स्किज़ोफ़्रेनिया

स्किज़ोफ़्रेनिया

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स्किज़ोफ़्रेनिया क्या है?

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स्किज़ोफ़्रेनिया एक गंभीर मनोविकार है जिसमें बहुत सारे असामान्य व्यवहार परिलक्षित होते हैः आवाज़ें सुनना (मतिभ्रम) और विकृत या ग़लत अनुभूति, बहुधा अजीब मान्यताएं. शिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोग वास्तविकता और काल्पनिक घटनाओं में फ़र्क नहीं कर पाते हैं. ये असामान्य अनुभव व्यक्ति को वास्तविक महसूस होते हैं जबकि दूसरों को लगता है कि उक्त व्यक्ति अपनी ही दुनिया में खोया हुआ है.

बीमारी के लक्षण के आधार पर, स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति वास्तविकता को कुछ इस तरह से समझता या उसकी व्याख्या करता है जो दूसरों को असामान्य नज़र आती है. ऐसे व्यक्ति ये समझ सकते हैं कि लोग उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं या उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहते हं और वे ख़ुद की हिफ़ाजत या बचाव के लिए ऐसी हरकतें करने पर विवशता महसूस कर सकते हैं ज दूसरों की समझ में नहीं आती है- उनके लिए वो अजीबोग़रीब व्यवहार होता है- मिसाल के लिए मरीज़ अपने घर के सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लेता है क्योंकि उसके मन में डर बैठ जाता है कि पड़ोसी उसे या उसके परिवार के सदस्यों को मारने की कोशिश कर सकते हैं.

स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित लोग अपने व्यवहार में आए बदलावों को नोटिस नहीं कर पाते हैं. उस बारे में वे अंजान रहते हैं. वे ये बात कभी नहीं मानेंगें कि उनका व्यवहार अलग और अजीब है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनके बाहरी और अंदरूनी यथार्थ की रेखाएं धूमिल हो जाती हैं और वे दोनों में अंतर करने में असमर्थ हो जाते हैं. पूरी पहचान या निरीक्षण की ये कमी उन्हें परिवार और दोस्तों से अलगथलग कर देती है और वे चिकित्सा सहायता लेने से भी इंकार कर देते हैं. 

Q

स्किज़ोफ़्रेनिया क्या नहीं है

A

हममें से कई लोगों के लिए स्किज़ोफ़्रेनिया शब्द से एक ऐसे व्यक्ति की छवि ज़ेहन में उभरती है जो अस्तव्यस्त सा दिखता है, उसके बाल बिखरे हुए होते हैं. कपड़े फटे हुए होते हैं, ऐसा व्यक्ति जो किसी कार्य पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और जिसका व्यवहार अप्रत्याशित और हिंसक है, जो कभीकभार यूएफ़ओ यानी दूसरे ग्रहों से आईं उड़नतश्तरियों से बात कर लेता है, या ऐसी हरकत करता है जैसे उस पर किसी का साया पड़ा हो.

फ़िल्मों में भी स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्तियों को ऐसे झक्की विद्वान या विक्षिप्त या पागल और उग्र की तरह दिखाया जाता है जिन्हें बाकी बची ज़िंदगी के लिए किसी पागलखाने में बंद कर दिए जाने की ज़रूरत है. भारत में, स्किज़ोफ़्रेनिया वाले व्यक्ति की घिसीपिटी छवि या स्टिरियोटाइप ये है कि वो पागल या सनकी होगा, बेक़ाबू साइकोपैथ होगा जो ख़ुद के लिए भी और अपने आसपास सब लोगों के लिए भी ख़तरा होगा. डॉक्टरो का कहना है कि इस विकार को लेकर मीडिया-चित्रण या वर्णन, सही नहीं होते हैं.

Q

स्किज़ोफ़्रेनिया कैसे होता है?

A

स्किज़ोफ़्रेनिया की चपेट में व्यक्ति आमतौर पर किशोरावस्था या शुरुआती युवाकाल में आता है. ये दशा धीरे धीरे विकसित होती है. सप्ताहों की अवधि लग जाती है या महीनों की. स्किज़ोफ़्रेनिया की शुरुआती अवस्थाओं में दिखने वाले लक्षण, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अन्य मुद्दों जैसे, तालमेल की समस्याएं, अवसाद और घबराहट जैसे होते हैं.

बीमारी की शुरुआती अवस्था में व्यक्ति नेगेटिव यानी नकारात्मक लक्षण दिखा सकता है जैसे अकेले में समय बिताना, अंतर्मुखी, एकांतिक, गैर-मिलनसार या अन्यमनस्क हो जाना, दोस्तों और परिवार से भी अलग रहना. ऐसे व्यक्ति रोज़ाना की गतिविधियों में दिलचस्पी खो देते हैं और अपने मनपसंद के कामों में भी उनका मन नहीं लगता है. वे अपने स्वास्थ्य के प्रति और व्यक्तित्व निखारने के प्रति भी उदासीन हो जाते हैं. जबकि इन मामलों में वे पहले बहुत सजग रहते होंगे.

उनका व्यवहार भी बदल जाता है- वे बिना किसी वजह के अपने में ही मुस्कराते या हंसते रह सकते हैं. अगर समस्या की पहचान न की जाए और इसका इलाज न किया जाए तो ये गंभीर हो सकती है और व्यक्ति मौखिक और शारीरिक रूप से उग्र हो सकते हैं.

दुनिया भर में, स्किज़ोफ़्रेनिया आबादी के क़रीब एक फ़ीसदी हिस्से को प्रभावित करता है और ये पुरुषों और महिलाओं दोनों को होता है. 15 से 25 साल की उम्र के दरम्यान ये होता है, हालंकि कई मामलों में इस आयु वर्ग से आगे के लोगों में भी ये विकार पनप सकता है. 

Q

स्किज़ोफ़्रेनिया के लक्षण क्या हैं?

A

स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति हर समय विचित्र तरीके से व्यवहार नहीं करता रहता है. लक्षण अप्रत्याशित होते हैं, कभी भी प्रकट हो जाते हैं और कभी ग़ायब हो जाते हैं. असामान्य अनुभव की तीव्रता में भी उतार चढ़ावा आता रहता है. स्किज़ोफ़्रेनिया के सामान्यतम लक्षण इस तरह से हैं:

  • मतिभ्रम: ऐसे लोग या चीज़ें देखना जो मौजूद नहीं है या जिनका अस्तित्व नहीं है. जो नहीं है व्यक्ति उसका स्वाद लेने, छूने या सूंघने का अनुभव भी करता है. कई लोग ये भी कहते हैं कि उन्हें कुछ आवाज़ें सुनाई दे रही हैं जो उनसे बात कर रही हैं, उन्हें आदेश दे रही हैं या उन्हें भलाबुरा कह रही हैं

  • भ्रांति या भुलावा: कुछ ऐसी धारणाएं बन जाती हैं जो गलत और अतार्किक साबित हो जाने के बाद भी बने रहते हैं. कुछ लोग मानते हैं कि उनका कोई परिचित उन्हें नियंत्रित करने या ज़हर देने की कोशिश कर रहा है. कुछ लोगों को महसूस होता है कि कोई उनसे टीवी के गुप्त कोड के ज़रिए बात कर रहा है. ऐसे व्यक्तियों को महसूस होता है कि हर कोई उनके बारे में बात कर रहा है और वे हमेशा दूसरों पर संदेह करते रहते हैं. दुर्लभ मामलों में, व्यक्ति को ये महसूस हो सकता है कि वो कोई सेलेब्रिटी, नामचीन या ऐतिहासिक शख़्सियत है.

  • असंगठित विचार: कभीकभार, व्यक्ति स्पष्ट रूप से सोचने में समर्थ नहीं हो पाता है. उनकी बातें अतार्किक, अप्रासंगिक और बेसिरपैर की लगती हैं और उनके आसपास के लोगों के लिए इन बातों का कोई औचित्य नहीं होता, उन्हें ये बातें बेकार लगती हैं. पीड़ित व्यक्ति वाक्य पूरा होने से पहले ही अचानक रुक सकता है, सवालों के उटपटांग जवाब देने लगता है और कई मौक़ों पर वो ऐसे अजीब शब्द गढ़ लेता है जिनका कोई अर्थ नहीं होता.

ऊपर जिन लक्षणों का वर्णन किया गया है वे सकारात्मक यानी पॉज़िटिव लक्षण कहे जाते हैं.

  • संज्ञानात्मक समस्याएं: व्यक्ति के सोचने के तरीके में विकृति आ जाने से वो साधारण कामों पर भी लंबी अवधि के लिए ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं. ऐसे व्यक्ति दूसरे लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, उन्हें इसमें मुश्किल आती है. रोज़मर्रा के रूटीन कामों को भी वे भूल जाते हैं. आमतौर पर इसका असर उनकी पढ़ाईलिखाई और अन्य कार्यों के प्रदर्शन पर पड़ता है जो कमज़ोर रह जाते हैं. बीमारी की शुरुआती अवस्थाओं में ये समस्या देखी जाती है लेकिन परिवार और दोस्त बीमारी की पहचान करने में नाकाम हो जाते हैं क्योंकि आमतौर पर उन्हें बीमारी के बारे में जानकारी या कोई ज्ञान नहीं होता है.

  • सामान्य व्यवहार में व्यवधान:  व्यक्ति अन्य लोगों के साथ समय बिताने से परहेज करने की कोशिश कर सकता है यानी वो सबसे कटा कटा रहना चाहता है. और अकेले रहना ही पसंद करता है. वो एकांगी, सपाट ढंग से बोलते हैं. कई बार एक ही अक्षर बोलते हैं. उनके चेहरे के हावभाव मास्क जैसे होते हैं, यानी उनके चेहरे भावहीन और स्थिर बने रहते हैं, उनमें भावनाएं नहीं दिखतीं हैं.

Q

साइकोसिस और साइकोटिक एपीसोड (मनोरोगी/मनस्तापी अवस्थाएं) किन्हें कहते हैं?

A

साइकोसिस यानी मनोविकृति या मनोविकार शब्द का इस्तेमाल ज़्यादातर स्किज़ोफ़्रेनिया और कुछ अन्य गंभीर मानसिक गड़बड़ियों के संदर्भ में किया जाता है. साइकोसिस से आशय एक ऐसी मनोदशा से है जिसमें व्यक्ति का वास्तविकता से नाता टूट जाता है (यानी वो वास्तविक और काल्पनिक घटनाओं के बीच फ़र्क नहीं कर पाता है). इसका असर उसके मूड और व्यवहार पर पड़ता है जिसकी वजह से वो अवसादग्रस्त, एकांतिक और ग़ैर-मिलनसार हो जाता है. स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति आत्मभ्रम या मतिभ्रम का अनुभव करने लगता है जिसकी वजह से भय, दुश्चिंता, संदेह, गुस्सा और अवसाद जैसे लक्षण प्रकट हो जाते हैं.

साइकोटिक एपिसोड यानी मनस्ताप या मानसिक रुग्णता एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति को तीव्र भ्रांतियां या आत्मभ्रम होने लगता है. इन एपिसोडो यानी अवस्थाओं की गंभीरता और आवृत्ति हर व्यक्ति में अलग अलग होती है. कई मौकों पर तो व्यक्ति इन लक्षणों से बिल्कुल बेअसर या सामान्य नज़र आता है.

कभीकभार, व्यक्ति हिंसक या उग्र हो सकता है और ख़ुद के लिए या अन्य लोगों के लिए ख़तरा भी पैदा कर सकता है. ऐसे मामलों में, अस्पताल, मजिस्ट्रेट के आदेश के साथ, ऐसे व्यक्ति की देखरेख करने वालों को उस व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध भर्ती करने की अनुमति दे देते हैं.

अगर आपको लगता है कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है और आप मरीज़ या उसके परिवार के प्रति सरोकार रखते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें.

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स्किज़ोफ़्रेनिया की वजह क्या है?

A

चिकित्सा क्षेत्र के शोधकर्ताओं को स्किज़ोफ़्रेनिया की असल वजह का पता नहीं चल पाया है. शोध अब ये बताते हैं कि इस विकार का संबंध मस्तिष्क की असामान्य संरचना से है. और भी कुछ वजहें हैं जिनके बारे में माना जाता है कि वे व्यक्ति में स्किज़ोफ़्रेनिया का ख़तरा पैदा कर सकती हैं:

  • आनुवंशिक या जेनेटिक कारक: अगर किसी व्यक्ति के मातापिता या भाईबहन स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित हैं तो उसे भी स्किज़ोफ़्रेनिया होने का ख़तरा हो सकता है

  • मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन

  • गर्भावस्था के दौरान: अगर मां को पर्याप्त पोषण और आहार न मिल पाए या गर्भावस्था के दौरान वो किसी वायरल बीमारी की चपेट में आ जाए तो बच्चे को ऐसी अवस्था में भी स्किज़ोफ़्रेनिया हो सकता है.

अत्यधिक तनाव और ड्रग और शराब का अत्यधिक सेवन स्किज़ोफ़्रेनिया के मौजूद लक्षणों को और बिगाड़ सकता है.

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स्किज़ोफ़्रेनिया की पहचान कैसे की जाती है?

A

स्किज़ोफ़्रेनिया का कोई एक अकेला टेस्ट नहीं है. मरीज़ में विभिन्न लक्षणों की रेंज नज़र आने की वजह से, मनोचिकित्सक गहन परीक्षण और चिकित्सा जांच के बाद मनोविकार की पहचान करता है. जांच के दौरान मनोचिकित्सक, मरीज़ की व्यवहारजन्य और जैविक क्रियाशीलता (नींद न आना, खाने और घुलनेमिलने में अरुचि). मरीज़ के व्यवहार में आए बदलावों की जानकारी, परिवार या देखरेख करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों से भी इकट्टा की जाती है.

किसी व्यक्ति को स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित तभी कहा जाता है या उसकी पहचान स्किज़ोफ़्रेनिया के मरीज़ के रूप में तभी की जाती है जब कम से कम एक महीने तक उसमें ऊपर बताए गए लक्षण बने रहें.

अगर आपको संदेह है कि आपके परिचित किसी व्यक्ति को स्किज़ोफ़्रेनिया है तो सबसे अच्छा यही है कि डॉक्टर से संपर्क करें. अगर कोई व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विकारों जैसे नशे की लत, द्विध्रुवीय विकार (बाइपोलर डिसऑर्डर) और अवसाद से पीड़ित है तो भी ये भ्रम हो सकता है कि कहीं उसे स्किज़ोफ़्रेनिया तो नहीं है. क्योंकि उनमें भी आत्मभ्रम, मतिभ्रम, भ्रांतियां और सामाजिक अलगाव के लक्षण पैदा हो जाते हैं जो कि स्किज़ोफ़्रेनिया के बुनियादी लक्षण माने जाते हैं. सिर्फ़ एक मनोचिकित्सक ही बेहतर पहचान कर सकता है कि व्यक्ति को स्किज़ोफ़्रेनिया है या वो किसी अन्य विकार से पीड़ित है.

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स्किज़ोफ़्रेनिया का इलाज

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यूं तो स्किज़ोफ़्रेनिया का कोई ज्ञात उपचार नहीं है, फिर भी कई ऐसे उपचार या इलाज हैं जिनकी मदद से व्यक्ति स्वतंत्र रूप से और सामान्य रूप से अपना जीवन बसर कर सकता है. स्किज़ोफ़्रेनिया एक क्रोनिक विकार है और उस पर काबू पाने के लिए, डायबिटीज़ या ब्लडप्रेशर (रक्तचाप) की तरह, कुशल और उचित प्रबंधन की ज़रूरत है.

इलाज का लक्ष्य सिर्फ़ लक्षणों पर नियंत्रण पाना नहीं है बल्कि ये भी सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति एक क्रियाशील और सामान्य जीवन बिताने लायक हो सके.

“नियम ये है कि स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित एक तिहाई लोग सामान्य जीवन में लौट आते हैं, उनमें से एक तिहाई सामान्य से ज़रा कम के स्तर पर क्रियाशील जीवन में लौटते हैं और वे स्थितियों से निपटने में सक्षम होते हैं, शेष एक तिहाई लोगों को क्रियाशील या सामन्य जीवन बिता पाने में ज़्यादा सहायता की ज़रूरत पड़ती है.

कोई ये निश्चित अनुमान नहीं लगा सकता कि मरीज़ कब पूरी तरह से सामान्य हो पाएगा. इसका सूत्र टिका है शुरुआती पहचान परः जितना जल्दी आप समस्या की शिनाख़्त कर लेंगे और बीमारी की पहचान पक्की हो जाएगी तो आपका इलाज भी उतना ही गंभीरता और मुस्तैदी से चलेगा, और इसी आधार पर अच्छे नतीजे की संभावना बढ़ जाएगी.

एक योजनाबद्ध उपचार का पालन करना सुधार की कुंजी है,” ये कहना है कि मनोचिकित्सक डॉक्टर एस कल्यानसुंदरम का. वो रिचमंड फ़ैलोशिप सोसायटी की बंगलौर शाखा के एमडी और सीईओ हैं.

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मनोरोग निरोधी दवाएं और ईसीटी (ECT)

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मनोविकार के लक्षणों और उसकी वृद्धि के आधार पर डॉक्टर दवा, थेरेपी और पुनर्वास कार्यक्रम के मिलीजुली उपचार योजना की सलाह देता है. इसमें दी जाने वाली दवाओं को ऐंटीसाइकोटिक या मनोरोग निरोधी दवाएं कहा जाता है जो पोज़िटिव लक्षणों को कम करने में मददगार होती हैं जैसे मतिभ्रम, भ्रांति, और पेरानॉइआ (पीड़नोन्माद या संविभ्रम). कुछ मामलों में मनोचिकित्सक एलेक्ट्रो कन्वलसिव थेरेपी (ईसीटी) कराने का परामर्श दे सकता है.

“ऐंटी साइकोटिक दवाओं और उनके साइड अफ़ेक्ट के बारे में बहुत से मिथक या धारणाएं प्रचलित हैं. लेकिन आज के समय में इस्तेमाल होने वाली ऐंटी साइकोटिक दवाएं इच्छित प्रभाव वाली यानी असरदार होती हैं और इनके न्यूनतम साइड अफ़ेक्ट होते हैं, जैसे मरीज़ को अकड़न और कंपन का अनुभव हो सकता है. हम ज़रूरत पड़ने पर साइड अफ़ेक्ट से निपटने के लिए भी दवाएं देते हैं,” ये कहना है कि डॉक्टर लक्ष्मी वी पंडित का केआईएमएस, बंगलौर में प्रोफ़ेसर हैं.

आम धारणाओं के विपरीत, ईसीटी एक सुरक्षित पद्धति है और प्रशिक्षित पेशेवर इसे अंजाम देते हैं. “ये सबसे सुरक्षित थेरेपी है जो हम मरीज़ों को दे सकते हैं जो बहुत बुरी तरह से पीड़ित है या जिन पर दवाओं का असर नहीं होता है. थेरेपी, एनेस्थेसिया के ज़रिए दी जाती है. ये हल्की होती है और पोज़िटिव लक्षणों में राहत पहुंचा सकती है. मरीज़ को ये किसी तरह का तनाव या तक़लीफ़ भी नहीं पहुंचाती,” ये कहना है डॉ पंडित का.

स्किज़ोफ़्रेनिया के सुचारू प्रबंधन के लिए एक समग्र उपचार पद्धति की ज़रूरत पड़ती है और दवा इसका बस एक पहलू है. देखरेख करने वालों की सहायता और योजनाबद्ध पुनर्वास भी मरीज़ की हालत में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाते हैं. 

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति की देखरेख

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित अपने किसी प्रियजन की देखरेख बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकती है. अपने प्रियजन का अजीबोगरीब और अप्रत्याशित व्यवहार देखकर आपको धक्का लगता है और आपका मन ख़राब हो जाता है. देखरेख करने वालों को- ख़ासकर मातापिता या अभिभावक को जब अपने प्रियजन को स्किज़ोफ़्रेनिया होने का पता चलता है तो उन्हें दुख के साथ साथ अपराधबोध या ग्लानि भी होती है. ऐसे मौक़ों पर सामान्य प्रतिक्रियाएं यही होती हैं: “मैं ही क्यों?” “मुझसे क्या गल्ती हो गई?” “क्या अभिभावक के तौर पर हम बुरे या मैं बुरा या बुरी हूं?”

अगर आपको संदेह है कि आपके किसी प्रियजन को स्किज़ोफ़्रेनिया है तो उसके व्यवहार में बदलावों को देखिए और डॉक्टर को पूरी सूचना दीजिए. डॉक्टर से बात कीजिए और पहचान के बारे में पूरी जानकारी ले लीजिए, पहचान के बिंदुओं को भलीभांति समझ लीजिए. अगर आपको अपने सदमे, अफ़सोस या अपराधबोध से निकलने के लिए सहायता की ज़रूरत है तो अपने डॉक्टर से किसी सहायता समूह या काउंसलर के बारे में पूछिए. आप अगर इस मामले में सही जानकारी और सूचना से लैस होंगे और आप जिस मनोदशा से गुज़रते हैं उसके लिए आपको उचित सहायता मिल जाए तो मरीज़ की भी अच्छी तरह देखरेख कर पाएंगे.

डॉक्टरो का कहना है कि मरीज की हालत में सुधार के लिए भावना एक बड़ी भूमिका निभाती है. मरीज़ चाहे अनचाहे उन तरीकों में भावनात्मक सूत्रों को खोज लेता है जिनके ज़रिए परिवार बीमारी से निपटता है. मरीज़ की हालत में जल्द सुधार होगा अगर परिवार उसे सहायता देता है और उचित देखभाल करता है. अगर परिवार व्यक्ति को उसकी बीमारी के लिए कोसता है या उसकी आलोचना करता रहता है तो व्यक्ति को सुधार के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ सकता है. और ये भी हो सकता है कि बाज़दफ़ा ऐसी आलोचनाओं और आरोपों से क्षुब्ध होकर स्वास्थ्य लाभ करता मरीज़ फिर से बीमारी में लौट जाए.

देखरेख करने वाले के रूप में, ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि व्यक्ति में लक्षणों के प्रति गहरी समझ नहीं हो सकती है- वे नहीं जानते हैं या समझ नहीं पाते हैं कि उनका व्यवहार सामान्य क्यों नहीं है. उनका दिमाग उन्हें जो संदेश भेजता है उनसे वे समझे हैं कि मतिभ्रम और भ्रांति वास्तविक अनुभव हैं. इस वजह से व्यक्ति इलाज का भी विरोध करता है क्योंकि उन्हें लगता है कि वे तो बिल्कुल भलेचंगे हैं और उनमें कोई गड़बड़ नहीं है. वे नहीं जानते कि वे मानसिक रूप से बीमार हैं. देखरेख करने वाले कुछ लोग, मरीज़ के प्रति अपने सरोकार के चलते उसे ये बता सकते है कि उसकी भ्रांतियां सही नहीं है और उसे मदद लेने के लिए ज़बर्दस्ती करते हैं. इस वजह से मरीज़ देखरेख करने वालों से छिटक जाता है, और भ्रांति से पैदा होने वाले भय और सनक उसमें और बढ़ जाती है. आप अपने प्रियजन की मदद इन तरीक़ों से कर सकते हैं:

  • उन्हें उनके अनुभवों के बारे में पूछिए (मतिभ्रम, भ्रांति आदि)

  • ये मानिए कि अनुभव उनके लिए वास्तविक हैं और इनसे उन्हें परेशानी होती है (बजाय कि उनकी धारणा को खारिज करने के)

  • इलाज से जुड़े फ़ैसले करने के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करें और मदद करें.

  • मरीज़ के लक्षणों और इलाज का रिकॉर्ड रखें क्योंकि मरीज़ किसी ज़रूरी सूचना को याद रख पाने या बता पाने में असमर्थ होता है. और सूचना के लिए डॉक्टर परिवार पर निर्भर करते हैं.

  • अपनी चिंताओं के बारे में परिवार के अन्य सदस्यों से बात करें और जब मरीज़ का इलाज चल रहा हो तो उस दौरान परिवार के अन्य लोग कैसे आपस में एक दूसरे का साथ देते रह सकते हैं.

  • अपने और अपने प्रियजन के लिए भावनात्मक समर्थन की ख़ातिर काउंसलर से बात करें या किसी स्थानीय सहायता समूह में शामिल हो जाएं. स्किज़ोफ़्रेनिया देखरेख करने वालों को भी गहरा तनाव और दुख पहुंचाता है, अपनी ज़रूरतों का भी ध्यान रखें क्योंकि ऐसा करते रहने से आप मरीज़ की बेहतर तरीके से देखरेख कर पाएंगें.

  • मरीज़ में रिलैप्स के संकेतों को देखते रहें, यानी बीमारी के लौटने की आशंका के संकेतों को देखें (आपका डॉक्टर एक व्यापक सूची आपको दे सकता है). अगर कोई मनस्तापी अवस्था आती है तो उससे पहले ही आप मदद पा सकते हैं. शोध बताते हैं कि रिलैप्स से व्यक्ति के स्वास्थ्य में गिरावट आ जाती है और सुधार की प्रक्रिया भी बाधित हो जाती है जिससे हालत में सुधार में और देरी हो सकती है. इनके अलावा रिलैप्स से दिमाग में कुछ गलत परिवर्तन भी आ सकते हैं.

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