योग का वैज्ञानिक पक्ष

शोधकर्ता योग के प्रभावों के वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक सबूत इकट्ठा कर रहे हैं
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कई हजार वर्षों से कलात्मक रूप के साथ साथ  वैज्ञानिक प्रारूप में भी योग विद्या ने अपना अस्तित्व बनाए रखा है। फिर भी हाल के कुछ वर्षों से ही  वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका अन्वेषण गंभीरता के साथ शुरु हुआ है। योग से होने वाले समग्र लाभ को मूल रूप से समझने और मानवता के लिए लाभदायी साबित करने के लिए यह ज़रूरी है कि इसके कलात्मक पहलुओं के साथ साथ,  विज्ञान की अन्य विधाओं की तरह ही इसका भी अध्ययन किया जाए । 

पतंजलि का व्यवस्थित  दृष्टिकोण 

पतंजलि द्वारा सूचिबद्ध योग के अष्टांग इस बात का सबूत है कि योग भी व्यवस्थित दृष्टिकोण का परिपालन करता है, जैसे कि विज्ञान की अन्य मुख्य धाराओ में होता है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग के अष्टांग हैं। यम और नियम व्यवहार - सुधार के लिए, आसन और प्राणायाम -शरीर को सुदृढ बनाने के लिए, प्रत्याहार और धारणा - मानसिक एकाग्रता के लिए और ध्यान तथा समाधि आत्म-ज्ञान के लिए हैं। 

हम यह देख सकते है कि पतंजलि ने अनेक तरीके से योग को विस्तारित कर मानवीय अस्तित्व के विविध स्तरीय आयामों को इसमें समाविष्ट किया गया है।  मन पर नियंत्रण करने की बात उसमें मुख्य रूप से परिलक्षित है। हालांकि अष्टांग योग की संरचना सुव्यवस्थित ढांचे से की गई है, जो कि किसी भी विज्ञान का मूल आधार माना जाता है, पर इसके बावजूद अनेक प्रायोगिक कारणों से वैज्ञानिक समुदाय के लिए अभी भी इस बात की पुष्टि नहीं मिल पाई है कि योग आखिर किस ठोस तरह से अपना प्रभाव करता है। चुनौतियों के बावजूद शोधकर्ताओं ने अब वैज्ञानिक वस्तुनिष्ठ प्रमाण एकत्रित करना शुरु कर दिया है जो कि योग की सार्थकता को प्रमाणित कर सकें। 

शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि योग से :

समस्थैतिक ( होमियोस्टेसिस)  सेट पोइंट को रीसेट करना - 

मानव शरीर बेहतरीन तरीके से समन्वय के साथ काम करता है। बाहरी परिस्थिति में कुछ हद तक होने वाले परिवर्तनों के समायोजन के साथ, प्रत्येक कोशिका प्रसामान्यता की रैंज के अंदर कार्य करती है। कुछ ऊतकों में समायोजन की क्षमता कम होती है, तो कुछ में ज़्यादा। शरीर के अंदर कुछ कार्य - जैसे कि हार्मोन स्राव के दौरान दो विविध कार्यक्षमताओ वाले ऊतकों के बीच 'फ़ीडबैक' पैदा होता है। कोशिकाओ के बेहतर कार्यान्वयन और स्थिरता बनाए रखने के लिए यह फ़ीडबैक अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । यह प्रक्रिया जो बाहरी बदलाव के बावजूद मानव देह के अंदरूनी पारिस्थिकी  में स्थिरता और स्थायित्व बनाए रखे, उसे ' होमियोस्टेसिस' अथवा ' समस्थैतिकी' कहा जाता है। जीवन शैली में अनियमितता इस प्रक्रिया में असंतुलन ला सकती है। योग साधना के नियमित अभ्यास से इसे ठीक किया जा सकता है। 

तनाव दूर करने का उपाय

इन दिनों लोग लगातार तनाव के शिकार हो रहे है। योग उनके लिए राहत का मंत्र साबित हो  सकता है। मानव शरीर में  'न्यूरो- एंडोक्राइन सिस्टम'  में नैसर्गिक रूप से तनाव से लढने की क्षमता बनी है। लिहाज़ा अगर  लंबे समय तक अनियंत्रित तनाव बना रहे, तो फ़िर यह प्रणाली  सुस्त हो जाती है। 

इससे नकारात्मक नतीजे उत्पन्न होते है। स्ट्रेस हार्मोन का उत्पादन बढ जाता है, जिसके नतीजे समस्त मानव देह पर देखे जा सकते है। योगाभ्यास दरसल इस मूल तत्व पर प्रभाव दिखाता है।  यह  तनाव घटा कर संपूर्ण शरीर और मानस को तनावमुक्त करता है। इस तरह कोशिका के स्तर तक राहत पहुंचाने की क्षमता रखता है  योग। इसकी साधना के प्रभाव से तनाव के प्रबंधन में मदद मिलती है। 

ओटोनोमिक नर्वस सिस्टम को सुचारू बनाने में 

ओटोनोमिक नर्वस सिस्टम के दो प्रमुख भाग होते है : सिंफथेटिक नर्वस सिस्टम तथा पेरा सिंफथेटिक नर्वस सिस्टम। सिंफ़थेटिक नर्वस सिस्टम का काम 'फ़ाईट -ओर-फ्लाईट- यानी कि ' लढो -या-भागो' प्रतिक्रिया का काम करता है। जब कि पेरेसिंफथेटिक नर्वस सिस्टम का काम मानव शरीर की अंदरूनी प्रतिक्रियाओं को सक्रिय रखना होता है, जैसे कि नींद के दौरान भी पाचन क्रिया या फिर काम भावना का उत्तेजित होना। ये दोनों ही नर्वस सिस्टम एक दूसरे की पूरक मानी जाती है, जो शरीर के संतुलन में महत्वपूर्ण होती है। फिर भी जब सिंफ़थेटिक सिस्टम का अतिशय उपयोग होता है, तब असंतुलन की स्थिति उत्तपन्न होती है। इससे बीमारी पैदा होती है।  योग इन दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने में मददगार सिद्ध होता  है। इससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार देखा जा सकता है। 

जीवन की गुणवत्ता में सुधार 

जीवन के अनेक पहलुओ पर योग का सूक्षम प्रभाव देखा जा सकता है। ये तमाम लाभ उस व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जा सकते है जो योगाभ्यास करता हो , परंतु वैज्ञानिक मापदंड से इसे मापा नहीं जा सकता। अंतरमन की शांति, संतोष, सुख और आत्म चेतना - कुछ ऐसे पहलू है जिस पर योग का सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। ये तमाम अनुभव केवल स्वस्थ जीवन की बुनियाद नहीं , बल्कि उन लोगों के लिए भी लाभदायक होते हैं जो जीवन के अंतिम पडाव में ( केंसर या अन्य जीव लेवा बीमारी से ग्रस्त) सांसे गिन रहे हो। कारण है कि उन्हें कुछ सकारात्मक धुरी मिल जाती है , जिसे  वे थाम सकते है। शरीर पर गुणात्मक परिणाम के मद्देनज़र , ये कुछ प्रत्यक्ष रूप से दिखने वाले योगाभ्यास के नतीजे है:

  • रक्तचाप का कम होना
  • हृदय विकार का कम होना
  • बेहतर ओक्सिजन आपूर्ति
  • पाचन प्रणाली का बेहतर बनना
  • ज़हरीले( टॉक्सिक ) पदार्थ की उत्पत्ति का कम होना
  • रोग निरोधक प्रणाली ( इम्यून सिस्टम) बेहतर बनना
  • न्यूरो-मस्क्यूलर ( नसों और मांसपेशियों के बीच ) बेहतर समन्वय
  • बेहतर हारमोन संतुलन

यह साबित हुआ है कि योग सिद्धांतों के बल पर - आरामदायक देह , शांत और स्थायि श्वास और प्रशांत चित्त - इन सबका अनुभव प्राप्त किया जा सकता है। 

डॉ ऱामाजयम जी पी एच डी हैं, योग विद्वान हैं, और निम्हान्स- बेंगलुरू से जुडे हैं। 

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