बाहर निकलना या शामिल होना: भारत में मानसिक स्वास्थ्य और एलजीबीटी व्यक्ति

लिंग आधारित और यौन आधारित अन्तर के कारण कुछ प्रश्न सामने आते हैं जिसका सामना अन्य किसी को शायद ही करना पड़ता हो: कोई भी व्यक्ति स्वयं के बारे में दूसरों को क्या बताता है? वह कितनी जानकारी देता है और किसे? संबंधों के बारे में कैसी दृष्टि रखें? कहीं भी कोई व्यक्ति किसी अन्य से अपने अनन्य की भांति कब मिल सकता है? किसी भी व्यक्ति को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार को लेकर कैसे पहुंच बनानी चाहिये? अपने आप को कमतर न समझते हुए कोई भी स्वयं के लिये मदद कैसे प्राप्त कर सकता है?

इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करते समय, किसी ऎसे विश्व में रहना और काम करना जहां पर अधिकांश व्यक्तियों का व्यवहार मित्रवत नही है, कई बार सीधा सीधा भेदभावपूर्ण है, तब व्यक्ति के मन में इस प्रकार के प्रश्न आना स्वाभाविक है। भारतीय LGBT(QIA+) समुदाय (समलैंगिक, उभयलिंगी, द्विलिंगी, समलैंगिक, अन्तर्लिंगी, अलैंगिक और अन्य), जिनमें सामाजिक और परिवार संबंधी पूर्वाग्रह होते हैं, वैधानिक प्रक्रिया दमनकारी होती है, सुरक्षा और बचाव के लिये काफी कम स्थान होता है, इन सभी समुदायों से अलग वे स्वयं के लिये स्थान बनाते हैं।

किसी व्यक्ति की आन्तरिक वास्तविकता को लेकर विवाद होना और जिस प्रकार से इस विश्व से वे अलग है, यह मुख्य रुप से तनाव का कारण बन सकता है। यह मुद्दा तब शुरु होता है जब वह व्यक्ति कम उम्र का होता है, और यह सही है कि उनमें जो अन्तर होता है, उसे सभी के बीच कहा जाता है और अधिकांश समय पर सख्ती से और कतिपय स्वार्थी लोगों द्वारा मज़ाक के रुप में।

हमने 14 वर्षीय सत्या से मुलाकात की जो कि काफी अवसाद में था और स्वयं को ही नुकसान पहुंचा रहा था। सत्या से बात करते समय यह स्पष्ट था कि यौन संबंधी स्थिति और लिंग को लेकर जो स्पष्टता अधिकांश किशोरवयीन बच्चों में होती है, वह सत्या के साथ नही थी। प्रारंभ में ही यह स्थिति काफी भ्रमपूर्ण और सदमे जैसी थी, और जब सत्या ने इस बारे में अपनी मां से बात करना शुरु किया, तब अचानक उपेक्षा के रुप में आई हुई उनकी प्रतिक्रिया काफी परेशान कर देने वाली थी। सत्या बहुत ज्यादा तनाव में था। हमने परिवार के साथ मिलकर काम किया जिससे एक सुरक्षित अन्तर रखकर बात की जा सके, और सत्या को उसकी बढ़ती उम्र के बारे में, उसकी संवेदनाओं के बारे में, उसकी पहचान के बारे में जानकारी थी, और सौभाग्य से सत्या और सत्या के परिवार ने मिलकर इसके लिये काम किया। लेकिन इस प्रकार की सभी कहानियों का सुखान्त नही होता – अनेक एलजीबीटी युवा अपनी सहजता को दांव पर लगाकर काफी कठिन संघर्ष करते हैं जिससे वे किसी प्रकार सभी में शामिल हो सके, सामान्य बनकर अपना समय निकाल सके और जब यह संभव नही हो पाता, तब अन्तर पता चलने पर समस्याएं अपना रास्ता बना ही लेती हैं, छेडछाड, बदमाशी और इससे भी बदतर।

उदाहरण के लिये अरविंद को लें। भारत में एक प्रमुख इन्जीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थी के रुप में उसने यह अपेक्षा की थी कि उसे सही सम्मान और स्थान मिलेगा लेकिन जल्दी ही उसने अपने आप को सबकी हंसी का पात्र बना हुआ पाया, इसमें शामिल था कॉलेज के साथियों द्वारा पुरुष-पुरुष संबंधों के चित्र कॉलेज ग्रुप पर डाला जाना, उसकी बैग पर अश्लील सन्देश लिखना आदि। उसने इन सभी बातों को सहन किया परंतु इसके कारण उसके मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और बडे संघर्ष और मदद के चलते उसे इससे बाहर निकाल पाना संभव हो पाया।

यह तब और भी मुश्किल होता है जब कोई व्यक्ति लैंगिकता को लेकर सहज न हो या फिर बदलाव की स्थिति में हो। जन सुरेश, एक लैंगिक बदलाव से गुज़रने वाला व्यक्ति, एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करना शुरु करने के बाद, अपने आस पास के लोगों को इस बदलाव के बारे में जानकारी मिलने के बाद, उसकी अपेक्षा थी कि उसे स्वीकार्यता मिलेगी और नीतियों के अनुसार किसी प्रकार के भेदभाव का सामना नही करना होगा। पहले पहल तो सब कुछ इतना बुरा नही था – यह मान लिया कि उसका स्वागत गर्मजोशी से नही हुआ, लेकिन किसी ने भी उसके काम को कठिन नही बनाया, या फिर सुरेश का ही यह विचार था, जब तक कि उसकी टीम द्वारा उसे उसके जन्मदिवस पर एक उपहार बक्सा दिया गया जिसमें चूड़ियां और अन्य स्त्रियों के उपयोग की वस्तुएं थी। केवल यही एक बात ऎसी हुई थी जिसके कारण सुरेश को बहुत धक्का लगा और उसे संवेदनात्मक रुप से डरावना अनुभव लंबे समय तक होता रहा।

अल्पसंख्यक होने का तनाव, अथवा पूर्वाग्रह से संबंधित अनुभव, छेड़छाड़ होना या भेदभाव का शिकार होना, यह सब कुछ वास्तविक होता है। अनेक अनुभव होते हैं जो समाज में एलजीबीटी व्यक्ति को सीमित कर देते हैं:

  • उपेक्षा और छेड़छाड, यह घर और स्कूल से शुरु होता है।

  • शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्थान प्राप्त करना या पहुंच बनाना सीमित होता है या किसी डरावने अनुभव के समान होता है।

  • कार्यस्थल पर भेदभाव, सीधा या अप्रत्यक्ष होता है और इसके कारण व्यक्ति अपनी क्षमताओं के साथ पूरा न्याय नही कर पाता

  • अपने अधिकारों का उपयोग न कर पाना, इसमें आधारभूत अधिकार शामिल है जैसे चिकित्सकीय देखभाल आदि के कारण जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

इस प्रकार के अनुभवों के कारण एक निरंतर, अचेतन प्रकार की हानि आत्म व्यक्तित्व के रुप में होती रहती है जबकि कुछ स्थितियों में अत्यंत सदमा लगने जैसी परिस्थिति सामने आती है जिससे मन पर गहरी चोट लगती है, इसका प्रभाव किसी बीमारी के रुप में, जोखिमपूर्ण जीवन के रुप में और कई बार किसी अन्य व्यक्ति पर प्रभाव डालने की स्थिति में या यहां तक कि आत्महत्या के रुप में भी होता है।

पाश्चिमात्य परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तब रिपोर्ट्स की सिफारिश यह है कि एलजीबीटी व्यक्तियों को यह जोखिम लगभग तीन गुना अधिक होता है कि उन्हे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परिस्थितियों का सामना करना पड़े जैसे अवसाद या सामान्य व्यग्रता संबंधी समस्याएं आदि। एलजीबीटी युवा अन्य किसी भी व्यक्तियों की तुलना में आत्महत्या को लेकर चार गुना अधिक विचार करते हैं और प्रयत्न भी करते हैं। एलजीबिटी व्यक्तियों का एक बड़ा अनुपात किसी भी प्रकार के शोषण को लेकर अधिक संवेदनशील होता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में एलजीबीटी व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर शायद ही कोई महत्वपूर्ण आंकडे उपलब्ध हो और यह देखकर आश्चर्य भी नही होता क्योंकि राजनीतिक-वैधानिक तंत्र में किसी भी प्रकार की आत्म विश्लेषणात्मक स्थिति नही होती। बहरहाल यह तय है कि यह संख्या काफी अधिक है।

भले ही इसे आत्महत्या तक की अतिवादी सोच तक नही ले जाया जाए, सामाजिक व सांस्कृतिक कारकों के अनुरुप देखा जाए, तब जो भेदभाव एलजीबीटी जनसंख्या द्वारा भारत में देखा जा रहा है, उसके कारण इस समुदाय द्वारा अनेक प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का जोखिम झेला जा रहा है:

  • व्यग्रता और ड़र, अपनी पहचान को लेकर संशय, बाहरी महसूस होना, संबंध, स्वीकार्यता, सुरक्षा आदि

  • स्वभाव संबंधी मुद्दे, इसमें अवसाद भी शामिल है

  • आत्मस्थिति की संवेदना कम होना, आत्मसम्मान पर प्रभाव, काम का प्रदर्शन और जीवन की संतुष्टि संबंधी स्थिति में परेशानी

  • गुणवत्तापूर्ण मदद, स्रोत और मदद प्राप्त होना कठिन होता है और उनके साथ असुरक्षित व्यवहार होने की आशंका अधिक होती है।

यहां पर सबसे प्रमुख ध्यान रखने वाली बात है कि एलजीबीटी और संबंधित समुदाय में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे केवल उनके लिंग और यौन स्थिति के कारण नही होते। किसी व्यक्ति के लिंग या यौन स्थिति से संबंधित मानसिक मुद्दे होते ही नही हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे तब सामने आते हैं जब इस संसार द्वारा निरंतर उनके अलग होने को नकारा जाता है, उन्हे बार बार सबके बीच में अलग होने पर हीन और खराब समझा जाता है और यह वाकई बहुत तकलीफ देता है।

किससे मदद मिल सकती है

सकारात्मक सलाह देने और समुदाय के साथ जोड़ने जैसे दो महत्वपूर्ण कार्यों से एलजीबीटी व संबंधित व्यक्तियों को बेहतर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में रखा जा सकता है।

सकारात्मक सलाहकार के रुप में, हम यह बताते हैं कि प्रत्येक जीवन महत्वपूर्ण है और हमारे रोगियों को यह सोचने के लिये प्रोत्साहित करते हैं कि वे स्वयं को खोजें और स्वीकार करें और यह देखें कि वे भी बाकी किसी अन्य व्यक्ति के समान है, उनकी अपनी अस्तित्व की खोज को एक निर्माण के रुप में बदलते हैं, वे स्वयं को बेहतर तरीके से पहचान पाते हैं। हम उन्हे स्वास्थ्यकर विकल्प चुनने में मदद करते हैं, स्वयं को बेहतर और सार्थक स्वरुप में ढ़ालने में मदद करते हैं और जीवन के सही अर्थ को पाने में मदद करते हैं। हम इस बात को सिरे से नकार देते हैं कि किसी भी प्रकार का अन्तर होने से मानसिक या संवेदनात्मक मुद्दों का जन्म होता है और उन्हे यह पहचान करवाते हैं कि उन्हे सामाजिक भेदभाव या नकारात्मक व्यवहार के कारण इन चुनौतियों के आगे हारना नही है, किसी दमनकारी संस्कृति के सामने दबाव नही महसूस करना है और समाज के कुछ नियम हैं जो आवश्यक नही हैं कि उनके लिये काम करें, यह काफी तनावपूर्ण होता है।

समुदाय निर्माण, समुदाय के सदस्यों द्वारा और सेवा प्रदाताओं द्वारा किया जाता है, यह एलजीबीटी व संबद्ध व्यक्तियों के स्वास्थ्य को सकारात्मक स्वरुप देने के लिये एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वे सहायक, सुरक्षा और शिक्षा प्रदान करने वाले, पहुंच प्रदान करने वाले जो कि स्वास्थ्य सेवाएं और स्वस्थ जीवन संबंधी जानकारी के साथ ही वैधानिक आदि मदद प्रदान करने वाले होते हैं और आवश्यकतानुसार सहायता करते हैं। वे व्यक्तियों को आपस में जुड़ने में मदद करते हैं, स्वास्थ्य, ठीक होने संबंधी उनके अवरोधों को दूर करते हैं और उनके आन्तरिक आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करते हैम।

*पहचान की सुरक्षा करने हेतु सभी नाम बदल दिये गए हैं

सन्दर्भ:

महेश नटराजन इनर साईट काउन्सेलिंग एन्ड ट्रेनिंग सेन्टर एलएलपी के सलाहकार हैं (www.innersight.in)

Related Stories

No stories found.
logo
वाइट स्वान फाउंडेशन
hindi.whiteswanfoundation.org