कार्यस्थल में धौंसियाना क्या है? क्या यह स्कूल में धौंसियाने से अलग है?

कार्यस्थल में धौंसियाना क्या है? क्या यह स्कूल में धौंसियाने से अलग है?

हम सभी को अपने जीवन में कभी न कभी डराए या धमकाए जाने का अनुभव हुआ है या हमने धौंस जमाने के बारे में सुना है। हमने स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, खेल के मैदान में, गलियों- सड़कों पर, काम पर या सामाजिक समारोहों में ऐसा होते हुए देखा या सुना है। धौंस जमाने वाले लोग हर कहीं मिल जाते हैं।

अक्सर, ऐसा होता है कि किसी के लिए यह समझना मुश्किल हो सकता है वे बुलिंग या धौंस के शिकार बन रहे हैं, और इससे भी अधिक यह जानना कि वे इससे कैसे निपटें, खासकर धौंस जैसे उत्पीड़न का अनुभव जब किसी कार्यस्थल पर हो।

वर्कप्लेस बुलिंग इंस्टीट्यूट के मुताबिक, कार्यस्थल में धौंसियाना "एक या अधिक लोगों द्वारा एक या अधिक व्यक्तियों को लक्ष्य बनाकर उनके साथ लगातार किया जाने वाला स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दुर्व्यवहार है।"

धौंस जमाने वाले क्या करते हैं?

धौंस जमाने वालों का व्यवहार अपमानजनक होता है। यह गाली-गलौज से लेकर किसी के काम में हस्तक्षेप, अपमान, धमकी देने, किसी व्यक्ति को डराने, या उन्हें अपना काम पूरा करने से रोकने तक कुछ भी हो सकता है।

लोग कार्यस्थल पर दूसरों पर धौंस क्यों जमाते हैं?

धौंस जमाना एक सर्वव्यापी घटना है, और इसके बारे में हम जानते हैं, मगर कार्यस्थल पर ऐसा तब किया जाता है जब धौंस जमाने वाला निशाने पर लिए गये व्यक्ति को अपने नियंत्रण में करना चाहता है। वे चुनते हैं कि किसे, कब और कहां अपना निशाना बनाना है और कैसे उन्हें डराना-धमकाना है। इसमें दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करना या ऐसी बाधाएं पैदा करना शामिल है जिससे दूसरें ठीक तरह से काम ना कर पाएं। निशाने पर लिए गये व्यक्ति पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। यह एक ऐसी स्थिति तक पहुंच सकता है जहां अन्य लोग भी धौंस जमाने वाले व्यक्ति का पक्ष लेने लगें। ऐसा अपनी मर्जी से या बलपूर्वक भी कराया जा सकता है। धौंस जमाने वाला व्यक्ति सारे अन्य कामों को छोड़कर इस व्यक्तिगत मंसूबे के पीछे अपना पूरा समय झोंक देता है। यह घरेलू हिंसा की तरह ही होता है।

स्कूल में धौंसियाना बनाम कार्यस्थल में धौंसियाना: दोनों में क्या अंतर है?

स्कूलों और कार्यस्थलों में घटने वाले धौंस के मामलों का मकसद और सिद्धांत समान है। फिर भी, कुछ समानताएं हैं तो कुछ मामूली अंतर भी हैं।

समानताएं

स्कूलों और कार्यस्थलों पर धौंस जमाने वालों में निशाने पर लिए गये लोगों को नियंत्रित और अपमानित करने की जबरदस्त चाह होती है। स्कूल में, यदि उन्हें बच्चों से वाहवाही मिलती है और भयभीत शिक्षकों या प्रबंधकों द्वारा उन्हें अनदेखा किया जाता है, तो वे बड़े होकर लोगों पर हावी हो जाते हैं।

अंतर

कार्यस्थलों पर, धौंस जमाने वाले दूसरों की जरूरतों का अनादर करते हैं, अपनी आजीविका को खतरे में डालते हैं, समय और धन के जोखिम के साथ उनका कैरियर सही तरीके से आगे नहीं बढ़ता है। जब उनकी पत्नी या पति उनके लिए कोई समाधान खोजने के लिए हस्तक्षेप करते हैं तो वे अपनी आजादी छिन जाने की भावना से भी पीड़ित रहते हैं ।

इस बात को ध्यान में रखना भी महत्वपूर्ण है कि पुरुषों और महिलाओं के धौंसियाने के तरीके भिन्न होते हैं। जब पुरुष ऐसा करते हैं, तो यह अधिक स्पष्ट और ध्यान खींचने वाला होता है, लेकिन जब महिलाएं धौंस जमाती हैं, तो यह सुस्पष्ट रूप से जाहिर नहीं होता, ना ही दूसरों को बहुत ज्यादा दिखाई देता है।

वर्कप्लेस ऑप्शन्स की निदेशक, मौलिका शर्मा से मिले आदानों पर आधारित।

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