परीक्षा के दौरान आत्महत्या के लक्षण की पहचान कैसे की जाए?
क्या आप किसी स्कूल के बच्चे या किशोर को जानते हैं जो परीक्षाओं के दौरान चिड़चिड़ा या अत्यंत तनाव में नज़र आता है? आपको कभी आश्चर्य होता है कि वे इस तनाव को झेल पाएँगे या आपको चिंता होती है कि क्या होगा अगर....?
परीक्षा के कुछ सप्ताह पहले, परीक्षा के दौरान और फलितांश निकलने के कुछ दिन पूर्व छात्रों के लिए बड़े विकट होते हैं. वे बहुत ही तनाव में रहते हैं कि खुद की, अभिभावकों की या शिक्षकों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे या नहीं. ऐसे बच्चे पर आप द्वारपाल की तरह निगरानी रखें तो एक अभिभावक, शिक्षक या दोस्त के रूप में आप उसकी जान बचा सकते हैं. वयस्कों की तरह बच्चे अपनी भावानाओं को व्यक्त करने में या मदद माँगने में समर्थ नहीं होते हैं. उनके व्यवहार में परिवर्तन ही उनके संकट के लक्षण हैं.
बच्चे और किशोर, जिनके मन में आत्महत्या का विचार है, उनके व्यवहार में अस्वाभाविक परिवर्तन देख सकते हैं जैसे:
• मरने की इच्छा के बारे में बात करना या मरने की चाहत
• बिल्कुल चुपचाप रहना या कमरे में अधिकतर समय अकेले ही बिताना
• भोजन में परिवर्तन: बहुत ज्यादा खाना या बहुत कम खाना, अत्यधिक जंक फ़ूड़ खाना, अत्यधिक नमक वाले पदार्थ खाना या कैफ़ीन-युक्त एनर्जी पेय लेना
• अस्वभाविक रूप से मूडी होना; छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना या परेशान होना
• माता-पिता या भाई बहन पर अपने गुस्से को बाहर निकालना
• असामान्य रूप से चिंतित होना (भले ही वे स्वभाव से चिंतित नहीं हैं)
• ऐसी गतिविधियों में रुचि खो देना जिनमें पहले आनंद मिलता था
• दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने पर ज़ोर देना जैसे उनसे फिर कभी मिलने का मौका ही नहीं मिलेगा
• अपने कीमती सामान दूसरों को दे देना
• अचानक शराब या सिगरेट या ऑनलाइन खरीदारी पर निर्भर होना
जो छात्र अत्यंत तनाव में हैं, वे मौखिक संकेत प्रदान कर सकते हैं, जैसे- "अगर मैं मर जाऊँ, तो परीक्षा नहीं लिखनी पड़ेगी" या " सिर्फ़ मेरी वजह से आपको इतनी चिंता करनी पड़ रही है."
कौन कमजोर हो सकता है?
किसी भी छात्र के मन में, अपने अकादमिक प्रदर्शन के बावजूद आत्महत्या के विचार आ सकते हैं. वे छात्र अधिक खतरे में हैं जिन्होंने हाल ही में दर्दनाक अनुभव किया हो या जो अभिभावक, शिक्षक या खुद की भी उम्मीदों पर खरा उतरने की अत्यधिक चाह रखता हो.
मैं उनकी कैसे मदद कर सकता हूँ?
यदि आप किसी छात्र में ऊपर दिए गए लक्षणों में से एक भी लक्षण देखें तो उन्हें बताएँ कि आप उनकी मदद के लिए उपलब्ध हैं.
आप उसके व्यवहार में बदलाव के बारे में गौर करते हुए बातचीत शुरू कर सकते हैं. ये भी देखें कि कोई दूसरे लक्षण नज़र आते हैं या नहीं. धीरे से पूछें कि कहीं उसके मन में आत्महत्या का विचार तो नहीं आया है. अगर हाँ में जवाब मिले तो पूछें कि कितनी बार ये विचार आया है और ये भी पता लगाएँ कि कोई विशिष्ट तरीके के बारे में सोचा है क्या. (याद रहे कि आप किसी तरीके का उल्लेख न करें). ये पूछें कि ये सब सोचकर उन्हें कैसा महसूस होता है. इन सबसे आपको जोखिम के स्तर का आकलन करने में मदद मिलेगी और ये तय कर सकते हैं कि उन्हें किस तरह के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी.
यह एक गलत धारणा है कि किसी से पूछ लिया जाए कि क्या वे आत्महत्या का विचार कर रहे हैं तो वे निश्चित ही प्रयास करेंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि जब किसी के मन में आत्महत्या का विचार है और उनसे इस बारे में पूछा जाए तो उन्हें बड़ी राहत मिलती है कि कोई उनकी भावनाओं को सुनने व समझने के लिए तैयार है.
यह महत्त्वपूर्ण है कि एक द्वारपाल के रूप में, आप बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हुए उनकी बातों को सुनें. आप माता, पिता, शिक्षक या करीबी दोस्त हैं, तो आप अच्छे इरादों के साथ उन्हें आत्महत्या के बारे में विचार करने से रोकना चाहेंगे. इसके बजाए आप ये कहें कि आप उन्हें सुनने के तैयार हैं और समझ सकते हैं कि वे किस दौर से गुज़र रहे हैं.
अगर व्यक्ति कम जोखिम लेने वाले वर्ग में है, तो आप उपलब्ध रहें और उनके व्यवहार पर नजर रखें. उन्हें पता रहे कि आप ज़रूरत पड़ने पर उन्हें सुनने के लिए तैयार हैं.
वे उच्च जोखिम की श्रेणी में हैं (वे आत्महत्या करने की सोच रहे हैं, या प्रयास करने के बारे में सोचा है), तो उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें बताइए कि बड़े साहस के साथ उन्होंने चुनौतियाँ स्वीकार की हैं. जिस व्यक्ति से आपने बात की है उसने अगर बता दिया है कि आत्महत्या के साधन भी हैं तो उनसे पूछें कि क्या वे उन साधनों को आपको देना चाहेंगे. उनके साथ काम करें और इस नतीजे पर पहुँचें कि अगर अगली बार ऐसी चिंताजनक विचार आएँ तो आपको बुलाएँ ताकि कुछ साझा कर सकें.