प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया (रिज़िलीअन्स) क्या है?
ऐसा क्यों है कि कुछ लोग आघात से उबर कर, परिस्थिति के अनुकूल ढल कर आगे बढ़ने में सक्षम होते हैं? और कुछ अन्य लोग कई वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ प्रतिकूल या दर्दनाक अनुभवों से प्रभावित रहते हैं? यह कैसे है कि कुछ लोग विपदा से गुजर कर भी मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं, और अन्य लोगों के साथ स्वस्थ संबंध रखते हैं, जबकि कुछ अन्य लोग ऐसा करने में असमर्थ होते हैं?
हम अक्सर विपत्तियों का सामना करने वाले लोगों को प्रत्यास्थी मानते हैं। लेकिन प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया क्या है?
प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया को समझें
अमरीकी मनोवैज्ञानिक संस्था संकट, आघात, त्रासदी, खतरों या तनाव के महत्वपूर्ण स्रोतों जैसे परिवार और रिश्ते की समस्याओं, गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं या कार्यस्थल और वित्तीय तनाव जैसी परिस्थितियों के अनुकूल प्रतिक्रिया को प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित करता है। इसका अर्थ है कि कैसे एक व्यक्ति चुनौतीपूर्ण समय में उबरता है, अपनी भावनाओं को संभालता है और समर्थन प्राप्त करता है।
प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया की अवधारणा का उन बच्चों के अध्ययन के माध्यम से अन्वेषण किया गया है जो बचपन में प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुभव से गुजरे हैं। इन बच्चों का बचपन से प्रौढ़ता तक अध्ययन हुआ है। इन अध्ययनों के आधार पर, हम कह सकते हैं कि:
हर किसी में प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया की क्षमता होती है: तनाव और विपत्ति से मुकाबला करने का हर व्यक्ति का तरीका अलग है। हालांकि, हम में से हर कोई तनाव का कैसे सामना करते हैं, यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। परिस्थिति से उबरना और समझौता करना विशिष्ट गुण हैं जो हम सभी के भीतर मौजूद है। कुछ आतंरिक कारक जो हमारी प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया को मजबूत करते हैं, वो निम्नलिखित क्षमताओं से निर्धारित होते हैं:
यथार्थवादी योजनाएं बनाना और उन्हें कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाना।
खुद को और अपनी जरूरतों को दूसरों के सामने व्यक्त करना।
हल ढूँढना और समस्याओं के समाधान के लिए काम करना।
अपनी अनुभवों / भावनाओं, विचारों और व्यवहार से अवगत रहना।
खुद से पूछताछ करके आत्मविश्लेषी और चिंतनशील रहना - मेरे साथ क्या हो रहा है? मुझे क्या करना चाहिए? मैं क्या कर सकता हूँ? मैं मदद के लिए किससे पूछ सकता हूं? आदि।
बाहरी कारक भी प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया को निर्धारित करते हैं: प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया केवल प्रतिकूलताओं का सामना करने और उनके अनुकूल ढलने की आंतरिक क्षमता नहीं है। कुछ बाहरी कारक भी प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया इनसे बढ़ती है:
सहायक और देखभाल करने वाले परिवार के सदस्य, दोस्त और रिश्तेदार।
रिश्ते जो प्रेम और विश्वास पैदा करते हैं, अनुकरणीय आदर्श प्रदान करते हैं, प्रोत्साहन और आश्वासन प्रदान करते हैं।
सहायक सामाजिक संरचनाएं जैसे समाज या समुदाय। उदाहरण के लिए, यदि सरकार बच्चों की मुफ्त शिक्षा के लिए शैक्षणिक संस्थान बनाती है तो वह बुनियादी तौर पर उन बच्चों की प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया के निर्माण में सहायता कर सकते हैं।
प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया के विकास के लिए आंतरिक और बाहरी दोनों कारक महत्वपूर्ण हैं: प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया आंतरिक और बाहरी कारकों के बीच की अंतःक्रिया है। प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया एक व्यक्ति की परिस्थिति अनुसार ढलने की आंतरिक क्षमता, उपलब्ध बाहरी समर्थन और सकारात्मक अनुभवों के आधार पर विकसित होता है।
हमारी धारणा प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया की कुंजी है: किसी घटना या परिस्थिति को लेकर हमारी धारणा से काफी अंतर आ सकता है। अपनी ताकतों और क्षमताओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास से सहनशीलता बढ़ती है।
प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया की हमारी क्षमता समय के साथ बदल सकती है: शोध बताते हैं कि बच्चे वयस्कों की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अधिक अनुकूलनशील होते हैं। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ शारीरिक और मानसिक रूप से तनाव से निपटने की हमारी क्षमता कम होती जाती हैं। हालांकि, किसी भी समय पर, यह तय करना संभव नहीं है कि कोई (चाहे वह बच्चा हो या वयस्क) अनुकूलनशील है या नहीं। विभिन्न स्थितियों के प्रकार, तीव्रता और विपत्ति की अवधि के आधार पर एक व्यक्ति अलग-अलग प्रतिक्रिया दे सकता है।
कुछ लोग जन्म से ही सहनशील होते हैं लेकिन हर कोई प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया विकसित कर सकता है: हम सब प्रत्यास्थी प्रतिक्रिया के कुछ पहलुओं के साथ पैदा होते हैं। उदाहरण के लिए कुछ शिशु अपने वातावरण के प्रति अधिक अनुकूल होते हैं। मगर ऐसा सब के साथ नहीं होता है। शोध से पता चलता है कि यह एक कौशल है जिसे सीखा जा सकता है और हम चाहे जिस भी पृष्ठभूमि से हो या हमें किसी भी चुनौतियों का सामना क्यों न करना पड़े, हम प्रत्यास्थी बन सकते हैं।
यह आलेख निमहांस में नैदानिक मनोविज्ञान की सहयोगी प्रोफेसर डॉ पूर्णिमा भोला द्वारा दी गई जानकारियों के आधार पर लिखा गया है।