क्या अपने बच्चे के बार-बार अजीब व्यवहार करने से आपको चौकन्ना होना चाहिए?

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मैं अर्जुन से तब मिली थी, जब वह 20 साल का था। उसने 12वीं कक्षा की परीक्षा में भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित में कुल 93% अंक हासिल किए थे, लेकिन उसने फिर से परीक्षा देने का फैसला किया था। वह 100% अंक हासिल करना चाहता था। तब से जब भी एग्जाम हुए उसने हर बार परीक्षा फॉर्म तो भरा, लेकिन एग्जाम नहीं दिया। वह अपनी किताबें लेकर बैठते वक्त हर समय चिंतित रहता था। जब भी उसने परीक्षा देने के बारे में सोचा, हर बार वह 100% अंक हासिल करने में असफल हो जाने की गंभीर चिंता में पड़ जाता था।

नमिता एक बहुत ही अच्छी व साफ सुथरी रहने वाली लड़की थी, जिसकी सुंदर हैंडराइटिंग, साफ स्कूल यूनिफॉर्म और किताबों को करीने से रखने पर हमेशा उसकी प्रशंसा की जाती थी। वह 7वीं कक्षा तक अपनी कक्षा में टॉप पर रही। 8वीं कक्षा की पढ़ाई के बोझ के तले वह दबी जा रही थी, क्योंकि हर पाठ को दिल से याद करने की उसकी पूर्णतावादी शैली अब असरदार तरीका नहीं रह लग रहा था। उसे त्रास के दौरे पड़ने शुरू हो गए और फाइनल एग्जाम से पहले उसने अपना संतुलन खो दिया। उसके चिकित्सक ने उसे शांत रहने की दवाइयां देने के बाद उसे मेरे पास भेजा था।

मारिया अपने 16 वर्षीय बेटे सैम को मेरे पास एक आकलन के लिए लायी थी, क्योंकि वह सोने जाने से पहले करीब छह बार सामने के दरवाजे की कुंडी जांचने जाता था कि यह बंद है या नहीं। बिस्तर पर लेटने के बाद भी वह तीन बार कुंडी की जांच करने के लिए मां को आवाज लगाता। उसे यह जांचने की भी आदत हो गई थी कि कार लॉक हो गई है या नहीं। कार पार्क करने के बाद कई बार पुष्टि कर लेने और कुछ कदम आगे जाने के बाद भी वह कार का दरवाजा चेक करने लौट जाता। वह हमेशा एक सचेत लड़का रहा, लेकिन उसकी मां समझ नहीं पा रही थी कि हाल ही में वह इतनी असुरक्षित क्यों महसूस करने लगा था।

लतिका एक बोर्डिंग स्कूल में थी। वार्डन ने बताया कि यह लड़की बाथरूम में काफी समय बिताती थी। वह कक्षा लगने के बीच भी अपने हाथ धोने के लिए चली जाती। भोजन कक्ष में खाने से पहले वह अपनी प्लेट और कटलरी को पूरी तरह से रगड़-रगड़कर साफ करती। पहले लोगों ने इसे मजाक के रूप में माना। आखिरकार, चीजों को पर्याप्त रूप से साफ नहीं कर पाने के उसके तनाव और कक्षाओं से गायब रहने या कक्षा में देरी से पहुंचने की परेशानी ने कर्मचारियों को इसकी रिपोर्ट उसके माता-पिता को करने के लिए मजबूर कर दिया। तीन महीने पहले उसे परामर्श के लिए लाया गया था।

स्कूल के काम में ईमानदारी या स्वच्छ रहने की कोशिश करने, साफ-सफाई या सचेत रहने के लिए इन बच्चों का गुण माना जाता है। ज्ञान-कौशल में अपनी ओर ध्यान केंद्रित करवाना भारतीय छात्रों का एक काफी आम लक्ष्य रहता है। तो फिर इन किशोर-किशोरियों को उनके माता-पिता द्वारा चिकित्सा उपचार के लिए क्यों लाया गया था?

इन बच्चों द्वारा प्रदर्शित व्यवहार, सामान्य व्यवहार हैं, लेकिन यह हद से ज्यादा मात्रा में है। उनके मस्तिष्क के कुछ हिस्से उस तरह काम नहीं कर रहे हैं, जैसा होना चाहिए। किसी कार्य को एक बार करने के बाद उससे प्राप्त साफ-सफाई, स्वच्छता या पूर्णता को लेकर होने वाले असंतोष के कारण वे उस काम को कई बार दोहरा रहे थे।

सफाई, जांच या स्वच्छता की यह प्रक्रिया इतना ज्यादा समय लेने वाली हो सकती है कि जो लोग इन गतिविधियों से जुड़े रहते हैं, वे अन्य काम नहीं कर सकते, न सो सकते हैं न बाहर जा सकते हैं। वे चिड़चिड़ाहट से भरे, चिंतित और क्रोधित हो सकते हैं क्योंकि कोई भी उन्हें समझता नहीं है या जो कुछ भी वह  कर रहे हैं उसके लिए उनके कारणों से सहमत नहीं होता है।

क्योंकि विचारों से ही क्रियाएं उत्पन्न होती हैं, इसलिए अजीब विचार रखने वाले लोगों में अजीब व्यवहार पैदा होने की संभावना रहती है, जिन्हें सुधारने की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार दृष्टि को बेहतर करने के लिए चश्मे और बेहतर सांस लेने के लिए इनहेलर्स के उपयोग की जरूरत होती है, उसी प्रकार लोगों को कभी-कभी बेहतर सोचने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। इसका निदान करने के लिए मनोचिकित्सक द्वारा विस्तृत मूल्यांकन आवश्यक है।

आमतौर पर निदान के आधार पर, मनोवैज्ञानिक उपचार एक उचित इलाज होगा। यदि आवश्यकता हुई, तो किसी व्यक्ति को विशिष्ट प्रकार की थेरेपी के लिए मनोवैज्ञानिक के पास भेजा जा सकता है। डॉक्टर को लक्षणों का विश्लेषण करना और अस्थायी निदान करना अनिवार्य है क्योंकि युवावस्था जैसी उम्र में बीमारी की अवधि के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। यह देखने में नाम मात्र की अनावश्यक चिंता की तरह लग सकता है लेकिन बिना जांच के इलाज लेना, और खराब हो सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में बीमारी में सुधार व्यक्तिगत रूप से निर्भर करता है, और उपरोक्त सभी मामलों में किशोरों में उपचार के जरिए सुधार नजर आया।

अर्जुन ने इलाज शुरू होने के चार माह बाद अपनी 12वीं कक्षा की परीक्षा दी। उसने अच्छा प्रदर्शन किया और तमिलनाडु के एक प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया। वहां पर, वह नियमित रूप से एक मनोचिकित्सक के पास जाता था और उसकी स्थिति में सुधार पर अपडेट के लिए कभी-कभी मुझे फोन करता था। उसका आखिरी कॉल मेरे पास लगभग सात साल पहले आया था, जब उसे पहली नौकरी मिली थी।

नमिता वर्तमान में 12वीं कक्षा में है। पिछले पांच वर्षों में उसने पढ़ाई-लिखाई में अच्छा प्रदर्शन किया है और अब वह विभिन्न कॉलेजों की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। वह अभी भी व्यवस्थित, साफ-सुथरी एवं स्वच्छ रहती है, लेकिन एक पूर्णतावादी नहीं है।

सैम पिछले आठ महीनों से इलाज ले रहा है। दरवाजे चेक करने की की उसकी आवश्यकता धीरे-धीरे कम हो गई है और वह पहले के मुकाबले लगभग 70% बेहतर स्थिति में है।

लतिका केवल 11 साल की है। मैंने पाया कि विद्यालय द्वारा दी गई रिपोर्ट के अलावा, उसमें कई अन्य लक्षण भी थे, और उन लक्षणों ने उसका बहुत समय और ऊर्जा बरबाद की। उसे लगभग हर समय गंभीर चिंता बनी रहती थी। दवाओं ने उसकी चिंता और चीजों को अत्यधिक साफ करने की आवश्यकता को कम कर दिया है, लेकिन लक्षणों की गंभीरता के कारण वह इलाज ले रही है।

इस श्रृंखला में डॉ. श्यामला वत्स इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि किशोरों में होने वाले परिवर्तन मानसिक समस्याओं को छिपा सकते हैं। ये लेख बताते हैं कि किस प्रकार मानसिक विकार के शुरुआती लक्षण, साधारण किशोर व्यवहार के रूप में लग सकते हैं। जैसा कि किशोर-किशोरी, जो अनावश्यक रूप से पीड़ित हुए, उनकी कहानियों से पता चलता है, मित्रों एवं परिवार के लोगों को यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि कब व्यवहार सामान्य सीमाओं से बाहर होता है और चीजें नियंत्रण से बाहर निकल जाएं उससे पहले मदद लेना महत्वपूर्ण है।

डॉ श्यामला वत्स बैंगलोर स्थित एक मनोचिकित्सक हैं, जो बीस साल से अधिक समय से अभ्यास कर रहे हैं। अगर आपके पास कोई प्रश्न या टिप्पणी हैं जो आप उनसे साझा करना चाहते हैं, तो कृपया उन्हें columns@whiteswanfoundation.org पर लिखें।

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