किशोरावस्था में धौसिंयाना

किशोरावस्था में धौसिंयाना

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आकाश एक खुशदिल और होनहार छात्र था। वह खेलकूद और पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों में भाग लेने के लिए उत्साहित रहता था। एक दिन उसने स्कूल जाने से मना कर दिया। वह भी एक हफ्ते के लिए। इसने उसके माता-पिता को चिंता में डाल दिया। फिर से स्कूल जाने पर आकाश के ग्रेड गिरने लगा। चूंकि आकाश के माता-पिता दोनों ही नौकरी करते थे तो उन्होंने उसे ट्य़ूशन क्लास में भर्ती करा दिया। आकाश जो पहले से ही स्कूल के ख्याल मात्र से परेशान रहता था, वह पढ़ाई के तनाव में हर समय सुस्त और उदास रहने लगा। बच्चों के मनोचिकित्सक के पास ले जाने के बाद ही आकाश के माता पिता यह जान पाए कि उसे स्कूल में धौंसियाया जा रहा था।

धौंसियाना क्या है?

धौसियाना वह आक्रामक व्यवहार है जो दूसरों को ताकत और वर्चस्व दिखाने के लिए होता है। शारीरिक, मौखिक और गैर मौखिक रूप से अपमानजनक व्यवहार करके धौंसियाने वाला दूसरों के मामले में हस्तक्षेप करने लगता है। इसके अलावा एसएमएस, ब्लॉग और सोशल मीडिया के रूप में प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भी दूसरों को परेशान कर सकते है।

एक बच्चा धौंसियानेवाला कैसे बन जाता है?

बालक को धौंसियाने वाला बनाने के पीछे कई सामाजिक व मानसिक कारण हो सकते हैं। बच्चे धौंसियाने वाले कुछ इन कारणों में से हो सकते हैं:

  • साथियों की अस्वीकृति या स्कूल में विफलता

  • धौंस का शिकार होना, क्रोध का कहीं और दिखना, किसी और के धौंसियाने से अस्वीकार्यता और हताशा

  • गाली-गलौज, उपेक्षा तथा घर पर प्यार और सुरक्षा की कमी

  • आत्मसम्मान की कमी

  • टीवी, विडियो गेम और अन्य माध्यमों से हिंसा का अनावरण

  • ऐसे लोगों की संगत जो धौंसियाने वाले हों

  • माता-पिता के धौंसियाने वाले व्यवहार की नकल

  • बिना किसी सीमा के माता-पिता के लाड़ प्यार के रवैये से उसे लगता है कि वह कुछ भी करके बच सकता है

जो बच्चे धौंसियाने वाले बन जाते हैं आमतौर पर घर में माहौल खराब होने से कई तरह की परेशानियों का सामना करते है। जैसे पारिवारिक दिक्कतें, पैसे की कमी, माता-पिता में झगड़े आदि। दूसरी तरफ आत्मविश्वास, आत्मसम्मान की कमी वाले बच्चे कई बार साथियों और कभी कभी शिक्षकों की भी तरफ से व्यर्थ की टिप्पणी के कारण धौंसियाने का शिकार हो जाते हैं।

निमहन्स (NIMHANS) में धौंसियाए गए नवयुवा लोगों के शारीरिक हावभाव और मानसिक प्रदर्शन का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि ऐसे युवा जो जीवन में कभी न कभी धौंसिआए जाने का शिकार हुए हैं वे अधिक मानसिक समस्याओं से घिरे हैं बनिस्पत उनके जिन पर कभी भी इस तरह का बल प्रयोग न किया गया हो। धौंसियाने के शिकार कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से ग्रस्त मिले जैसे आवेशी/ अवसादग्रस्त, व्यग्र, शारीरिक समस्याएं, अलगाववादी व्यक्तित्व, ओप्पोसीशनल डेविएंट डिसऑर्डर(ओडीडी), एडीएचडी और आचरण की समस्याएं/ अराजक व्यक्तित्व हो जाता है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि धौंसियाने का सभी बच्चों पर एक ही तरह का प्रभाव नहीं पड़ा। जहाँ कुछ हो सकता है इससे उबर गए या निपटने का प्रयास किया तो वहीं कुछ इससे जीवन भर जूझते रहे जिसने उनके व्यक्तित्व पर अमिट प्रभाव पड़ गया।

क्या आपका बच्चा धौंस का शिकार है?

विशेषज्ञ कहते है धौंसियाने के शिकार लोग प्रायः अपनी परिस्थिति को खुलकर व्यक्त करने वाले होते हैं और यही वजह है कि उनके माता-पिता को उनके तौर-तरीकों से पहचानने में आसानी हो जाती है। क्या आपका बच्चा-

  • बहुत चिड़चिड़ा हो रहा है और लगातार स्कूल न जाने की जिद करता है?

  • बहुत जल्दी रुआसा हो जाता है, सामान्य से ज्यादा चिंतित और तनावग्रस्त हो रहा है?

  • उनके शैक्षिक प्रदर्शन में असाधारण गिरावट दिख रही है?

  • वह अचानक से गुस्सा होने लगता है?

  • अचानक निर्दयी व्यवहार दिखने लगता है?

  • अनुचित मांगें बढ़ जाती है?

  • फोन की घंटी बजने पर या कोई मैसेज आने पर भयभीत लगने लगते हैं (साइबर धौंसियाने के मामले में)

  • वह अकेले में ही नेट पर ब्राउसिंग करना चाहता है (साइबर धौंसियाने के मामले में)?

यदि आपको बच्चे में इन निशानियों में से कुछ दिखे तो उससे घौंसियाने पर बात करना चाहेंगे।

परिवार के बिगड़े हुए माहौल में, बच्चे महसूस कर सकते हैं कि उन्हें कोई भी सुन नहीं रहा है। जो कई बार उन्हें अकेला और हताशा महसूस करवा सकता है। कई बार, बच्चे अपने माता-पिता से बात तो करना चाहते हैं, लेकिन वे उपेक्षा के डर से ऐसा नहीं करते। उन्हें अभिभावकों की प्रतिक्रिया तक से डर लगने लगता है। एक अभिभावक के रूप में सबसे अच्छी बात जो आप कर सकते हैं कि बच्चे को खुलकर बोलने दें। कभी भी धौंसियाये जाने के लिए बच्चे को जिम्मेदार नहीं ठहराएं क्योंकि इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। अब कुछ तरीके हैं जिनसे आप इस परिस्थिति से निपट सकते है।

  • अगर बच्चा बात करने को तैयार है तो उससे विशिष्ट सवाल पूछें।

  • जानने की कोशिश करें कि इस परिस्थिति के कारण बच्चा क्या महसूस कर रहा है

  • बच्चे से पूछने की कोशिश करें कि वह इस परिस्थिति से कैसे निपटना चाहता है।

  • बच्चे से इस परिस्थिति को अनदेखा करने या जवाबी हमला करने को न कहें

  • बच्चे के साथ आत्म सम्मान, आत्मविश्वास बढ़ाने और मुखर होने के लिए काम करें

  • स्कूल के अधिकारियों से बात करें और सुरक्षा के संबंध अपनी चिंताओं को बता दें।

  • अपने बच्चे को आत्मरक्षा के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भेजने के बारे में भी सोचें।

अगर आपका बच्चा धौंस देने वाला हो तो?

हमारे दिमाग में धमकाने वाले के लिए धारणा है कि कोई बड़ा बदमाश बच्चा किसी डरपोक बच्चे को धमकाता है। वास्तविकता में देखा जाए तो धौंस देने वाला कोई भी हो सकता है, आपका बच्चा भी। माता-पिता को तो यह तब पता चलता है जब उन्हें किसी और से, स्कूल से या धौंस का शिकार हो रहे बच्चे के अभिभावकों की ओर से शिकायत मिलती है।

धौंस देने वाले बच्चों का व्यवहार :

  • बच्चा दूसरों को दोष देने लगता है और अपने कृत्य की जिम्मदारी लेने से बचने लगता है

  • सहानभूति या करुणा की कमी

  • सामाजिक गुण कम होते हैं

  • नियंत्रण में रहना चाहता है

  • हताश, व्यग्र या अवसादग्रस्त है

  • ऐसे साथियों की संगत उसे भाने लगती है कि जो धौंसियाने की प्रवृत्ति रखते हैं

कुछ माता-पिता आसानी से विश्वास ही नहीं कर पाते कि उनका बच्चा धौंसियाने की प्रवृत्ति वाला है। हो सकता है कि वे आलोचनात्मक हो जाएँ और बच्चे को दंड देने लगें। बच्चे यह नहीं जानते कि धौंसियाने की प्रवृत्ति अन्य लोगों के लिए तकलीफदेय हो सकती है, और वह तो इसे केवल मनोरंजन के लिए करते हैं। धौंसियाने के लिए बच्चे को दंड देने का प्रभाव कभी कभी उल्टा हो जाता है।

अभिभावक धौंसियाने वाले व्यवहार के लिए अपने बच्चे की मदद ऐसे कर सकते हैं

  • गैर आलोचनात्मक हुए बच्चे की बात को शांति के साथ सुनें।

  • बच्चे में धौंस देने का परिवर्तन कैसे आया यह जानने की कोशिश करें।

  • अनुशासन के नाम पर मौखिक और शारीरिक दंड देने से बचें।

  • बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखें।

  • बच्चे को सिखाएं कैसे क्रोध युक्त आवेग पर सामाजिक दायित्व को ध्यान में रखकर काबू पाया जाए।

उसे सिखाएं कि कैसे सकारात्मक तरीके से लोगों का प्यार और ध्यान खींचा जाए।

साइबरबुलिंग : आभासी संसार में धौंस देना


आजकल बच्चों की दिनचर्या में भी तकनीक ने यूं पैठ बना ली है कि वह आभासी संसार में धौंस का सामना कर सकते हैं। जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स, ब्लॉग या तुरंत मैसेज पहुंचाने वाले मोबाइल ऐप। इंटेल सेक्योरिटी डिजिटल सेफ्टी प्रोग्राम ने मैकफी एंटी-वायरस के साथ मिल कर 2015 में भारत में वार्षिक सर्वेक्षण किया। जिसमें पाया गया कि 46 प्रतिशत बच्चों ने सोशल मीडिया द्वारा लोगों को धौंसियाया।

  • धौंस का शिकार किसी बच्चे का ग्रुपचैट या फोरम में मजाक बना कर

  • नीचा दिखाने वाली तस्वीरें, आपत्तिजनक फोटो और विडियो को टैग करके

  • धौंस का शिकार बच्चे को धमकी देकर

  • पीड़ित की शारीरिक बनावट का मजाक बना कर

मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में शिकार बच्चे को धौंस देने वाले परिचित ही थे लेकिन कुछ मामले ऐसे भी मिलते हैं जहां इस तरह की वारदात करने वाले नितांत अजनबी होते हैं।

परिवार और स्कूल प्रबंधन बच्चे के साथ अपनी भूमिका निभाएं और धौंसियाने के शिकार बच्चे के परिपेक्ष्य को समझने में मदद करें। विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार बच्चे अपने से बड़ों को देखकर भी धौंसियाना सीख जाते हैं। इसलिए यह बात और भी जरूरी हो जाती है कि माता-पिता और शिक्षक बच्चों के साथ एक स्वस्थ संवाद बनाए रखें। खासकर तौर पर जब गुस्से की बात हो।

सन्दर्भ:

  • फेसबुक बुकलेट ऑन बुलिंग: एम्पावरमेंट पैरेंटस एण्ड फैमिली

  • पेस सेंटर एक्शनः इनफॉरमेशन शीट ऑन बुलिंग

  • बनजारा एकेडमीस लाइफ स्किल ट्रेनिंग

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