देखभाल करने वालों के बोझ को समझें

देखभाल करने वालों के बोझ को समझें

अपने पिछले लेख में देखरेख करने वालों पर इस काम से होने वाले शारीरिक प्रभावों की चर्चा करने के बाद मैं अब देखरेख करने वालों के मानसिक स्वास्थ्य के गंभीर मुद्दे के बारे में बात करूंगा. अक्सर अपने काम में हम सुनते हैं कि देखरेख के काम से जुड़े लंबी अवधि के परिणामों और उससे जुड़ी तात्कालिक चिंताओं की वजह से देखरेख करने वाले लोगों को अवसाद हो जाता है, वे चिंतित रहते हैं या पलायन कर जाते हैं और खराब मानसिक सेहत का अनुभव करते हैं.

दूसरों की देखरेख करना एक चुनौतीपूर्ण और कठिन काम है और अक्सर देखरेख करने वाले लोग पूरी तरह पस्त हो जाते हैं. इन भावनाओं के लिए उन्हें शर्मिंदा किए जाने की ज़रूरत नहीं है. अच्छे निहितार्थों वाली टिप्पणियां जैसे, “आप देवदूत सरीखी देखरेख करते हैं. आप ये कैसे कर पाते हैं, मुझे नहीं पता” या “विशेष बच्चे विशेष अभिभावकों को ही मिलते हैं, वो आपके पास रहने के लिए ही बनी है,”, देखरेख करने वालों को उत्साहित कर सकती हैं, लेकिन वे कितनी ही भली टिप्पणियां हों लेकिन बाज़ मौक़ो पर वो भले से ज़्यादा नुकसान भी कर सकती हैं. ये ध्यान रखना चाहिए. देखरेख करने वालों को ये बताने की कोशिश की जाती है कि उन्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए या वे अक्षम माने जाएंगें अगर वे अपनी भूमिका को कठिन कहने या मानने लगें.

देखरेख करने वाले लोगों को इस काम के कुछ खास पहलुओं पर विशेष कठिनाई महसूस हो सकती है, मिसाल के लिए, अपने मरीज़ का चुनौतीपूर्ण व्यवहार या नियमित रूप से बाधित हो रही नींद से निबाह करने में. जितना ज़्यादा मरीज़ को देखरेख की ज़रूरत बनती है, उतना ही ज़्यादा तनाव जैसी चुनौतियां बनने लगती हैं.

विशेष रिश्ते अतिरिक्त तनाव ला सकते हैं, उदाहरण के लिए, अगर एक दंपत्ति अपने जीवनसाथी की देखरेख कर रहा या रही है तो उसे अक्सर बढ़े हुए अवसाद की शिकायत होने लगती है. देखरेख करने वाले बुज़ुर्ग लोगों में यही समस्या आ जाती है.

अगर देखरेख करने वाले लोग इस तरह के बोझ को उठा पाने में समर्थ नहीं हैं, तो उनकी चिंता, तनाव और अलगाव का स्तर बढ़ जाता है. ये महत्त्वपूर्ण है कि बोझ को व्यवहारिक रूप से बांट लिया जाए. उदाहरण के लिए देखरेख के काम से कुछ देर की छुट्टी, या घर के काम किसी की मदद काम आ सकती है.

ये भी महत्त्वपूर्ण है कि भावनात्मक सहायता के तरीकों से भी बोझ को कम करते रहने की कोशिश की जाए. किसी पड़ोसी या दोस्त के ज़रिए भी ये काम हो सकता है जो बगैर निर्णायक हुए सुन सकता है, किसी स्वयं सहायता समूह का हिस्सा बना जाए जिसमें देखरेख करने वाले अन्य लोग भी सदस्य हों या किसी दक्ष विशेषज्ञ के पास परामर्श या काउंसलिंग के लिए जा सकें.

देखरेख करने वाले लोग जिस अनियंत्रित, निराधार और सहायताविहीन मानसिक और भावनात्मक बोझ का अनुभव करते हैं वो उनमें गंभीर मानसिक समस्याएं पैदा कर सकता है, जिससे उनकी अपनी ज़िंदगी और उनके मरीज़ की ज़िंदगी ख़राब हो सकती है.

लिहाज़ा कुछ अहम चुनौतीपूर्ण तथ्यों पर नज़र डालें. शायद आप देख पाएंगे कि आप अपने ऐसे किसी परिचित की किस तरीके से मदद कर सकते हैं जो देखरेख के काम में व्यस्त है.

तनाव और चिंता:  देखरेख करने के काम से जुड़ी ज़िम्मेदारी के चलते अक्सर देखरेख करने वाले लोग तनाव और चिंता महसूस करते हैं. वे आमतौर पर अपने प्रियजन की बीमारी और देखरेख की गतिविधियों को पूरा करने के बारे में सोचते हुए ही अपना अधिकांश समय बिता देते हैं. और इस तरह उनके लिए इस बात से ध्यान हटाना कठिन हो जाता है. उन्हें अक्सर सोने में दिक्कत आती है, ज़्यादा खाने लगते हैं या बहुत कम खाते हैं और पाते हैं कि उनका मूड भी प्रभावित हो रहा है. लंबे समय तक ऐसा महसूस करते रहने से देखरेख करने वालों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है और वे बीमार पड़ सकते हैं.

सामाजिक अलगाव: देखरेख करने वाले कई लोगों को सामाजिक रूप से मिलनेजुलने का समय निकालने में कठिनाई आती है. वे अपने पसंदीदा काम या अपना मनोरंजन भी नहीं कर पाते हैं. हमारे प्रोजेक्ट क्षेत्रों में, देखरेख करने वाले 88 फीसदी लोगों ने बताया कि उनके पास अपने लिए समय ही नहीं है. अपने लिए समय निकालना चाहें भी तो वे इसके प्रति ग्लानि महसूस करने लगते हैं. लांछन और तिरस्कार की चिंता, चाहे वो देखरेख करने वाले व्यक्ति के प्रति हो या उसके प्रति जिसकी वो देखरेख कर रहा है, दोनों ही स्थितियों में अर्थ ये है कि देखरेख करने वाले लोग दूसरों से अपनी इन जिम्मेदारियों के बारे में चर्चा नहीं करते हैं. ये बात उन्हें और अकेला महसूस करा सकती है और अंततः उनमें भी मानसिक स्वास्थ्य से जुडी समस्याएं आ जाती हैं जैसे चिंता और अवसाद. ये स्थिति देखरेख करने वाले उन 77 फीसदी लोगों में देखने को मिली जिनके साथ हम काम करते हैं.

हताशा और गुस्सा: देखरेख करने वाले लोग बहुत हताशा और गुस्सा महसूस कर सकते हैं, ख़ासकर जब उन्हें इस काम में अपना करियर तक दांव पर लगाना पड़ जाता है. वे महसूस कर सकते है कि उन्हें देखरेख करने की जिम्मेदारी उनकी इच्छा या बतौर विकल्प नहीं मिली है. कुछ मामलों में, ये गुस्सा परिवार के सदस्यों पर ही निकल सकता है या मरीज़ पर जिसकी वे देखरेख कर रहे हैं. इसके चलते देखरेख करने वाले के मन में अपराधबोध आने लगता है और फिर बुरी और नुकसानदेह भावनाओं का दुष्चक्र शुरू हो जाता है.

आत्म सम्मान में कमी: देखरेख करने वाले व्यक्ति के आत्मसम्मान पर भी गंभीर असर पड़ता है. उसे लग सकता है कि वो ध्यान या देखरेख से वंचित है और उसका सारा समय बीमार की देखरेख में ही लगना चाहिए. देखरेख करने वाले लोगं में विश्वास की कमी आ जाना सामान्य बात है और उनमें अपनी योग्यताओं को लेकर भी विश्वास कम होता जाता है कि कि वे अपने मरीज़ की देखरेख की ज़िम्मेदारियों से इतर भी कुछ कर सकते हैं.

पैसे की चिंताएं: देखरेख करने वालों को अतिरिक्त देखरेख के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं, दवाओं की कीमते, थेरेपी, उपकरण और परिवहन के लिए खर्च चाहिए. इससे उनके वित्त पर दबाव पड़ सकता है और इसका अर्थ ये है कि उन्हें अपने अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है. इससे व्यवहारिक दिक्कतें आ सकती हैं और अतिरिक्त तनाव उनमें आ सकता है. देखरेख करने वाले कई लोग पैसों के लिए संघर्ष करते हैं और कर्ज़ में फंस जाते हैं. देखरेख करने वाले दस लोगों में से नौ लोग, जिनसे हम नियमित रूप से मिलतेजुलते हैं, उन्होंने पैसों को लेकर अपनी चिंताएं जताई हैं.

देखरेख करने वालों को भी अपनी मानसिक सेहत की हिफाजत की ज़रूरत है और उन्हें ये मिलनी ही चाहिए. उन्हें इस तरह की जीवंत देखरेख तभी मिल पाएगी जब समाज के रूप में हम सब देखरेख के काम के बारे में खुलकर बात करें और ये भी देखें कि हमारे समुदायों में ये किस हद तक उपस्थित है. आखिरकार हममें से हर किसी को अपने जीवनकाल में कभी न कभी देखरेख की ज़रूरत पड़ेगी या हम देखरेख करने वाले के रूप में भूमिका निभाएंगें.

अपने अगले आलेख में, मैं देखरेख करने वालों की सहायता के व्यवहारिक और भावनात्मक तरीकों पर ध्यान केंद्रित करूंगा और उन तरीकों का भी ज़िक्र करूंगा जिनके ज़रिए केरर्स वर्ल्डवाइड उनकी मानसिक सेहत की सहायता करना चाहता है.

डॉ अनिल पाटिल केरर्स वर्ल्डवाइड नाम की संस्था के संस्थापक और कार्यकारी निदेशक हैं. ये संस्था परिवार में ही देखरेख करने वाले उन लोगों की मुश्किलों से निपटती और उन्हें सामने लाती है जो अनपेड हैं यानी जिन्हें देखरेख का कोई मानदेय नहीं मिलता है. 2012 में स्थापित और यूके(ब्रिटेन) में रजिस्टर्ड ये संस्था, विकासशील देशों में देखरेख करने वालों के साथ ही एक्स्क्लूसिव तौर पर काम डरती है. डॉ पाटिल इस स्तंभ को लिख रहे हैं रूथ पाटिल के साथ जो केरर्स वर्ल्डवाइड में वॉलंटियर हैं.

ज़्यादा जानकारी के लिए आप संस्था की वेबसाइट Carers Worldwide को देख सकते हैं. आप लेखकों को ईमेल भी भेज सकते हैं इस पते परः columns@whiteswanfoundation.org

इस लेखन​ में ज़ाहिर की गई राय लेखक की है और आवश्यक रूप से व्हाइट स्वान फ़ाउंडेशन के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है. 

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