आपके फ़िटनेस एजेंडे में शामिल मानसिक स्वास्थ्य
अगर आप भलेचंगे हैं तो फिर अपने स्वास्थ्य की फ़िक्र भला क्यों करें? स्वास्थ्य को लेकर चेतना में आ रही जागरूकता को देखते हुए, ये सवाल पूछना मूर्खतापूर्ण होगा. इसका मतलब ये है कि हम स्वास्थ्य समस्याओं पर काबू पाने और फ़िटनेस को बनाए रखने की अहमियत समझते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि एक संतुष्ट और सफल ज़िंदगी के लिए इनकी क्या प्रासंगिकता है.
जब आप उपरोक्त पैरा पढ़ रहे हैं तो आप क्या देखते हैं? बहुत संभावना है कि आप उन लोगों के बारे में सोच रहे हो जो सुबह सड़कों पर जॉगिंग करते हैं, या जिम जाते हैं, या उन बुज़ुर्गो का ख़्याल आपको आता होगा जो रोज़ सुबह सैर पर निकलते हैं. हो सकता है कि आप टीवी पर दिखाए जाने वाले हेल्थ-फ़ूड के विज्ञापनों या किसी लोकप्रिय पत्रिका में आने वाली पोषक सलाहों से जुड़ी छवियों को अपने ज़ेह्न में याद कर रहे हों.
मैं आपसे पूछती हूं. क्या आपने अपनी कल्पना या विचार में मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल किया? क्या आपने ऐसे किसी व्यक्ति की कल्पना की जो अपनी परेशानी अपने किसी निकट मित्र या काउंसलर को बता रहा हो? क्या आपने ऐसे किसी व्यक्ति की कल्पना की थी जो अपने क्रोध पर क़ाबू पाने के संभावित तरीक़ों के बारे में लिख रहा हो? क्या आपने ऐसे किसी व्यक्ति की तस्वीर बनाई थी जो अपनी घबराहट या अपने आत्मसम्मान की हिफ़ाज़त के लिए ‘स्वयं सहायता' वाली कोई किताब पढ़ रहा हो? क्या आपने ऐसी कोई कल्पना की थी कि कोई व्यक्ति अपने अंतर्वैयक्तिक कौशल में सुधार कर रहा हो या सकारात्मकता हासिल करने के लिए किसी कार्यक्रम में भाग ले रहा हो?
मेरा अनुमान है कि जवाब ‘नहीं’ में होगा. अच्छा है अगर आप इनमें से किसी चीज़ के बारे में सोच रहे थे या आप इस बारे में सचेत हो रहे हैं कि वास्तव में स्वास्थ्य में मानसिक सेहत भी शामिल है.
ज़ाहिर है ऐसा समय भी आता है जब हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे होते हैं. लेकिन मानसिक सेहत के मामले में ऐसा नहीं होता है. मानसिक स्वास्थ्य एक लिहाज़ से मानसिक बीमारी का समानार्थी हो गया है और हम गलती से ये मान लेते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ उन लोगों की चिंता का मुद्दा है जिन्हें कोई मानसिक बीमारी है.
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को रोकना और मानसिक सेहत को बढ़ावा देना उतना ही ज़रूरी हैं जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य और फ़िटनेस. इस बारे में कई शोध हैं जो बताते हैं कि शारीरिक और मानसिक सेहत आपस में जुड़े हैं और एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के बुलेटिन में प्रकाशित एक अध्ययन में शारीरिक और मानसिक सेहत के बीच जटिल संबंध दिखाने वाले शोधों को ज़िक्र किया गया है. मिसाल के लिए टाइप-II डायबिटीज़ वाले व्यक्तियों में अवसाद आम आबादी के मुक़ाबले अवसाद के दोगुने मामले देखे गए हैं या दिल के दौरे के बाद अवसादी लक्षणों का इलाज मृत्यु दर में या अस्पताल में दोबारा भर्ती होने की दर में कमी ले आता है. हमें याद रखना चाहिए कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों का ख़्याल रखना ज़रूरी है और एक का ख़्याल रखना दूसरे की हिफ़ाज़त का न तो विकल्प हो सकता है और न ही गारंटी.
मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि करने वाली या उसे बनाए रखने वाली आदतों और अभ्यासों को विकसित कर हम ज़िंदगी में संभावित विपत्तियों को दूर रखने की क्षमता विकसित कर सकते हैं. मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना एक बुद्धिमतापूर्ण विकल्प है क्योंकि इसका नज़दीकी संबंध जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारी कार्यक्षमता और उत्पादकता से है, जैसा कि गॉलप के शोधकर्ताओं की एक टीम के अध्ययन में दिखाया गया है.
मानसिक सेहत का ख्याल रखना अभी एक लोकप्रिय विचार नहीं बना है, ना सिर्फ़ इसलिए कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों के दिमाग में रहे लोक-लाज के भय की भावना जुड़ी हुई है, बल्कि इसलिए भी की ये एक अमूर्त और अस्पष्ट सी अवधारणा लगती है, जिसकी देखबाल के बारे में हमारे पास कोई ठोस विचार या यकीन नहीं हैं.
मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की दिशा में चुनिंदा प्रयत्नों में शामिल हैः मनोवैज्ञानिक गुणों का विकास, जो हमारे भीतर परिस्थितियों के प्रति एक लचीलापन लाते हैं, मिसाल के लिए हमारी नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रण में रखने का कौशल, सकारात्मक भावनाओं को विकसित करने का कौशल जो स्वास्थ्यवर्धक होते हैं. (कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, एसोसिएशन फ़ॉर साइकोलॉजिकल साइंस और इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ साइकोलॉजिकल स्टडीज़ में प्रकाशित अध्ययनों में ये बताया गया है), फ़ीलिग गुड यानी बेहतर महसूस करने के तात्कालिक तरीक़ों की अनदेखी, जो आगे चलकर नुकसानदेह साबित होते हैं, दूसरों से मदद लेना और मानसिक स्वास्थ्य के किसी मसले पर पेशेवर राय लेना. ये कुछ उदाहरण ही हैं. अपने मानसिक स्वास्थ्य का पोषण करने के कई तरीकें और कई विधियां हैं. इसलिए आइये, अपने ज़ेहन में और आपस में हम इस बारे में संवाद शुरू करें!
डॉ सीमा मेहरोत्रा निमहांस में क्लिनिकल साइकोलॉजी की ऐडिश्नल प्रोफ़ेसर हैं. वो अपने विभाग में पॉज़िटिव साइकोलॉजी यूनिट की गतिविधियों का समन्वय करती हैं, जो मेंटल हेल्थ प्रमोशन रिसर्च, सर्विस और ट्रेनिंग में काम करती है और जिसका विशेष फोकस युवाओं पर है.