स्वयं के प्रति अनुकंपा का क्या अर्थ है?

स्वयं के प्रति अनुकंपा का क्या अर्थ है?

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एक ऐसी स्थिति के बारे में सोचें जब आप खुद से खुश नहीं थे। ऐसा कब हुआ था? - एक हफ्ते पहले, कल या आज? आप क्या सोच रहे थे? कई बार, हम अपने बारे में आलोचनात्मक रूप से सोचतें हैं, खासकर तब, जब हम अपनेआप से हर स्थिति में उत्कृष्टता की उम्मीद रहती है। फिर चाहे वो घर हो या कार्यस्थल हो, दोस्तों के बीच हो या मानसिक बीमारी से पीड़ित किसी रिश्तेदार की देखभाल के दौरान हो। क्या होता है जब हम खुद के लिए एक धारणा बना लेते है या फिर खुद को आलोचनात्मक रूप से देखते हैं? क्या अपनी आलोचना से हमेशा बेहतर होने का संकल्प लिया जा सकता हैं?

खुद को बेहतर बनाने के लिए या खुद की बढ़ोतरी के लिए अपने आप को आलोचनात्मक रूप से देखना स्वाभाविक है। लेकिन, अगर ऐसा लंबे समय तक चलता रहे और इससे हमारी सोच और व्यवहार पर असर पड़े तो यह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। आत्म-चर्चा के आधार पर हम इस बात पे ध्यान दे सकते हैं कि हम कितनी आत्मलोचना करते हैं।

जब हम अपनी कमियों या असफलताओं के कारण खुद के प्रति धारणाएं बनाते हैं और आत्मलोचना करने लगते हैं, तभी हमें अपने प्रति अनुकंपा महसूस करने पर ध्यान देने की जरुरत होती है।

स्वयं के प्रति अनुकंपा क्या है?

जब हम किसी दोस्त या रिश्तेदार या किसी और को पीड़ित देखते हैं, तो हम स्वाभाविक रूप से उनकी स्थिति को समझकर उन्हें सहानुभूति देना चाहते हैं जिससे उन्हें बेहतर महसूस हो। इसी तरह, स्वयं के प्रति अनुकंपा का मतलब है खुद के प्रति करुणा होना। यह हमें विकास और प्रगति के लिए वांछित परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करता है जिससे हम नम्र, दयालु और ज्यादा देखभाल करने के तरीकों की खोज कर सकते हैं।

आत्म-अनुकंपा के तीन पहलू हैं:

सचेतना: जिज्ञासा और खुलेपन के साथ हमारे विचारों और भावनाओं पर ध्यान देते हुए एक संतुलित तरीके से परिस्थितियों को देखना। साथ ही, खुद के प्रति कोई धारणा न बनायें और हमारे विचारों और भावनाओं से न पकडे जाएँ और न बह जाएं।

सामान्य मानवता: इंसान होने का दार्शनिक तरीका अपनाना। याद रखना कि नश्वरता, एवं कमजोरी और अपूर्णता मानव जीवन की सीमाएं हैं। यह हमें इस बात को समझने और पहचानने में मदद करता है कि दुःख-दर्द और व्यक्तिगत अपर्याप्तता मानव अनुभव का एक हिस्सा है और अकेले ये किसी एक व्यक्ति तक ही सीमित नहीं है।

अपने प्रति सदय होना: जब हम पीड़ित होते हैं, असफल होते हैं या अपर्याप्त महसूस करते हैं, तो खुद को समझना और धैर्य रखना और सहिष्णु होना।

स्वयं के प्रति अनुकंपा के लाभ

शोध किया गया है कि अपने प्रति अनुकंपा के कई फायदे होते हैं जैसे: सकारात्मक भावनाओं में बढ़ोतरी, जीवन संतुष्टि, ज्ञान, आशावाद, जिज्ञासा, लक्ष्य निर्धारित करना, सामाजिक जुड़ाव, व्यक्तिगत जिम्मेदारी और भावनात्मक लचीलेपन को बढ़ना। दूसरी ओर, स्वयं के प्रति अनुकंपा की कमी आत्म-आलोचना, अवसाद, उत्कंठा, चिंतन, विचारों का दबाव और पूर्णतावाद का कारण बन सकता है।

अपने प्रति अनुकंपा का अभ्यास आप कैसे कर सकते हैं?

  • तर्क-वितर्क या दर्शनशास्त्र का उपयोग करके अपने आलोचनात्मक आत्म-चर्चा को बदलना।

  • एक जर्नल को बनाए रखना जो आत्म-आलोचनात्मक विचारों और भावनाओं को कम करने में और खुद से ये सवाल पूछने में मदद करेगा कि क्या आप ऐसे शब्द किसी दोस्त को कह पाते जिनका उपयोग आप अपने लिए करते हैं?

  • आत्म-स्वीकृति यानी खुद को स्वीकार करना और योग्य महसूस करना।

  • उतार-चढाव, असफलताओं और व्यक्तिगत अपर्याप्तता के लिए स्वयं को माफ करना सीखना।

  • एक करुणामय दोस्त आपको क्या कहता, यह कल्पना करके खुद को एक सहानुभूति भरी चिट्ठी लिखें।

यह आलेख निमहांस सेंटर फॉर वेलबींग में निमहांस के सहायक प्रोफेसर ज्योत्सना अग्रवाल द्वारा आयोजित एक कार्यशाला पर आधारित है।

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