
भारत में हर साल, एक लाख से ज़्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं. वास्तव में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकडों के मुताबिक पिछले दशक(2002-2012) में देश में आत्महत्या की दर में 22.7 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी.
समाज की अलग अलग संस्कृतियों और तबकों में आत्महत्या की वजहें अलग अलग हैं. लेकिन हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि आत्महत्या, मृत्यु का सबसे निरोध्य कारण है. यानी इसे रोका जा सकता है. आत्महत्या की कोशिशें अक़्सर मदद की एक पुकार ही होती हैं और अब तो तेज़ी से एक मनोवैज्ञानिक इमरजेंसी के तौर पर देखी जा रही हैं. आत्महत्या को रोकने की ज़िम्मेदारी हम सब पर, समुदाय पर है.
आत्महत्या करने वाले हर व्यक्ति की मौत का असर उसके परिवार, दोस्त, सहयोगियों और कई दूसरे लोगों पर पड़ता है तो मृतक को जानते रहे थे. इस खंड में, हम आत्महत्या की कोशिश को समझने की कोशिश करेंगे और ये भी समझेंगे कि इन मौतों को रोकने में हममे से हरेक का क्या रोल हो सकता है. विशेषज्ञ इस बात को रेखांकित करते हैं कि एक सामान्य, सहज और सहानुभूतिपूर्ण संवाद या बातचीत आत्महत्या की घटना को रोक सकती है. आप इसे कैसे रोक सकते हैं, ये जानने के लिए आगे पढ़ें.
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