क्लाइंट के तथ्यों की गोपनीयता: मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के पास जाने से पहले यह बातें जान लें

क्लाइंट के तथ्यों की गोपनीयता: मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के पास जाने से पहले यह बातें जान लें

यदि आप किसी मानसिक बीमारी का उपचार कराने जाते हैं तो आपके द्वारा दी गई जानकारी को गोपनीय बनाए रखने के बारे में क्या कोई कानून है? यदि हाँ, तो ये किस हद तक मददगार हैं?

मानसिक बीमारी की अवस्था में किसी मनोचिकित्सक से इलाज के दौरान आपकी जानकारियों को गोपनीय रखने के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें अनुच्छेद 23 (गोपनीयता का अधिकार), 24 (मानसिक बीमारी के संबंध में सूचना जारी करने पर प्रतिबंध), और 25 (चिकित्सा रिकॉर्ड प्राप्त करने का अधिकार) जैसी धाराएं शामिल हैं।

इन अनुच्छेदों में अपवाद के रूप में उन परिस्थितियों का भी उल्लेख है, जब गोपनीयता के नियम का पालन करना जरूरी नहीं है। जैसे न्यायालय के आदेश पर गोपनीयता को भंग किया जा सकता है।

यह जानने के लिए कि मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के कार्यों और क्लाइंट के साथ उनकी बातचीत के दौरान ये नियम किस संदर्भ में काम में आते हैं, व्हाइट स्वान फाउंडेशन की श्रुति रवि ने डॉ. सुनीता साइमन कुर्पद से बात की। डॉ. सुनीता सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरू में मनोचिकित्सा की प्रोफेसर और चिकित्सा आचार संहिता विभाग की प्रमुख हैं।

इन सवालों का जवाब भले ही नैदानिक मनोचिकित्सा के दृष्टिकोण से दिया गया हो, लेकिन ये नियम उन सभी लोगों पर लागू होते हैं जो इस अधिनियम के तहत 'मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर' की योग्यता रखते हैं।

मनोचिकित्सक, नैदानिक मनोवैज्ञानिक एवं मनोरोगियों की देखभाल करने वाली नर्स के अलावा ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता, जो किसी प्रदेश प्राधिकरण के तहत पंजीकृत हैं, वे भी कानूनी रूप से 'मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। हालांकि इसमें परामर्शदाता शामिल नहीं हैं, लेकिन गोपनीयता के सिद्धांत उनके लिए भी समान हैं।

Q

पहली बार किसी मनोचिकित्सक से मिलते समय क्या मुझे शुरुआत में ही उनसे गोपनीयता के बारे में सवाल पूछना चाहिए? क्या वे मुझे इस बारे में बताएंगे?

A

सत्र के शुरुआती दौर में, जब उपचार प्रारंभ किया जाता है, उससे पहले, गोपनीयता के बारे में जानकारी दी जाती है। यह विशेष रूप से किसी ऐसे व्यक्ति के मामले में जरूरी है जो खुद की इच्छा से ही मदद लेने आता है।

लेकिन, कभी-कभी कुछ ऐसे मरीज भी आते हैं जो मुझसे सीधे गोपनीयता के बारे में पूछते हैं, खासकर तब, जबकि मैं रिश्तों जैसे संवेदनशील विषयों को लेकर सवाल पूछती हूं।

Q

पहले सत्र में किस तरह की जानकारी दी जाती है?

A

मैं क्लाइंट को बताती हूं कि जो भी जानकारी वह मुझसे साझा कर रहे हैं, वह गोपनीय रहेगी जब तक कि ऐसी स्थिति न हो जहां उनके द्वारा स्वयं को या किसी अन्य को नुकसान पहुंचाने का खतरा हो।

Q

क्या आप इसका कोई उदाहरण बता सकती हैं?

A

हमारे पास अक्सर बहुत सारे छात्र आते हैं। हम उन्हें बताते हैं कि उनके पास अपनी जानकारी गोपनीय रखने का अधिकार है। लेकिन मैं उन्हें पहले से सूचित कर देती हूं कि, अगर ऐसी स्थिति समझ में आती है, जहां वे खुद के लिए या अन्य किसी के लिए खतरा बन सकते हैं, तो मुझे उनके कानूनी अभिभावकों के साथ यह जानकारी साझा करनी होगी।

अक्सर, कोई भी छात्र यह नहीं चाहता कि उसकी समस्या के बारे में उसके कानूनी अभिभावकों को पता चले, इसलिए मैं किसी वैकल्पिक व्यक्ति के बारे में पूछती हूं। लेकिन अगर आत्महत्या का खतरा है तो मैं उनके माता-पिता या कानूनी अभिभावक से संपर्क करना पसंद करती हूं। उस परिस्थिति में मैं छात्र को सूचित करती हूं कि यहां मुझे गोपनीयता तोड़नी होगी।

जो भी जानकारी साझा की जाएगी वह केवल उस स्थिति तक ही होगी जो हालात को संभालने के लिए जरूरी है। अगर व्यक्ति अपने साथी के साथ संबंधों को लेकर या जो कुछ उनके बीच हुआ है उसे लेकर आत्महत्या के बारे में सोच रहा है तो यह ऐसी जानकारी उसके माता-पिता या अभिभावक को बताना आवश्यक नहीं है। तब मैं उस छात्र को समझाती हूं कि कौन सी जानकारी जो उनके अभिभावक को बताऊंगी और कौनसी बात नहीं बताऊंगी।

ऐसी स्थिति में मैं छात्र के सामने ही माता-पिता से बातचीत करती हूं ताकि उसे यह स्पष्ट रूप से पता हो कि मैंने क्या-क्या जानकारी उनसे साझा की है और इसे लेकर कोई गलतफहमी न हो। मैं उसके माता-पिता से बात करने के लिए छात्र के फोन का ही उपयोग करती हूं और उसके सामने ही कॉल करती हूं।

Q

क्या होगा यदि मुझे अपनी ऑफिस से भेजा गया हो? क्या उस स्थिति में मेरे गोपनीयता का अधिकार मान्य रहेगा?

A

कभी-कभी, जब कोई कर्मचारी ठीक तरह से काम नहीं कर पा रहा है और ऑफिस को उसके व्यवहार में कुछ गड़बड़ी दिखती है तो कंपनी उसे यह कहकर भेज सकती है कि उसे मनोरोग मूल्यांकन की आवश्यकता है।

(पाठक के लिए स्पष्टीकरण: कर्मचारी सहायक कार्यक्रम (ईएपी) के माध्यम से परामर्श तक पहुंचने वाले कर्मचारी के बारे में यह माना जाता है कि वह स्वयं की इच्छा से मदद लेने के लिए पहुंचा है, भले ही उनके प्रबंधक या संगठन ने उसके परामर्श केंद्र जाने की सिफारिश की हो। यहां गोपनीयता का अधिकार लागू रहेगा- उस अपवाद को छोड़ते हुए जहां व्यक्ति स्वयं को या किसी और को नुकसान पहुंचा सकता हो।)

कर्मचारी को मनोचिकित्सक के पास भेजने के बारे में कंपनी का कहना हो सकता है कि वे कर्मचारी की परेशानी दूर करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, जबकि कर्मचारी को इस बात की चिंता हो सकता है कि कहीं उसे नौकरी से निकाले जाने के इरादे से कंपनी ऐसा तो नहीं कर रही है?

इस स्थिति में, मूल्यांकन शुरू करने से पहले, हम शुरुआत में ही उस व्यक्ति को सूचित कर देते हैं कि मूल्यांकन के उद्देश्य के बारे में सूचित कर देते हैं - वह यहां पर जो भी जानकारी साझा करता है, वह कंपनी के साथ भी साझा की जाएगी, और इसका मतलब व परिणाम क्या हो सकते हैं।

कई ऐसी कंपनियां हैं जहां मनोवैज्ञानिक-दृष्टिकोण वाला एचआर विभाग होता है। वे कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें परामर्श के लिए हमारे पास भेजते हैं इस वास्तविक इरादे के साथ कि वह कार्यस्थल पर बेहतर प्रदर्शन कर सके। ऐसे मामलों में, कर्मचारियों का रवैया भी सहयोगपूर्ण होता है और वे कैसा महसूस कर रहे हैं, इस बारे में खुलकर बताते हैं। उपचार की मदद से वह सफलतापूर्वक काम पर लौट जाते हैं।

लेकिन कभी-कभार ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं जहां नौकरी से निकाल दिए जाने के डर से व्यक्ति कुछ भी साझा नहीं करने का विकल्प चुनता है और कहता है कि सब कुछ ठीक है। उन्हें इस बात का डर रहता है कि इस दौरान वे जो कुछ भी साझा करेंगे, उसके आधार पर उन्हें नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा।

Q

क्या कोई कंपनी मनोचिकित्सक से सीधे संपर्क में रह सकती है?

A

जब कोई कर्मचारी अपनी इच्छा से मदद मांगने के लिए आता है, तो कंपनी को कोई अधिकार नहीं है कि मनोचिकित्सक के संपर्क कर उस कर्मचारी के बारे में जानकारी हासिल करे- जब तक कि कर्मचारी अनुमति न दे, तब तक उन्हें जानकारी नहीं दी जा सकती है। आमतौर पर कंपनियां ऐसी जानकारियां नहीं चाहती हैं। वे सिर्फ रिपोर्ट (मनोरोग मूल्यांकन) के बारे में जानना चाहती हैं।

ऐसे मामले सामने आ सकते हैं जहां किसी ट्रांसपोर्ट कंपनी ने अपने कर्मचारी को काम के दौरान शराब के नशे में पाया हो और उस व्यक्ति को दोबारा काम करने की अनुमति देने से पहले हमारे पास यह जांचने के लिए भेजा हो कि उसकी यह लत अभी भी कायम है या नहीं।

इस स्थिति में, यदि व्यक्ति अपने बारे में कुछ भी नहीं बताता है, तो इसका यह मतलब कतई यह नहीं है कि उसकी लत छूट गई है। इसका सीधा मतलब यह होगा कि मनोरोग का मूल्यांकन कर पाना संभव नहीं है, और हमें कंपनी को यह बताना होगा कि इन परिस्थितियों में रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जा सकती है। रिपोर्ट में, जो कुछ हुआ उसका उल्लेख करते हुए, यह भी लिखा जाता है कि इस मामले में व्यक्ति ने सहयोग नहीं किया।

पायलट या ऐसे ही किसी अन्य जिम्मेदारी वाले कर्मचारी के मामले में मनोचिकित्सा मूल्यांकन के आधार पर उन्हें नौकरी पर बहाल रखने के योग्य नहीं माना जा सकता है। ऐसे समय में उनके लिए सामाजिक कार्यकर्ता से मदद लेने की व्यवस्था की जाती है। सामाजिक कार्यकर्ता उनसे नौकरी के विकल्पों के बारे में चर्चा कर सकते हैं क्योंकि उनके लिए नौकरी खोना तनावपूर्ण हालात पैदा कर देगा।

कई बार काम पर लौटने के लिए फिटनेस प्रमाणपत्र की जरूरत होती है। या कभी कर्मचारी अपने चिकित्सा अवकाश को बढ़वाना चाहते हैं। यदि छुट्टी बढ़वाने की वजह ठीक समझ आ रही है तो मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा इसे सत्यापित किया जा सकता है, लेकिन यदि छुट्टी को गलत तरीके से बढ़वाने का प्रयास किया जा रहा है तो उस कर्मचारी / रोगी को स्पष्ट रूप से सूचित कर देना चाहिए।

कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर को रिश्वत देने की कोशिश की जा सकती है। तब हम केस नोट्स में इस बात को दर्ज करते हैं।

Q

यदि कानूनी मामला हो तब क्लाइंट की गोपनीयता का क्या होता है? उदाहरण के तौर पर तलाक के मामले में?

A

यदि तलाक के मामले की बात की जाए तो कोई भी व्यक्ति अपने साथी के उपचार के नोट्स प्राप्त करने का स्वतः अधिकार नहीं रखता है। ऐसा कोई मानदंड भी निर्धारित नहीं है।

लेकिन अगर मामले में न्यायाधीश पति या पत्नी के मनोरोगी होने संबंधी रिपोर्ट उपलब्ध कराए जाने संबंधी आदेश जारी करता है तो मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के लिए इसका पालन करना जरूरी है क्योंकि यह अदालत का आदेश है।

मुझे एक ऐसा वाकया याद है जहां सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने सिर्फ मामले से संबंधित लोगों को छोड़कर अन्य सभी को अदालत से बाहर जाने को कह दिया था। और जब ऐसे मामले की सुनवाई होती है तब सिर्फ उतनी जानकारी साझा किए जाने की इजाजत दी जाती है जो जरूरी हो, इससे आगे कुछ भी नहीं।

Q

अगर किसी मामले में पुलिस जांच शामिल होती है, तब क्या होगा?

A

पुलिस की जांच तभी शुरू होती है, जब घटना घट चुकी होती है। ऐसे मामलों में हम जवाब देने के लिए पुलिस से कुछ समय की मांग सकते हैं। इस बीच कानूनी सलाह ली जा सकती है कि जानकारी साझा करने में किसी प्रकार की दिक्कत तो नहीं है। ऐसी स्थिति में हम अपने नोट्स में उस पुलिस कर्मचारी के नाम का उल्लेख भी करेंगे, जिसने यह जानकारी हासिल करनी चाही है।

कई बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति हमें यह नहीं बताता है कि वह जमानत पर छूटा हुआ है। ऐसे में, अदालत की सुनवाई पर वे कह सकते हैं कि चूंकि उन्हें डॉक्टर को दिखाने जाना है इसलिए अदालत में उपस्थित नहीं हो सकते। यदि ऐसा होता है तो हम कानून के अधिकारियों को सूचित करते हैं कि सत्र शुरू होने से पहले संबंधित व्यक्ति ने हमसे यह जानकारी छिपाकर रखी थी और इस संबंध में हमें कोई जानकारी नहीं थी।

यदि कोई आपातकालीन स्थिति नहीं है तो आपको मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के रूप में इस बात की अनुमति है कि आप कुछ मिनटों के लिए सोच-विचार करें कि ऐसी परिस्थिति में सबसे अच्छा विकल्प क्या होगा। आपातकालीन स्थिति में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर को खुद निर्णय लेना होगा कि सबसे अच्छा विकल्प क्या है।

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