जीवन के रूपक: मनोविज्ञान की नई सरहद

तीन या उससे कम शब्दों में,  मानव अस्तित्व के बारे में आपका क्या नजरिया है?  क्या यह युद्ध, भाग्य का खेल, या शतरंज की रणनीति जैसा है?  कोई यात्रा या स्कूल?  एक पहेली या रहस्यमयी कहानी? या क्या यह मस्ती के जैसा एक डांस,  एक पार्टी या समुद्र तट पर एक दिन बिताने जैसा है? निश्चित रूप से, ये कुछ ऐसे लोकप्रिय रूपक हैं जिन्हें लोग दुनिया भर में गले लगाते हैं। इसकी बहुत संभावना है कि,  मानव स्वभाव और व्यक्तित्व को लेकर आपकी कोई खास पसंद हो: क्या हम अनिवार्य रूप से मशीनें हैं,  फूलों वाले पौधे हैं,  छोटे से बीज से बढ़कर बने वृक्ष हैं  या पूरी तरह से कुछ और हैं? और प्रेम संबंधों के लिए आपका रूपक क्या है: एक शानदार युगल,  एक संयुक्त साहसिक कार्य, या तूफानी समुद्र?  मनोवैज्ञानिकों का विस्तार से मानना है कि इन सवालों के जवाब दैनिक जीवन में आपके निर्णय लेने और कार्यों को प्रभावित करते हैं। यहां तक ​​कि चिकित्सा की एक बढ़ती पद्धति है, जो अकेले व्यक्ति या युगलों में परिवर्तन के लिए विशेष रूप से हमारे केंद्रीय या मूल रूपांतर पर केंद्रित होती है। जो ज्ञान के इस उभरते हुए क्षेत्र का आकर्षण है।

महान मनोवैज्ञानिकों के रूपक

ऐसा लगता है कि हर बड़ा मनोवैज्ञानिक सिद्धांत अंतर्निहित रूपक पर आधारित होता है। उदाहरण के तौर पर, सिगमंड फ्रायड की ज़्यादातर ज़िंदगी के दौरान,  वाष्प शक्ति ही प्रधान तकनीक थी। यह एक सदी पहले तक उतनी ही सर्वव्यापी थी, जितना आज के दौर में कंप्यूटर्स हैं। आश्चर्य की बात नहीं कि,  फ्रायड ने इंसानी मस्तिष्क, जिसे वह 'तंत्र'  कहते थे, उसकी व्याख्या के लिए भाप इंजन रूपक को चुना,  जिसमें एक 'मनो-गतिशील'  प्रणाली में 'मनोदशात्मक ऊर्जा'  बहती है,  और जिसे न बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। कामतत्व,  अहंकार और महा-अहंकार व्यक्तित्व के अपने त्रिपक्षीय मॉडल को प्रस्तुत करते हुए भी  फ्रायड ने एक और रूपक चुना: उन्होंने मानव अहंकार को कामतत्व से युक्त जंगली घोड़े के ऊपर टिके रहने के लिए संघर्ष करने वाले एक आजीवन सवार के रूप में बताया।"

अन्य मनोवैज्ञानिक नेताओं ने,  निस्संदेह अलग-अलग रूपकों को चुना है। हालांकि न तो जॉन बी वाटसन और न ही बीएफ स्किनर- अमेरिकी व्यवहारवाद के संस्थापक ने स्पष्ट रूप से नवजात शिशु को 'कोरी स्लेट' के रूप में वर्णित किया है,  जबकि व्यवहारवादी दृष्टिकोण हमेशा इसी विशिष्ट रूपक के साथ जुड़ा हुआ है। और जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका में मानववादी मनोविज्ञान का उदय हुआ,  तो कार्ल रोजर्स और इब्राहीम मास्लो सहित इसके संस्थापकों ने जानबूझकर नई उपमाओं को तलाशा। रोजर्स ने हमारी तुलना उन फूलों के पौधों से की है जिन्हें पूरी तरह बढ़ने के लिए हवा, मिट्टी और धूप की मनोवैज्ञानिक समराशि की आवश्यकता होती है, और मास्लो ने हमारी तुलना उन शानदार पेड़ों से की है जो छोटे से बीजों से उत्पन्न होते हैं।

बाद में,  कंप्यूटर तकनीक आने के साथ ही,  कुछ मनोवैज्ञानिकों ने कंप्यूटर उपमा का समर्थन किया- कि इंसान दरअसल जटिल सूचना-संसाधन या साइबर तंत्र हैं,  और यह कि हमारी स्वयं की चेतना वास्तव में एक भ्रम है। ऐसा दृष्टिकोण अक्सर एमआईटी के संस्थापक-दार्शनिक मार्विन मिनस्की के विचार कृत्रिम बुद्धि (एआई) से जुड़ा होता है,  जिस बारे में उन्होंने 1988 में अपनी पुस्तक सोसाइटी ऑफ माइंड में तर्क दिया था कि मानव मस्तिष्क वास्तव में माइक्रोचिप जैसे असंख्य घटकों का एक समुदाय है, जो स्वयं विवेकहीन है। तो,  हम फिर से मशीन रूपक पर वापस आ गए हैं।

जीवन के रूपक और व्यक्तित्व

हालांकि मानव प्रकृति के रूपकों का आना-जाना लगातार बना हुआ है, लेकिन  लगभग एक सदी पहले अल्फ्रेड एडलर ने पहली बार तर्क दिया कि हर व्यक्ति के जीवन आचरण का एक विशेष रूपक होता है। एडलर के विचार में,  यह जीवन योजना (जैसा कि वह इसे कहते थे) हमारे बचपन से शुरू होती है और छह साल की उम्र से दृढ़ता से जगह लेती है। यह हमारे जीवन की अनिश्चितताओं में आगे बढ़ने का हमारा विशिष्ट तरीका दर्शाता है। यह कहां से शुरू होता है? एडलर और उनके प्रतिनिधियों के मुताबिक,  हमारी जीवन योजना हमारी पैदाइशी शारीरिक और मानसिक शक्तियों एवं परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों से संबंधित हमारे विशिष्ट अनुभवों से बनती है। उनका दृढ़तापूर्वक कहना है कि हमारी ज़िंदगी की योजना आम तौर पर अचैतन्य होती है और हम इसे केवल तब जांचते हैं जब बाहरी ताकतें इसे अशक्त बनाती हैं। उनके पुत्र, मनोचिकित्सक कर्ट एडलर ने मुझे बताया कि, "चिकित्सा के दौरान संबंधित व्यक्ति को यह देखने में मदद की जाती है कि उनकी जीवन योजना कब और कैसे शुरू हुई। और तब ज्यादा खुशियों के लिए वह इसे बदलना सीख सकता है। "

कई दशकों तक एडलरियन्स के अलावा अन्य समाज वैज्ञानिकों के बीच  जीवन योजनाओं और उपमाओं की कल्पना बहुत कम थी, लेकिन 1980 में मेटाफोर्स वी लिव के प्रकाशन के साथ ही यह स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई। इस पुस्तक के अमेरिकी लेखकों, प्रसिद्ध भाषाविद जॉर्ज लेकोफ एवं दार्शनिक मार्क जॉनसन ने स्पष्ट किया कि "रूपक केवल काव्यात्मक या शब्द आडंबर के अलंकरण नहीं हैं", "वे उन तरीकों को प्रभावित करते हैं जिनमें हम अनुभव करते हैं, सोचते हैं और कार्य करते हैं" वास्तविकता को भी रूपक द्वारा ही परिभाषित किया गया है। "लेकॉफ और जॉनसन ने अपने इस दृष्टिकोण के समर्थन में अनुभव सिद्ध तथ्य तो प्रदान नहीं किए, लेकिन इसके बजाय लोकप्रिय भाषण " समय ही पैसा है" जैसे भाषण से सबूत दिए। फिर भी,  उनकी प्रेरक पुस्तक ने व्यापार प्रबंधन से लेकर संगठनात्मक सिद्धांत तक के शोधकर्ताओं को मनोचिकित्सा और जीवन के मनोविज्ञान के विषय में प्रभावित किया।

उदाहरण के लिए, 1995 में रिचर्ड कोप की मेटाफोर थेरैपी ने अकेले व्यक्ति और युगलों के इलाज के लिए रूपकों के विशिष्ट उपयोग को लोकप्रिय बनाया। इस दृष्टिकोण के साथ चिकित्सक उन मूल रूपकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिन्हें लोग अपने निजी जीवन और संबंधों का वर्णन करने के लिए उपयोग करते हैं। जैसा कि न्यूज़ीलैंड के चिकित्सक डेविड ग्रोव ने बताया कि, "रूपक चेतन और अचैतन्य दिमाग के बीच के संबंध में मध्यस्थता करता है।" इस प्रकार, जब कोई ग्राहक कहता है, "मुझे लगता है कि मैं एक ईंट की दीवार के साथ दौड़ रहा हूं,"  इसके जवाब में ग्रोव सवाल करते हैं कि, "दीवार किस सामग्री से बनी है?  यह कितनी लंबी है?  इसे किसने बनाया?  क्या यह स्थिर है या चल रही है? और, आप किस दिशा में दौड़ रहे हैं? "ग्रोव के अनुसार,  क्लाइंट के विवरणों की कुल जानकारी को उनके रूपक परिदृश्य के रूप में जाना जाता है- और यह उस संदर्भ को तैयार कर देता है, जिसके कारण बीमारी में बढ़ोत्तरी हुई।

दुनिया भर में रूपक का अध्ययन

दक्षिण अमेरिकियों में जीवन-रूपकों के बारे में अनुभव आधारित आंकड़ों की कमी को देखते हुए, मैंने हाल ही में कोलम्बिया में अपने सह-शोधकर्ताओं डॉ. विलियम कॉम्पटन और कैटालिना अकोस्ता ओरोस्को के साथ मिलकर दो अध्ययनों का नेतृत्व किया, जो कॉलेज स्टूडेंट जर्नल में प्रकाशित हुए, ये अध्ययन क्रमशः कॉलेज के छात्र नेताओं और मेडिकल छात्रों पर केंद्रित हैं। रूपक का विश्लेषण छात्रों के बुनियादी मूल्यों,  व्यक्तिगत लक्ष्यों और निर्णय लेने की रणनीतियों को उजागर करने का एक प्रभावी माध्यम साबित हुआ। दोनों समूहों के लिए,  सबसे पसंदीदा रूपक था 'जीवन एक यात्रा है' और सबसे अस्वीकृत किया जाने वाला रूपक 'जीवन एक जेल की तरह है' था। यद्यपि विद्यार्थियों के दोनों समूहों ने मुख्य रूप से सक्रिय, सकारात्मक, और व्यक्तिपरक रूपकों का समर्थन किया। मेडिकल छात्रों के मुकाबले, छात्र नेताओं के जीवन-रूपक, ज्यादा सामूहिक वादी और आध्यात्मिकता से भरे थे।

वर्तमान में जराविज्ञान के बढ़ते क्षेत्र में शोधकर्ता रूपकों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ विक्टोरियाज नर्सिंग स्कूल में डॉ. रोसेन बेउथिन और उनके सहयोगियों ने हाल ही में चिरकालिक बीमारी के लिए दवा लेने वाले बुजुर्ग मरीजों द्वारा उपयोग किए गए रूपकों का पता लगाया। यह एक महत्वपूर्ण विषय है, दवाओं के अनुपालन के लिए अक्सर बुजुर्गों के लिए जीवन या मृत्यु का परिणाम होता है। चार मुख्य रूपकों ने दवा के उपयोग के बारे में उनकी सोच पर ज़ोर दिया,  जुड़ाव होने से संबंधित, नई आशा का सामना करना,  बाहरी विशेषज्ञों पर निर्भरता महसूस करना,  और चिकित्सा कर्मियों के साथ बातचीत से डरना।

हमारे समय के लिए नए रूपक हैं?

एक अंतिम विचारणीय प्रश्न: क्या आज नए जीवन-रूपक उभर रहे हैं?  जवाब, एक निश्चित हां लगता है जब 1999-2003 के दौरान मैट्रिक्स फिल्म की तीन मूवीज की श्रृंखला दिखाई दी,  तो कई प्रशंसकों ने हमारी उच्च तकनीक सभ्यता के लिए एक शक्तिशाली रूपक की पेशकश करने के लिए इस श्रृंखला की प्रशंसा की - जिसमें मशीनें हमारे रोज़मर्रा के अस्तित्व पर हमला करती हैं और यहां तक ​​कि वास्तविकता के बारे में हमारे विचार को भी आकार देती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिकी ब्लॉगर मार्टिन लैस ने टिप्पणी की, "द मैट्रिक्स मूवीज की श्रृंखला, एक ट्रेंडी साइंस फिक्शन / मार्शल आर्ट एक्शन फिल्म से ज्यादा है यह एक आधुनिक रूपक है,  संभवतः जानबूझकर यह हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक अचैतन्य की वास्तविक स्थिति के लिए तैयार की गई है।"

अन्य सामाजिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि आज के दौर में इंटरनेट, जीवन के लिए एक नया रूपक पैदा कर रहा है - सतत पर्यटक के रूप में। ये टीकाकार एक अर्थ में दावा करते हैं कि अब हम सभी पर्यटक हैं। चंचलता या तरलता से एक वेबसाइट से दूसरी पर जा रहे हैं,  एक ऑनलाइन संबंध से दूसरे के साथ- उनका घर या बुनियादी पहचान को जाने बिना और बिना किसी वास्तविक अर्थ के अनुभव के। ज्यादातर लोग सहमत होंगे कि, यह काल्पनिक है। लेकिन अगर मनोविज्ञान के लंबे आकर्षण का सर्वेक्षण करने में एक बात निश्चित है, तो वह यह है कि नए रूपकों का उदय होगा। यह भी स्पष्ट है कि कम या शायद ज्यादा लंबे समय तक- आपका जीवन रूपक दर्शाता है कि आप कौन हैं,  और किस ओर जा रहे हैं।

डॉ. एडवर्ड हॉफमैन न्यूयॉर्क शहर की येशिवा यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के सहयोगी सहायक प्रोफेसर हैं। निजी प्रैक्टिस में एक लाइसेंस प्राप्त नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक,  उन्होंने मनोविज्ञान और संबंधित क्षेत्रों में 25 से ज्यादा पुस्तकों का लेखन/संपादन किया है। डॉ. हॉफमैन,  हाल ही में डॉ. विल्यम कॉम्प्टन के साथ पॉजीटिव साइकोलॉजीः द साइंस ऑफ हैप्पीनेस एंड फ्लोरिशिंग के सह-लेखक हैं, और द इंडियन जर्नल ऑफ पॉजीटिव साइकोलॉजी एवं द जर्नल ऑफ ह्यूमैनिस्टिक साइकोलॉजी के संपादकीय बोर्डों में कार्य करते हैं। आप उन्हें columns@whiteswanfoundation.org  पर लिख सकते हैं।

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