बाल यौन शोषण: मिथक और तथ्य
मिथक: बाल यौन शोषण केवल लड़कियों के साथ ही होता है
तथ्य: बच्चों के साथ शोषण के दौरान उसका लिंग महत्व नही रखता है। वर्ष 2007 में जारी महिला और बाल कल्याण मंत्रालय के बाल यौन शोषण अध्ययन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार इन सभी मामलों में 52.94 प्रतिशत बच्चे जो एकाधिक प्रकार से यौन शोषण का शिकार थे, वे लड़के थे। दुर्भाग्य से, लड़कों का शोषण कई बार यौग गतिविधि के प्रारंभ के रुप में देखा जाता है और इसे बच्चे के शारीरिक, संवेदनात्मक और यौन सुरक्षा से जोड़कर नही देखा जाता।
मिथक: मेरे बच्चे के साथ कभी शोषण नही होगा। मेरा इस बात को लेकर पूरा ध्यान होता है कि मैं उसे किसी अजनबी के पास देखभाल के लिये नही छोडूं।
तथ्य: अधिकांश स्थितियों में, बच्चों का शोषण किसी पहचान वाले व्यक्ति द्वारा ही किया जाता है – कोई ऎसा जिसे बच्चा और उसके माता पिता जानते हैं और उसपर विश्वास करते हैं। वर्ष 20047 के अध्ययन में सामने आने वाले कुछ तथ्यों में सामने आया है कि शोषणकर्ताओं में से 50 प्रतिशत व्यक्ति चचेरे ममेरे भाई, मामा या चाचा, मित्र और सहपाठी थे।
मिथक: यह सिर्फ निम्न आय के परिवारों के साथ होता है। मुझे नही पता कि मेरी जानकारी में यह किसी के साथ हुआ है। यह भारत में नही होता।
तथ्य: यौन शोषण लिंग, राष्ट्रीयता, सामाजिक स्थिति या आर्थिक विभाजन से परे हैं।
मिथक: बच्चे छोटे हैं। वे बडे होने के बाद इसके बारे में भूल जाएंगे।
तथ्य: बाल यौन शोषण का प्रभाव दीर्घकालीन होकर इसका असर बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। तत्काल पड़ने वाले प्रभावों में शामिल है उसका अकेला रहना, ड़र या कुछ स्थितियों में आक्रामक हो जाना। बच्चों को अवसाद, पीटीएसडी और विघटनकारी परिस्थिति या समझौता करने में समस्या जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। दीर्घकाल में, बच्चे के साथ होने वाले शोषण के कारण नकारात्मक आत्म छवि बन जाती है और वह किसी भी व्यक्ति पर विश्वास नही कर पाता और अपने पूरे जीवन में संबंधों को लेकर आक्रामक बना रहता है। यह होने की सबसे बड़ी आशंका होती है कि जिन बच्चों का बचपन में यौन शोषण होता ऐ उन्हे किशोरावस्था या वयस्क होने पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
मिथक: बाल यौन शोषण को लेकर रिपोर्ट करने से बच्चों के भविष्य पर नकारात्मक असर हो सकता है।
तथ्य: पोक्सो प्रावधान (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्स्युअल ऑफेन्स) जिसे भारतीय सरकार द्वारा जारी किया गया है, इसमें बाल यौन शोषण संबंधी रिपोर्ट करना अनिवार्य है (अस्पतालों को रिपोर्ट करना अनिवार्य है)। यदि बच्चे के परिवार द्वारा अपराधी के विरुद्ध केस करने का तय किया जाता है, इसके कारण बच्चे की सुरक्षा को लेकर अनेक प्रावधान तैयार किये गए हैं। उदाहरण के लिये बच्चे से जो भी विवरण लिया जाता है, उस दौरान एक विश्वसनीय वयस्क की उपस्थिति आवश्यक होती है, बच्चे की पहचान को कभी भी उजागर नही किया जाता जो कि ट्रायल के दौरान और उसके बाद भी जाहिर नही की जाती है, अदालत में भी बच्चे की मदद के लिये जानकार उपलब्ध रहते हैं (उदाहरण के लिये सलाहकार, विशेष शिक्षा प्रदाता, अनुवादक आदि)।
जब बाल यौन शोशण संबंधी केस की रिपोर्ट नही की जाती है, तब आरोपी मुक्त घूमता है, वह अन्य बच्चों के साथ भी शोषण करेगा यह आशंका होती है।
मिथक: केवल पुरुष ही बच्चों का यौन शोषण करते हैं।
तथ्य: अधिकांश आरोपी पुरुष ही होते हैं, परंतु बहुत थोड़ी संख्या (अनुमान से 4%) महिलाओं को लेकर भी रिपोर्ट होती है कि उन्होंने बच्चों का यौन शोषण किया। महिलाओं द्वारा यौन शोषण के मामले अक्सर रिपोर्ट नही किये जाते क्योंकि सामान्य रुप से महिलाओं द्वारा छोटे लड़कों का शोषण किसी के द्वारा भी गंभीरता से नही लिया जाता।
मिथक: केवल छोटे बच्चों क अशोषण होता है।
तथ्य: बाल यौन शोषण बड़े बच्चों के साथ भी हो सकता है। वर्ष 2007 में हुए एक अध्ययन ने खुलासाकिया है कि कैशोर्य पूर्व की स्थिति और किशोर भी इसमें बहुत ज्यादा खतरे में होते हैं। रिपोर्ट किये गए बाल यौन शोषण के मामलों में से 73% मामले उन बच्चों के साथ हुए जिनकी आयु 11-18 के मध्य थी।
मिथक: कोई भी व्यक्ति जो इतना सफल और दयालू है, वह बच्चे का शोषण नही कर सकता। बच्चे द्वारा ही कुछ किया गया होगा।
तथ्य: वे व्यक्ति जो बच्चों का यौन शोषण करते हैं, वे अन्य लोगों से अलग नही दिखाई देते। अपनी पुस्तक, प्रिडेटर्स: पेडोफिलेस, रेपिस्ट अन्द अदर सेक्स ऑफेन्डर्स में, मानसशास्त्री दॉ अन्ना सी साल्टर, जो कि अंतराष्ट्रीय यौन आरोपों संबंधी अभ्यासक है, द्वारा यह बताया गया है कि इस प्रकार के आरोपी उन राक्षसों के समान नही होते जिनकी हम कल्पना करते हैं। अक्सर ये वे पुरुष और महिलाएं होते हैं जो काफी पसंद किये जाने वाले और सभी में बड़े प्रसिद्ध होते हैं। यह भी संभव है कि वे सार्वजनिक रुप से सभी के मध्य काफी जिम्मेदार और देखभाल किये जाने के समान व्यवहार करते हैं जिससे सभी उनका सम्मान करते हैं। अधिकांश आरोपी बच्चों के साथ कुच बेहतर समय बिताते हैं और शोषण किये जाने से पहले उनका विश्वास जीत लेते हैम। बच्चे कभी भी यौन शोषण किये जाने की स्थिति में झूठ नही बोलते या बनावटी बाते नही बनाते।