व्यक्तित्व विकार यानि पर्सनैलिटी विकारों के प्रकार

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व्यक्तित्व विकारों के प्रकार

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व्यक्तित्व विकार किसी व्यक्ति की शख़्सियत के कुछ ख़ास पहलुओं की अधिकता या कमी को बताते हैं जिनकी वजह से व्यक्ति की घर में और बाहर अपनी रोज़ाना की गतिविधि में व्यवधान पैदा होता है. इन विकारों से जुड़े व्यक्तित्व के लक्षण हर किसी में विविध रूप से मौजूद रहते हैं, ये बचपन से ही आ जाते हैं लेकिन वयस्कता होने पर ही पक्के तौर पर पहचाने जा सकते हैं.

पर्सनैलिटी विकार विभिन्न प्रकार के होते हैं, ये निर्भर करता है कि व्यक्ति में कौनसी विशिष्टता ज़्यादा हावी है.

पर्सनैलिटी विकारों के तीन प्रमुख समूह हैं, इनके तहत कई विशिष्ट पर्सनैलिटी विकारों का उल्लेख किया गया है. हर समूह के पर्सनैलिटी विकारों में एक जैसी विशेषताएँ और लक्षण पाए जाते हैं. उनमें कुछ ख़ास लक्षण भी देखे जा सकते हैं.

  • वर्ग एक: अटपटा/ सनक भरा व्यवहार
  • वर्ग दो: नाटकीय, डांवाडोल, भावुक व्यवहार
  • वर्ग तीन: व्याकुल, चिंतातुर और भयभीत व्यवहार

इनमें से किसी भी विकार की पहचान के लिए व्यक्तिगत, अंतरवैयक्तिक या ऑक्यूपेश्नल स्तर पर होने वाले कष्ट की वजह बनने वाले व्यवहारों का निरीक्षण पैटर्न बनाया जाता है.

सूचना:व्यक्तिगत वर्गीकरण में बताए गए लक्षण हम सबमें में पाए जाते हैं. इस वर्गीकरण में कुछ व्यवहारजन्य लक्षण आप में हो सकते हैं या आपके आसपास किसी परिचित में. ध्यान रखिए कि ये लक्षण, पर्सनैलिटी विकार तभी बनते हैं जबः

  • वे अतिशयता या प्रचंडता या अत्यधिक स्तर पर हों और व्यक्ति की अपने बारे में, दूसरों के बारे में और अपने आसपास के बारे में राय को प्रभावित करें
  • ये लक्षण व्यक्ति और उसके आसपास लोगों को बहुत ज़्यादा कष्ट पहुँचाने लगें.

ये वर्णन / विवरण, समस्या की शिनाख़्त के लिए दिशानिर्देश के रूप में यहाँ पेश किये गये हैं, लेकिन ये किसी भी रूप में विकार की उपस्थिती का न तो संकेत देते हैं और न ही उसकी पुष्टि करते हैं. विकार का डायग्नोसिस यानि बीमारी की पहचान तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ को ही करनी होगी.

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वर्ग एक: अटपटा या सनक भरा व्यवहार

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इस समूह के विकारों के तहत सोचने और व्यवहार के ऐसे बिगड़े हुए पैटर्न की अधिकता रहती है जिन्हें कोई अन्य समझने में असमर्थ रहता है. विकार से पीड़ित व्यक्ति दूसरों के प्रति अत्यधिक शंकालु होता है, अपने में ही सिमटा रहता है और दूसरों के प्रति उदासीनता या बेरुख़ी दिखाता है. इस तरह उसके रिश्तों पर गहरा असरा पड़ता है और उसकी रोज़मर्रा का जीवन भी बहुत प्रभावित होता है.

संविभ्रम या व्यामोह विकार, Paranoid Personality Disorder

पैरनॉयड विकार से पीड़ित व्यक्तियों के लिए दूसरों पर भरोसा करना बहुत कठिन होता है. दूसरों से अलग, वे इस अविश्वास की भावना को अपने तक ही नहीं रखते- वे इसे अपनी हरकतों और व्यवहार से दिखाते भी हैं. पीड़ित व्यक्ति का अपने परिवार, नज़दीकी मित्र और रिश्तेदारों के प्रति अविश्वास बना रहता है. वे लगातार इस बात से डरे रहते हैं कि ये लोग उनसे फ़ायदा उठाना चाहते हैं और इसके लिए वे उन्हें धोखा देंगे या नुकसान पहुँचा देंगे. इस चक्कर में ऐसे व्यक्ति अपने प्रियजनों से भावनात्मक रूप से कट जाते हैं. वे किसी पर भी भरोसा करने को तैयार नहीं होते न ही किसी को अपनी गुप्त बात बताते हैं, यहाँ तक कि अपने जीवनसाथी को भी नहीं. वे छोटी सी ग़लती पर किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़, घटना के बीत जाने के लंबे समय बाद भी, अपने मन में द्वेष और कड़वाहट पाले रखते हैं. वे अन्य लोगों के साथ सहयोग या कोई भी काम नहीं कर पाते. वे अपना शक भी ज़ाहिर कर सकते हैं और मुँह पर किसी को कह सकते हैं कि उसके इरादें क्या हैं, ये उन्हें अच्छी तरह पता है. यानि वे दूसरों पर लांछन लगाने में नहीं हिचकते हैं.

पैरनॉयड विकार से पीड़ित व्यक्ति अपना कम्प्यूटर और लोगों (मित्र और परिवार के लोग भी शामिल) के साथ शेयर करने में भी हिचकता है.

एकांतिक या सामाजिक विच्छेद व्यक्तित्व विकार , Schizoid Personality Disorder

एकांतिक या सामाजिक विच्छेद व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्तियों में ठंडा, उदासीन और अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति पाई जाती है. वे अकेले में ही खुश रहते हैं. वे सामाजिक रूप से घुलना मिलना, परिवार, दोस्त, पास पड़ोस में उठना बैठना पसंद नहीं करते हैं. वे किसी भी सामाजिक गतिविधि में भाग नहीं लेते. उनकी तारीफ़ की जाए तो वे ख़ुश नज़र नहीं आते और आलोचना पर व्यथित नहीं होते. और इस तरह के मामलों से दूर ही रहते हैं जिनका असर उन पर पड़ सकता है या उनके परिवार या दोस्तों पर. अन्य लोगों की नज़र में वे उदासीन, प्रतिक्रियाविहीन, अनुत्तरदायी, भावशून्य होते हैं और इस वजह से उनके साथ कोई अर्थपूर्ण संवाद कर पाना या उनके साथ बैठकर सलाह मशविरा कर पाना बहुत कठिन होता है.

इस विकार से पीड़ित व्यक्ति खुद को खोया हुआ पाता है जब उसके सामने सामाजिक स्थितियों में समय बिताने की नौबत आती है. वे नहीं जानते हैं कि वहाँ क्या करें या क्या बोले. वे ऐसी स्थितियों से भी बचना चाह सकते है जहाँ उन्हें ज़ोर दिया जाता है कि दूसरों से घुलेमिले, उनसे बात करें.

शिज़ोटाइपल पर्सनैलिटी विकार, Schizotypal Personality Disorder

शिज़ोटाइपल पर्सनैलिटी विकार एकांतिक या संविभ्रम व्यक्तित्व विकारों के कुछ लक्षणों का मिलाजुला रूप है. व्यक्ति दूसरों के प्रति अविश्वास की भावना रखता है. ऐसा व्यक्ति आमतौर पर दूसरों के प्रति अविश्वास या संदेह रखता है और नज़दीकी संबंध बनाने से परहेज़ करता है.

इन लक्षणों के अलावा, ऐसे व्यक्ति का व्यवहार दूसरों को अटपटा या उटपटांग लग सकता है. व्यक्ति विचित्र व्यवहार के दोहरे पैटर्न से पीड़ित रहता हैः चीज़ों को बार बार चेक करना, हर चीज़ को संगति में रखने की ज़िद, या अपनी प्लेट में रखे दानों को गिनना.

इस विकार के मरीज़ों के व्यवहार में जो दोहराव देखा जाता है, उसके चलते ये ऑब्सेसिव कम्पलसिव पर्सनैलिटी डिसऑर्डर होने का भ्रम भी पैदा कर सकता है. लेकिन ऑब्सेसिव कम्पलसिव पर्सनैलिटी डिसऑर्डर वाले लोगों को पता होता है कि उनका व्यवहार बचकाना है, अजीब और अतार्किक है, लेकिन वे उसे बदलने में असमर्थ होते हैं. इधर शिज़ोटाइपल विकार वाले व्यक्ति को इस बात का अहसास नहीं होता है कि उसका व्यवहार अजीब या असामान्य है.

इस विकार से पीड़ित मरीज़ को ‘मैजिकल थिंकिग’ या जादुई इल्हाम भी हो सकता है- यानि दो ऐसे मामले जो किसी भी तरह से एक दूसरे से जुड़े नहीं होते है, उनसे कारण-प्रभाव का निष्कर्ष निकाल लेना. इस विकार से पीड़ित मरीज़ की अंधविश्वासों के प्रति बहुत दिलचस्पी रहती है.  

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वर्ग दो: नाटकीय, डांवाडोल, भावुक व्यवहार

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इस समूह के विकारों में ऐसा व्यवहार परिलक्षित होता है जिसमें नाटकीयता या अति भावुकता रहती है. ऐसे लोग सोचते हैं कि दूसरों की अपेक्षा उनकी ज़रूरतें ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं और वे उन्हें अपने आसपास के अन्य लोगों की कीमत पर पूरा करने की कोशिश भी करते हैं. इन विकारों में एक बात और जो सामान्य रूप से देखी जाती है वो ये है कि व्यक्ति अपनी हरकतों के तत्काल नतीजों के आगे देख नहीं पाता है और फलस्वरूप उसे अपनी भावनाओं को रोकने में कठिनाई होती है और वो उनका सही ढंग से नियंत्रण नहीं कर पाता है.

असामाजिक व्यक्तित्व विकार, Antisocial Personality Disorder

असामाजिक व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्ति में एक लक्षण जो स्पष्ट रूप से दिखता है वो है दूसरों की चिंताओं और उनके सरोकारों के प्रति असम्मान. ऐसा व्यक्ति अपने कार्यों के नतीजों की परवाह भी नहीं करता, जब तक कि उनसे उसकी ज़रूरत पूरी होती रहे. व्यक्ति ये नहीं देख पाता है कि दूसरों या खुद पर अपने व्यवहार का भविष्य में क्या असर पड़ सकता है. भले ही वे कितने उलटे नतीजे न दें. व्यक्ति में खुद को विभूषित करने और श्रेष्ठता की भावना और चाहत बहुत अधिक रहती है और उसे लगता है वो दूसरों से अव्वल और लायक है.

असामाजिक व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्ति विनाशकारी व्यवहार का प्रदर्शन करता है- भावनात्मक और शारीरिक तौर पर हिंसक हो उठता है, नियमों को तोड़ता है. दूसरे की संपत्ति का अनादर या अनदेखा करता है (मिसाल के लिए दूसरों की चीज़ों को तोड़ देना). इस विकार से पीड़ित बच्चों में व्यवहारजनित समस्याएँ बनी रहती हैं जैसे डराने-धमकाने की, अपने से कमज़ोर समूहों, छोटे बच्चों या छोटे जानवरों पर हावी होने या उन्हें शारीरिक चोट पहुंचाने की प्रवृत्तियाँ उनमें देखी जा सकती हैं.

उन्हें अपने व्यवहार में कुछ भी ग़लत नज़र नहीं आता है. या उन्हें इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वे दूसरों को या ख़ुद को नुक़सान पहुँचा रहे हैं. वे अपनी हरकतों को ये कहकर सही या जायज़ ठहराने की कोशिश कर सकते हैं कि हिंसा ज़रूरी थी. वे बहुत आक्रामक और चालाक भी हो सकते हैं- झूठ बोलकर या दूसरों का इस्तेमाल कर अपना काम निकाल सकते हैं, अपनी हरकतों पर अफ़सोस करने का नाटक कर सकते हैं ताकि लोग उनकी हरकतों को माफ़ कर दें और उन्हें फिर से स्वीकार कर लें और जैसे ही उनका मतलब काम निकल जाए तो असामाजिक व्यवहार में फिर से लौट जाएँ.

असामाजिक व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्तियों में लापरवाही की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है. वे बिना सोचेसमझे ख़तरे मोल ले सकते हैं और उनमें नशे की लत जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं. वे अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी लेने से इंकार कर सकते हैं या दूसरों की परिस्थितियों या नज़रिए को मानने से भी इंकार कर सकते हैं.

बॉर्डरलाइन व्यक्तित्व विकार, Borderline Personality Disorder

बॉर्डर लाइन व्यक्तित्व विकार (बीपीडी-BPD) एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति की भावनाओं पर नियंत्रण रखने या प्रतिक्रिया कर सकने की क्षमता को प्रभावित करता है. व्यक्ति को अपनी पहचान का कोई ठोस विचार नहीं होता है और वो चीज़ों और स्थितियों से सामंजस्य बैठाने के लिए सतत संघर्ष करता रहता है. ऐसे लोगों के व्यक्तित्व से जुड़े लक्षण बदलते रहते हैं और ये निर्भर करता है कि वे लोगों के किस समूह के साथ हैं. इससे वे ज़रूरतमंद और ध्यान आकर्षित करने वाले लग सकते हैं. बीपीडी के मरीज़ अपने आसपास होने वाली घटनाओं के प्रति भावनात्मक रूप से बहुत ज़्यादा संवेदनशील होते हैं. इससे उनको बड़े पैमाने पर कष्ट उठाना पड़ता है क्योंकि वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी से भी जूझने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं.

आत्मकामी व्यक्तित्व विकार, Narcissistic Personality Disorder

आत्मकामी या आत्मकेंद्रित शब्द उस व्यक्ति के बारे में इस्तेमाल किया जाता है जो ख़ुद के प्रति आसक्त रहता है. अपनी शक्लोसूरत, हावभाव. अपनी भावभंगिमा, विशेषताओं और गुणों को ही प्यार करता है, उनके प्रति गदगद रहता है. यानि जो आत्मप्रशंसा या आत्मश्लाघा में डूबा रहता है. और ख़ुद पर बहुत गर्व करता है.

आत्मकामी व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्ति को खुद में अत्यधिक आसक्ति होती है. अपनी सुंदरता, महत्त्व और महानता को लेकर वे महान कल्पनाओं और फैंटेसी में डूबे रहते हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें कुछ ख़ास तवज्जो मिलनी चाहिए, उनके पास ताकत और सत्ता, अमीरी और सफलता रहनी चाहिए और आती रहनी चाहिए.

ऐसा व्यक्ति सत्ता और सफलता की फैंटेसी में भी डूबा रह सकता है. और ऐसा वास्तव में कर दिखाने के लिए प्रयत्नशील नहीं होता, इस दिशा में किए जाने वाले प्रयत्नों को नकारता ही है. ऐसे लोग अपनी श्रेष्ठता का स्तर दिखाने के लिए आमतौर पर दूसरों की कमियों या सीमाओं का इस्तेमाल करते हैं और अपनी बड़ाई करते रहते हैं या खुद को बेहतर साबित करने के लिए दूसरों को अनदेखा करते रहते हैं.

एनपीडी के मरीज़, दूसरों की नज़र में अहंकारी, घमंडी, नकचढ़े या दंभी होते हैं. वे भले ही अहंकारी और गर्वीले लगें, लेकिन आलोचना के प्रति वास्तव में बहुत संवेदनशील होते हैं. मरीज़ आवेग में आ जाते हैं, और दूसरों का ध्यान निरंतर अपनी ओर खींचने की कोशिश में लगे रहते हैं. वे दूसरों का लाभ अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी उठा सकते हैं, उन्हें लगता है कि इस लक्ष्य को पाने के अधिकारी वहीं है लिहाज़ा दूसरों का इस्तेमाल इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए करने में नहीं हिचकते हैं. खुद को विशेष समझने की भावना, खुद के प्रति एक अत्यधिक लालसा, एक आत्मकेंद्रित रवैया ऐसे मरीज़ को अन्य लोगों के साथ एक सामान्य संबंध बनाए रखने में बाधा पहुँचाता है.

अपने प्रति अत्यधिक ऑब्सेशन यानि आसक्ति के उच्चतम स्तर को मेगलोमेनीया यानि अहंकारोन्माद या महत्त्वोन्माद भी कहा जाता है. और इसका इस्तेमाल कई बार इस विकार के संदर्भ में भी किया जाता है.

नाटकीय व्यक्तित्व विकार, अतिनाटकीय निराशा या विषाद का विकार, Histrionic Personality Disorder

जैसा कि नाम से स्पष्ट है, अतिनाटकीय निराशा से जुड़ा विकार, व्यक्ति में भावना और ध्यान खींचने की अतिशयता के व्यवहार प्रदर्शन से जुड़ा है. इस विकार से पीड़ित व्यक्ति किसी भी अवसर पर ध्यानाकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं. वे इस ध्यानाकर्षण के लिए किसी भी सीमा तक जाने को इच्छुक रहते हैं, यहाँ तक कि आत्महत्या कर लेने की धमकी देने में भी पीछे नहीं रहते. वे हर क़िस्म की भावनाएँ अतिशयता में ज़ाहिर करते रहते हैं, चाहे वो ख़ुशी हो या उदासी.

या तो वो अत्यधिक ख़ुशी दिखाएँगे, जो नाटकीय लगने लगेगी या बहुत ज़्यादा निराशा या उदासी ज़ाहिर करेंगे जो अतिनाटकीय लगेगी. वे लगातार दूसरों का ध्यान खींचना चाहते हैं. उनके ओढ़ने पहनने की स्टाइल, उनके व्यवहार (अतिरंजित भावनाएँ, चापलूसी, फ़्लर्ट आदि) और भावुकता में निर्णय करने की प्रवृत्ति में अतिनाटकीयता झलकती है. वे जोखिम की परवाह किए बगैर आत्मघाती भावनाएँ भी ज़ाहिर करते रह सकते हैं.

अपने संबंधों में, वे घनिष्ठता के उच्चतम स्तर की कल्पना करते हैं जो कि वास्तव में नहीं होती है- उन्हें महज़ एक सहयोगी या सहायक के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन वे दूसरे को बहुत प्रिय दोस्त की तरह मानते हैं. अपनी भावनाओं में अतिरंजना की वजह से उनका व्यवहार सतही या नकली दिखने लगता है. वे कमज़ोर नज़र आते हैं और दूसरों के प्रभाव में आसानी से आ जाते हैं.

चीज़ों पर उनका ध्यान नहीं रह पाता और लंबे समय के लिए किसी एक प्रोजेक्ट पर बने रहना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. वे उत्साह और ध्यान के लिए लालायित रहते हैं और जब वे ध्यान का केंद्र नहीं बन पाते तो असहज महसूस करने लगते हैं.  

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वर्ग तीन: व्यग्र, चिंतातुर और भयातुर व्यवहार

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इस समूह के विकारों की विशेषता है चिंता, घबराहट, कम्पलसिव और ऑब्सेसिव-कम्पलसिव व्यवहार और अलगाव.

इस समूह का प्रमुख लक्षण है लोगों में ख़ुद को लेकर एक उच्च स्तर की चिंता, भय और घबराहट. ये पैदा होती है अपनी क्षमताओं, योग्यताओं को लेकर गहन संदेह. और इस वजह से वे सही ढंग से अपना कार्य निष्पादन नहीं कर पाते हैं.

त्याज्य व्यक्तित्व विकार, Avoidant Personality Disorder

इस विकार से पीड़ित व्यक्ति इस बारे में अत्यधिक चिंतित रहता है कि दूसरे उसके बारे में क्या सोच रहे हो सकते हैं. उन्हें इस बात की आशंका और डर बना रहता है कि दूसरे लोग उनका नकारात्मक मूल्यांकन ही करेंगे, उनकी गलतियों को पहचान लेंगे या उन्हें व्यर्थ या अनुपयोगी मानेंगे यानि कि वे किसी काम के नहीं हैं. ये भावनाएँ उन्हें चिंतित और व्यग्र बनाती हैं, वे रिलैक्स नहीं हो पाते हैं और जब लोगों के बीच में रहते हैं तो असहज रहते हैं.

त्याज्य व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्तियों में आत्मसम्मान की कमी देखी जाती है. ये विचार उन्हें परेशान किये रहता है कि वे कमअक़्ल हैं, उनमें बुद्धिमानी की कमी है, वे पर्याप्त रूप से अच्छे नहीं है, पर्याप्त अमीर नहीं है और किसी चीज़ के पर्याप्त लायक नहीं है. यानि हर चीज़ में कमतर ही हैं, ऐसा उन्हें अपने बारे में लगता रहता है. वे ऐसे लोगों से मिलने जुलने या घुलनेमिलने से घबराते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे उनसे सुपीरियर यानि श्रेष्ठ या बेहतर हैं. (लेकिन ये सिर्फ़ उनका सोचना हो सकता है, ऐसा वास्तव में हो ये ज़रूरी नहीं.)

वे वैसे अंतःक्रिया यानि घुलनामिलना चाहते तो हैं और दूसरों से जुड़ना भी चाहते हैं लेकिन साथ ही आलोचना और उपेक्षा से डरते भी हैं. लोग उनके बारे में कोई आकलन न कर लें या कोई राय न बना लें, इससे बचने के लिए वे सामाजिक अंतःक्रिया से बचते हैं. यानि लोगों में उठने बैठने से परहेज़ करते हैं. वे आलोचना के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं- वे अपने कार्य की आलोचना को अपनी उपेक्षा या खुद को ख़ारिज किए जाने के रूप मे भी देख सकते हैं. दूसरे लोग उन्हें शर्मीला, रूखा और भावनात्मक रूप से उदासीन व्यक्ति के रूप में देखते हैं.

पराश्रित व्यक्तित्व विकार, Dependent Personality Disorder

पराश्रित व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्ति अपने आसपास के लोगों यानि परिचितों, मित्रों और परिजनों का मोहताज होता है यानि वह उन पर निर्भर या आश्रित हो जाता है. वे सोचते हैं कि अपने बारे में वे ख़ुद निर्णय करने में असक्षम हैं और अपनी देखरेख के लिए या अपने काम के प्रति ज़िम्मेदारी लेने से घबराते हैं. सहायता पाने के लिए वे आज्ञाकारी, दब्बू या अधीन बनने के लिए तत्पर रहते हैं, इस हद तक वे आज्ञाकारी बनने के लिए तैयार हो जाते हैं जो वास्तव में वे नहीं चाहते हैं.

अपने स्तर पर उन्हें कुछ करना पड़ा तो वे ख़ुद को असहाय महसूस करने लगते हैं. उन्हें अपना ध्यान रखे जाने के लिए निरंतर किसी की ज़रूरत रहती है. वे चाहते हैं कि कोई उनका ध्यान रखता रहे. दूसरे लोग उन्हें ज़रूरतमंद , हर वक़्त चिपके रहने वाला समझ सकते हैं. इस विकार से पीड़ित व्यक्तियों के लिए संबंधों का टूटना या न रहना इतना भयभीत करने वाला होता है कि वे खुद को दूसरों के हवाले करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं, दूसरो का शिकार बन जाते हैं, शोषण या बुरे व्यवहार का सामना करते हैं. ऐसे व्यक्ति में व्यग्रता का विकार या अवसाद भी विकसित हो सकता है.

आसक्त-बाध्यकारी व्यक्तित्व विकार (एनानकास्टिक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर) Obsessive Compulsive Personality Disorder/Anankastic Personality Disorder

ओसीपीडी के इस विकार से पीड़ित व्यक्ति चीज़ों के निष्पादन में कड़ा, अड़ियल या जिद्दी विचार रखते हैं. वे हर चीज़ को संपूर्णता में करना चाहते हैं और इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं. वे अपने रवैये में सख्त या कट्टर होता है यानि काम हो जाए सिर्फ इतने भर से वे संतुष्ट नहीं होते, उनके हिसाब से निर्धारित पैमाने पर काम का खरा उतरना ज़रूरी है, काम यदि उनके हिसाब से ठीक से नहीं हुआ या कमतर रह गया तो फिर वे असंतुष्ट रहते हैं और अत्यधिक उत्तेजना और घबराहट से भर जाते हैं.

अपने हिसाब से काम हो जाए इसके लिए वे इतने कट्टर हो जाते हैं कि आनंद उठाना भी छोड़ सकते हैं, आराम का त्याग कर सकते हैं और यहाँ तक कि अपने स्वास्थ्य को भी अनदेखा कर सकते हैं. इस वजह से वे दूसरों के भरोसे काम छोड़ना पसंद नहीं करते, दूसरों को ज़िम्मेदारी सौंपने से बचते हैं और ख़ुद पर ही ज़रूरत से ज़्यादा भार डाल देते हैं. वे काम के प्रति एक आसक्त वर्कर सरीखे हैं. अपने काम के प्रति बेहद ऑब्सेसिव, और पेशेवर दायित्वों में संपूर्णता के लिए अपनी निजी ज़िंदगियों की भी उपेक्षा कर देते हैं.

आसक्त बाध्यकारी व्यक्तित्व विकार से पीड़ित व्यक्ति का नियमों और निर्देशों के प्रति गहरा आकर्षण रहता है. वे नियम बनाकर ये तय करना चाहते हैं कि काम कैसे हो, लिस्ट बनाते हैं और हर चीज़ के लिए एक शेड्यूल तय करते हैं जिसके हिसाब से काम होना ही चाहिए और उसका पालन हर हाल में होना चाहिए.

दूसरे लोग उनके पैसे खर्च करने की आदत के आधार पर उन्हें कंजूस करार दे सकते हैं क्योंकि अपना पैसा खर्च करने का नियंत्रण वे अपने पास ही रखना चाहते हैं. और उसके खो जाने के प्रति आशंकित या डरे रहते हैं. ऐसे व्यक्तियों को इस बात का अंदाज़ा हो सकता है कि उनका व्यवहार अतार्किक और असंगत है फिर भी वे अपने व्यवहार को बदलने में असमर्थ होते हैं.

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ओसीडी और ओसीपीडी में अंतर

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ऑब्सेसिव कम्पलसिव पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, ओसीपीडी और ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर (ओसीडी) के बीच लक्षणों और व्यवहारों की समानता की वजह से अक्सर भ्रम हो जाता है कि क्या ये दोनों विकार एक ही हैं.

ओसीडी से पीड़ित मरीज़, विवशताओं या बाध्यताओं की वजह से पैदा कष्ट से निजात पाने के लिए एक ही क़िस्म का व्यवहार लगातार दोहराता रहता है. जबकि ओसीपीडी के मरीज़ के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती. वे कुछ ख़ास व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं, नियंत्रण खोने के डर से या अधूरे या अपूर्ण रह जाने के डर से. जब वे किसी नतीजे को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें आकस्मिक भय और घबराहट के दौरे पड़ने लगते हैं.

दोनों मामलों में, जो व्यवहार देखा जाता है उसकी वजह है चिंता और घबराहट. ओसीडी के मरीज में ये चिंता कुछ निश्चित कार्यों को पूरा करने की बाध्यता की वजह से आती है, वहीं ओसीपीडी के मरीज़ में चिंता का कारण होते हैं उसके व्यक्तित्व के लक्षण. (कई मामलों में, संपूर्णता या परफ़ेक्शन में काम करने का लक्षण या कार्य के निष्पादन को लेकर कट्टर रवैया, चिंता पैदा करता है.)

ओसीडी का मरीज़ इस बात को जानता है कि उसका व्यवहार असंगत या अतार्किक या उटपटांग है. लेकिन ओसीपीडी का मरीज़ ये नहीं जान पाता कि उसका व्यवहार असंगत या असामान्य है.  

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