ऑटिज़्मः मिथक और तथ्य

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मिथकः ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है

तथ्यः ऑटिज़्म तंत्रिका संबंधी विकार है जो मस्तिष्क की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है और ये मानसिक बीमारी नहीं है.

मिथकः सिर्फ़ लड़के ही ऑटिज़्म के शिकार होते हैं.

तथ्यः ऑटिज़्म लड़कों और लड़कियों, दोनों में देखा जाता है. हालांकि ये भी पाया गया है कि लड़कियों की अपेक्षा लड़के इस बीमारी की चपेट में ज़्यादा आते हैं.

मिथकः ऑटिज़्म लाइलाज है और इसका कोई उपचार नहीं है.

तथ्यः ऑटिज़्म से मुक़ाबला करने के लिए कई थेरेपी और सुधार कार्यक्रम हैं. इनकी मदद से कई बच्चे बड़े होकर स्वतंत्र और सामान्य जीवनयापन करने में समर्थ हो जाते हैं. ऑटिज़्म वाले बच्चों का आईक्यू बहुत अधिक होता है और ये क्षमता उनके लिए लाभदायक साबित होती है क्योंकि इसकी मदद से वे अपनी रुचि के किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता भी हासिल कर सकते हैं.

मिथकः ऑटिस्टिक बच्चे कभी बोलना नहीं सीख पाएँगें.

तथ्यः शुरुआती पहचान और प्रशिक्षण के साथ ऐसे बच्चों को संचार के वैकल्पिक तरीक़े सिखाए जा सकते हैं.

मिथकः ऑटिज़्म के लक्षण सभी बच्चों में एक जैसे होते हैं.

तथ्यः ऑटिज़्म एक स्पेक्ट्रम विकार है क्योंकि इसके लक्षण और विशेषताएँ मिलेजुले ढंग से अन्य विकारों में दिखती हैं और अलग अलग लोगों को अलग अलग ढंग से प्रभावित करती हैं. हर बच्चे के लिए अलग अलग चुनौतियाँ होती हैं.

मिथकः डॉक्टरों को ऑटिज़्म के बारे में सब कुछ पता होता है.

तथ्यः चिकित्सा समुदाय के एक छोटे से हिस्से को ही ऑटिज़्म के बारे में मालूमात रहती है. कई डॉक्टरों को न तो ऑटिज़्म की जानकारी होती है और न ही इसकी पहचान की विशेषज्ञता. इसलिए अभिभावकों को ये ज़रूर चेक कर लेना चाहिए कि जिस डॉक्टर के पास वे अपने बच्चे को इलाज के लिए ले जाना चाहते हैं वो उस तरह के बचपन के विकारों के इलाज में पारंगत है भी या नहीं.

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