अच्छा मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक सुख को समानार्थी समझा जाता है. सुख सिर्फ़ ख़ुशी ही नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मानसिक स्वास्थय की परिभाषा ये है कि ये सुख ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी सामर्थ्य और क्षमता को पहचानता है, ज़िंदगी के सामान्य तनावों से निपटना जानता है, उसके काम में उत्पादकता और सफलता होती है और वो अपने समुदाय में योगदान देने में समर्थ होता है.
ये कैसे पता चलता है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य सही है या नहीं? सबसे पहले आप ख़ुद को जैसे हैं वैसा स्वीकार करें. इसी से हमें अपनी सामर्थ्य का पता चलेगा और हम अपने भीतर उस सामर्थ्य को हासिल कर सकने के लिए सुधार कर सकेंगे. मानसिक सुख का मतलब ये नहीं कि व्यक्ति सकारात्मक है और हमेशा ख़ुश रहता है. इसका मतलब है कि आप स्थितियों के प्रति लचीले हैं, ज़िंदगी में मुश्किलों का सामना कर सकते हैं और उससे विचलित होने वाले नहीं हैं.
मानसिक ख़ुशी एकांत में नहीं आती हैं. दूसरों से हमारा मिलनाजुलना, बातचीत करना हमारी ख़ुशी को प्रभावित करता है और हमें अपने बारे में सकारात्मक भावनाओं से लैस करता है. हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ के लिए खुद के साथ साथ उन अन्य महत्वपूर्ण लोगों की भूमिका को भी स्वीकार करना ज़रूरी है. ख़ुद की गरिमा की पहचान और दूसरे की गरिमा का ख़्याल, ये दोनों ही मानसिक सुख के लिए बहुत ज़रूरी हैं.
गंभीर और लंबी मानसिक बीमारी किसी की जीवनशैली पर सीमाएं और बाधाएं थोप सकती है. मानसिक सुख का मतलब ये भी है कि अपनी गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए इस तरह की चुनौतियों को समझना और उनसे निपटना. नीचे दिया गया एक केस इसी स्थिति को दर्शाता हैः
52 साल के श्रीराम को 25 साल से गंभीर क़िस्म का स्किज़ॉफ्रेनिया था. उनके शुरुआती लक्षण तब नज़र आए जब वो अमेरिका में कैमिकल इजीनियरिंग में डॉक्टरेट कर रहे थे. संदेह और आवाज़ें उनकी गतिविधि पर टिप्पणी कर रही थी और नतीज़तन उन्हें चेतावनी दे रही थी, उनकी आवाजाही अशक्त हो गई थी. अंगों ने जवाब दे दिए और वो घर से बाहर निकलने में असमर्थ हो गए. इस असहनीय हालत में वो भारत लौट आए. मनोवैज्ञानिक इलाज शुरू कर उसे जारी रखने के बाद, उनमें धीरे धीरे कुछ सुधार आया. उन्होंने अपना जीवन फिर से व्यवस्थित करना शुरू किया. इंडस्ट्री में उन्हें मुनासिब नौकरी नहीं मिली लेकिन एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में नौकरी मिल गई. उन्होंने शादी कर ली. धीरे धीर उन्होंने अपना खोया आत्मविश्वास और आत्मसम्मान वापस पाया. इस दौरान उन्हें अपनी पत्नी और परिवार से लगातार सहायता मिलती रही. वो अब भी उपचार पर हैं और कुछ देर के लिए बीमारी के लक्षण उन पर हावी हो जाते हैं, लेकिन आज वो सिर ऊंचा कर चल सकते हैं. उन्होंने तबाह कर देने वाली एक बीमारी को न सिर्फ़ झेला है, बल्कि उस पर जीत भी क़ायम की है.
गंभीर मानसिक रोग का पता चलने के बाद श्रीराम ने पेशेवर मदद से इस समस्या को पहचाना और उसका हल निकालने की कोशिश की. लेकिन गंभीर मामले न होने पर भी हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़्याल रखना चाहिए. रोज़ाना की भागदौड़ में हम अपने बारे में भूल जाते हैं, अपने बारे में सोचने की फ़ुरसत हमें नही रहती- ये साधारण चीज़ें हो सकती हैं जो हमें ख़ुश, उदास या नाराज़ रखती हैं, या जो हमें उत्साहित कर देती हैं. इससे पहले कि हम उन चीज़ों को जानें, तनाव और कशमकश हम पर भारी गुज़रते हैं और हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगते हैं. बदक़िस्मती से जब हमारा स्वास्थ्य गड़बड़ाने लगता है तभी हमें सुध आती है. ज़्यादातर समय, हम मानसिक स्वास्थ्य के नुकसान को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं. और इससे और नुकसान होता जाता है.
हमें उन चेतावनी के संकेतो का ध्यान रखना चाहिए. अपने प्रति और अपने आसपास के प्रति असंतोष और नाख़ुशी की तीव्र होती भावना, नकारात्मक और संकोची मानसिकता, किसी चीज़ से आनंद न ले सकने की इच्छा, लोगों और घटनाओं से ख़ुद को अलगथलग कर देना, ख़ामाख़्वाह चिंतित रहना या काल्पनिक वजहों से या बिना किसी ठोस वजह के घबरा जाना- ये कुछ संकेत हैं.
हम मानसिक रूप से स्वस्थ कैसे रह सकते हैं:
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मानसिक और शारीरिक रूप से ख़ुद को व्यस्त रखें
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कामकाज और पारिवारिक जीवन के बीच स्वास्थ्यवर्धक संतुलन रखें
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वे काम करें जिन्हें करने में हमें आनंद मिलता है (अपना शौक या कोई खेल गतिविधि)
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ऐसे लोगों की सोहबत में रहना जो हमारा सम्मान करते हैं और हमें सकारात्मक बनाते हैं
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बांटने और देने की ख़ुशी को अनुभव करना (उन लोगों की स्वैच्छिक मदद करना जिन्हें उसकी ज़रूरत है)
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अपने बारे में सजग रहना- इस बारे में जागरूक रहना कि हम क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं, क्या करते हैं और किस चीज़ में आनंद हासिल करते हैं.
डॉ एस कल्याणसुंदरम बंगलौर स्थित मनोचिकित्सक हैं और रिचमंड फ़ैलोशिप सोसायटी(इंडिया) में सीईओ हैं.