साक्षात्कार: महिलाएं और मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में उनकी जटिलताएं

महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का कारण अनेक प्रकार के कारक होते हैं। इस साक्षात्कार में, व्हाईट स्वान फाउन्डेशन के चेयरमैन, सुब्रतो बागची की बातचीत डॉ प्रभा एस चन्द्रा से होगी जो कि महिलाएं, अवसाद और सामाजिक कारकों से संबद्ध होकर उनके योगदान के अकरण मनसिक स्वास्थ्य के मुद्दे का अधिक जटिल होना, उस विषय पर है। वीडियो साक्षात्कार के कुछ संपादित अंश लिखित रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।

सुब्रोतो बागची:  न्यू डायमेन्शन में आपका स्वागत है। मैं हूं सुब्रतो बागची और मेरे साथ स्टूडियो में आज है डॉ प्रभा चन्द्रा. डॉ, आपका स्वागत है। डॉ प्रभा चन्द्रा नैशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एन्ड न्यूरो सायन्सेस में विभागाध्यक्ष हैं। आप इन्टरनैशनल असोसियेशन फॉर वूमन्स मेन्टल हैल्थ की सचिव भी हैं। न्यू डायमेन्शन में हमारे मेहमान के रुप में आने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।

डॉ प्रभा चन्द्रा: मुझे खुशी हुई

सुब्रोतो बागचीआज हमारे लिये बड़ी खुशी की बात है कि आप हमारे साथ हैं और हम महिलाएं और मानसिक स्वास्थ्य इस विषय पर बात कर रहे हैं। परंतु मुझे बताईये कि आपका दिन कैसा बीता?

प्रभा चन्द्रा: दिन तो काफी व्यस्त रहा। यह मेरा आउटपेशन्ट दिवस थ और आज मैने अनेक महिलाओं को विविध प्रकार की समस्याओं के साथ देखा। कुछ युवा महिलाएं थी जिनमें बौद्धिक समस्याएं थी, जिन्हे लेकर उनके घर के सद्स्य चाहते थे कि वे विवाह करे। एक सॉफ्टवेयर इन्जीनियर थी जिसे यौन समस्याएं थी और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं थी जिनकी मुख्य जड मानसिक समस्याओं के रुप में ही थी। और कुछ महिलाएं थी जो गर्भ धारण करना चाहती थी लेकिन वे लंबे समय से अवसाद में है। उसने और उसके पति ने मुझसे बात की। तो अब तक तो यही था आज के लिये।

सुब्रोतो बागचीऔर चौथी महिला को क्या हुआ?

प्रभा चन्द्रा: चौथी महिला को वास्तव में भोजन संबंधी समस्या थी।

सुब्रोतो बागची :  अच्छा, इनकी आयु क्या थी, उदाहरण के लिये, क्या ये चारो महिलाएं (आयु) में थी?

प्रभा चन्द्रा: ये सभी महिलाएं 35 के अन्दर की आयु की थी। वाकई कम उम्र की थी।

सुब्रोतो बागची :  क्या यह तथ्य केवल शहरों में ही कार्यरत है या आपके अनुसार यह ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रसारित है?

प्रभा चन्द्रा: नही, ऎसा नही है। उदाहरण के लिये एक महिला जिसे बौद्धिक विकलांगता थ, वह देवनगरे नामक ग्राम से आई थी। और अन्य एक महिला नेल्लोर से आई थी, तो यह केवल शहरी मामला नही है। यह भारत के प्रत्येक कोने में है।

सुब्रोतो बागची :  तो यह मुद्दा शहर गांव का मुद्दा नही है, न ही यह अमीर गरीब का मुद्दा है।

प्रभा चन्द्रा: नही, बिल्कुल नही।

सुब्रोतो बागची :  मुझे इस बारे में आपके विचार जानने की उत्सुकता है I हमारा देश 1.2 बिलियन लोगों से बना है और हमें यह बताया जाता है कि यहां पर 4000 मानसशास्त्री हैं और लगभग 10000 व्यक्ति प्रशिक्षित चिकित्सकीय व्यवसाय से जुडे व्यक्ति हैं। यह वाकई समुद्र में एक बूंद की भांति है। और इसमें भी 1.2 बिलियन लोगों में से 50% महिलाएं है। लेकिन मुझे यह बताया गया है कि 50% की यह संख्या केवल समस्या का 50% नही है। और कुछ लोगों का कहना है कि महिलाओं की मानसिक समस्याएं एक बड़ा मुद्दा है, केवल व्यक्तिगत समस्याओं से संबंधित ही नही, कई बार मौन स्वरुप में लेकिन देखभाल करने वालों के लिये। इसके साथ ही, परिवार इकी धुरी होने के नाते, इसका प्रभाव काफी बड़ा होता है। तो हमें बताईये कि आप महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर क्या विचार रखती हैं – क्या हम मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सही ध्यान दे पा रहे हैं?

प्रभा चन्द्रा: मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा बिन्दु है और मैने इसके बारे में हमेशा से ही सेओचा है। महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को हमेशा पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य के स्थान पर ज्यादा महत्व क्यों दिया जाता है? महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित संस्थान हैं, पुस्तके भी हैं। उदाहाण के लिये इन्डियन सायकेट्रिक सोसायटी के पास महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी एक टास्कफोर्स है, लेकिन पुरुषों के लिये यह नही है। इसलिये, वास्तविकता में ही कोई मुद्दा तो है यहां पर।

लिंग पर आधारित मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं भी अनेक प्रकार से बदल सकती है। इसलिये मुझे पक्का यकीन है कि पुरुषों को भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं होती हैं और उनकी समस्याएं अलग होती हैं।लेकिन मुझे लगता है कि महिलाओं की मानसिक समस्याएं एक इतना महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है कि अवसाद की स्थिति में या अन्य किसी भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति में, महिलाएं पुरुषों से अधिक दिखाई देती हैं।

सुब्रोतो बागची :  तो आप मुझे यह बताना चाहती हैं कि महिलाओं को कुछ प्रकार की श्रेणियों के साथ जैविक आधार पर या सामाजिक आधार पर, या दोनो प्रकार से समस्याएं होने की आशंका है?

प्रभा चन्द्रा: यह सही है। और मैं इसे वास्तव में एक त्रिकोण के रुप में दिखाना ज्यादा पसंद करती हूं। आपके पास एक तो है सामाजिक, एक है सांस्कृतिक और तीसरा है मानसिक। इसलिये महिलाएं पुरुषों से अलग बनी हुई होती हैं, मानसिक तौर पर। और यह केवल जैविक या सामाजिक लिंग निर्माण में ही मौजूद नही है। अनेक अन्य तरीके हैं जिसमें महिलाओं को अपनी समस्याओं का सामना करना होता है – जिस तरह से वे बाते करती हैं, अपनी समस्याओं को सुलझाती हैं, वे एकदम अलग तरीके से महिला हैं। इसलिये मुझे लगता है कि महिला अपनी जटिलताओं के बीच पूरी शक्ति के साथ जो योगदान देती है उसके लिये उसे इस त्रिकोण का सम्मान मिलना चाहिये।

सुब्रोतो बागची :  हम महिला शब्द का उपयोग करते है, लेकिन हम एक पूरे जीवनकाल के बारे में बात करते हैं, इस संसार में आने वाली नवजात बालिका से लेकर किशोरावस्था, यौवनारंभ, किशोरावस्था, युवा और एक महिला। साथ ही आगे की स्थितियां भी आती है। तब क्या स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, महिला के युवावस्था में अधिक होते हैं?

प्रभा चन्द्रा: बिल्कुल सही है। मेरी सोच है कि यही एक कारण है जिसके चलते महिलाओं की मानसिक समस्याएं अलग होती है। जीवन के विविध स्तर है जिसमें उनके प्रजनन के चक्र को लेकर महिला के मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को तय किया जा सकता है। प्रत्येक भौतिक स्वास्थ्य में जीवन के चक्र दिखाई देते है। उदाहरण के लिये, यौवनारंभ का समय युवा लड़कियों के लिये बदलाव का प्रमुख मोड है। और इससे पहले, महिलाओं को समान समस्याओं से दो चार होना पड़ता है खासकर अवसाद और व्यग्रता। साथ ही यौवनारंभ के कारण लड़कियों में अचानक अवसाद होने की समस्या लड़कों की तुलना में बहुत ज्यादा है।

सुब्रोतो बागची : चलिये महिलाओं के बारे में, स्त्रीत्व के बारे में बात करते हैं जो उस समय से शुरु होता है जब किसी भी लडकी का यौवनारंभ होता है और वह बड़ी होती है, उसके प्रजनन चक्र के विकास के साथ। विविध चक्रों से आगे जाते हुए, क्या आप विविध मानसिक मुद्दों को देख पाते हैं जो एक महिला के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित हैं?

प्रभा चन्द्रा: मुझे लगता है कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसलिये हम शुरु करते हैं जन्म से लेकर यौवनारंभ तक। मुझे लगता है कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे अधिक महत्व नही दिया जाता अहि। अनेक परिवारों में, लड़की पैदा होने पर कोई समारोह नही किया जाता, खासकर कुछ स्थितियों में। इसके साथ ही लड़की को, लड़के के समान सम्मान और तरजीह नही दी जाती है और उसे बहुत अलग तरह से व्यवहार दिया जाता है। इसलिये मुझे लगता है कि अधिकांश लडकियां, बचपन से ही इस विचार के साथ बडी होती हैं कि वे परिवार की दोयम दर्जे की नागरिक हैं। और उन्हे जो भूमिकाएं दी जाती हैं, वे भी बहुत शक्तिशाली नही होती हैं , उन्हे शांत रहने, देखने लेकिन न बोलने की शिक्षा दी जाती है जो अनेक परिवारों के लिये सही है। मेरी सोच है कि यह ऎसा क्षेत्र है जहां पर जटिलता है, जब भी वह किसी परिवार में प्रवेश करती है, उसे स्वयं भी अपनी भूमिका के बारे में पता नही रहता है।

सुब्रोतो बागची : तौसके लिये जो स्थितियां तैयार की जाती हैं, उसमें उसे स्वयं की स्थिति के बारे में जानकारी नही होती और इसमें उसके मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे सामने आते हैं।

प्रभा चन्द्रा: यह सही है। इस स्थिति के कारण जटिलता पैदा होती है – सम्मान नही मिलना और परिवार में कोई स्थान मुश्किल से मिल पाना। साथ ही हम यह भी जानते हैं कि उनका शोषण, यौन शोषण युवा लडकियों में, लडकों के स्थान पर अधिक होते हैं।  इसके साथ ही यदि यह होता है, तब इसमें समस्या यह होती है कि यदि उसके द्वारा यह बात बताई जाती है, तब उसे आवश्यक सुरक्षा नही दी जाती, अथवा वह किसी को बताती है, तब कोई उसपर विश्वास नही करता, यहां पर समस्या होती है और जटिलता बढ़ती जाती है।  और यदि इस स्थिति में परिवार में बिखराव होता है, यह उनका अपना मुद्दा होता है। मता पिता यहां पर बच्चों के साथ खडे नही रहते हैं और यहां पर एक और जटिलता सामने आती है और यह लडके और लडकियों के लिये समान हो सकती है। लेकिन लडकियों की स्थिति में, जटिलताएं ज्यादा होती है। इसके बाद यौवनारंभ होता है। अब यौवनारंभ लडकियों के लिये बेहतर स्थिति है, सब कुछ अच्छा होने वाला है, वह सही दिशा में बढ़ रही है। परंतु हारमोन की स्थिति के अनुसार और मस्तिष्क में कुछ समस्याएं बनना शुरु हो जाती है और इसके कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे अवसाद का होना युवा लड़कियों में लडकों की तुलना में चार गुना अधिक होता है। इसलिये इसपर चर्चा की जानी चाहिये।

सुब्रोतो बागची :  अच्छा, तब इनमें से कौन सी स्थिति होती है जो अनिवार्य रुप से यात्रा का हिस्सा है और उसपर ध्यान देना आवश्यक है?

प्रभा चन्द्रा: यह कहना कठिन है...

सुब्रोतो बागची : लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते, आपको य महसूस करना होता होगा, इसमें 50% स्थितियों में अवसाद बहुत ज्यादा बढ़ चुके होते हैं...?

प्रभा चन्द्रा: नही, यह इस तरह से नही है। यह केवल यौवनारंभ नही है जिससे लडकियां अवसाद में आती है और आगे यह सिलसिला चलता रहता है। लेकिन जैसा कि कहा गया है, उम्र 13-14 साल की हो या 80 वर्ष की, महिलाओं में अवसाद का दर चार गुना ज्यादा होता है।  इसलिये इसमें यौवनारंभ भी अपना असर दिखाता है। इसलिये यह हारमोन का असत होता है जो शरीर में पहले से ही जटिल स्थितियों को और भी उलझाने का प्रयत्न करता है।

सुब्रोतो बागची :  तो वैसे आपका कहना है कि सब कुछ बराबर रहता है, किसी लडकी या महिला को अवसाद या व्यग्रता होने का खतरा ज्यादा होता है।

प्रभा चन्द्रा: और उसके बाद, आपका प्रश्न जो कि प्रजनन जीवन के संदर्भ में है। तो इसलिये आप जानते हैं कि अनेक महिलाएं इस प्रकार के वातावरण में बडी होती हैं। उन्होंने पढ़ाई की होती है और फिर उनका विवाह हो जाता है। और शहरी, पढ़ी लिखि महिलाओं में से भी इन्हे खींचकर ऎसे वातावरण में डाल दिया जाता है, जहां पर सब कुछ अनजाना है।

सुब्रोतो बागची :  तब उन्हे ये सब कुछ फिर से शुरु करना होता है

प्रभा चन्द्रा: उन्हे सब कुछ फिर से शुरु करना होता है। इसलिये वे सारे संबंध जो उन्होंने बनाए होते हैं, वे सब टूट जाते हैं और उससे अपेक्षा की जाती है कि वह दैनिक जीवन में एकाध सप्ताह के समय में नवीन वातावरण के साथ सामंजस्य बैठा ले।

सुब्रोतो बागची :  आपको जीवन में बार बार अजनबी बनने के लिये दबाव डाला जाता है।

प्रभा चन्द्रा: ये बिल्कुल सही है और इसके कारण जीवन में फिर से अजीब सी जटिलता आ जाती है। इसलिये अनेक लडकियां यही सोचती हैं कि यही उनकी नियति है, उनकी संस्कृति में यही स्वीकार्य है, आपको पता है कि आपको यह करना है, कैसे भी इसे करना ही है। लेकिन आप किसी ऎसी स्त्री में से एक है जिसके जीवन में पहले से ही कोई समस्या है, तब उसे इस स्थिति में स्वयं को ढाल पाना अत्यंत मुश्किल होता है। और कई बार आप बहुत ज्यादा दूर चले जाते हैं। खासकर भारत में, यह संस्कृति है कि आप एक बार अपने पति के घर जाते हैं, तब वह परिवार आपका मुख्य परिवार बन जाता है और आपको अपने माता पिता पर निर्भर रहने की आवश्यकता नही होती, माता पिता ही आपको यह दबाव बनाते हैं कि तुम्हे इस परिवार में ढल जाना होगा। तब इस व्यक्ति द्वारा क्या किया जाना चाहिये? आपको पता है, मैं अक्सर पुरुषों से यह पूछती हूं कि यदि आपको यह करना पडे तब, यदि आपको स्वयं को किसी अनजान परिवेश में जाकर उस परिवार को अपना मानकर आगे बढ़ना हो, तब क्या आप यह कर पाओगे?

सुब्रोतो बागची :  इस मामले में फिर क्या पश्चिमी महिलाएं ज्यादा बेहतर हैं?

प्रभा चन्द्रा: यह संभव है कि उनके साथ इस प्रकार की परेशानी नही आती है। यह जटिलता हमारे भारतीय समाज में ही है। पश्चिम में, पति और पत्नी समान स्तर पर एक दूसरे का साथ देते हैं।

सुब्रोतो बागची :  समानता का भाव आ जाता है।

प्रभा चन्द्रा: और यह अपने आप में चुनौतियों से भरा होता है। लेकिन यहां पर महिला को ही सभी प्रकार सेबदलना होता है यहां तक कि उसका पति भी उससे अनजान होता है। वह उसके लिये मदद करने वाला इत्यादि नही होता है। वह अलग होता है।

सुब्रोतो बागची :  तो डॉक्टर, आपके रोजाना के काम में, जब आप एनआईएमएचएएनएस में काम करती हैं, अलग अलग प्रकार से कब अधिक लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ आते हैं?

प्रभा चन्द्रा: मुझे लगता है कि यह प्रश्न मेरे लिये है, यह हमेशा विवाह के तुरंत बाद सामने आता है।यह समय होता है जब बहुत सारी युवा महिलाएं इसका सामना करती हैं। या फिर ज्यादा सही कहें, तो महिलाएं जो कि बीस से तीस या पैंतीस के बीच की होती है। यह समय विवाह के बाद का समय होता है। और यह वह समय होता है जब विवाह के दो से तीन साल के बाद पति के परिवार के लोग यह सोचने लगते हैं कि महिला में कोई समस्या है, वह सबके साथ मिलकर रह नही सकती है और कई बार यह कहा जाता है कि “वह हमारा सुनती नही है” वह काम नही कर सकती है.... कल एक व्यक्ति मेरे पास आकर कहने लगा कि वह मेरे शर्ट का कॉलर अच्छे से धो नही सकती है। और यह कारण था कि उस व्यक्ति ने सोचा कि महिला के साथ कोई समस्या है। तो अपेक्षाएं तो बहुत ज्यादा होती हैं।

सुब्रोतो बागची :  ऎसा लगता है कि पुरुषों को ही समस्या है।

प्रभा चन्द्रा: देखिये, आप जानते हैं, कई बार अपेक्षाएं इतनी ज्यादा होती हैं कि आप पर लेबल लगा दिये जाते हैं – वह धीमा काम करती है, वह रोजाना के काम नही कर सकती, उसके काम पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है न कि उसके साथ पर, या फिर उसकी आवाज सुनना और यह जानने का प्रयत्न करना कि उसे क्या हो रहा है। इसलिये मुझे लगता है कि यह काफी जटिल स्थिति है। और इससे पहले कि आपको कुछ और पता चले, वह गर्भवती होती है। इस प्रकार से उसके लिये सारी समस्याएं बढ़ जाती है और उसका कोई नियंत्रण गर्भ धारण और बच्चे से संबंधित नही होता है। अब इस महिला की बात लीजिये जो मेरे पास आज आई थी। उसके विवाह को तीन महीने हुए हैं। वह स्वयं फार्मासिस्ट है। उसे मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है और वह कहती है कि मैं यहां पर बच्चे के बारे में सलाह लेने आई हूं। उसका कहना है कि वह अभी बच्चे के लिये तैयार नही है। लेकिन उसका पति कहता है कि उसकी सास का कहना है कि उसे बच्चा चाहिये और हमें यह सुनना होगा। मुझे लगता है कि इस स्थिति में जो भी महिला होगी, वह नकारात्मक रुप से प्रभावित होगी ही। क्योंकि वह अभी मां बनने के लिये तैयार नही है और उसपर इतना दबाव है जिससे उसे मानसिक स्वास्थ्य की समस्या हो सकती है। इसलिये मुझे लगता है कि यह समय जटिलताओं से भरा होता है।

सुब्रोतो बागची :  चलिये मुझे पूछने दीजिये, कैसे पूछू इस प्रश्न को। किसी व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या है – जैसे कि इस महिला को जैसा कि आपने बताया, तब उसने क्या यह करना चाहिये, क्या यह सही है कि व्यक्ति बच्चा पैदा करे? यह बच्चा बहुत जोखिम में होगा क्योंकि जीवन साथियों में से एक या दोनो को मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है?
 

प्रभा चन्द्रा: सही है, तो सबसे पहली बात तो शादी को लेकर है। और दूसरी बात है बच्चे से संबंधित। अब प्रत्येक मनुष्य को यह अधिकार है कि वह जीवन साथी चुने और दोनो मिलकर यह अधिकार रखते हैं कि वे बच्चे के बारे में सोचे। तब आप यह सोचिये कि आपके अधिकार, आपकी सोच, सारे ही इससे जुड़े हैं। कोई भी व्यक्ति विवाह क्यों करता है, क्योंकि उसे साथी चाहिये होता है, बराबरी का साथी, कोई ऎसा जो उसकी देखभाल करे और जिसकी आप भी देखभाल कर सके। लेकिन सामाजिक स्तर पर बहुत अलग होता है। यह आपका नाम ऊंचा करने वाली घटना बन जाती है कि आप विवाहित है। अनेक माता पिता महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को छुपाते हैं। और यह महिलाओं के लिये पुरुषों से ज्यादा है। और इस प्रकार से वे सोचते हैं कि उनका विवाह...

सुब्रोतो बागची :  फिक्स करें

प्रभा चन्द्रा: जी हां, उन चीजों को फिक्स करें जो पूरी तरह से गलत है, और दूसरी बात यह है कि वे यह सोचते हैं कि...

सुब्रोतो बागची :  इससे शायद इसे और बढ़ावा मिले।

प्रभा चन्द्रा: हां, क्योंकि इस प्रकार के तनाव से महिला गुज़रती है। साथ ही, वे यह सोचते हैं कि यह सही है कि उसके होने वाले पति को इस बारे में न बताया जाए। क्योंकि आप जानते ही हैं कि कोई भी व्यक्ति अवसाद, तनाव आदि शब्दों को सुनने के बाद उससे शादी नही करेगा और मुख्य समस्या को लेकर कोई बाते नही होंगी।

सुब्रोतो बागची :  तो आपने उसे सहारा दिया।

प्रभा चन्द्रा: मेरा कहने का अर्थ है, कि उन लोगों के मन में यही था कि वे उनकी बेटी के लिये सही कर रहे हैं। उन्हे चिन्ता है कि उनके बाद उसका जीवन कैसा होगा, इसकी देखभाल कौन करेगा। इसलिये उनके अनुसार वे सही कर रहे हैं।

सुब्रोतो बागची :  तो डॉक्टर, मुझे पता है कि हमारे पास समय कम है – मैं यह चाहूंगा कि आप हमें बताएं कि एक बेहतर तरीके से बिटिया के जन्म और उसके स्त्री होने तक की स्थिति को लेकर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां और समस्याएं कैसे सामने आती हैं। साथ ही इसमें कौन सी स्थितियां हैं जिसे लेकर चिकित्सा संबंधी समुदाय को कुछ ऎसाकरना चाहिये कि जिस प्रकार से आज हम इस मुद्दे को हल कर रहे हैं, भविष्य में यह आसान हो सके?

प्रभा चन्द्रा: देखिये, सबसे पहले तो मुझे लगता है कि हमें बच्ची के लिये, जन्म के साथ ही घर पर सुरक्षित वातावरण बनाना चाहिये।

सुब्रोतो बागची :  तो, यह पहचान लेने के बाद कि लडकियां खासकर यौवनारंभ से पूर्व की स्थिति में ज्यादा जोखिम पर होती है। उसे इस प्रकार के लोगों के बीच रखा जाना चाहिये जो उसे सुरक्षा का एहसास करवाएं। तब बढ़ती उम्र में उसके लिये यौन संबंधी व्यवहार सही होगा?

प्रभा चन्द्रा: मेरा कहना है कि हम उसका सम्मान करे, उसे मान्यता दे, यह सुनिश्चित करें कि वह सुरक्षित रहे, उसके पास अपना एक स्थान होना चाहिये जहां वह अपने बारे में बोल सके, उसकी बातें सुनी जा सके, उसे सही शिक्षा और स्रोतों की पार्श्वभूमि दी जानी चाहिये जिससे वह वास्तव में अपने निर्णय स्वयं ले सके। ये सबसे पहली बात है। दूसरी बात है उसे आगे समय के लिये तैयार करना। हारमोनल बदलाव आदि, उसे कौशल के साथ भी तैयार किया जाना चाहिये। लड़कियों को सामान्य रुप से वाद विवाद निपटाने के कौशल नही सिखाए जाते, मेरा मतलब यह है कि ये तो लड़कों को भी नही सिखाए जाते लेकिन लड़कियों के लिये ये ज्यादा जरुरी इसलिये है क्योंकि वे किसी भी घटना की धुरी होती हैं। इसलिये उसे अपने विचारों और संवेदनाओं के साथ बेहतर तरीके से काम करना, स्वयं को शांत करना सिखाना होगा क्योंकि उसके सामने अनेक चुनौतियां आने वाली हैं। उसे मातृत्व के लिये तैयार करना: मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है। यहां तक कि मानसिक रुप से बीमार महिला भी मां बन सकती है। और हम सभी ने अनेक स्थितियां देखी है कि कैसे वे बेहतर मां बन सकती है। और मेरा यह विचार है कि सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम उन्हे तैयार कर दें और यह सुनिश्चित करें कि वे मां बनने के लिये तैयार है। इन सारी जटिलताओं के बाद, यदि वह तैयार नही है, तब वह इसे समाज के लिये, पति या सास ससुर के लिये कर रही है और इसमे जोखिम है। मेरा मानना है कि मां का तैयार होना सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि बच्चा उसी के गर्भ में आना है और उसने स्वयं एक बेहतर नागरिक को तैयार करने के लिये तैयार होना चाहिये। इसलिये, मेरा विचार है कि महिला के जीवन पर सही मायनों में ध्यान दिये जाने की जरुरत है। और यहां पर मैं कहूंगी कि जीवन साथी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।

सुब्रोतो बागची :  तो, डॉक्टर, आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो इतनी अच्छी जानकारी आपने हमें दी। एक बात मैं यहां पर आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि क्या आप महिला और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमारे इतने बड़े श्रोता समूह को अपनी ओर से कोई सन्देश देंगी? या इस श्रोता समूह में कोई विशेष समूह जिन्हे आप मदद करना चाहे?
 

प्रभा चन्द्रा: देखिये, मुझे लगता है कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि किसी भी महिला के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को हम सुनिश्चित करें। लेकिन यदि मुझे कोई समूह चुनना होगा, तो मैं कहूंगी कि वे पुरुष है। क्योंकि मेरा सोचना है कि महिला एक पुरुष के जीवन का हिस्सा है और एक तरीके से वे जोखिम में भी हैं। इसलिये पुरुषों के कारण ही अनेक जटिलताएं पैदा होती हैं। पुरुष ही वे साथी होते हैं जिनसे महिला अपनी बात कह सकती है। मेरा कहना है पिता, भाई, जीवन साथी, पति, बेटे और उन सभी को मैं यहां पर कहना चाहूंगी। यदि वे महिला की जटिलताओं को समझे, केवल उसके गुस्से, या व्यग्रता या परेशानी के आगे जाकर देखेंगे, तब आप यह समझ पाएंगे कि वास्तव में उसे परेशानी क्या है। आप जान पाएंगे कि उसपर क्या गुज़र रही है। आपको उसकी कमजोरियों और गुणों को पहचानकर अपनी ओर से यह प्रयत्न करना चाहिये कि उसे ऊर्जा दें। आपको सिर्फ उसकी कमज़ोरियों पर ध्यान एकाग्र करने की जरुरत नही है आपको उसे शक्ति देने, उसे सुरक्षा देने की जरुरत है औअ र्जब आप यह देखेंगे कि महिलाएं वास्तव में शक्तिवान, स्थिर और बेहतरीन होती हैं कि वे इतनी सारी समस्याओं से जूझने, मानसिक बीमारी या अवसाद या किसी भी अन्य बीमारी के बाद भी वह अपने अस्तित्व को लेकर सजग होती है। वह एक ऎसा व्यक्तित्व है जो तंत्र से लढ़ना चाहता है। इसलिये मुझे लगता है कि पुरुष इस बात को समझ सके, तो इससे बेहतर कुछ नही हो सकता।

सुब्रोतो बागची :  तो मुख्य रुप से देखा जाए, तो 1.3 बिलियन में से 50% की सहायता मिल सके तो हम यह मान सकते हैं कि महिलाओं की समस्याओं को दूर करना संभव है। परंतु जैसा कि आपने कहा कि महिलाओं की समस्याओं को हम महिलाओं की मानकर सीमित कर देते हैं। लेकिन आपके अनुसार हमें इसमें पुरुष को आगे लाना चाहिये। और इससे निश्चित रुप से नवीन आयाम मिल सकेंगे। आपका बहुत बहुत धन्यवाद डॉक्टर, आपकी उपस्थिति से हम गौरवान्वित हैं।

प्रभा चन्द्रा: बहुत बहुत धन्यवाद।

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