गांजे के सेवन और मनोविकृति को जोड़ने वाली कड़ी

उम्र थी २४ साल। वर्ष था २०१४। उसका पेशा था ग्रेफ़िक डिज़ाइनिंग। उसका नाम था - राघव। उसके दोस्त उसे परमर्श  ( कौंसिलिंग ) के लिए ले आए थे। अलबत्ता वे देश के अलग अलग हिस्सों से थे, पर एक ही अपार्टमेंट में साल भर से साथ रहते थे। एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे और परिवार  जैसे बन गए थे। 

राघव ने कुछ समय से यह इल्ज़ाम लगाना शुरु किया था कि उसकी पीठ पीछे वे सब उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं । उसने कहा था कि अब वह उन पर विश्वास नहीं करता। कभी-कभार गांजे का इस्तेमाल करने वाला राघव पिछले एक सप्ताह से कुछ ज़्यादा ही सेवन करने लगा था ताकि 'तरंग में आकर बेहतर  काम कर सकें'। सारे दोस्त गांजा फूंकने के आदी रहे थे, इसलिए इन लक्षणों को देख कर समझ गए थे कि राघव के साथ कुछ ठीक नहीं चल रहा। उन सब पर शक के रवैये के अलावा वह खाना कम खाने लगा था। नींद लगभग नदारद हो गई थी। किसी ने अगर उसे खाने के लिए पुचकारा भी, तो वह अपना आपा खो बैठता। किसी का  साहस भी नहीं था कि वे उसे खाने के लिए और ज़्यादा कुछ कहे क्यों कि वह शारीरिक रूप से शक्तिशाली था। थोडा सा भी उकसाए जाने पर वह हाथा- पाई पर उतर जाता। 

आदी, तेईस साल का था जब उससे मैं वर्ष २००४ में पहली बार मिली थी। वह कॉमर्स ग्रेजुएट था और अपने पापा के प्रतिष्ठान में अकाऊंट्स विभाग में साल भर से कार्यरत था। वह शांत, शालीन और पढाकू था, जिसकी परवरिश में माता-पिता को  कोई तकलीफ़ नहीं आई थी। 

हाल के दिनों में वह कुछ बदला बदला सा लग रहा था। अपने आप में गुम रहना, बिना कारण मुस्कुराना, ऐसा बडबडाना मानों सामने किसी अदृश्य व्यक्ति से बात कर रहा हो। शुरुआत में वह बताता था कि उसे कोई चुटकुला याद आ गया, तो परिवार के लोगों ने ज़्यादा तव्वजो नहीं दी। लेकिन धीरे-धीरे यह व्यहवार बढता ही गया। अब किसी बात की सफाई देना उसे जरूरी नहीं लगता था। ऑफिस जाने में अनियमितता बढने लगी, क्योंकि रात भर वह जागता रहता। दिन भर में दस से भी ज़्यादा सिगरेट (साधारण सिगरेट) फ़ूकने लगा था, जब कि पहले कभी-कभार ही सिगरेट पीता था। उसकी मां ने इस बाबत उससे बात की। वह यह जान कर चौक गई कि पिछले कुछ महीनों से आदी गांजा पी रहा था, जिसके बाद उसकी यह हालत हो गई थी। तब से उस पर कडी निगरानी होने लगी, उसे दी जाने वाली हाथ -खर्ची पर लगाम आ गई। 

बावजूद इसके उसके व्यवहार में कोई सुधार नहीं आया। तब जाकर उसे कन्सल्टेशन के लिए लाया गया। 

गांजा को कई  लोग मनोरंजन का साधन समझते हैं। कुछ देशों में तो इसका इस्तेमाल वैध माना गया है। वहां बडी संख्या में लोग गांजे का सेवन भी करते है। मनोविदलता या विखंडित मनस्कता (स्कित्ज़ोफ्रेनिया) के बढने में इसकी भूमिका को लेकर  शोध में अनेक तरह के नतीजे प्राप्त हुए है। बहुयात मनोचिकित्सक इससे सहमत होंगे कि:

  • गांजा उन लोगों में स्कित्ज़ोफ्रेनिया के लक्षण बढा देता है, जिनमें पहले से इसे लेकर पूर्ववृत्ति होती है। या फिर परिवार का कोई करीबी सदस्य इससे ग्रस्त हो। 
  •  विशेष रूप से कोई एक अनुवंशिक (जीन) तत्व स्कित्ज़ोफ्रेनिया के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। अनेक अव्यक्त जीन भी ऐसा कर सकते है। इन्हें 'रिस्क जीन' कहा जाता है, जो कि गांजे के सेवन से सक्रिय हो सकते है। 
  • एक बार अगर स्कित्ज़ोफ्रेनिया विकसित हो जाए, तो इसे बदलना या इससे निजात पाना नामुमकिन हो जाता है। 

राघव और आदी दोनों के परिवार में ऐसे सदस्य थे, जो स्कित्ज़ोफ्रेनिया के शिकार हुए थे। राघव के चाचा अनेक सालों से इस विकार के इलाज में दवाइयां ले रहे थे। आदी के मामा को एक ऐसे प्रकार के स्कित्ज़ोफ्रेनिया से ग्रसित थे जिसमें धीरे धीरे उनके सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञात्मक सामर्थ्य का पतन होने लगा था। वर्ष २००८ में आदी की बहन में  भी स्कित्ज़ोफ्रेनिया के लक्षण पाए गए  थे । दोनों के परिवारों में यह विकार पहले के मौजूद होने के कारण इसका खतरा अधिक था क्योंकि पूर्ववृत्ति होने से उनके  दिमाग पर गांजे के सेवन का असर हो सकता है। 

राघव के मनोविकारों पर एंटिसाईकोटिक दवाइयों की मदद से नियंत्रण ज़रूर हुआ पर उसने गांजा पीना छोडने से इंकार कर दिया था। पिछले सत्र में वह मुझसे यह वादा करके गया कि वह गांजे का सेवन कम करेगा। 

आदी ने नियमित दवाइयों की मदद से अगले ६ से ७ सालों के दौरान अच्छी प्रगति दिखाई। वह रोज़ाना काम पर भी जाने लगा । अलबत्ता वह अपनी पूर्व क्षमता की तुलना में २५ से ३० प्रतिशत कम कार्यप्रदर्शन हासिल कर पा रहा था। गत ५-६ सालों में आदी को तीन बार साईकोटिक ब्रेकडाउन यानी मनोविकार का दौरा पडा था। यह उस वक्त होता था जब वह अपनी दवाई लेना भूल जाता था। हर बार ऐसा होने से उसकी क्षमता और भी ज़्यादा घटती गई। अब उसकी हालत ऐसी है कि उसे मनोचिकित्सा इकाई में रहना पड रहा है, सरल  वार्तालाप के अलावा कुछ भी ज़्यादा  कर पाने में अक्षम हो गया है । बीमारी से उसकी बौद्धिक क्षमता फीकी पड गई है। 

आदी को गांजे के प्राथमिक प्रयोग के बाद कोई लत तो नहीं लगी थी, पर फिर भी इस बार का सेवन उसके 'रिस्क जीन' को सक्रिय करने के लिए काफी था। उसे वापस ठीक करने की संभावना वैसी थी मानों टोस्ट को वापस ब्रेड में बदल पाने की कोशिश । 

कुछ लोगों के लिए गांजा पीना ठीक वैसा है, जैसा कोई अन्य साधारण काम करना। अब पहली बार रोलर कोस्टर की सवारी पर बैठने वाले को क्या यह पता रहता है कि उसे किसी तरह का खतरा हो सकता है? बाकी सब सदस्यों के साथ वह भी बस इसलिए चला जाता है क्योंकि उसे लगता है कि आनंद आएगा। हां , अगर किसी की रीढ की हड्डी कमज़ोर हो, तो चोट लगने की संभावना बढ ज़रूर जाती है। बैठने वाले को यह पहले से पता तो नहीं होता कि रीढ मज़बूत है या नहीं । आकस्मिक दुर्घटना घटने के बाद ही इसका खुलासा होता है। 

उसी तरह से गांजा भी उन लोगों को अपनी जकड में ले लेता है, जिनमें पहले से उसको लेकर पूर्ववृत्ति के जीन मौजूद होते है। वर्तमान में इस विषय को लेकर बहस चल रही है कि गांजे के प्रयोग और स्कित्ज़ोफ्रेनिया को जोडने वाली कडी क्या है। स्कित्ज़ोफ्रेनिया के विकसित होने और भांग के प्रति लत लगने में जीन की एक ही तरह की सक्रियता पाई गई है। इस कारण ठोस नतीजे तक अभी नहीं पहुंचा गया है। 

इस परिदृश्य में डॉक्टर स्कित्ज़ोफ्रेनिया के मरीज़ों के परिवार जनों को बस आगाह कर सकते है कि वे गांजे को आज़माने से बचें । इसका मतलब यह नहीं है कि जिनके परिवार में यह विकार न हो, वे सद्स्य गांजे के सेवन के असर से बच सकते हैं।

इस श्रृंखला में डॉ. श्यामला वत्स इस तथ्य पर प्रकाश डालती हैं कि किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन शुरुआती मानसिक समस्याओं पर पर्दा डाल सकते हैं। ये लेख दिखाते हैं कि किस तरह मानसिक विकार के शुरुआती लक्षणों को किशोरावस्था के सामान्य व्यवहार के रूप में लिया जा सकता है। जैसा कि इन युवा लोगों की कहानियों से स्पष्ट है,जिन्होंने अनावश्यक रूप से पीड़ा झेली।जब किसी का व्यवहार सामान्य सीमा से बाहर होता है,तो दोस्तों एवं परिवार कोइसकी पहचान करना और चीजें नियंत्रण से बाहर निकलें उससे पहले मदद लेना महत्वपूर्ण होता है।

डॉ श्यामला वत्स बैंगलोर स्थित एक मनोचिकित्सक हैं जो बीस साल से अधिक समय से प्रैक्टिस कर रही हैं। अगर आपके पास कोई टिप्पणी या प्रश्न हैं जो आप साझा करना चाहते हैं,तो कृपया उन्हें columns@whiteswanfoundation.org पर लिखें।

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