दैनिक जीवन में बेहतर प्रवाह खोजना

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“ऎसा लगता है जैसे सब कुछ धीमी गति से हो रहा है” ये कहना है अमेरिकन बास्केटबॉल सुपरस्टार कोबे ब्रायन्ट का, ’और आप सिर्फ एक ही क्षण में जीना चाह रहे हैं। आप स्वयं से बाहर नही निकलना चाहते क्योंकि आप जानते हैं कि आप इस लय को खो देंगे।’ आधी सदी पहले, एक अलग ही वार्तालाप में, महान कलाकार पॉल क्ली ने स्वयं को इस स्थिति में पाया था, ’मेरे आस पास का सब कुछ अदृश्य हो जाता है और इस धुंध में से काम बाहर निकलते हैं, मेरे हाथ जैसे किसी रिमोट द्वारा चलाये जाने वाले मशीन के अंग हो जाते हैं।’

यह संभव है कि आप न ही व्यावसायिक एथलीट हो, न ही चित्रकार, परंतु आपके द्वारा किसी गतिविधी को पूरी तरह से अवशोषित कर लिया गया होगा, पूरे आनंद के साथ और धीरे धीरे उसी से एकाकार हो जाने की स्थिति में? यदि यह है, तो यह आपको एक प्रवाह का अनुभव करवाता है, आज इस संबंध में, बेहतर व्यवस्थापना और व्यक्तिगत उन्नति के लाभ हेतु इस स्थिति को लेकर शोध हो रहे हैं। चूंकि इस प्रकार की स्थिति दैनिक जीवन का हिस्सा है और आप स्वयं ही अपनी बोरियत को तोड़ने वाला प्रकार बन सकते हैं।

यह आश्चर्य की बात हो सकती है लेकिन सकारात्मक मानसशास्त्र संबंधी महत्वपूर्ण परिकल्पनाएं किसी समय लोकप्रिय रहे उद्गारों से भिन्न है जिसमें कहा जाता था, ’प्रवाह के साथ चलो’। इसके स्थान पर इसे डॉ मिहले सिक्झेन्ट्मिहालयी द्वारा अनेक वर्षों के अध्ययन के बाद प्रतिपादित किया गया है, जो कि उनके जीवन के अनुभवों में से प्राप्त किया गया है। हंगरी में जन्म लेने के बाद, उन्होंने अपना बचपन द्वितीय विश्व युद्ध में एक बंदी शिविर में बिताया और वहां पर उन्होंने पाया कि शतरंज उन्हे अपने आस पास की तकलीफों से बाहर निकलने में मदद कर सकती है। आगे चलकर उन्होंने एक साक्षात्कार में यह स्वीकार किया, कि यह एक चमत्कारिक तरीका था जिसमें मैं एक दूसरे ही विश्व में प्रवेश कर सकता था जहां पर इन खतरनाक स्थितियों का कोई अस्तित्व नही था। कई घन्टों तक मैं उस वास्तविकता में जी सकता था जहां पर स्पष्ट नियम और लक्ष्य मौजूद थे।“ अपनी किशोरावस्था में चित्रकला को माध्यम बनाने पर उन्होंने जाना, कि इस गतिविधी में बेहतर अवशोषण के गुण थे – साथ ही, वर्ष 1965 में, युनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से अपना डॉक्टरेट लेने के बाद, उन्होंने कलाकारों और अन्य सृजनात्मक व्यक्तियों का अध्ययन करना शुरु कर दिया। इस परिकल्पना से एक प्रवाह के स्वरुप का जन्म हुआ जिस परिभाषित किया जा सकता था। एक ऎसी स्थिति जिसमें हम इतने अधिक शामिल हो जाते हैं कि अन्य कोई बात असर ही नही करती, यह अनुभव उन व्यक्तियों के लिये शानदार होता है और वे इसे करते हुए, किसी भी कीमत पर यह अनुभव पाना चाहते हैं।“ तब से डॉ सिक्झेन्ट्मिहालयी द्वारा इस सकारात्मक जीवन को लेकर शास्त्रगत अध्ययन करना शुरु कर दिया गया है।

प्रवाह के तत्व

आप कैसे जानेंगे कि आपको प्रवाह संबंधी अनुभव हो रहे हैं? अधिकांश रुप से खिलाड़ियों से ’इस क्षेत्र” में होने संबंधी पूछताछ की जाती है, डॉ सूसन जैकसन और हर्बर्ट मार्श जो कि ऑस्ट्रेलिया से हैं, उनके द्वारा वर्ष 1996 में एक आदर्श कार्यक्रम बनाया गया। इसमें नौ प्रमुख कारक माने गए हैं:

1) चुनौती और कौशल का संतुलन: व्यक्ति द्वार परिस्थिति की चुनौती और अपने कौशल के मध्य एक संतुलन बना लिया जाता है और दोनो के साथ उच्च स्तर पर कार्य किया जाता है। यदि चुनौती बहुत कठिन है, तब हम अवसाद से भर उठते हैं, व्यग्र या दुखी हो जाते हैं। परंतु चुनौती आसान है, तब हमारा ध्यान बंट जाता है और अन्त में हम बोर हो जाते हैं।

2) कार्य और जागरुकता का मेल:  किसी भी व्यक्ति की कार्य से संबंधित संबद्धता इतनी अधिक होती है कि वह तुरंत हो जाती है। व्यावसायिक खिलाडी इस स्थिति में तुरंत पहुंचने और इसेके अचानक होने की बात को स्विकार करते हैं। दूसरे शब्दों में, उनका अहंकार खत्म हो जाता है।

3) स्पष्ट लक्ष्य: व्यक्ति में उनके द्वारा किये जाने वाले कामों को लेकर एक शक्तिशाली संवेदना होती है। लक्ष्य स्पष्ट रुप से परिभाषित होते हैं – और उन्हे पहले से तय किया जाए या उस गतिविधि में शामिल होने के बाद बनाया जाए, प्रतियोगी खेलों जैसी स्थिति में इस प्रवाह का बेहतर इस्तेमाल होता है जहां पर आपका लक्ष्य खेल को जीतना होता है।

4) स्पष्ट प्रतिसाद: व्यक्ति को तुरंत प्रतिसा मिलता है जो कि उनकी गतिविधि को ही परिभाषित करता है। इस प्रकार से व्यक्ति अपने काम को सही प्रकार से कर रहा है या नही, यह पता चलता है। जैसे कि व्यक्ति को यह पता चलता है कि ’अपनी क्रियाओं को मिलते प्रतिसाद से यह समझ में आ रहा था कि मैं सही स्थान पर हूं।’

5) हाथ में जो काम है, उसपर एकाग्रता: प्रवाह के दौरान, व्यक्ति को पूरी तरह से एकाग्रता मिलती है और ध्यान भंग होने की स्थिति से बचाव होता है। यह सही है कि संपूर्ण एकाग्रता काफी कम बार होने वाले अनुभवों की विशेषता के रुप में सामने आती है।

6) नियंत्रण का भाव: वह व्यक्ति जो पूर्णता के साथ काम को करता है – इसमें अहंकार नही होता, व्यक्ति के पास अपनी कुशलता पर पूरा नियंत्रण होता है। इसक आर्थ है, व्यक्ति इस स्थिति पर बिना किसी प्रयत्न के नियंत्रण पा लेता है।

7) आत्म चेतना का खत्म होना: प्रवाह संबंधी अनुभव के दौरान, व्यक्ति सामान्य रुप से अपने प्रदर्शन को लेकर चिन्ता करना या उसे लेकर दूसरों से तुलना करने की स्थिति से बाहर निकल जाता है। इसके स्थान पर वह उस गतिविधि में स्वयं को पूरी तरह से लगा देने और अपने अहंकार से दूर जाने की स्थिति में होता है।

8) समय का बदलना: किसी रहस्यमय तरीके से, समय के साथ समझौता होता है, या तो गति कम होती है, या नाटकीय रुप से बढ़ जाती है। उदाहरण के लिये, बेसबॉल के खिलाडी यह बताते हैं कि बॉल उनके पास प्रवाहित स्वरुप में आ रही थी और सायकल के खिलाड़ी भी किसी तैरते हुए से अनुभव की बात करते हैं।

9) खिलाडी के समान का अनुभव: यह तकनीकी शब्दावली है जिसे पहले सिक्झेन्ट्मिहालयी द्वारा सामने लाया गया था और यह ग्रीक शब्द स्वयं और लक्ष्य को मिलकर बनी है। इसका अर्ल अर्थ है वह संतोषजनक अनुभव जो प्रत्येक को स्वयं के लिये होता है और इसमें दूसरों की ओर देखकर कोई टिप्पणी करने का स्थान नही रहता है।

यह सही है कि एक प्रवाह के अनुभव में ये सारी विशेषताएं नही हो सक्ती लेकिन कुछ और भी कठिन होते हैं जिनमें प्रवाह बन पाना मुश्किल होता है! इसमें पूरी तरह खो जाने की स्थिति के स्थान पर चुनौती और कौशल के संतुलन को ध्यान में रखा जाता है, मुख्य रुप से आपके हाथ में जो काम है, उसपर एकाग्रता रखी जाती है, इसमें चेतना का अभाव होता है और यह अनुभव काफी महत्वपूर्ण होता है।

अनेक लोगों के लिये, प्रवाह संबंधी अनुभव काफी नजदीकी और जान पहचान के होते हैं। लेकिन ये वास्तव में हमारे लिये फायदेमंद होते हैं क्या? इसका उत्तर है, हां। उदाहरण के लिये, डॉ ज्यूडिथ लेफेवरे द्वारा युनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में किये गए अध्ययन में यह पाया गया कि इस प्रवाह में व्यक्ति द्वारा जितना अधिक समय बिताया जाता है, उतना ही दिन भर में उनका सकरात्मक अनुभव बेहतर होता है। इसमें सही एकाग्रता, सृजनात्मकता और बेहतर मूड शामिल है। एक प्रभावी अध्ययन जो कि प्रभाव संबंधी अनुभवों पर, वयस्कों के लिये किया गया था, डॉ सेन्गयेउल हान जो कि सिओल युनिवर्सिटी से हैं, द्वारा यह पाया गया कि बड़ी उम्र की कोरियन महिलाओं द्वारा नियमित रुप से प्रवाह संबंधी अनुभव बाटे गए और वे उन महिलाओं से, जिन्हे इस प्रकार के अनुभव जरा भी नही थे, अधिक खुश दिखाई दे रही थी। उनमें अकेलेपन की भावना कम थी, वे स्थिर थी और उनकी आयु के अनुसार नज़रिये को स्वीकार करने के लिये ज्यादा तैयार थी। 

प्रवाह तैयार करना

शोध बताते हैं कि प्रवाह संबंधी अनुभव आनंद को बढ़ाते हैं और सभी आयुवर्ग के लोगों में आत्म सम्मान में भी वृद्धि करते हैं। इस शोध के परिणाम से ही इन स्थितियों को बढ़ाने की कवायद शुरु करने का प्रयत्न होना चाहिये – और इन्हे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिये। वैसे देखा जाए, तो कौन आनंददायक और बेहतर महसूस नही करना चाहेगा? लेकिन यह सही है कि यह प्रवाह का अनुभव हमें बोरियत को दूर करने में मदद करता है, यह बोरियत भी अनेक संवेदनात्मक और कई बार शारीरिक समस्याओं से संबंधित होती है। यह सही नही है कि प्रवाह संबंधी अनुभव का अनुमान लगाना असंभव है और ये संयोग से होते हैं। इसके स्थान पर अनेक व्यक्तियों को पता है कि इन्हे अपने जीवन में कैसे स्थान देना है और इन चरणों पर चलकर इस अनुभव को पाया जा सकता है।

ये चरण इस प्रकार हैं:

1) उस समय के बारे में लिखें जब आपको प्रवाह का अनुभव हुआ:  - पिछले कुछ सप्ताहों में। यह संभव है कि कोई सृजनात्मक प्रकल्प हो, काम हो, घर की सजावट संबंधी काम हो या किसी बेहतर खेल में भाग लेने का अनुभव हो। उन स्थितियों को पूरी तरह से बताईये जितना भी ज्यादा से ज्यादा आपको याद आता है; वे कब और कहां पर हुई, आपके साथ कौन था, कितने देर तक य अनुभव रहा और खासकर इस दौरान कौन सा लक्ष्य आपके सामने था।

2) जब आप इस अनुभव के बारे में सोचते हैं, क्या यह एक चुनौती के रुप में आपके सामने आपके कौशल की परीक्षा के रुप में आता है? इसका अर्थ है, आप कितने संवेदनात्मक, बौद्धिक या शारीरिक रुप से चुनौतीपूर्ण स्थिति में होते हैं? क्या यह गतिविधी आपकी अधिकतम क्षमता की मांग करती है – मानसिक  या शारीरिक और अधिक मात्रा में या मध्यम स्थिति में?

3) अब, जब आपने प्रवाह अनुभव को लेकर अपने आधारभूत विशेषताओं को जान लिया है, आप इसके होने की मात्रा को बढ़ा कैसे सकते हैं? क्या यह आपके काम में, घर के काम करने में, किसी कला के साथ एकाकार होने जैसे संगीत, प्रकृति निरीक्षण या खेल के दौरान ज्यादा होता है? साथ ही, यह दिन के किस समय है और किस स्थान पर है, यह भी महत्वपूर्ण है। क्या आप इस दौरान अकेले होते हैं या किसी विशेष के साथ होते हैं? इस प्रकार की आत्मानुभूति से आपको इस प्रवाह को अधिक बार महसूस क्रने और अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।

डॉ. एडवर्ड हॉफमैन याशिवा युनिवर्सिटी न्यूयॉर्क सिटी में मानसशास्त्र के सहायक प्राध्यापक है। वे निजी सेवा के लिये क्लिनिकल सायकोलॉजिट के रुप में लायसेन्सधारक हैं। आपने मानसशास्त्र और संबंधित विषयों पर 25 से भी अधिक पुस्तकों क असंपादन किया है। डॉ हॉफमेन डॉ विलियम कॉमटन के साथ सकारात्मक मानसशास्त्र पुस्तक के सह लेखक हैं। आनंद का व उत्साह का शास्त्र नामक इस पुस्तक के लेखक और भारत में जर्नल ऑफ ह्युमेनेस्टिक सायकोलॉजी जर्नल के संपाद्क हैं। आप उनसे इस पते पर संपर्क कर सकते हैं columns@whiteswanfoundation.org 

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