रुकिए, आत्महत्या कोई जवाब नहीं है

हमारे विशेषज्ञ आपको बता रहे हैं कि अप्रत्याशित उदासियों का सामना कैसे करें और अपनी समस्याओं से कैसे निजात पाएं
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“तूफ़ान के गुज़र जाने का इंतज़ार मत कीजिए, बारिश में नृत्य करना सीखिए.” – विवियन ग्रीन

ये उद्धरण ख़ुद की मदद करने की अहमियत और आत्महत्या के ख़्यालों को दरकिनार कर डटे रहने के तरीके सीखने की भावना को रेखांकित करता है. आत्महत्या का रास्ता अक़्सर ऐसे लोग चुनते हैं जो बुरी स्थितियों का सामना कर रहे होते हैं और वे ऐसी स्थितियां होती हैं जिनसे निकल आने का कोई भी रास्ता उन्हें नज़र नहीं आता है. लोग ‘सक्रियता से’ अपनी मदद खुद कना सीख सकते हैं.

26 वर्षीय आईटी प्रोफ़ेश्नल, मनोज एक प्रतिबद्ध वर्कर है और अपनी कार्यक्षमता के लिए उसे अपने सहकर्मियों और वरिष्ठों की तारीफ़ भी मिलती है. हाल में, उसे अपने काम में ध्यान लगा पाने में मुश्किल आने लगी, वो ज़्यादातर समय थकान ही महसूस करता रहता, उसका ध्यान उचट गया और वो ठीक से सो भी नहीं पाता था. उसके पिता बहुत शराब पीते थे, और उसकी मां से लड़ते रहते थ. मनोज अपने पिता की पीने की लत से, अपनी मां की सेहत और परिवार की आर्थिक हालत को लेकर बहुत ज़्यादा परेशान रहने लगा था. नतीज़तन, अपनी ज़िंदगी को ख़त्म करने का ख़्याल उसके ज़ेहन में मंडराने लगा.

कॉलेज के दिनो में भी मनोज में आत्महत्या के ख्याल आए थे जब वो दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में फेल हो गया था. उस समय मनोज ने अपने ख़्याल के बारे में अपने रूममेट रवि को बताया था और उसे बहुत राहत मिली थी. मनोज उस समय अपने कॉलेज की क्रिकेट टीम में भी था और आने वाले टूर्नामेंट के लिए उसे तैयारी भी करनी थी. रवि से बात करने के बाद आत्महत्या का ख्याल उसके दिमाग से कम होता गया और वो क्रिकेट पर ध्यान देने लगा. उसकी टीम ने क्रिकेट टूर्नामेंट जीत लिया और वो खुद भी रवि के साथ अपने इम्तहान की तैयारियों मे जुट गया. आत्महत्या की बात उसके दिमाग से पूरी तरह निकल गई थी.

अपने कॉलेज के दिनों में उसने कैसे इन विचारों का सामना किया था, ये याद करते हुए मनोज ने इस समय भी वही रणनीति अपनाने का फ़ैसला किया. उसने रवि को फ़ोन किया और नियमित रूप से एक्सरसाइज़ पर जाने लगा. मनोज ने न सिर्फ़ अपने तनाव में कमी महसूस की बल्कि आत्महत्या का ख़्याल भी कम होने लगा. काम में उसका प्रदर्शन फिर से सुधर गया. परिवार को लेकर उसकी चिंताएं बनी रहीं लेकिन आत्महत्या की बात दिमाग से हट गई तो मनोज भविष्य की योजनां बनाने लगा. इसके लिए उसने रवि से मदद ली. उसके दफ़्तर मे वरिष्ठों ने भी उसकी मदद की.

तीन में से एक व्यक्ति अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी आत्महत्या के बारे में सोचता है. ये एक सामान्य लेकिन परेशान कर देने वाला अनुभव है. अक्सर इसे किसी के साथ शेयर भी नहीं किया जा सकता है. लोक इसके बारे में इसलिए बात नहीं करते हैं क्योंकि वे गलत मान बैठते हैं कि बात करने से उनका ख़्याल ही और मज़बूत होगा या उनके परिजनों को बुरा लगेगा. लेकिन ऐसे लोग जो अपनी भावनाएं साझा कर लेते हैं, वे पाते हैं कि बात कर लेने से सुकून मिलता है और एक तरह की आज़ादी महसूस होती है. खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या के ख़्यालों को किसी के साथ साझा कर लेने से बहुत हद तक व्यक्ति इन ख़्यालों से पीछा छुड़ा सकता है.

आत्महत्या के विचार ऐसे समयों पर भी बार बार आते हैं और गहराने लगते हैं जब व्यक्ति अकेला होता है या व्यस्त नहीं होता है. परिवार या दोस्तों के साथ समय बिताकर और खुद को गतिविधियों में व्यस्त रख कर आत्महत्या के ख़्यालों की तीव्रता और आवृत्ति को कम किया जा सकता है. इसके लिए मनोरंजक गतिविधियों में भागीदारी की जा सकती है, कोई नई हॉबी शुरू की जा सकती है या किसी पुरानी हॉबी को फिर से शुरू किया जा सकता है. लोग कहते हैं कि गतिविधियों से बेहतरी की भावना बन जाती है और आत्महत्या के विचार मिटने लगते हैं.

ये विचार उस समय भी कम होने लगते हैं जब कोई सुनियोजित ढंग से ये याद करने की कोशिश करता है कि अतीत में ऐसे ही अनुभव से गुज़रते हुए उसने क्या किया था. खुद की मदद करने के तरीकें ऐसे विचारों को कम करने में कितनी मदद करते हैं, ये भी उसे ध्यान आ जाता है. मनोज ने अपनी वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए अपने अतीत के अनुभव का इस्तेमाल किया. उसे अच्छी तरह पता था कि अतीत में मुश्किलों में घिर जाने के बावजूद वो डटा रहा था और एक सकारात्मक अनुभव की तरफ़ बढ़ पाया था जिससे उसके आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी हुई.

आत्महत्या के विचार दिन के किसी निश्चित समय में ज़्यादा गहराने लगते हैं और फिर दिन में कई बार आने लगते हैं, फिर हर कुछ दिन या महीनों में ये मंडराते ही रहते है. इन विचारों से निजात पाने के लिए एक सुरक्षा योजना बना लेना, हमेशा लाभदायक होता है, इसमें हर कदम पर मदद मांगने के विकल्प भी बने रहते हैं. इसे लिख लेने से ये तरीका सुगम हो जाता है. इसे इस तरह शुरू कर सकते हैं:

  • जीने की वजहों के बारे में लिख लें (आकांक्षाएं, भविष्य की योजनाएं, उन व्यक्तियों के नाम जिन्हें आप बेहद चाहते हैं या उनकी फ़िक्र करते हैं, अतीत के सकारात्मक अनुभव)
  • विशेष किस्म की गतिविधियों में शामिल होना जिनसे आत्महत्या के ख़्याल आपके पास न फटक पाएं.
  • अपने किसी विश्वस्त व्यक्ति के साथ संपर्क बनाए रखें या उनसे नियमित रूप से बात करते रहें.
  • सुसाइड हेल्पलाइन या काउंसलर के फ़ोन नंबर अपने पास रखें.
  • जिस किसी व्यक्ति पर आपको भरोसा है, उसके साथ ये योजना साझा कर लें, अपने पास एक प्रति रखें, इस तरह ये योजना आप कहीं भी कैसी भी स्थिति में लागू कर सकते हैं.

आत्महत्या के ख्याल से जूझने वाले लोग वास्तव में अपने तनावों से निजात पान चाहते हैं. अपनी मदद ख़ुद करने की रणनीतियों पर अमल करके ऐसे विचारों को कम किया जा सकता है और तनाव से भी मुक्त हुआ जा सकता है. अगर आप महसूस करते हैं कि इन कोशिशों के बावजूद आत्महत्या का ख्याल बना रहता है तो किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिलने में न हिचकिचाएं. इस मामले में तो आपका अपना स्थानीय डॉक्टर (जनरल फ़िजीशियन) भी मदद कर सकता है.

डॉ वी सेंथिक कुमार रेड्डी, निमहान्स के साइकिएट्री विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.

अधिक जानकारी के लिए निमहान्स सेंटर फ़ॉर वेलबीन्ग(NCWB) में सुबह 9 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे तक (080) 2668594 पर फ़ोन कर सकते हैं.

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