मानसिक मंद व्यक्ति और रोजगार

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हम सभी को अपने काम और रोजगार के स्थान पर सम्मान और महत्व मिलता है। यह केवल आय के लिये नही होता परंतु हमें भी अपनी उपयोगिता साबित करने का अवसर मिलता है, सीखने को मिलता है और दूसरों के साथ काम करने को मिलता है। लेकिन यही बात यदि मानसिक मंद व्यक्तियों के रोजगार को लेकर की जाए तो?

अधिकांश मानसिक मंद व्यक्तियों की आयु 15-35 वर्ष के मध्य है। कुछ मानसिक बीमार व्यक्तियों में यह बीमारी इतने लंबे समय तक चलती है कि व्यक्ति के जीवन के प्रमुख उत्पादक वर्षों को समाप्त कर देती है। मानसिक मंद व्यक्ति जैसे क्लिनिकल अवसाद, व्यग्रता संबंधी स्थितियों में होने के बावजूद, एक विशेष अवधि के बाद काम करने की स्थिति में होते हैं। बहरहाल, यदि व्यक्ति को गंभीर मानसिक बीमारी हो जैसे सीजोफ्रेनिया या बायपिलर डिसऑर्डर, तब उनके सामाजिक कौशल, कार्य करने की क्षमताएं और नियमित दवाई लेने की स्थितियां भी प्रभावित होती हैं। बीमारी के कारण व्यक्ति नवीन कौशल सीखने में अक्षम हो सकता है या फिर उस कौशल का भी उपयोग नही कर पाता जो उसके पास बीमारी से पहले था।

मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति काम कैसे शुरु या पुन: जारी रख सकता है?

व्यावसायिक पुनर्वास वह प्रक्रिया होती है जो कि इलाज के साथ ही व्यक्ति की मानसिक मंदता की स्थिति के अनुसार समानांतर चलती है। यह एक क्रमिक प्रक्रिया है और व्यक्तिगत रुप से सलाह, व्यावसायिक कुशलता संबंधी आकलन, काम संबंधी कौशल, काम पर बने रहना और उसकी देखभाल से संबंधित है। पुनर्वास की इस प्रक्रिया के साथ हि, व्यक्ति का आकलन किया जाता है, उसे प्रशिक्षण दिया जाता है और विविध पारिवारिक स्रोतों, जरुरतों और आवश्यकताओं के अनुसार उन्हे काम दिय जाता है।

एक काम होने से व्यक्ति को आत्म सम्मान बनाकर रखने में मदद मिलती है और वे एक बेहतर प्रेरणा देने वाले इन्सान हो अकते हैं। इससे एक आशा की किरण जागती है जिससे व्यक्तियों को मानसिक बीमारी से ठीक होने के बाद की स्थिति को संभालने में मदद मिलती है। देखा जाए, तब मानसिक बीमार व्यक्तियों को पुनर्वास के लिये प्रशिक्षित किया जाता है:

·         उनका ध्यान उनके लक्षणों से हटकर किये जाने वाले काम पर हो जाता है

·         वे समूह में काम करना सीखते हैं, स्वयं को अकेला होने से बचाते हैं

·         उनकी क्षमताओं का विकास होता है, वे एकाग्र होते हैं और उनकी स्मृति संबंधी कार्य वृद्धिगत होते हैं।

·         उनकी एक काम करने की आदत विकसित होती है जिसमें वे बार बार एक काम करते हैं

·         जब उन्हे आर्थिक पारिश्रमिक दिया जाता है, तब वे प्रेरित महसूस करते हैं

·         व्यक्ति का आत्मसम्मान बढ़ता है, उन्हे स्वयं के उपयोगी व महत्वपूर्ण होने का एहसास होता है।

·         उनका कुल कार्य करने का स्तर बढ़ जाता है

डॉ आरती जगन्नाथन, एनआईएमएएनएस में सायकेट्रिक सोशल वर्क संबंधी सहायक प्राध्यापक है और उनका कहना है, ’भारत में अब तक मानसिक मंद व्यक्तियों के लिये व्यावसायिक पुनर्वास की परिकल्पना कुछ इस प्रकार से थी कि व्यक्ति को उसके कामों या गतिविधियों में व्यस्त रखा जाए। पिछले एक वर्ष से, मानसिक स्वास्थ्य के अस्पतालों और मानसिक पुनर्वास केन्द्रों द्वारा इस प्रकार के व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने और उन्हे रोजगार के लिये विशेष कौशल प्रदान करने की गतिविधियां शुरु हुई हैं। इस कार्य के समानांतर एन आई एम एच ए एन एस द्वारा एक वोकेशनल असेसमेन्ट प्रोफार्मा तैयार किया है जिसे उद्योग (यूनीक डेटा बेस ऑफ यूथ फॉर गेनफुल एम्प्लॉयमेन्ट) तैयार किया गया है जो कि मानकीकरण की प्रक्रिया में है।“

“बहरहाल, व्यक्ति की रुचि, क्षमता और रोजगार की जरुरतों को लेकर उनकी तैयारी के स्तर को मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों द्वारा, उन्हे दिये जाने वाले प्रशिक्षण से पहले जांच लिया जाता है। साथ ही बीमारी की स्थिति को देखते हुए प्रशिक्षण के बाद, व्यक्ति को काम पर रखे जाने से पहले भी इस संबंध में जांच की जाती है।’ वे आगे बताती हैं। उद्योग प्रोफार्मा फिलहाल मानसिक रुप से मंद उन व्यक्तियों के लिये लागू किया जा रहा है जिनका इलाज एन आई एम एच ए एन एस में हो रहा है।

 पुनर्वास के लिये तैयारी और आकलन के द्वारा, मनसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों द्वारा तीन परिणामों को सामने लाया गया है:

·         यदि व्यक्ति निरंतर लक्षण दिखाता है जिसमें अनुसरण की जरुरत है

·         यदि व्यक्ति अभी व्यावसायिक पुनर्वास के लिये तैयार नही है, उन्हे डे केयर सेन्टर में भेजा जाता है जहां पर व्यक्ति की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जरुरतों को पूरा किया जाता है।

·         जब व्यक्ति व्यावसायिक पुनर्वास के लिये तैयार है, उन्हे व्यावसायिक सलाह के लिये भेजा जाता है, काम के कौशल को लेकर सही प्रशिक्षण दिया जाता है और सही स्थान पर काम पर लगाया जाता है।

मानसिक मंद व्यक्ति की रोजगार क्षमता

मानसिक मंद व्यक्ति उसकी क्षमता पर आधारित काम पा सकता है। हो सकता है कि वे प्रतियोगी रोजगार के लिये उपयुक्त हो, कोई वर्कशॉप जहां पर सही तरीके से ध्यान रखा जाता हो जैसे व्यवसायिक केन्द्र, जहां पर वे स्वरोजगार, घर पर करने वाले काम, या सहायता के आधार पर काम कर सकते हैं और यह उनकी व्यावसायिक कार्यसिद्धता को साबित करता है।

कार्यसिद्धता संबंधि व्यक्तिगत क्षमता में शामिल है उनके कार्य की आवश्यकताएं जो कि उनकी बीमारी की स्थिति और अवधि पर आधारित होती है, उनके द्वारा ली गई दवाएं और उनकी अवधि, स्वयं की देखभाल संवाद कौशल, सामाजिक कौशल, उनके लिये काम करने का समय आदि के साथ निम्न पर निर्भर करती है:

·         स्वतंत्र रुप से यात्रा करना

·         निर्देशों को समझना

·         निर्णयों का उपयोग करना

·         अपने पैसे स्वयं संभालना

विद्या एच आर, प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, इनेबल इन्डिया, द्वारा मानसिक मंद व्यक्तियों के प्रशिक्षण के संबंध में अपने अनुभव बताते हुए कहा जाता है, ’कई बार मैने देखा कि व्यक्ति को काम करने में सक्षम या अक्षम कहना सही नही है, उनपर बीमारी का या दवाईयों का असर होता है जिसके कारण वे काम करने में परेशानी महसूस करते हैं। एनेबल इन्डिया में हम यह पक्का विश्वास रखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति जो विकलांग है, उसे सहानुभूति की जरुरत नही है – उन्हे सहायक वातावरण चाहिये जो उनकी जरुरतों, क्षमताओं और सपनों को पूरा करने में मदद करे।

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