"मानसिक रोगी" न कहकर ऐस लोगों को "मनोसामाजिक रूप से अक्षम व्यक्ति" क्यों कहा जाना चाहिए?
ऐसे कई (आपत्तिजनक न लगने वाले) शब्द हैं जो उन लोगों को संदर्भित करते हैं जो किसी 'मानसिक विकार' से पीड़ित है- मानसिक रूप से बीमार, मानसिक रोगी, मनोरोग चिकित्सा के उपयोगकर्ता और उत्तरजीवी, मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति और मनोवैज्ञानिक विकलांगता वाले व्यक्ति, और कुछ अपने बीमारी के नाम से जाने जाते हैं (उदाहरण के लिए, स्कित्ज़ोफ्रेनिक), इत्यादि।
"पीपुल फार्स्ट" यानि व्यक्ति को दी गई प्राथमिकता ने विकलांगता आंदोलन और इस आंदोलन द्वारा चुने गए उपनामो को भारी रूप से प्रभावित किया है। अक्षमता के सामाजिक मॉडल के अनुसार, किसी व्यक्ति का प्राथमिक परिचय व्यक्ति के रूप में होना जरुरी है, न कि किसी विकलांगता के भौतिक अभिव्यक्ति के रूप में। इसलिए "अक्षमता वाले व्यक्ति/व्यक्तियों" का उल्लेख अक्षमता वाले व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीआरपीडी) में मिलता हैं।
हालांकि सीआरपीडी स्पष्ट रूप से "अक्षमता वाले व्यक्तियों" की समावेशी परिभाषा में "दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी अक्षमताओं” की बात करता है, यह उल्लेखनीय है कि इस दस्तावेज में विशिष्ट अक्षमता ग्रस्त समूहों का उल्लेख नहीं करता है या ऐसे समूहों को कोई उपनाम नहीं देता है। सीआरपीडी की बातचीत के इतिहास से पता चलता है कि 'मनोरोग चिकित्सा के उपभोगकर्ता और उत्तरजीवियों के विश्व नेटवर्क' ने समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए कार्यवाही में हिस्सा लिया है। पक्ष की वकालत कर रहे मंडल के बाहर 'मनोरोग चिकित्सा के उपभोगकर्ता और उत्तरजीवियों' के रूप में कोई अलग से पहचाना नहीं जाता है। इसके कई कारण है। जैसे, विशेष रूप से भौगोलिक दक्षिण में, अधिकांश लोगों तक मनोचिकित्सा न पहुँचने के कारण वे उपयोगकर्ता / उत्तरजीवी कहलाने के योग्य नहीं है। साथ ही, यह विचार कि मनोचिकित्सा मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्तियों तक पहुँचने का एकमात्र साधन है, उसी चिकित्सकीय आदर्श पर आकर रूक जाता है, जिसका मूलमंत्र है व्यक्ति को "ठीक” करना।
'मानसिक बीमारी / विकार वाले व्यक्ति' के बजाय 'मनोसामाजिक अक्षमता वाले व्यक्ति' शब्द को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि यह दूसरा शब्द विकलांगता के सामाजिक आदर्श के तात्पर्य के साथ अधिक मेल खाता है, जिससे ध्यान उन बनावटी बाधाओं पर केंद्रित होता है जो किसी व्यक्ति के जीवन और समाज के जुड़ी भागीदारी के सभी पहलुओं में बाधा डालती है। इसके अलावा, अक्षमता आंदोलन का एक और अभिलषित विश्वास है "हमारे बारे में जो हो, हमारे बिना न हो", जिसमें सभी निर्णय प्रकिया के हितधारकों की राय और इच्छाएं शामिल हैं। इसमें वो पहचान भी शामिल है जिससे वे जाने जायेंगे। बहुत से लोग जिन्होंने मानसिक विकार का अनुभव किया है, वे अपनी पहचान मनोसामाजिक रूप से अक्षम व्यक्ति के रूप में नहीं करते है क्योंकि उनका मानना है कि उन्हें अपनी समस्या के कारण बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ा है, या वे सुधार के उस चरण तक पहुंच गए हैं जहां उन्हें किसी भी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है।
एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो वर्तमान में मानसिक विकारों का अनुभव कर रहा है या जिसने मानसिक विकारों का अनुभव किया है, हम सभी को यह निर्धारित करने का अधिकार है कि हम खुद को क्या उपनाम देना चाहते है, और उपनाम से पहचाना जाना अपने आप में एक विकल्प है। समुदाय के कई सदस्यों ने 'मेड' (पागल) शब्द को दोबारा अपना लिया है, और उन्होंने एलजीबीटी समुदाय द्वारा दोबारा अपनाए गए 'क्वीर' शब्द के तर्ज पर अब 'मेड प्राइड' (पागल होने के गर्व) के साथ जोड़ दिया है। 'मनोसामाजिक अक्षमता' का प्रयोग ऐसे कई लोगों के लिए बहुत सशक्तिपूर्ण रहा है जिन्होंने मानसिक विकारों का अनुभव किया है, क्योंकि इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलती है कि उन्हें उनके आसपास की दुनिया से स्वीकृति, समावेश और गैर-भेदभावकारी व्यवहार की उम्मीद करने का अधिकार है।
यदि आप किसी मनोसामाजिक अक्षमता वाले व्यक्ति तक पेशेवर मदद पहुँचाते हैं या देखभालकर्ता हैं, तो इस शब्द को अपनाने से व्यक्ति के विकल्पों और अधिकारों और उनके अनुभवों को समायोजित करने के तरीकों पर ध्यान आकर्षित करने में मदद मिल सकती है। यह केवल उपनामों का सवाल नहीं है - हाल के एक अध्ययन में, प्रतिभागियों ने उन लोगों के प्रति कम सहिष्णुता दिखाई है जिन्हें "मानसिक बीमारी वाले लोगों" के बजाय "मानसिक रोगी" के रूप में संदर्भित किया जाता है। भाषा में परिवर्तन से समझ में परिवर्तन आ सकती है।
अम्बा सालेलकर चेन्नई में स्थित एक वकील है और विकलांगता कानून और नीति में विशेष रुचि रखती है।