आत्म-प्रकटीकरण: अपना मुखौटा उतारना

क्या आप आसानी से अपनी भावनाएं और अनुभव साझा कर लेते हैं या दूसरों को एक भावनात्मक दूरी पर रखते हैं? आपके लिए अपनी अंदरूनी ख़ुशियों, लक्ष्यों और निराशाओं को ज़ाहिर करना कितना कठिन होता है? लगातार हुए वैज्ञानिक शोधों के ज़रिए ये अब साफ है कि आपके जवाब आपकी खुशियों पर बहुत अधिक प्रभाव डालते हैं. इस बारे में कनाडा के मनोविज्ञानी डॉ सिडनी जोरार्ड के पथप्रदर्शक काम की पर्याप्त रूप से पुष्टि हो चुकी है- 50 साल से भी ज़्यादा समय पहले, उन्होंने सेल्फ़-डिसक्लोसर की अवधारणा पेश की थी. 1974 में एक हादसे में मौत से पहले उन्होंने काफ़ी सफल जीवन बिताया. जोरार्ड के काम ने न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मनोविज्ञान को प्रभावित किया बल्कि हमारी विस्तृत सभ्यता को भी. जोरार्ड ने कहा था कि जिस हद तक हम लोगों के सामने खुद को खुल कर जाहिर कर पाते हैं, उसका हमारे सामाजिक संबंधों और खुशी के लिए महत्त्वपूर्ण परिणाम होता है और शायद हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी. ये हैरानी की बात है कि व्यक्तित्व और बिहेवियरल स्टडी के किसी भी प्रमुख संस्थापक ने इस विषय पर ज़्यादा नहीं लिखा है. सिंगमड फ्रायड के मुताबिक, यौन दमन हमेशा से मुख्य बिंदु रहा है, और उसके शुरुआती साथी अल्फ्रेड आल्जर के मुताबिक मालिक होने या शक्ति के बोध की हमारी जन्मजात जरूरत है. इस क्षेत्र में 20वीं सदी में राज करने वाली तीन शख्सियतों में से एक थे कार्ल जुंग थे जिन्होंने दूसरों के सामने खुद को प्रकट कर देने की हमारी क्षमता को समझने में और भी कम रुचि दिखाई. हालांकि अमेरिकी मनोविज्ञान के संस्थापक विलियम जेम्स ने बहुत अर्थपूर्ण ढंग से अपनी प्रभावशाली किताब में विभिन्न किस्म के धार्मिक अनुभव के बारे में लिखा है, लेकिन अंतरंग संबंध उनके केंद्र में नहीं थे. ज़ाहिर है जॉन बी वाटसन, और उनके बाद बीएफ स्किनर जैसे अमेरिकी व्यवहारवादियों ने मुख्यतः अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन प्रयोगशाला के चूहों और कबूतरों के साथ किए गए प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर किया. यहां भावनात्मक अंतरंगता या लगाव को समझने की ज़्यादा गुंजायश नहीं थी!

1950 के आखिरी दशकों में, मनोविज्ञान के फील्ड में स्वस्थ नजदीकी संबंधों के विषय से जुड़ी अवधारणा के स्तर पर स्पष्ट रूप से एक छेद दिखता था- और सिजनी जोरार्ड ने बड़ी कुशलता और बुद्धिता से इस छेद को भरने में मदद की. क्योंकि उन्होंने कभी भी कोई संस्मरण या जीवनी का स्केत नहीं मुहैया कराया, ये तय करना कठिन है कि इस विषय पर उनके इस अभूतपूर्व काम के ये आकार कैसे बना. उनके बेटे से ऑनलाइन मिली जानकारी के मुताबिक, हम जानते हैं कि जोरार्ड, रूसी-यहूदी माता पिता की संतान थे जो आप्रवासी के रूप में कनाडा में बस गए थे. वो एक बड़े विस्तृत परिवार में वैश्विक महामंदी (द ग्रेट डिप्रेशन) के दौर में पले बढ़े थे. उस परिवार में पांच बच्चे और एक मौसी थी, इसके अलावा उसके अपेक्षाकृत समृद्ध मातापिता से मिलने विभिन्न नाते रिश्तेदारों का तांता लगा ही रहता था. उसके मातापिता का टोरंटो में कपड़ों का एक कामयाब स्टोर था. कई दोस्तों के साथ उसका बचपन हंसीखुशी में बीता था और जीवन भर वो अपनी मां के नज़दीक रहा था.

मनोविज्ञान में अपनी डॉक्टरेट करने के पांच साल बाद 1958 में, जोरार्ड ने आत्म-प्रकटीकरण पर अपना पहला पेशेवर पेपर संयुक्त रूप से लिखा. इस अध्ययन में, जोरार्ज और उनके साथी डॉ पॉल लास्कोव ने इस प्रवृत्ति पर पहली प्रश्नावली तैयार की और तब से ये इस क्षेत्र में शोध के लिए आदर्श बना हुआ है. अगले ही साल जोरार्ड ने आत्म प्रकटीकरण पर एक विस्तृत सैद्धांतिक पेपर लिखा और इसने व्यापक और चिरस्थायी प्रभाव पैदा किया.

तीस पैतीस साल की उम्र में, जोरार्ड ने बताया, “क्लाइंट अगर जाहिर न करे यानी वो इज़हार न करे या प्रकट न करे तो प्रेम, साइकोथेरेपी, काउंसिलिंग, शिक्षण और नर्सिंग जैसी तमाम गतिविधियां असंभव हैं. आत्म-प्रकटीकरण के ज़रिए ही व्यक्ति खुद को जाहिर करता है कि वो ठीक ठीक वो कौन, क्या और कहां है. थर्मामीटर, स्फिग्मैनोमीटर आदि, शरीर की वास्तविक दशा के बारे में जानकारी को प्रकट कर देते हैं, उसी तरह आत्म-प्रकटीकरण स्वयं की वास्विक प्रकृति को उद्घाटित करता है. आप अपनी पत्नी या पति, अपने बच्चे या अपने दोस्त को प्यार नहीं कर सकते हैं,” जोरार्ड के मुताबिक, “अगर जो उसने अपने बारे में जानने की इजाज़त आपको दी है और ये भी जानने की अनुमति दी है कि बेहतर स्वास्थ्य और सुंदर जीवन की दिशा में बढ़ने के लिए उसे क्या चाहिए.”

जोरार्ड ने इसके बाद रोजमर्रा के जीवन में सेल्फ डिसक्लोसर को लेकर एक के बाद एक किताबों की सीरिज़ लिख डाली. ये किताबें थीं: द ट्रांसपेरन्ट सेल्फ़ (उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति), डिसक्लोसिंग मैन टू हिमसेल्फ़, सेल्फ़-डिसक्लोसरः ऐन एक्सपैरीमेंटल एनालिसिस ऑफ़ द ट्रांसपेरन्ट सेल्फ़, और हेल्दी पर्सनैलिटी. तबसे, कई सारे मनोवैज्ञानकि अध्ययनों ने जोरार्ड के मत की पुष्टि की है. ख़ासकर जब इसमें अंतरंग रोमांटिक संबंधों की बात होती है जैसे शादी, स्त्री और पुरुष दोनों ही ज्यादा संतोष का अनुभव करते हैं जब उनके बीच सेल्फ़ डिसक्लोसर मौजूद रहता है- खासकर, किसी की खुलकर खुद को जाहिर कर देने की क्षमता. ये महसूस करना भी महत्त्वपूर्ण है कि किसी की पत्नी या पति अपनी भावनाओं को लेकर खुला हुआ या खुली हुई है.

शोध से लगातार ये पता चला है कि दंपत्ति एक दूसरे का इस रूप में भी मिलान करते हैं कि वे कितनी बातों का आत्मप्रकटीकरण करते हैं. और वो सांस्कृतिक शक्ति भी निश्चित रूप से काम करती है. उदाहरण के लिए, इस बात के साक्ष्य हैं कि लातिन अमेरिकी लोग, उत्तरी अमेरिकी लोगों की अपेक्षा आत्म प्रकटीकरण के मामले में अव्वल होते हैं. हालांकि दोनों ही संस्कृतियों में लोग पारिवारिट टकराहटों और सेक्स के बारे में बात करने से परहेज़ करते हैं. लातिन अमेरिकी लोग ज़्यादा विस्तृत और विविध विषयों पर बात करने में इच्छुक रहते हैं, जैसे संगीत, सिनेमा और पसंद को लेकर अपनी निजी चाहत के बारे में बताने में. हालांकि भारत में सेल्फ डिसक्लोसर से जुडी रिसर्च छिटपुट ही हैं, साक्ष्य बताते हैं अपने विश्वस्त व्यक्ति के सामने अपनी भावनाएं जाहिर करने या प्रकट करने को सकारात्मक ढंग से ही लिया जाता है.

मनोवैज्ञानिकों ने ये भी पाया है कि आत्म-प्रकटीकरण का एक आपसी या पारस्परिक प्रभाव भी होता है- इसलिए लगता है कि 19वीं सदी की ब्रिटिश उपन्यासकार जेन आस्टिन अपना ये शोक जाहिर करते हुए गल्ती कर बैठी कि,“विवाह में प्रसन्नता पूरी तरह इत्तफ़ाक की बात है.” इसका अर्थ ये है कि इस बारे में ठोस प्रमाण है कि जब हम किसी को अपने बारे में कोई बात ज़ाहिर करते हुए सुनते हैं, तो ये बात हमें भी खुद को और प्रकट करने के लिए प्रेरित करती हैं. और दूसरा व्यक्ति फिर और अधिक गहराई से रिस्पॉंड करता है. हाल की रिसर्च बताती है कि ऑनलाइन संचार में भी ऐसा ही होता है, जैसे सोशल मीडिया और डेटिंग वेबसाइटें.

आत्म-प्रकटीकरण सिर्फ़ रोमांटिक संबंधों में ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, ये मातापिता और बच्चों के बीच भावनात्मक अंतरंगता के लिए भी बहुत ज़रूरी है. हाल का एक अध्ययन जो मैंने अपने सहयोगियों के साथ किया था, उसमें कॉलेज के उन छात्रों ने खुद को अपने मातापिता के ज़्यादा नज़दीक महसूस किया जिन्होंने अपने मातापिता से उनके बचपन, किशोरावस्था, जवानी के बारे में सुना था बजाय कि उन बच्चों के जिनके मातापिता उनसे कटे रहते थे. मातापिता के नज़रिए से शायद ये ज़्यादा विशेष हो, कि आत्म प्रकटीकरण करने वाले मातापिता से मदद मांगने या सलाह लेने में उनके बच्चों को हिचक नहीं होती है. संदेश साफ़ हैः अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे आपसे नजदीकी रखें और आपकी गाइडेंस का मूल्य समझें तो उनसे अपने जीवन अनुभवों के बारे में खुलकर बात कीजिए.

क्या इसका अर्थ है कि हर चीज़ बता दी जानी चाहिए? बिल्कुल नहीं. जोरार्ड भी इस बात से ज़रूर सहमत होते कि इस बारे में भी सही निर्णय करने की ज़रूरत है कि क्या बताना है और क्या नहीं- चाहे आप मातापिता हैं या पति या पत्नी, दोस्त या सहयोगी. खासकर जब कार्यस्थल की बात आती है, बहुत से मनोवैज्ञानिकों की हिदायत है कि क्या चीज़ किसी के साथ शेयर करनी है इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए. फिर भी ये तो तय है कि अगर हम अपने मन की गांठ खोले और मन की बात बोल दें तो इससे फायदा ही होगा. इसे कैसे पूरा करें? छोटी छोटी बातों से शुरू करें, जैसे हाल के टीवी कार्यक्रमों, फिल्मों, या किताबों के बारे में जिनसे आप प्रभावित हुए हों. लेकिन याद रखें: बौद्धिकता न झाड़ें और अपनी भावनाओं पर ही केंद्रित रहें.

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