परामर्श के वक्त मा-बाप को शामिल करना पेचीदा हो, पर जरूरी है

परामर्श में माता-पिता का सहयोग

प्रत्येक छात्र (18 वर्ष की आयु से ऊपर), जो या तो स्वेच्छा पूर्वक परामर्श लेने का चयन करता है या परामर्शदाता से मिलने के लिए अभिदेशित किया जाता है, वह एकान्तता और गोपनीयता का संपूर्ण अधिकार रखता है क्योंकि परामर्श में अक्सर वैयक्तिक तथा सूक्ष्म बातें परामर्शदाता से साझा की जाती हैं।

गोपनीयता बनाए रखना परामर्श करने का प्रामाणिकता चिन्ह है और सभी परामर्शदाताओं को इसे सख्ती से निभाना चाहिए। अधिकतर परामर्श इकाइयाँ जानकार स्वीकृति प्रपत्र का उपयोग करती हैं जो अन्य विवरणों के अतिरिक्त आत्म-हानि, दूसरों को हानि, आत्महत्या के विचार जैसे विशेष मामलों में सूचनाओं का प्रकटीकरण करने की आवश्यकता के बारे में उल्लेख करते हैं, या किसी न्यायालय के आदेश से छात्र या किसी अन्य के तत्काल खतरे को स्पष्ट रूप से रोकने के लिए परामर्श की गई सूचना को बताया जाना है।  ऐसे मामलों की प्रतिशतता ज़्यादा नहीं होती और इसे कभी-कभी का ही माना जा सकता है।  इसलिए, यह कहा जा सकता है कि अधिकतर परामर्श के परिसरों में छात्र की गोपनीय सूचना गोपनीय ही रहती हैं। 

जैसे ही परामर्श की प्रक्रिया आगे बढ़ती हैं, यदि परामर्शदाता को लगता हैं कि माँ-बाप के सहयोग से छात्र में बेहतर सुधार आ सकता है तो माता-पिता को इसमें शामिल किया जा सकता है।  अथवा, यदि छात्र परामर्शदाता के पास यह कहते हुए जाती है कि वह अपने माता-पिता के निरंतर झगड़े की वजह से शैक्षणिक पर ध्यान नहीं दे पा रही है, तो परामर्शदाता बेहतर माहौल बनाने हेतु माता-पिता को शामिल कर सकता है।  माता-पिता को शामिल करने के लिए परिमाण तथा डेवढ़ी का स्तर किशोरावस्था के परामर्श में हो सकता है जो हमेशा बहस का एक मुद्दा रहा है ।  गोपनीयता एक मुख्य पहलू होने के कारण, परामर्श करने वाला व्यक्ति छात्र के माता-पिता को स्थापित कैंपस में शामिल नहीं करना सुनिश्चित कर सकता है।  कैंपस परामर्शदाता अक्सर अपने आप को इस दुविधा में पाते हैं कि कुछ चयनित सूचनाओं को उन्हे छात्र के माँ-बाप से साझा करके उन्हे उत्तरोत्तर सुधार में शामिल करना चाहिए या नैतिक लिहाज़ के कारण, शामिल करने से बचना चाहिए।

यहाँ तक कि जब परामर्शदाता माता-पिता के ध्यान में छात्र के द्वारा सामना की गई चुनौतियों की तरफ ध्यान आकर्षित करने का निर्णय लेता है, तो अक्सर देखा गया है कि माँ-बाप इससे बचने की कोशिश करते हैं।  वे परामर्शदाता  की बात को शांति से सुनने के बजाय, इस बात से ही इंकार करते हैं कि उनका बच्चा कुछ गलत कर सकता है। 

मेरे अनुभवों में से एक उदाहरण उद्धृत करना है, जिसमें परामर्शदाता ने जब एक छात्र की माता को बताया कि उन्हे अपने बेटे के व्यवहार पर केवल ध्यान रखना होगा कि वह किसी भी नशीले पदार्थ की लत से प्रभावित नहीं हैं, उसकी माँ ने कह दिया कि परामर्शदाता ने उसके बेटे पर गलत इलज़ाम लगाया और उसके बेटे को कोई बुरी आदत नहीं हैं – एक महीने बाद वह इसी परामर्शदाता से केवल मिलने और यह स्वीकारने के लिए आई कि उनको अपने बेटे के कमरे में नशीले पदार्थ मिले है।

यह परामर्शदाता पर निर्भर होता है कि जब वे ऐसे विषय पर माता-पिता के साथ चर्चा करते हैं तो वह संवेदनशील रहे और उनको खतरे का संकेत दिए बिना परामर्श करें। 

माता-पिता, बच्चे के परामर्श में शामिल होने के लिए इस डर से भी प्रतिरोध करते हैं कि परिवार का रहस्य खुलकर सामने आ जाएगा। परामर्शदाता के लिए यह एक बड़ी चुनौती है. परामर्शदाता को अपने विवेक का इस्तेमाल करके माता-पिता को शामिल करना जरूरी है।

एक परामर्शदाता या शिक्षक जिसके पास छात्र को मदद पहुँचाने की अभियोग्यता है, वह माता-पिता से सहयोग ले सकता है।  माता-पिता को इस परिस्थिति में शामिल करने से पहले, परामर्शदाता को छात्र के साथ एक सामान्य समझ के साथ यह तय करना होगा कि कौनसी और कितनी बातें साझा की जाएंगी।  पर विशेष मामलों में, जैसे कि पहले कहा गया है, इस पड़ाव को छोड़ दिया जाए। 

उदाहरण के लिए, एक छात्र के माँ-बाप को कॉलेज के प्राधिकरण द्वारा तुरंत सूचित किया गया कि उन्हे दूसरे छात्र के पिता से एक शिकायत प्राप्त हुई है कि एक पुरुष छात्र ने उनकी बेटी को कॉलेज के कैंपस में पीछा किया और वह लड़की अब कॉलेज में आने से डर रही है।  ऐसे मामलों में परामर्श के साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की जरूरत है। कैंपस के परामर्शदाता को छात्र के हित में निर्णय लेने के लिए माता-पिता के साथ मार्गदर्शन करने हेतु सम्मान और आपसी विश्वास भरा रिश्ता स्थापित करना होगा। 

जब भी छात्र के माता-पिता के साथ बातचीत करने का अवसर मिले, जैसे माता-पिता / शिक्षक भेंट के रूप में (चाहे वह कॉलेजों में सामान्य भेंट के रूप में न हो), शिक्षक या परामर्शदाता को इसका उत्तम उपयोग करना चाहिए।  यह माता-पिता के लिए एक बड़ा आश्वासन होगा कि उनके बच्चों का ध्यान कॉलेज में भी रखा जा रहा है।

डॉ. उमा वरियर जैन विश्वविद्यालय, बैंगलूर की मुख्य परामर्शदाता हैं।

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