स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति से बातचीत

स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति से बातचीत

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति से बात करना बात करना मुश्किल नही है

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स्किज़ोफ़्रेनिया जैसे मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति से बात करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण लग सकता है. इसमें कई ऐसी चीज़ें हैं जो अटपटी लगती हैं और उन्हें लेकर संकोच भी होता है. ‘ मैं इस बारे में निश्चित नहीं हूँ कि क्या कहूँ ’, ‘मैं बात तो कर लूँ लेकिन कहीं ये दख़लअंदाज़ी तो नहीं होगी?’ मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के साथ इतने लांछन जुड़ जाते हैं तो ऐसे में कहीं पीड़ित व्यक्ति को ये बुरा न लगे कि मैं उसकी बीमारी के बारे में जानता या जानती हूँ? वो अगर बुरा माने तो क्या होगा? मैं ऐसा क्या कहूँ जिससे वो नाराज़ न हो? मैं उसे नाराज़ नहीं करना चाहता/चाहती हूँ...अगर उनकी प्रतिक्रिया को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई तो क्या होगा?’ अपने डर और आशंकाओं की वजह से हम मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति के साथ अपने व्यवहार प्रदर्शन में अतिरिक्त रूप से सजग और अति संवेदनशील हो जाते हैं.

देखरेख करने वाले के तौर पर, परिवार के सदस्य, दोस्त या सहकर्मी के रूप में आप स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति की मदद कर सकते हैं, उसके साथ समय बिताकर और उनके साथ सामान्य संवाद करते हुए.

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति से बात करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक मददगार माहौल की ज़रूरत होती है. व्यक्ति के मित्र और परिजन ऐसा माहौल बना सकते हैं. क्योंकि उन्हें विकार के बारे में जानकारी होती है और वे व्यक्ति की ज़रूरत पड़ने पर मदद कर सकते हैं.

 

स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति बीमारी की वजह से अलगथलग पड़ जाता है. वह समाज से कट जाता है. उसके लिए समस्या की शिनाख़्त करना और मदद माँग पाना अत्यधिक कठिन हो जाता है. इस मौके पर व्यक्ति को ज़्यादा सक्रिय और क्रियाशील जीवन हासिल करने के लिए बाहरी उद्दीपन की ज़रूरत होती है. इसीलिए संचार या संवाद- चाहे वो व्यवहारिकताओं के बारे में हो या विशुद्ध संपर्क- सुधार की दिशा में बेहद अहम भूमिका निभाता है.

लोगों से संपर्क रखना, स्वस्थ संवाद रखना और व्यस्त रहना स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति के लिए अपने अलगाव से निजात पाने के लिए काफ़ी मददगार साबित हो सकता है. ऐसा व्यक्ति अपने दोस्तों और परिजनों से कई कारणों के चलते घुलनामिलना या बात करना नहीं चाहता है. जब कोई उसके पास बात करने के लिए जाता है तो ये कोशिश लाभकारी होती है.

पीड़ित व्यक्ति हताशा और बेबसी की भावनाओं से घिरा हुआ हो सकता है और वो हो सकता है नहीं जानता हो कि किसके पास जाए, किससे बात करे. ऐसी स्थिति में, ये बात उसे बड़ी मदद पहुँचा सकती है कि उससे बात करने के लिए ऐसा कोई ज़रूर उपलब्ध है जो वास्तव में उसकी सहायता करना चाहता है. 

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मैं पीड़ित व्यक्ति के नज़दीक कैसे जाऊँ?

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आप पीड़ित व्यक्ति से निकटता बढ़ाने के लिए उसे बता सकते हैं कि आप उसके बारे में चिंता करते हैं और उन्हें हर संभव मदद करने के लिए तत्पर हैं. ये बात कहने का एक सरल और सहज तरीका ये हो सकता है कि आप कहें, “मैं जानता/जानती हूँ कि तुमने बहुत कुछ झेला है और मैं चाहता/चाहती हूँ कि तुम ये जानो कि मुझे तुम्हारी परवाह है और तुम्हारी मदद करने को तत्पर हूँ....”

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मुझे किस तरह की प्रतिक्रिया की अपेक्षा करनी चाहिए?

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति उस रूप में प्रतिक्रिया नहीं दे सकता जैसी हम सामान्य बातचीत में अपेक्षा करते हैं. हो सकता है कि आपकी बात का पीड़ित व्यक्ति कोई जवाब ही न दे, ख़ामोश रहे या एक अक्षर में जवाब दे. कुछ मामलों में, व्यक्ति कह सकता है कि आप जो डिस्कस करना चाहते हैं उसमें उनकी अत्यधिक दिलचस्पी है लेकिन उसके चेहरे के हावभाव और आवाज़ इस बात से मेल नहीं खाएँगें. यानि वो भावहीन और सपाट बना रहेगा.

 

आप दुविधा में पड़ सकते हैं और समझने की कोशिश कर सकते हैं कि पीड़ित का उत्साह वास्तविक है या नहीं. इस बात पर हैरान हो सकते हैं कि व्यक्ति इतने मिश्रित संकेत क्यों दे रहा है. ये समझना और स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है कि व्यवहार में ये बदलाव बीमारी की वजह से आए हैं. आपको धैर्य रखने की ज़रूरत पड़ सकती है और संतोषजनक प्रतिक्रिया का इंतज़ार करना पड़ सकता है.

ये कोशिश कीजिए कि आपकी अपनी असहजता, संकोच या घबराहट ( कि क्या करें और क्या कहें) इस मामले में सामने नहीं आनी चाहिए, क्योंकि इससे व्यक्ति के लिए बातचीत में शामिल होना या उससे जुड़ पाना कठिन होता जाएगा.

याद रखिए स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति भावनाओं का इज़हार नहीं कर पाता लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि वह तीव्र भावनाओं की अनुभूति से वंचित है. इसी तरह, हो सकता है कि वे ज़ोर से या खुलकर न बोल पाए लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि उनकी अपनी कोई राय ही नहीं है.

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बातचीत की पहल

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पीड़ित व्यक्ति से ऐसे मिलिए जैसे आप किसी सामान्य व्यक्ति से मिलते हैं. बीमारी की वजह से उनमें कुछ व्यवहारजन्य अटपटापन हो सकता है. उनके साथ सहजता से घुलिए मिलिए.

बातचीत की शुरुआत किसी इधर उधर के विषय से कीजिए. मित्र या सहकर्मी के रूप में ये थोड़ा अटपटा होगा कि आप व्यक्ति के स्वास्थ्य या भावानात्मक मुद्दों पर बातचीत की शुरुआत करें. आप बातचीत को गतिशील, सक्रिय और हल्का बनाए रख सकते हैं (काम के बारे में और दूसरे व्यवहारिक मुद्दों पर बात करते रहिए). उससे ऐसी बातें कीजिए जिनका संबंध उस व्यक्ति की बीमारी और उसके संघर्ष से नहीं है.

पहल करने की कोशिश कीजिए और व्यक्ति को ये यक़ीन दिलाइए कि आप उसकी मदद के लिए उसके पास हैं. इसी दौरान, अपनी मदद को लेकर बहुत ज़ोर मत दीजिए या अतिशय उत्साह का प्रदर्शन मत कीजिए, उसे कुछ मौका और सोचने के लिए समय दीजिए. अपने इरादों के बारे में उसे बता दीजिए और अपने पास उसके आने का इंतज़ार कीजिए. याद रखिए कि हो सकता है कि आप व्यक्ति के सबसे बड़े संघर्षों के समाधान में पूरी तरह से योग्य या दक्ष न हों. हो सकता है कि आपकी ज़रूरत भी न समझी जाए.

पीड़ित व्यक्ति की बीमारी, पहचान और स्वास्थ्य की दशा के बारे में लंबीचौड़ी जाँच या विस्तार से टोह लेने की कोशिश मत कीजिए. टोह लेने वाले सवाल पूछने से बचिए, मिसाल के लिए, ‘क्या होता है जब तुम्हें आवाज़ें सुनाई देती हैं’ या ‘वे आवाज़ें तुमसे कहती क्या हैं?’

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सलाह-मशविरे की पेशकश

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कई बार, हम सलाह देना चाहते हैं क्योंकि हमें लगता है कि इससे पीड़ित व्यक्ति को बीमारी से निजात पाने में कुछ मदद मिल सकती है. याद रखिए कि व्यक्ति अपने फ़ैसलों के नतीजों को तौलने की स्थिति में हो भी सकता है और नहीं भी और आपकी सलाह को वो गलत समझ सकता है या संदर्भ से हट कर भी देख सकता है. ये सुनिश्चित कीजिए कि आप ऐसा कोई संदेश न जानें दे जिससे पीड़ित व्यक्ति, मदद और उपचार में लगे डॉक्टर या परिवार के प्रयत्नों को कमतर आंकने लग जाए.

अगर व्यक्ति आप पर सलाह मशविरे के लिए ज़ोर डालता है तो अपने शब्दों का चयन नापतौल कर कीजिए. उस संदर्भ को लेकर सजग और सचेत रहिए जिसके तहत वो आपके परामर्श की अपेक्षा कर रहा है ख़ासकर उपचार के सिलसिले में.

 

मिसाल के लिए, अगर व्यक्ति को दवाएँ लेने का मन नहीं है, या वो दवाओं से बचना चाह रहा है और उसने आपके मुँह से ऐसी बात सुनी है कि दवाओं से नीमबेहोशी आ सकती है या दूसरे साइड अफ़ेक्ट हो सकते हैं, तो वो पूरी तरह से दवाएँ लेना बंद कर देगा या देगी. उसे आपकी कथित सलाह से ही एक अदद बहाना मिल सकता है. या आपकी कथित सलाह की आड़ में वो ऐसा कर सकता या सकती है.

अगक आप किसी अच्छे उपचार के बारे में जानते हैं जिससे व्यक्ति की दशा में सुधार आ सकता है तो उसे सलाह दीजिए कि इस बारे में वो अपने डॉक्टर, काउंसलर या देखरेख करने वाले व्यक्ति से बात करे. सबसे अच्छा तो यही है कि किसी भी ऐसे उपचार या इलाज के बारे में डॉक्टर से सलाह ली जाए जिसका इस्तेमाल पूरक रूप में किया जा सकता हो न कि विकल्प के रूप में.

व्यक्ति आपसे कुछ ऐसे अंतरवैयक्तिक मामलों पर भी मिल सकता है जिनसे उसे तक़लीफ़ या तनाव होता हो (जैसे देखरेख करने वाले व्यक्ति या किसी परिजन के साथ टकराव, आदि). अगर आपको मामले से जुड़ी पूरी तस्वीर का अंदाज़ा नहीं है तो व्यक्ति को सलाह दीजिए कि वो अपने डॉक्टर या काउंसलर से मिले.

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विश्वास या भरोसा तोड़ने की नौबत

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति अगर आप पर पूरा भरोसा करता है लेकिन आपको लगता है कि कुछ ऐसी जानकारी है जो उसके डॉक्टर या देखरेख करने वाले के साथ साझा किया जाना ज़रूरी है तो आप क्या करेंगें?

ऐसी स्थिति में जब पीड़ित व्यक्ति आपको ऐसी चीज़ के बारे में बताता है जिसमें उसका या उसके ज़रिए दूसरों का नुकसान होने की आशंका के संकेत मिल रहे हों (मसलन आत्महत्या का ख़्याल, दूसरों का मार डालने या चोट पहुँचाने का ख़्याल, आदि) तो ऐसी स्थिति में तय कीजिए कि क्या आपको उसके परिवार या देखरेख करने वालों को ये बात बताने की ज़रूरत है या नहीं.

पीड़ित व्यक्ति की कही हर एक बात, देखरेख करने वालों को बताना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि इससे वे भी घबरा सकते हैं या ख़ुद को बेबस महसूस कर सकते हैं. इसके बजाय, आप उनको अपनी चिंताओं के बारे में बात कीजिए और ये भी बताइए कि आपके मन में ऐसी चिंता, पीड़ित व्यक्ति की किस बात को सुनने से आई हैं.

व्यक्ति को ये बताइए कि अपना या दूसरों का नुकसान हल्के में ली जाने वाली बात नहीं है. कोमलता से ये समझाइये या सुझाव दीजिए कि उसके ऐसे ख़्यालों या इच्छाओं के बारे में परिवार को पता रहे तो अच्छा ही रहेगा. लेकिन ये बात कहते हुए स्पष्ट भी कर दीजिए कि आप कहना क्या चाहते हैं. मिसाल के लिएः “मैं तुम्हारे बारे में चिंतित हूँ और इस बात को तुम्हारे परिवार के साथ शेयर करना चाहता हूँ क्योंकि वे तुम्हें बेहतर समझते हैं और इससे

निपटने में तुम्हारी बेहतर मदद कर सकते हैं.” ऐसा कहने से व्यक्ति को लगेगा कि आप उसे धोखा नहीं दे रहे हैं या उसके पीठ पीछे कुछ नहीं कर रहे हैं.

खुद को स्किज़ोफ़्रेनिया के बारे में शिक्षित कीजिए. लेकिन ध्यान रखिए कि विकार से पीड़ित सभी व्यक्तियों में सारे के सारे लक्षण नज़र नहीं आते हैं. स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित आपका या आपकी दोस्त या सहकर्मी, आपके आसपास के अन्य लोगों से अलग नहीं है. तैयार और तत्पर रहने से, धैर्य बनाए रखने से और खुलापन रखने से आप पीड़ित व्यक्ति के साथ एक सहज और सामान्य संबंध बनाए रख सकते हैं और उसे जल्द ठीक होने में मददगार हो सकते हैं.

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स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति के साथ ख़ुद को व्यस्त रखने के लिए कुछ टिप्स

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उससे ऐसे ही बात कीजिए जैसे आप अन्य लोगों के साथ करते हैं. ज़्यादातर प्रतिक्रिया सामान्य ही होगी. कभीकभार, व्यक्ति की प्रतिक्रिया ऐसी हो सकती है कि आपको व्यक्ति के साथ घुलनेमिलने में कठिनाई आ सकती है. स्किज़ोफ़्रेनिया के लक्षण हर व्यक्ति में अलग अलग होते हैं और समय समय पर बदलते भी रह सकते हैं. आपको कुछ ऐसी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता हैः

  • हो सकता है कि पीड़ित व्यक्ति बहुत ज़्यादा संचार या संवाद का आदी न हो या वो ऐसा व्यवहार कर सकता है कि जैसे आपमें उसकी कोई दिलचस्पी न हो. ऐसे मामलों में, इस तरह के ठंडे रवैये को सहन कर लीजिए और बातचीत जारी रखिए जबतक कि व्यक्ति अपनी नामंजूरी या असहमति का इज़हार न करने लगे. (हो सकता है कि स्किज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति भावनाएँ ज़ाहिर न करे या ऐसा दिखाए कि वो ऊब गया है या उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है)

  • पीड़ित व्यक्ति में बात करने, बोलने या व्यवहार करने के कुछ अटपटे तरीके हो सकते हैं. इस पर ध्यान मत दीजिए और व्यक्ति को ये मत पूछिए कि वो इस ढंग का व्यवहार क्यों कर रहा है. अपनी बातचीत सामान्य रूप से जारी रखिए

  • पीड़ित व्यक्ति अनुचित और असंगत भावनाओं के रूप में प्रतिक्रिया कर सकता है. अगर इससे असहजता या शर्मिंदगी होती है तो बातचीत को अगली बारी के लिए रोक दीजिए, जब तक कि व्यक्ति शांत न हो जाए और आप भी उससे दोबारा बातचीत करने के लिए ख़ुद को बेहतर न महसूस करने लगे

  • पीड़ित व्यक्ति आपके इरादों को भाँप सकता है और आपसे गुस्सा हो सकता है. ऐसी कोई बात न छेड़िए या ऐसी बातों से परहेज़ ही कीजिए जिससे व्यक्ति भड़क जाता हो या उसे गुस्सा आता हो. उसे फिर से भरोसा दिलाइए कि आप उसकी परवाह और चिंता करते हैं और जब वो कहेगा या तैयार होगा तभी बातचीत को आगे जारी रखना चाहेंगे

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