससे आपका ध्यान बीमारी से हट पाएगा.

रूटीन बनाने से मदद मिलती है. बीमारी के शुरुआत में आपको रूटीन बनाना है कि आप उचित समय पर सोकर उठें, नियमित अंतराल पर अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक भोजन करें, निश्चित समय में अपनी दवाएँ लें, व्यायाम करें और घर के काम में अपनी सुविधा से हाथ बटाएँ, अपने परिवार के साथ समय बिताएँ और बहुत ज़्यादा समय तक अकेले न रहें. कभीकभी हो सकता है कि बीमारी की वजह से आप अपने हाइजीन और सफ़ाई का ध्यान न रख पाएँ. आपकी रूटीन में रोज़ाना स्नान भी शामिल होना चाहिए और खुद को संवारते भी रहना चाहिए जिससे आप साफ़ और स्वस्थ दिखें.

जब आप बेहतर महसूस करना शुरू करते हैं और आपका मनोचिकित्सक आपसे कहता है कि आप अपने काम में लौट सकते हैं, तो आप एक ऐसा रूटीन अपनाएँ जिससे आप अपना कार्य शुरू कर सकें और ऊपर लिखी गतिविधियाँ भी कर सकें. ऐसी कोई भी सलाह नहीं है जो किसी सामान्य अवसर पर या सामान्य व्यक्ति के लिए न हो, चाहे बीमारी हो या न हो. सिर्फ़ दवाओं की बात ही तो अलग है. बाकी तो सबकुछ वैसा ही करना है जैसा हर कोई करता है और हर किसी को करना ही चाहिए.

परिवार में ऐसा कोई ज़रूर होगा जिस पर आप सबसे ज़्यादा भरोसा करते हों, जो दुविधा या भ्रम की स्थिति में आपकी मदद कर सके कि वास्तविकता क्या है और क्या नहीं. जब तक आप अपने रूटीन में न ढल जाए तब तक आप दवाएँ याद रखने के लिए अपने परिवार की मदद ले सकते हैं.

कभीकभी, बीमारी से पहले आप जो नौकरी करते थे, वो आपके लिए कष्टपूर्ण हो सकती है. आप इस बात से मन छोटा न करें अगर आपको अपनी नौकरी बदलने या कुछ और ऐसा जो कम तनाव भरा हो वैसा काम करने की सलाह दी जाए. ये बदलाव कम समय के लिए हो सकता है जब तक कि आप ये खुद न महसूस कर लें कि अब आप ज़्यादा कष्ट सहन करने योग्य हो गए हैं. इन दिनों उपलब्ध कई किस्म की नौकरियों में रात की पाली में काम करना होता है. आपको ऐसी नौकरियों से भी फिलहाल दूर रहना चाहिए. अच्छी नींद आपकी सेहत में सुधार और स्थिरता का एक बड़ा हिस्सा है.

स्किज़ोफ़्रेनिया के साथ रह सकने का अर्थ ये भी हो सकता है कि आपको पहले की अपेक्षा ज़्यादा सुनियोजित और सुगठित होकर रहने की ज़रूरत पड़ेगी. इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि आप मदद भी माँगे जो कि पहले आपने कभी न माँगी हो. बीमारी को स्वीकार करने से आप इससे निकल आने की ओर ही बढ़ेंगे. याद रखें, स्वीकार करने का अर्थ ये नहीं है कि आप बीमारी के आगे झुक गए या उसको आपने अपने ऊपर हावी होने दिया है.

आपके आसपास लोग ये नोट कर सकते हैं कि आपको अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत है या ऐसे अवसर भी आए थे जब आप अपने आपे में नहीं थे. वे जानने की कोशिश कर सकते हैं कि हुआ क्या था. सीधे तौर पर कहें तो इस बात से उन्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए. ये तय करने का काम आपका है कि आपको क्या हुआ था- इस बात को जानने का हक किसे है किसे नहीं. कुछ लोग वास्तव में परवाह करते हैं और आपकी मदद करना चाहते हैं और आप उनसे अपनी परेशानी बताना चाह सकते हैं. दूसरी तरफ़, आप हो सकता है कि अपने निकटस्थ पारिवारिक सदस्य के अलावा किसी को भी कुछ न बताना चाहें. ये विकल्प आपका अपना है.

आप कैसा महसूस करते हैं इस बारे में अपने मनोचिकित्सक से लगातार बात करते रहें. डायबिटीज़ या ब्लडप्रेशर के मरीज़ भी ऐसा ही करते हैं, अपने फ़िजीशियन के संपर्क में रहते हैं. अन्य बीमारियों की तरह, ऐसा समय भी आ सकता है जब आप सब कुछ सही कर रहे हों तब भी आपको अच्छा न महसूस हो. तो इस बारे में भी अपने मनोचिकित्सक को बताइए.

स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित होना, आसानी से स्वीकार कर लेने या खारिज कर लेने वाली चीज़ नहीं है. लेकिन अपनी सामर्थ्य का उपयोग करते हुए और अपने प्रियजनों की सामर्थ्य का इस्तेमाल करते हुए हर रोज़ कुछ छोटे क़दम, आपको आगे बढ़ने में मदद करेंगे और हो सकता है उन सब चीज़ों को भी पार करने में मदद करें जिनके बारे में आप सोचते हैं कि आपकी सीमा उतनी ही है.

डॉ सबीना राव, निमहान्स के मनोरोग विभाग में स्पेशलिस्ट ग्रेड मनोचिकित्सक हैं.

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