गर्भावस्था बड़ी खुशी और काफी चिंता का समय होता है. गर्भावस्था के दौरान एक महिला अपने बच्चे के लिए सब कुछ सही करना चाहती है. उसके परिवारवाले और दोस्त भी सलाह देना शुरू कर देते हैं और सभी विशेष रूप से उसकी देखभाल करने लगते हैं. जाने-अंजाने में वह खुद से ज़्यादा बच्चे पर ध्यान देने लगती है.
मुझे एक ऐसा ही अनुभव हुआ था. पहले गर्भ-धारण के दौरान मैं एक एम.एन.सी में काम कर रही थी और योग भी सिखाती थी. मैंने योग सिखाना छोड़ दिया. मेरी जीवन-शैली में अचानक परिवर्तन होने से, ऑफ़ीस में ज़िम्मेदारियाँ बढ़ने से, गर्भावस्था के पहले ही महीने में हाइपोथायरायडिज्म विकसित हो गया. मुझे भी दवाएँ दी गईं.
जब मैं गर्भवती हुई तो मेरा वजन ५० किलो था. अगले कुछ महीनों में ७८ किलो हो गया. मेरा ब्लड-प्रेशर भी बढ़ गया था. बच्चे के जन्म के बाद मेरा वजन ही सबके लिए चर्चा का विषय बन गया. धीरे-धीरे मेरा आत्म-विश्वास घट गया.
सिज़ेरियन होने के बावज़ूद, मैंने बच्चे के जन्म के आठ हफ़्तों बाद योग करना शुरू कर दिया. मैं अपने आपको और दूसरों को ये साबित करना चाहती थी कि इच्छा-शक्ति और योग की मदद से मैं स्वस्थ तरीके से वो प्राप्त कर सकती हूँ जो मैं चाहती हूँ. जब मेरा बेटा एक वर्ष का हुआ तब तक मेरा थायराइड लेवेल सामान्य हो चुका था, दवाएँ बंद कर दी गईं थी और मेरा वजन भी काफ़ी घट गया था.
मैं जब दूसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी, तब पू्र्णकालिक योग शिक्षक थी. इस बार मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ थी; न थायराइड, न बी.पी. न ही वजन की समस्या. बड़ी आसानी से महीने गुज़रे और डेलिवरी के ठीक आठ हफ़्तों बाद मैंने योग कक्षाएँ आरंभ कर दीं.
तनाव से निपटना
कई महिलाएँ गर्भावस्था के चरण का आनंद लेने के बजाय उसे एक बीमारी की तरह देखती हैं. इसका मुख्य कारण है-तनाव. इन नौ महीनों के दौरान तनाव पैदा करने वाले सामन्य विचार और शरीर की प्रक्रियाएँ हैं:
पहली तिमाही: शारीरिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी (उल्टी, थकान, चक्कर आना). औरत को ये स्वीकर करने में कि वह गर्भवती है, और अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाने में थोड़ा समय लगता है. जो पहली बार माँ बन रही हो उसे गर्भावस्था और जन्म के बारे में चिंता भी हो सकती है.
दूसरी तिमाही: पीठ में दर्द और भ्रूण असामान्यताओं के बारे में चिंता
तीसरी तिमाही: पीठ में दर्द, पैर और हाथ में सूजन, लेबर के बारे में घबराहट और चिंता
खुश माँ, खुश बच्चा
औरत को इस अवधि के दौरान उसके परिवार का शारीरिक और भावनात्मक समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है. कुछ गर्भवती माताएँ पहली तिमाही में बहुत थकान और कमज़ोरी महसूस करती हैं, मिचली होती है. तीसरी तिमाही में शरीर भारी और फूला हुआ होता है. दूसरी तिमाही में बहुत उत्साहित और क्रियाशील रहती हैं, इसलिए शारीरिक व्यायाम शुरू करने का ये सही समय है. योग से बेहतर और सुरक्षित और क्या हो सकता है?
प्रसव पूर्व योग आपके प्रतिरक्षा, आत्म विश्वास और रक्त परिसंचरण को बढ़ा देता है. यह आपके श्वास को भी बेहतर बनाता है. स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है. गर्भावस्था के दौरान एक महिलाओं में काफ़ी हार्मोनल परिवर्तन होते हैं. कुछ महिलाओं को थायराइड, कुछ को गर्भावधि मधुमेह, और कुछ को ब्लड् प्रेशर में उतार चढ़ाव होता है. ये सभी तनाव से संबंधित हैं और योग की मदद से इलाज किया जा सकता है.
"मन: प्रसन्ना उपाय योग:": योग मन को खुश करने का रास्ता है. चिंताएँ कम करने के लिए, मन के विचारों की गति को नियंत्रण में रखने के लिए योग आसन, प्राणायाम और क्रियाएँ बहुत उपयोगी हैं. वो महिला जो एक सकारात्मक दृष्टिकोण से अपने तनाव को दूर करने में सक्षम है, उसमें आत्मविश्वास और सक्रियता झलकती है.
यहाँ कुछ आसन और प्राणायाम दिए जा रहे हैं जो गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद हो सकते हैं:
(नोट: प्रसव-पूर्व योग का अभ्यास करने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को पहले अपने डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए और एक प्रशिक्षित विशेषज्ञ की देखरेख में ही आसन करने चाहिए)
बदकोणासन या तितली मुद्रा
यह आसन गर्भावस्था के सभी नौ महीनों के दौरान अभ्यास किया जा सकता है.
विधि:
• जमीन पर सीधा बैठें
• अब अपने घुटने मोड़ें और दोनों पैरों को साथ लाने की कोशिश कीजिए
• अपनी जांघों को फड़फड़ाना शुरू करें और अपनी सांसों का निरीक्षण करें.
बिल्ली या बाघ श्वास:
यह आसन पूरी गर्भावस्था के दौरान अभ्यास किया जा सकता है.
विधि:
• चौकों पर बैठ जाएँ. हाथ, जांघें और एड़ी एक लाइन में होने चाहिए
• साँस छोड़ें, अपनी गर्दन नीचे कर लें, और अपनी रीढ़ अवतल कर लें
• श्वास लें, ऊपर छत को देखें
• अपने श्वास को समन्वय करें
• यह एक राउंड पूरा करता है. आप प्रतिदिन इस आसन को 5 से 7 बार कर सकते हैं
अपने बच्चे के जन्म के बाद
बच्चे के आने की प्रत्याशा और इंतज़ार के नौ महीनों बाद आप बच्चा सहित घर वापस आते हैं तो आपको पूरी दुनिया उल्टी दिखाई देगी. आपको ये एहसास होगा कि अपना और अपने बच्चे की देखभाल करना वास्तविकता में इतना आसान नहीं है जितना आप किताबों मे पढ़ती हैं. इस चरण के दौरान, औरत को हर तरह के सहारे की ज़रूरत पड़ती है. अगले कुछ हफ़्ते बच्चे की देखरेख ही उसकी दुनिया है. और वह शारीरिक व भावनात्मक रूप से पूरी तरह थक जाती है. अगर बच्चा नए माहौल में अपने आपको ढ़ाल लेता है तो माँ की परेशानी थोड़ी कम होती है. अध्ययन ये बताते हैं कि हर दस महिलाओं में एक महिला प्रसवोत्तर अवसाद से ग्रस्त है. यह पहले सप्ताह और छह महीने के बीच कभी भी हो सकता है, और ज्यादातर ड़ायग्नोस नहीं होता है. सामाजिक मानदंडों के कारण माँ सही समय पर मदद माँगने में संकोच करती है. उसे लगता है कि अगर वो कहेगी कि वह खुद अपने बच्चे की देखभाल नहीं कर सकती तो समाज क्या सोचेगा. अगर माँ को पर्याप्त सहारा न मिले तो शायद वह बच्चे से पूर्ण संबंध बनाने में असमर्थ महसूस करे और बच्चे को बाहों में लेने या उसकी देखरेख में रुचि न दिखाए. कई माताएँ ये भी सोचती हैं कि कहीं वह बच्चे को मार न दे या नुकसान पहुँचाए. उन्हें अकारण रोने का और गला फाड़ कर चिल्लाने का मन करता है. प्रसव पूर्व योग महिलाओं को शांत रहने और ऐसी स्तिथि पर काबू पाने में मदद करता है.
आप एक नई माँ हैं, तो आप बच्चे के जन्म छह या आठ सप्ताह बाद योग का अभ्यास शुरू कर सकती हैं. इससे आप को शांतचित्त रहने, शरीर को पहले जैसे आकार में लाने और आत्माविश्वास को बढ़ाने में मदद मिलेगी. कुछ आसन आपके गर्भाशय के संकुचन में और गर्भावस्था के चर्बी को टोन करने में मदद करेंगे. योग आपके मेटाबॉलिस्म की गति बढ़ाता है और हॉर्मोन लेवेल के संतुलन में मदद करता है.
कई बार डॉक्टर होने वाली माँ की शारीरिक ज़रूरतों पर ही ध्यान देते हैं और उनकी भावात्मक ज़रूरत के बारे में चर्चा ही नहीं होती है. अत: ज़रूरी है कि:
१. बच्चे के जन्म से पहले या बाद में महिला सही व्यक्ति से मदद माँगे
२. अगर असामान्य विचार या व्यवहार हो तो अपने डॉक्टर से बात करें जो उन्हें योग प्रशिक्षक या काउंसलर से मिलने की सलाह देंगे
३. अगर प्रसव पूर्व योगाभ्यास करना हो तो प्रशिक्षित चिकित्सक और प्रसूति वैद्य से सलाह लें
४. प्रशिक्षित विशेषज्ञ की देखरेख में ही आसन करें
नयना कांतराज ‘बिंबा योग’ की संस्थापक हैं, और बेंगलुरु में प्रसव पूर्व योग कक्षाओं का आयोजन करती हैं. वह पिछले 10 वर्षों से योग शिक्षण करती आई हैं.