मानसिक रोगों में दी जाने वाली दवाओं के लाभ क्या उनके दुष्प्रभाव से अधिक हैं?
मानसिक रोगों में दी जाने वाली दवाओं के लाभ क्या उनके दुष्प्रभाव से अधिक हैं?
मनोरोग चिकित्सा के लाभ-हानि के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है हालांकि कुछ आशंका मानसिक दवाओं के काम के बारे में ज्ञान की कमी से पैदा होती है, लेकिन उपयोगकर्ताओं द्वारा उन दुष्प्रभावों पर चिंताएं भी उठ रही हैं जो यह दवाएं अपने साथ लाती हैं।
साक्रा अस्पताल की सलाहकार मनोचिकित्सक डॉ सबीना राव से हमने कुछ सामान्य प्रश्न पूछे।
मनोवैज्ञानिक दवाओं के बारे में लोगों की सबसे आम चिंताएं क्या हैं?
लोग मनोरोग के लिए दवाएं नहीं लेना चाहते। वर्षों के अनुभव में मैंने कई तरह के कारण सुने हैं, जैसे- "वे मेरे दिमाग को बदल देंगे" या "मैं उन पर निर्भर हो जाऊंगा"। ऐसा सोचने के अलावा कि वे मानसिक रोगों की दवाओं के आदी हो जायेंगे, लोगों का यह भी मानना है कि मनोचिकित्सक को दिखाना या दवाएं लेना कमजोरी का संकेत है। एक मनोचिकित्सक को दिखाने या दवाएं लेने का मतलब है कि आप 'बीमार' हैं या आप 'पागल' हैं।
क्या यह विचार इस तथ्य के कारण है कि मनोरोग की दवाएं अक्सर लंबे समय तक चलती हैं?
मैं केवल एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारकों के बारे में सोच सकता हूं जो अल्पावधि के लिए होती हैं बाकी सब कुछ लंबी अवधि के लिए है। मनोरोग की दवाएं उस संदर्भ में किसी भी अन्य दवा से अलग नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन सर्वेक्षण में अवसाद की घटनाओं में भारत में उच्च अवसादग्रस्तता प्रकरणों की दर 36 प्रतिशत से ऊपर पता चली। एक अन्य अध्ययन में हर हजार के लिए तीन से चार व्यक्तियों में स्किज़ोफ़्रेनिया की वार्षिक दर दिखायी गयी है। स्किज़ोफ़्रेनिया जैसी दुर्लभ बीमारियों के लिए दीर्घकालीन दवाओं की आवश्यकता हो सकती है, जबकि अवसाद और व्यग्रता जैसी सामान्य बीमारियों के लिए शायद न हों।
इसलिए एक व्यक्ति जिसको अवसाद/व्यग्रता है तथा जो नियमित रूप से अपनी दवा लेता है और किसी अनुशंसित चिकित्सा/परामर्श का नियमित पालन करता है, उसे छह महीने या अधिकतम एक साल तक चिकित्सा कराने की आवश्यकता हो सकती है। यदि समस्या दूर हो जाती है, तो उन्हें और दवा लेने की ज़रूरत नहीं होती है। अगर आप एक बार अवसादग्रस्त होते है, तो आपको एक बार फिर अवसाद होने का 50 प्रतिशत खतरा रहता है, लेकिन आपको 50 प्रतिशत तक यह भी हो सकता है कि अवसाद हो ही नहीं। इसलिए यह संभव है कि अगर आप छह महीने से एक वर्ष तक दवा लेते हैं और आप अपने अवसाद का प्रबंधन करने के बारे में कुछ कौशल सीख लेते हैं तो यदि आप फिर से अवसादग्रस्त हो जाते हैं, तो आप उन विधाओं का उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं जिनसे आपने अवसाद से निपट सकें। तब आपको कोई दवा लेने की आवश्यकता नहीं भी पड़ सकती है।
मनोचिकित्सक आमतौर पर कब दवा लिखते हैं?
कुछ मरीज़ ये जानते हैं कि कुछ सही नहीं है और उन्हें उपचार में दवा की जरूरत हो सकती है। फिर ऐसे लोग भी हैं जो बिना सोचे समझे चले आते हैं और कहते हैं, "मुझे आपको दिखाने के लिए कहा गया है, मुझे पता नहीं है कि क्यों, लेकिन मैं निश्चित रूप से दवा नहीं लेना चाहता हूं।" लोगों को यह समझना होगा कि बस मनोचिकित्सक को दिखाने भर से आप बेहतर नहीं हो सकते हैं। यहां तक कि अगर डॉक्टर ने केवल परामर्श की सिफारिश की है, तो एक या दो सत्रों से काम नहीं चलेगा। आपको निर्धारित सत्रों के लिए जाना होगा। उदाहरण के लिए, संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (सीबीटी) जिस तरह से किया जाना चाहिए, यह उपचार सोलह सप्ताह के लिए है, जो चार महीने होते है। अगर आप इतने समय तक नहीं जा सकते, तो कम से कम सत्रों की संख्या को आधा करके आप अपनी बीमारी का प्रबंधन करने के लिए कुछ कौशल विकसित कर सकते हैं।
आप डॉक्टर को जो बताते हैं, उसके आधार पर वह निर्णय लेते हैं। यदि आप डॉक्टर को बताते हैं कि, "मैं आत्महत्या करना चाहता हूँ, मैं अभी ऐसा नहीं कर सकता, मुझे निराशा हो रही है और बेकार और उदास लग रहा है," तो मुझे दवा लिखनी पड़ेगी। इसका कारण यह है कि बीमारी को "हल्के" रूप में परिभाषित नहीं किया जाएगा। लेकिन अगर आप कहते हैं, "मुझे काम में कठिनाई हो रही है और मैं अभिभूत महसूस करता हूँ, मगर कोई आत्मघाती विचार नहीं हैं," तो मेरा परामर्श काउन्सेलिग होगा। एक मनोचिकित्सक के कार्यालय में, खुले दिमाग से जाना चाहिए। मनोरोग की दवाएं नशे की लत नहीं करतीं और सुरक्षित हैं जो गर्भावस्था के दौरान भी सबसे अधिक समय के लिए दी जा सकती हैं।
लेकिन आजकल हर कोई जल्दी ठीक होना चाहता है
यदि कोई मरीज मेरे कार्यालय में शुरूआती दौर में आता है, तो हम उनके समय के फ्रेम में चीजों को ठीक करने का प्रयास कर सकते हैं। लेकिन यह भारत में शायद ही कभी होता है। आमतौर पर लोग एक मनोचिकित्सक के कार्यालय में तब जाते हैं जब रोग मध्यम से गंभीर स्तर तक बढ़ चुका होता है। यदि आपको महीनों तक नींद की समस्या हो रही है, तो कोई चिकित्सक इसे एक या दो दिनों में ठीक नहीं कर सकता है। किसी भी उपचार की तरह, मनश्चिकित्सीय उपचार के लिए भी समय की आवश्यकता होती है।
लोगों को यह समझना होगा कि हमारे आसपास तनाव के प्रति जो दृष्टिकोण एवं प्रतिक्रियाएं होती हैं उन्हें बदलना आम मानसिक विकारों की चिकित्सा का एक अंग है। वर्षों से गठित अपनी अनुभूति को बदलने में समय लगता है और रोगी की ओर से कुछ प्रयास भी आवश्यक हैं।
परामर्श और दवा का अनुपात आमतौर पर क्या होता है?
जिसके लक्षण हल्के हैं, उनके लिए हो सकता है केवल काउन्सेलिग ही पर्याप्त हो। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, भारत में जिस समय लोग डॉक्टर के पास आते हैं, रोग मध्यम से गंभीर हो जाता है। उस समय, दिशा-निर्देशों के अनुसार, निर्धारित दवाओं की अपेक्षा की जानी चाहिए। बेशक, ऐसे रोगी हैं जो कोई दवा नहीं लेना चाहते हैं, उन्हें नियमित रूप से थेरेपी करवानी चाहिए। आप ऐसा नहीं कर सकते कि चिकित्सक से मिलें और फिर उसी माहौल में वापस लौट जाएं जो आपको वास्तव में परेशान कर रहा है। एक गहन साप्ताहिक चिकित्सा से प्रारंभ करें और फिर धीरे-धीरे आपको इसकी कम आवश्यकता होगी।
गंभीर मानसिक विकार के बारे में क्या कहेंगी?
बाइपोलर डिसऑर्डर, सित्ज़ोफ्रेनिया या यहां तक कि गंभीर अवसाद जैसे मामलों में कभी-कभी मतिभ्रम भी हो सकता है। आप दवा लेने से इनकार करके अपने को कोई लाभ नहीं पहुंचा रहे हैं। ये गंभीर मानसिक बीमारियां हैं जो रोजगार, वैवाहिक जीवन और अन्य पहलुओं में आपके जीवन को बाधित कर सकते हैं। दुख की बात है कि अब तक, विज्ञान के पास कोई हल नहीं है जिसमें सिर्फ थेरेपी हो और कोई दवा शामिल नहीं हो। और ज्यादातर मामलों में, रोगी को स्थिर किए बिना हम चिकित्सा भी शुरू नहीं कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक दवाओं के दुष्प्रभाव क्या हैं? इसके बारे में बहुत अधिक डर है
सामान्य मानसिक बीमारियों के लिए दी जाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव हल्के होते हैं। अधिकतर रोगी कहते हैं कि उन्हें मतली, सिरदर्द, मुंह सूखना और थकान आदि हो रही है। इन्हें हल्का दुष्प्रभाव माना जाता है लेकिन उनके लाभ दुष्प्रभाव के जोखिम से अधिक होते हैं। इसके अलावा जो हम पहले इस्तेमाल करते थे, ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स, उनके प्रभाव के विपरीत, आम मानसिक बीमारियों के लिए नई दवाओं के बहुत हल्के दुष्प्रभाव होते हैं। इसकी आशंका तो रहती है कि शायद किसी में दुर्लभ दुष्प्रभाव दिखाई दे जाएं, लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है।
गंभीर मानसिक विकारों की दवाओं के लिए यह शिकायतें हैं कि इनसे खुद को खो सकते हैं। उस स्थिति के साथ व्यक्ति किस प्रकार समझौता कर सकता है?
यह कैसे काम करता है इसे गंभीरता से समझने की आवश्यकता है। मान लें कि किसी को बाइपोलर डिसऑर्डर है। उनमें से कुछ मेनिया के रचनात्मकता दौर का बहुत आनंद लेते हैं और मानते हैं कि दवा इसको कम कर सकती है। लेकिन, मेनिया अक्सर खतरनाक स्तर पर जा सकता है, ज़िंदगी के लिए खतरा हो सकता है। हालांकि वे अवसाद के लिए दवा चाहते हैं क्योंकि उन्हें निराशा लगती है। दुर्लभ लेकिन गंभीर बीमारियों में, परिवारों को शामिल होने की आवश्यकता है। परिवार मरीज को सही निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। बेशक आप आलस्य और थका हुआ महसूस कर सकते हैं और दवाओं से वजन बढ़ सकता है, लेकिन अगर आप इसका इलाज नहीं करते हैं, तो यह नियंत्रण से बाहर हो जाता है बिना दवा के स्किज़िफ़्रेनिया बहुत खराब हो सकता है। फिर भी समय के साथ, दुर्लभ बीमारियों में भी कुछ लक्षणों से निपटने के लिए परामर्श से कौशल हासिल कर सकते हैं और दवा को स्थिर या कम कर सकते हैं।
तो अपने मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के संपर्क में रहना और लक्षणों की निगरानी आधा काम है?
यह आधे से ज्यादा काम है। सामान्य मानसिक विकारों में, आप कुछ समय में दवाओं से बाहर आ सकते हैं और कई अन्य मामलों में आप लक्षण मुक्त रहने के लिए आवश्यक खुराक को स्थिर या कम कर सकते हैं।
वैकल्पिक चिकित्सा के बारे में क्या?
कोई डॉक्टर रोगी को अन्य कोशिश करने से रोक नहीं सकता, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि वैकल्पिक चिकित्सा मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवा के साथ हस्तक्षेप कर सकती है। हम अक्सर नहीं जानते कि वैकल्पिक दवाएं कैसे काम करती हैं क्योंकि पर्याप्त अध्ययन नहीं हैं और मनोचिकित्सक उपचार के वैकल्पिक तरीकों में विशेषज्ञ नहीं हैं। योग और ध्यान अक्सर आप को बेहतरी पाने में मदद कर सकते हैं, लेकिन अगर आप किसी अन्य गोली या पाउडर का सेवन करते हैं, तो मुझे यह नहीं पता है कि इसका एलोपैथिक दवाओं के साथ क्या असर होगा।
इस आरोप के बारे में आपका क्या विचार है कि मनोचिकित्सक अक्सर समय की कमी के कारण दवाएं लेने पर ज़ोर देते हैं?
मैं इस तरह सोचने के लिए लोगों को दोषी नहीं ठहराता हूं। लेकिन भारत में ऐसे काम होता है। वास्तविकता यह है कि रोगियों की संख्या की तुलना में मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता पर्याप्त नहीं हैं। एक मरीज़ डॉक्टर से मिलता है जिसकी कतार में सौ मरीज़ हैं। आप शायद ऐसे समय में क्लिनिक में गए हैं जब आपके लक्षण मध्यम से गंभीर हो गए हैं, इसलिए चिकित्सक को आपकी स्थिति को स्थिर करने के लिए दवा देनी पड़ती है। आदर्श रूप से आपको एक मनोवैज्ञानिक के साथ समय बिताना चाहिए, लेकिन अक्सर हमारे पास संसाधनों की कमी होती है तो ज्यादातर डॉक्टर सोचते हैं कि कम से कम मैंने समस्या का एक हिस्सा हल कर लिया है।
मेरा विचार है, कि पांच मिनट के लिए एक डॉक्टर से मिलना लाभदायक है। चिकित्सा को प्राथमिकता दें, परामर्श के लिए जाने को अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालें।
लिख कर रखें कि आप क्या कहना चाहते हैं या अपने डॉक्टर से क्या पूछना चाहते हैं। तभी आपको इस सत्र से लाभ होगा। यह एक अस्थिरोग विशेषज्ञ, एक त्वचा विशेषज्ञ या किसी अन्य चिकित्सक के साथ बात करने जैसा ही है। डॉक्टरों के प्रतीक्षा कक्ष भरे हैं, और हम सभी इसको बदलना चाहते हैं। हम भी अपने मरीजों के साथ अधिक समय बिताने का अवसर चाहते हैं।